- हनुमान मुक्त भीखूमल मास्साब उच्च प्राथमिक विद्यालय में काम करते हैं। बरसों से वे बच्चों को अपने डन्डे के बल पर मातृभाषा का पूर्णतया इ...
- हनुमान मुक्त
भीखूमल मास्साब उच्च प्राथमिक विद्यालय में काम करते हैं। बरसों से वे बच्चों को अपने डन्डे के बल पर मातृभाषा का पूर्णतया इस्तेमाल करते हुए शिक्षित करने का कार्य निर्बाध गति से करते आ रहे हैं।
सरकार ने निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2009 पारित कर दिया है और इस कानून की एक प्रति विद्यालय में भी आ गई है। इसको किस प्रकार लागू करना है, इसका प्रशिक्षण भी भीखू मास्साब ने प्राप्त कर लिया है।
अपने विद्यालय के केचमेंट एरिया में आने वाले समस्त 6 से 14 आयु वर्ग के बालकों का उन्होंने सर्वे कर लिया है। प्रवेश फार्म स्वयं ने भरकर उन्हें एस.आर. रजिस्टर में दर्ज कर लिये है। अधिनियम का अक्षरशः पालन करते हुए मास्साब ने छात्रों की आयु के अनुसार उनकी कक्षा का निर्धारण कर दिया है। जैसे यदि कोई बालक 12 वर्ष का है तो उनका नाम कक्षा-7 में लिखा है।
वह पढ़ना-लिखना कितना जानता है। अब कक्षा का स्तर वह नहीं है अपितु बालक कितने वर्ष का है, वही उसकी कक्षा होगी। अधिनियम की धारा 4 का उसने पूर्णतः पालन किया है। बालक पढ़ना-लिखना सीखे या नहीं, परीक्षा में बैठे या नहीं बैठे उससे उसे कोई मतलब नहीं। किसी बालक या बालिका का बाप उसे खेतों में भेजे या घर पर रखे, इन सब बातों से उसने अपना ध्यान बिल्कुल हटा लिया है। मात्र प्रशिक्षण में सिखायी गई अधिनियम की धाराएं ही उसके मस्तिष्क में कौंध रही है।
अब भीखू मास्साब अपने छात्र-छात्राओं से बड़े अदब से पेश आते हैं। उनके नाम से पहले श्री और बाद में जी का उच्चारण करते हैं। इस बात का पूरा ध्यान रखते है कि कहीं धारा 17 का उल्लंघन ना हो जाए।
छात्र भीखू मास्साब को भीखू मास्साब ही कहते हैं। कुछ प्रतिभाशाली छात्रों ने तो भीखू मास्साब पर एक कविता की रचना कर रखी है। जिसका सस्वर वाचन वे यदा-कदा करते ही रहते हैं। भीखू मास्साब के स्टूल पर बैठते समय एक छात्र ने तो स्टूल को पीछे खिसका दिया था। मास्साब का ध्यान प्रतिभाशाली बालकों की प्रतिभा पर नहीं था और धड़ाम से नीचे गिर पड़े। बच गए, सिर नहीं फूटा। लेकिन छात्रों को मजा आ गया। सब ही ही कर हंसने लगे। बेचारे मास्साब क्या करते? खड़े हुए, मुंह को विचित्र प्रकार से बनाया और पुनः लगे अपना उस दिन का पाठ्यक्रम पूरा कराने।
धारा 16 के बारे में प्रत्येक बालक को अच्छी तरह ज्ञात है कि उन्हें किसी भी कारण से फेल (अनुत्तीर्ण) नहीं किया जाएगा और न ही स्कूल से निकाला जाएगा।
मास्साब भी इस धारा को अच्छी तरह जानते हैं। साथ ही धारा 17 की तलवार भी उनके सिर पर लटक रही है। इसलिए चुपचाप इज्जत से शिक्षा के स्तर को उठाने में लगे हुए हैं।
परीक्षा के समय पास करने की कागजी पूर्ति के लिए छात्रों के नहीं आने पर, अपने बच्चे को बुलाकर उस छात्र की उत्तर-पुस्तिका की पूर्ति करवाते हैं। सभी छात्र पास हो इसके लिए वे छात्रों को समस्त सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास करते हैं। कम से कम उत्तर-पुस्तिका में तो कुछ लिखा हो इसका वे ध्यान रखते है
कक्षा 7 व कक्षा 8 के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएं स्वयं को फिल्म के हीरो-हीरोइनों से कम नहीं आंकते। उन्होंने मौके-बेमौके आंखमिचौली का खेल खेलना शुरू कर दिया है। अब मास्साब की आंख मिचौनी खेल खेलने वाले खिलाड़ियों को देखते हुए भी अपनी आंखें मूंद लेते हैं। उन खिलाड़ियों ने उनसे कह रखा है कि यदि मास्साब ने घर पर कहने की या उनका खेल रोकने कोशिश की तो वे उन पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का केस लगा देंगे।
