- हनुमान मुक्त लाखों वर्षों से एक ही काम करते-करते चित्रगुप्त की आँखें भी कमजोर हो गई थी और लगता था कि उनकी बुद्धि भी सठिया गई है। इस...
- हनुमान मुक्त
लाखों वर्षों से एक ही काम करते-करते चित्रगुप्त की आँखें भी कमजोर हो गई थी और लगता था कि उनकी बुद्धि भी सठिया गई है। इसलिए मोटा चश्मा आँखों पर लगा, कर्मों का हिसाब धर्मराज को सुनाते-सुनाते वे बार-बार रूक जाते और कहीं खो जाते।
धर्मराज उनको ऐसा करते देख बार-बार झुंझला रहे थे। ऐसा क्या हो गया चित्रगुप्त जो विचारमग्न हो रहे हो, जिसने जैसे भी कर्म किए हो तुरन्त उनका चिट्ठा पढ़ो।
चित्रगुप्त ने अब बिना विचार किए चिट्ठा पढ़ना शुरू किया।
महाराज ये वे डॉक्टर हैं जिनके कारण अपने लोक में आपातकालीन संकट आ खड़ा हुआ है। जिन आत्माओं को माँ के गर्भ से जन्म लेना था वे आत्माएँ जन्म लेने से पहले ही यहाँ आ पहुंची। इन लोगों ने उनका जन्म तक नहीं होने दिया।
हमारे यहाँ के क्रूर यमों तक ने विधाता के विधान को भी धता बताकर सत्यवती के सामने पिघलकर उसके पति के जीव को वापिस भेज दिया और उसे जीवनदान दे दिया। लेकिन इन्होंने तो जाने कितनी सत्यवतियों के सुहाग को उजाड़कर यहाँ भेज दिया।
महाराज समझ नहीं आ रहा कि इनके लिए कौनसे नर्क की वकालत मैं आपसे करूं।
धरती पर इनको भगवान का दर्जा दिया जाता है। भगवान के बाद इनको ही पूजा जाता है।
सभी समाजों में इनको पलकों पर बैठा कर रखा जाता है। लेकिन फिर भी महाराज...। कहते-कहते चित्रगुप्त रूक गया। अपनी जेब से रूमाल निकाल कर उन्होंने आंसुओं को पोंछते हुए अपनी बात पूरी की।
इसके अलावा ये लोग डॉक्टरी के धंधे की आड़ में मानव अंगों की तस्करी करते हैं सो अलग। रिश्वत, कमीशन खोरी तो इनके लिए सामान्य सी बात है, कोई गरीब हो या अमीर बिना पैसे के कोई काम नहीं करते, सामान्य होने वाली डिलेवरी को भी ये ऑपरेशन से चीरफाड़ कर करते हैं। इनके इस कृत्य से कभी-कभी बालक की और माँ की भी मृत्यु हो जाती है। इसका खामियाजा भी उनके परिवारजनों को ही भोगना पड़ता है और यहां यमलोक में अनचाही भीड़ इकट्ठी हो जाती है।
धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और भगवान की सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक का आवंटन करते आ रहे थे। अपने जीवनकाल में इन्होंने भगवान को भी चढ़ावा नहीं चढ़ाया लगता है, वहाँ से भी किसी की सिफारिश नहीं आई।
इन्हें नर्क में भिजवा दिया जावे। धर्मराज आदेश देकर अप्सराओं के साथ मूड फ्रेश करने यमलोक से दूर वादियों में बने फार्म हाऊस पर आ गए। फार्म हाउस में कुछ बॉलीवुड अभिनेत्रियाँ भी वहां की अप्सराओं को नृत्य की आधुनिक शैली सिखाने में मस्त थी।
धर्मराज जी को आए अभी कुछेक घंटे ही गुजरे होंगे कि एक यमदूत जोर-जोर से किवाड़ पीटने लगा। आवाज सुनकर धर्मराज जी के आदेश से एक सेविका ने दरवाजा खोला। बाहर खड़ा यमदूत बदहवास की सी स्थिति में हाथ जोड़कर धर्मराज जी के सामने बोला।
महाराज गजब हो गया। जिन डॉक्टरों को आपने नर्क में भेजा था उन्होंने वहाँ जाने से इनकार कर दिया।
चित्रगुप्त जी भी उनसे कह-कह कर हार गए हैं लेकिन उन पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, बल्कि उन्होंने वहीं दरबार में बैठ कर हड़ताल कर दी है।
कोई बात नहीं। भूख हड़ताल की होगी, कुछ दिनों तक भूखे पड़े रहने दो, अपने आप दिमाग ठिकाने आ जाएगा। इसमें चिन्ता की क्या बात है? जो मुझे यहाँ डिस्टर्ब करने आ पहुंचे। ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं। धर्मराज जी ने समस्या को सामान्य सा लेते हुए कहा।
