कबीरपंथी होने की सार्थकता मनुष्य होने में है

SHARE:

- कुबेर आदरणीय संतों एवं मित्रों, कबीर साहब ने कहा है - ’सब कहते कागद की लेखी, मैं कहता आँखन की देखी।’ कागद की लेखी आप सभी जानते हैं और...

image

- कुबेर

आदरणीय संतों एवं मित्रों, कबीर साहब ने कहा है -

’सब कहते कागद की लेखी,

मैं कहता आँखन की देखी।’

कागद की लेखी आप सभी जानते हैं और मुझसे बेहतर जानते हैं। उन बातों को दुहराने से कोई लाभ होगा, इसे मेरा मन स्वीकार नहीं करता; अतः मैं अपसे वही बात कहूँगा जो मेरी अपनी आँखन देखी है। सद्गुरू कबीर प्राकट्य दिवस पर इस चर्चा की सार्थकता भी इसी में है। मैं अपने कुछ अनुभव आपके साथ साझा करना चाहूँगा।

दो साल पहले की बात है, भिलाई में एक मित्र के घर चाय का दौर चल रहा था। मित्र महोदय ने अचानक एक अनापेक्षित प्रश्न उछाल दिया - ’मृत्यु के बारे में आप क्या जानते हैं?’

प्रश्न सुनकर मैं अवाक रह गया क्योंकि इसके लिए मैं तैयार नहीं था। कुछ झण पश्चात मैंने कहा - ’मित्र! मृत्यु के बारे में तो मैं कुछ भी नहीं जानता क्योंकि आज तक मैं कभी मरा नहीं हूँ। इसीलिए इसका मुझे कोई अनुभव भी नहीं है।’

चैकने की बारी अब मित्र की थी। उनसे कुछ कहते नहीं बना। कुछ समय तक खामोशी छायी रही। इस तरह के दार्शनिक प्रश्न के द्वारा हम सामने वाले ही योग्यता को माप भी सकते हैं और अपनी योग्यता का लोहा भी मनवा सकते हैं। मित्र महोदय की योजना क्या थी, वे ही बेतर जानते होंगे। खामोशी को तोड़ते हुए मैंने कहा - ’मित्र! इस विषय पर आप भी घंटे-दो घंटे का बढ़िया प्रवचन कर सकते हैं और मैं भी, परन्तु उस प्रवचन में न तो आपका अनुभव होगा और न ही मेरा। वही सब कुछ होगा जिसे या तो हमने कहीं से पढ़ी है या सुनी है या फिर वे काल्पनिक बातें होंगी, जो हमारे विचारों में आते होंगे। ये सब बातें सत्यता से परे होंगी। दशकों से लोग ऐसा करते आ रहे हैं परन्तु क्या मृत्यु को कोई जान पाया है? मृत्यु को तो मरने वाला ही जान सकता है, और मरने के बाद आपना अनुभव बताने के लिए लौटकर कोई आता नहीं है। जिस बात का हमें कोई अनुभव न हो उस पर चर्चा करने से कोई लाभ भी तो नहीं है। मृत्यु पर चर्चा करके न तो मृत्यु को सुंदर बनाया जा सकता है और न ही जीवन को। कुछ करने और कुछ बनाने के लिए कर्म की आवश्यकता होती है। मृत्यु में कोई कर्म संभव नहीं है। कर्म जीवन में संभव है। जीवन का हमें अनुभव है। जीवन की चर्चा करके हम अपने जीवन और मृत्यु दोनों को ही सुंदर बना सकते हैं। परन्तु हमने आज तक कभी जीवन की बातें की ही नहीं, अनुभव की बातें की ही नहीं। तथागत ने ऐसे प्रश्नों को अव्याकृत कहा था और अव्याकृत विषयों पर वे चर्चा नहीं करते थे।