मास्साब को धारा 17 प्रशिक्षण में पूर्णतया रटवा दी गई थी। ‘किसी भी बालक को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया जाएगा’ यानी बच्चों के साथ मारपीट नहीं होगी और ना ही उन्हें अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया जाएगा। इसका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ उससे संबंधित सेवा-नियमों के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी।
यह अधिनियम बालकों के लिए था लेकिन यदि कोई बालक शिक्षक को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करे यानी अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करे अथवा मारपीट करे तो उसके लिए छात्र के खिलाफ कौनसी कार्रवाई किस धारा के तहत की जाएगी। अधिनियम पूरी तरह मौन है।
भीखू मास्साब अधिनियम का पूरी तरह पालन करने में स्वयं को लगाए हुए है। कहीं कोई त्रुटि ना हो जाए दिन रात यही बात खयालों में रहती है।
अब मास्साब प्रतिदिन अपनी दैनन्दिनी डायरी भरते हैं। नियत पाठ्यक्रम जो जिस दिन जिस कक्षा को पढाया जाना है। उसकी पूर्ति वे डायरी में आवश्यक रूप से करते हैं। उन्हें प्रशिक्षण में बताया गया था कि अब कोई भी ‘सूचना के अधिकार’ कानून के तहत यह पूछ सकता है कि आपने फलां दिन, फलां कक्षा को क्या पढ़ाया।
कक्षा में पढ़ाना इतना आवश्यक नहीं है जितना डायरी में पढ़ाना दर्ज करना।
शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए आरटीई-2009 में कुल 38 धाराऐं लागू की गई है। प्रत्येक धारा का पालन करते हुए मास्साब शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठा रहे हैं।
धारा 21 के तहत मास्साब ने विद्यालय प्रबंध समिति का गठन कर लिया है नियमानुसार समिति ने तीन चौथाई सदस्यों के नाम बालकों के अभिभावकों के लिख दिए हैं। कमजोर और पिछड़े वर्ग के बच्चों के अभिभावकों के नाम भी आनुपातिक आधार पर लिखे हैं। साथ ही आवश्यक रूप से 50 प्रतिशत महिलाओं को शामिल किया है। मासिक बैठक में समिति के सदस्य कितने आते हैं, यह मास्साब अच्छी तरह जानते हैं। अभिभावकों को बैठक में आने की फुरसत नहीं है। लेकिन कागजी खाना-पूर्ति आवश्यक है। शिक्षा के स्तर को सुधारना है। अधिनियम की पालना आवश्यक है।
मास्साब ने पोषाहार व अन्य मदों में से समिति के माननीय सदस्यों का मीटिंग भत्ता फिक्स कर रखा है। घर-घर जाकर मास्साब मीटिंग रजिस्टर में जाकर हस्ताक्षर करवा लाते हैं। समस्त प्रस्ताव एवं उनका अनुमोदन नियमानुसार हो जाता है। मास्साब को शिक्षा के स्तर को सुधारते हुए अपनी नौकरी सुरक्षित जो रखनी है।
पहले भीखू मास्साब गांव के कुछ बच्चों को विद्यालय समय के पश्चात् शाम को घर पर लेकर पढ़ा दिया करते थे। अब उन्होंने किस भी छात्र को पढ़ाना ही बंद कर दिया है। अधिनियम की धारा 28 के तहत कोई भी शिक्षक/शिक्षिका प्राइवेट ट्यूशन या प्राइवेट शिक्षण क्रिया कलाप में स्वयं को नहीं लगाएगा/लगाएगी। इस बात को उन्हें पूरी तरह भान है। भीखू मास्साब प्रार्थना स्थल पर अब उन छात्र-छात्राओं को सम्मानित करते हैं जो चौंसठ कलाओं में प्रवीण है। मास्साब की नौकरी को खतरा अब ऐसे ही विशेष प्रकार के छात्रों से है। अब वे शिक्षा के स्तर को शिक्षा अधिनियम के तहत ऊंचा उठाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।
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