नहीं महाराज ऐसा नहीं है। उन्होंने आपके दरबार को तोड़ना फोड़ना शुरू कर दिया है। गिफ्ट में आया वह जड़ाऊ झूमर भी तोड़ दिया है। चित्रगुप्त जी की आंख में भी चोट आ गई है। चार पांच यमदूत घायल हो गए हैं। वे तो आपके पूरे दरबार में ही आग लगाने को लालायित हो रहे हैं लेकिन बड़ी मुश्किल से चित्रगुप्त जी ने उनके नेता को बातों में लगाकर समझाकर रखा है। एक आँख से इशारा करके चित्रगुप्त जी ने ही मुझे यहां भेजा है।
यमदूत की बात सुनकर धर्मराज जी के होश फाख्ता हो गए। यमलोक में आज तक ऐसा नहीं हुआ। आज इन लोगों की इतनी हिम्मत कैसे हो गई। नाच-गाना बन्द करने का आदेश देकर तुरन्त यमदूत के साथ अपने दरबार में आए।
चित्रगुप्त और यमदूतों की हालत देखकर सारा माजरा समझ में आ गया।
हड़तालियों के शिष्ट मण्डल को उन्होंने अपने अन्दर वाले गुप्तवार्ता कक्ष में बुलाया, साथ में चित्रगुप्त को भी।
आपकी क्या मांग है? आपने यह तोड़फोड़ क्यों कर रखी है? शांतिपूर्ण ढ़ंग से हड़ताल नहीं कर सकते। जो भी बात हो तसल्ली से करो।
हम नर्क में नहीं जाएंगे। जाएंगे तो स्वर्ग में और या धरती पर। हमारे साथ इतनी बेइन्साफी क्यों? जब भगवान को इतनी पावर है तो हम डॉक्टरों को इतनी भी नहीं। हम भी बहुत कुछ उन के जैसा ही करते हैं। वैसे भी भारत में हमें भगवान के बाद दूसरा भगवान ही माना जाता है।
धर्मराज जी ने उन्हें फुसलाने का पूरा प्रयास किया। लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। शिष्टमंडल में आए डॉक्टरों के समक्ष भी उन्होंने विशेष सुविधाएं देने का प्रस्ताव रखा। लेकिन समस्त हथियार निष्फल हो गए।
वार्ता को लंबी खिंचती देख बाहर खड़े डॉक्टरों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया। चित्रगुप्तजी के रिकॉर्ड के पन्नों को भी उन्होंने फाड़ दिया। पन्ने फटे देख और अन्य कोई भी रास्ता सूझते ना देख धर्मराज जी ने उन्हें नियमानुसार वापस धरती पर भेज दिया। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन एक दिन फिर गड़बड़ हो गई।
यमलोक में एक साथ बहुत सारी आत्माएं पहुंचने लगी, जिन आत्माओं को जन्म लेने के लिए भेजा था वे भी और कुछ अन्य भी, जिन्हें अभी काफी समय पृथ्वीलोक में गुजारने थे।
चित्रगुप्त ने यमराज से इसकी वस्तु स्थिति सात दिनों में स्पष्ट करने को कहा। यमराज, यमदूतों को साथ लेकर धरती पर आया, चारों ओर घूमा, भारत आया और यहाँ भी राजस्थान प्रान्त में।
उसने देखा कि वे ही डॉक्टर जिन्होंने यमलोक में हड़ताल की थी यहाँ भी हड़ताल पर है। कोई काम नहीं कर रहे, सड़कों पर रैलियाँ निकाल रहे हैं। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
दूसरी और हॉस्पिटल में मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। आईसीयू में भर्ती सीरीयस मरीजों को भी देखने वाला कोई नहीं है। महिलाओं की डिलेवरी कराने वाले कपाउण्डर, नर्सेज भी इनका साथ दे रहे हैं। रोजाना मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
यमराज के साथ वे ही यमदूत थे जिनको डॉक्टरों ने यमलोक में वापस किया था, वे ज्यादा समय यहाँ रूकना नहीं चाहते थे, पलक झपकते ही उन्होंने चित्रगुप्त के सामने पहुंचकर सारी स्थिति स्पष्ट कर दी।
चित्रगुप्त रिपोर्ट लेकर धर्मराज जी के पास पहुंचे, धर्मराज जी ने रिपोर्ट पढ़कर मुस्कराते हुए उसे कचरे के डिब्बे में डाल दी। चित्रगुप्त को आदेश दिया कि समस्या से घबराएं नहीं। यमलोक में एडवांस अतिरिक्त व्यवस्था रखना सुनिश्चित करें।
Hanuman Mukt
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