आदरणीय संतों एवं मित्रों, कबीर साहब ने भी जीवन भर जीवन की बातें कही है, की है। जीवन को सुंदर और मृत्यु को आनंददायी बनाने की बातें की है। उन्होंने जो कुछ कहा उसे अपने जीवन में उतारा और अपने जीवन को सुंदर और मृत्यु को आनंददायी बनाकर दिखाया भी है। रोते हुए तो हम आते ही हैं, इस पर हमारा कोई बस नहीं है, परन्तु जाते वक्त हम हँसते हुए जा सकें, यह हमारे ही बस में है। ’कुछ ऐसी करनी कर चलो, आप हँसे जग रोये।।’ इसका जतन हमें करना चाहिए, कबीर को मानने की सार्थकता इसी में है।

’राम नाम रस भीनी चदरिया

दास कबीरा ने ओढ़ी चदरिया,

ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया।’

’ईश्वर ने हम सबको शरीर रूपी यह चादर दिया हुआ है। कबीर साहब ने इसे राम नाम के रस से (प्रेम-रस से) सिक्त किया, सुवासित किया। धर्म, संप्रदाय, जाति, छुआछूत, ऊँच-नीच, पाखण्ड, आडंबर, आदि के दागों से बचाकर रखा और इसीलिए वे इस चादर को ज्यों की त्यों लौटा सके।’

क्या हम भी ऐसा नहीं कर सकते?

आदरणीय संतों एवं मित्रों, पिताजी के निधन पर चैंका हुआ। चैंका स्थल पर मैंने पिताजी का फ्रेम किया हुआ फोटो रखना चाहा। महंत साहब ने इसकी अनुमति नहीं दिया। चैंका के बाद मैंने महंत साहब से इसका कारण जानना चाहा। महंत साहब ने कहा - कबीरपंथ में निर्गुण ईश्वर की उपासना किया जाता है। मैंने कहा - साहेब! हम सब कबीरपंथियों के घरों में कबीर साहब की, धर्मदास साहब और उनके वंशजों के बड़े-बड़े फोटों दीवारों में टंगे होते हैं और रोज उसकी पूजा-आरती होती है। इन फोटों को हम दामाखेड़ा से ही खरीदकर लाते हैं। इसका विरोध तो आपने कभी नहीं किया। एकमात्र बीजक ही कबीर साहेब का प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसमें चैंका-आरती का कहीं कोई विधान नहीं है। कान फूॅँकने और कंठीमाला पहनाने की विधि का भी कोई उल्लेख नहीं है। यह सब कहाँ से आया? महंत साहब ने कहा - यह सब धनी धर्मदास साहब का बनाया हुआ है। मैंने कहा - तब तो हम धर्मदास पंथी हुए, कबीर पंथी नहीं। सुनकर महंत साहब बहुत विचलित हुए। प्रगट में क्रोधित नहीं हुए पर उनका क्रोध उनके व्यवहार से प्रगट हो रहा था। उसने कहा - लगता है, आप भटके हुए हैं। आपके खानपान और विचार शुद्ध नहीं लगते। आप कंठी माला नहीं पहने हो, चंदन का टीका भी नहीं लगाते हो, गुरू बनाये हो कि नहीं? कैसे कबीर पंथी हो?

मैंने कहा -

बैस्नो भया तो कया भया, बूझा नहीं विवेक।

छाप-तिलक बनाई कर, दग्ध्या लोक अनेक।।

हम भी पाहन पूजते होते, हिन्दू बनके रोज।

सद्गुरू की कृपा भयी, डारया सिर के बोझ।।

टोपी पहिरे, माला पहिरे। छाप-तिलक अनुमाना।

साखी शब्दे गावत भूले। आतम खबर न आना।।

साहेब, जिस प्रकार आज मैंने अपने तीन साल के बेटे को आपका शिष्य बनाया है, ठीक वैसा ही, कभी मेरे माता-पिता ने भी मेरे साथ किया होगा। कंठीमाला मैं तो पहनता ही था, घर के दीवरों, दरवाजों, खिड़कियों, बर्तन-भांड़ों, सूपा-बाहरी को भी पहनाता था। चंदन का टीका भी लगाता था। परन्तु न जाने कब और कैसे सद्गुरू की कृपा हुई और सिर के ये सारे बोझ जो सबसे बड़े बंधन भी थे, आप ही आप छूट गये। आप पूछते हैं - गुरू बनाया कि नहीं? साहेब! मैं तो रोज ही कोई न कोई गुरू बनाता हूँ। ये पेड़-पौधे, नदी-पहाड़, खेत-खार, कीट-पतंग, गुनगुनाता हुआ यह हवा, मस्ती में नचती -फुदकती हुई ये पक्षियाँ, रोज ही इनमें से कोई न कोई, सिर का बोझ कम करने वाला एक संदेश मुझे दे जाता है और इन्हें मैं गुरू बना लेता हूँ। ये ऐसे गुरू हैं जिन्हें कभी गुरूदक्षिणा भी नहीं देना पड़ता।

साहेब! यदि मस्जिद की मीनार पर चढ़कर मुल्ला का जोर-जोर से अजान पढ़ना व्यर्थ है तो चैंका आरती में झांझ-मजीरे का यह कानफोड़ू आवाज सार्थक कैसे है? पत्थर पूजने से ईश्वर नहीं मिलता तो आटे का इतना बड़ा दीपक बनाकर पूजने से ईश्वर कैसे मिल सकता है। ज्ञान या जीवात्मा का प्रतीक चाहिए तो मिट्टी का छोटा सा दीया ही काफी है।

मेरी बातें सुनकर महंत साहब काफी नाराज भी हुए और कई तरह से स्पष्टीकरण देते रहे। आदरणीय संतों और मित्रों! कबीर साहब की मुक्ति, आसक्तियों से मुक्ति में निहित है। आसक्तियाँ हमारे बंधन हैं। सद्गुरू हमंे इन बंधनों से मुक्त होने में हमारी सहायता करते हैं। बांधने वाला व्यक्ति कभी भी सद्गुरू नहीं हो सकता।

आदरणीय संतों और मित्रों! आशकरण अटल की एक बड़ी प्यारी कविता है - ’क्या हमारे पूर्वज बंदर थे?’ एक मित्र हैं। वे खेती नहीं करते, व्यापर करने वाले संप्रदाय से संबंधित हैं। किसी चर्चा के दौरान एक दिन उन्होंने कहा - खेती में बड़ी हिंसा होती है, इसलिए हम लोग खेती नहीं करते हैं। मैंने कहा - बंदर जिस दिन खेती करना सीख लेंगे, उस दिन उनके पास भी लिपि होगी, भाषा होगी, धर्मग्रंथ होंगे, धर्म, दर्शन, साहित्य और सभी प्रकार की कलाएँ होंगी और उनका अपना ईश्वर भी होगा। उनका ईश्वर हमारे ईश्वर के समान नहीं होगा। उनका ईश्वर उनके समान ही होगा। हमारे ही ईश्वर एक जैसे कहाँ होते हैं?

मित्र ने कहा - क्या मतलब? ऐसा कैसे कह सकते हो?

मैंने कहा - ऐसा इसलिए कह सकता हूँ कि मनुष्य जब खेती करना नहीं जानता था, वह भी बंदरों के समान ही था। मनुष्य ने खेती करना सीखा। उसके पास आज धर्म, दर्शन, सभ्यता, संस्कृति, और ज्ञान-विज्ञान, सब कुछ है। बाकी पशु खेती करना नहीं सीख पाये, उनके पास ये नहीं हैं। धर्म, दर्शन, सभ्यता, संस्कृति, और ज्ञान-विज्ञान, के मामले में हम आज जहाँ हैं वह सब खेती की बदौलत ही है। भूख कभी भी हमें पशु के स्तर से ऊपर उठने नहीं देता है। पेट अनाज से भरता है और अनाज खेती से आता है। खेती के लिए ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है, कौशल और तकनीक की आवश्यकता पड़ती है। यह ज्ञान केवल किसानों के पास होता है। किसानों के इसी ज्ञान की नींव पर आज के हमारे धर्म, दर्शन, सभ्यता, संस्कृति, और ज्ञान-विज्ञान टिके हुए हैं। यह ज्ञान सभी ज्ञानों से श्रेष्ठ है। कृषि एक पवित्र कार्य है। इसमें हिंसा देखना मूर्खता के सिवा और कुछ भी नहीं है। कृषि और कृषकों की महानता को हमारे नेताओं ने पहचान लिया, मान लिया, लेकिन हमारे धर्माचार्यों की आँखों में अभी भी अपने थोथे ज्ञान के अहंकार की पट्टी बंधी हुई है।

आदरणीय संतों और मित्रों! कबीर साहब ने सदा इसी व्यावहारिक ज्ञान की प्रतिष्ठा की है। उन्होंने सदा हमें पोथी आधारित ज्ञान की व्यर्थता से अवगत कराया है।

’क्या हमारे पूर्वज बंदर थे’ एक हास्य प्रधान परन्तु बड़ी सुंदर और मार्मिक कविता है। डार्विन का सिद्धांत है - बंदर मनुष्य के पूर्वज हैं।

बच्चे ने स्कूल में यह सिद्धांत पढ़ा। घर आकर विभिन्न लोगों से पूछा - क्या हमारे पूर्वज बंदर थे? सबसे अलग-अलग और विचारोत्तेजक जवाब मिले। अंत में उसने ओशो से पूछा - कया हमारे पूर्वज बंदर थे? ओशो ने कहा -

’प्रश्न सामयिक है, मजेदार है,

लेकिन एक बार बंदर से भी पूछकर देख लो

कि क्या उसे आज के मनुष्य का

पूर्वज बनना स्वीकार है?

वह इन्कार कर देगा, शर्म के मारे डूब मरेगा

या कोई आदमी जैसा चालाक बंदर रहा

तो अदालत में मानहानि का दावा कर देगा

कि हुजूर!

हम बंदरों की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाया जा रहा है

इस भ्रष्ट और हिंसक मनुष्य को

हमारा वंशज बताया जा रहा है।

मनुष्य होना एक दुर्लभ घटना है

मनुष्य अभी मनुष्य नहीं बना है।’

अंत में कवि कहते हैं -

हर एक की बात ने मन को छुआ

उत्तर तो नहीं मिला, पर एक और प्रश्न उठ खड़ा हुआ

अब मैं यह नहीं पूछता कि क्या आदमी पहले बंदर था?

वह प्रश्न खड़ा है वहीं का वहीं

अब मैं पूछता हूँ - आदमी आदमी भी है कि नहीं?

आदरणीय संतों और मित्रों! आप भी इस प्रश्न का उत्तर सोचें। अपने आप से पूछें - क्या हम आदमी बन पाये हैं। कबीर साहब आजीवन आदमी को आदमी बनाने का प्रयास करते रहे। यदि कुछ अंशों में सही, यदि हम आदमी बन सके तो ही हमारा कबीरपंथी होना सार्थक हो सकता है।

सकल संत को साहेब बंदगी साहेब।

कुबेर

9407685557

--

(ऊपर का चित्र - शशि कुमार कमल की कलाकृति का डिटेल)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कबीरपंथी होने की सार्थकता मनुष्य होने में है
कबीरपंथी होने की सार्थकता मनुष्य होने में है
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAaWNsjCcItNJZlr8Av1hTR6jvEJwyfHZVJdL2IajYm7-3BAuNBGlwVjJJVa8eGmg5jkQNbIMyFmBAvdllXSSPWgtQ-33qS2aw2gA8bebgznMJk9UEYvJzWR9I7uo9EUcL1IE_/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAaWNsjCcItNJZlr8Av1hTR6jvEJwyfHZVJdL2IajYm7-3BAuNBGlwVjJJVa8eGmg5jkQNbIMyFmBAvdllXSSPWgtQ-33qS2aw2gA8bebgznMJk9UEYvJzWR9I7uo9EUcL1IE_/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/06/blog-post_81.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/06/blog-post_81.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content