डॉ. दीपक आचार्य सदियों से कहा जाता रहा है - खाली दिमाग शैतान का घर। सौ फीसदी सही भी है। आजकल यों भी उन लोगों का कोई वजूद नहीं रहा जो दि...
डॉ. दीपक आचार्य
सदियों से कहा जाता रहा है - खाली दिमाग शैतान का घर। सौ फीसदी सही भी है। आजकल यों भी उन लोगों का कोई वजूद नहीं रहा जो दिन-रात मेहनत करते थे और पुरुषार्थ करते हुए अपने परिश्रमी व्यक्तित्व की छाप छोड़ते थे। इन्हीं कठोर मेहनती लोगों के लिए यहाँ तक कहा जाता था कि ये जहाँ ठोकर मार दें वहाँ जमीन से पानी निकल आए। आजकल के आदमी ऎसा करें तो रेत का ढेर तक नहीं हटा सकें, पाँव को घायल कर बैठें, सो अलग।
असल में आदमी में अब न उतना दम-खम रहा है, न चुनौतियों से निपटने का कोई माद्दा ही बचा रह गया है। अब आदमी सब कुछ बैठे-बैठे पा जाना चाहता है। न वह मेहनत करना चाहता है, न उससे मेहनत हो ही पाती है। आदमी के जीवट और ऊर्जाओं का इतना अधिक क्षरण दूसरे सारे धंधों और कामों में होने लगा है कि मूल काम के प्रति बेपरवाह ही होता जा रहा है।
उन लोगों का प्रतिशत कितना होगा जो सच्चे मन से काम करते हैं और पक्के दावे के साथ यह कह पाने की स्थिति में हैं कि वे जितना कुछ पा रहे हैं वह सारा का सारा कड़ी मेहनत का परिणाम है और कुछ भी ऎसा नहीं है जो बिना पुरुषार्थ के हासिल हो गया हो। हम खुद भी अपने आप से पूछें कि हम कितने पुरुषार्थी हैं तो कोई भी ईमानदारी और सच्चाई से बताने को तैयार नहीं होगा।
कुछेक फीसदी कर्मठ लोग ही बचे रह गए हैं जिनकी वजह से सब कुछ ठीक-ठाक दिखाई दे रहा है अन्यथा हम जैसे लोगों की तो भारी भीड़ छायी हुई है जो बिना परिश्रम या पुरुषार्थ के इतना अधिक पा रहे हैं जिसका आकलन कोई नहीं कर सकता। हममें इतना साहस ही नहीं हैं कि सच कह सकें।
अपने देश का बहुत बड़ा वर्ग फालतू की सोचने, बोलने और चर्चाएं करने का आदी हो गया है। इन लोगों को अपने काम से अधिक रुचि दूसरों के बारे में सोचने-समझने और जानने, परिवेश में होने वाली हर क्रिया के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करने में ही लगी रहती है, चाहे उसका हमसे दूर-दूर तक का कोई संबंध न हो, न ही हमारे भावी जीवन में कोई काम आने वाली बात हो।
हम सभी अपने आपको तौलें और आत्म अवलोकन करें तो साफ-साफ यह तथ्य सामने आएगा कि हम दिन भर में कितना काम करते हैं। हमारे रोजमर्रा के कामों की कोई हमसे डायरी भरवाएं तो महीने भर के पन्नों में अधिकांश पन्ने खाली ही नज़र आएं।
हमारी स्थिति उन पशुओं जैसी हो गई है जिन्हें तरह-तरह के बाड़ों में छोड़ दिया गया हो जहाँ घास-चारा और सब कुछ हजम भी करते जा रहे हैं और खुले साण्डों की तरह घूमते हुए स्वेच्छाचारी और उन्मादी भी बने हुए हैं। हमसे न हमारे काम होते हैं, न हम औरों के किसी काम आने लायक हैं और न ही हमें अपनी जिम्मेदारियों से कोई सरोकार रह गया है। ऎसे में कोई भी हमें कुछ भी कहने लायक स्थिति में भी नहीं है।
कोई कुछ कहता है तो हम इस सत्य को अन्यथा लेकर सारे के सारे एक साथ टूट पड़ते हैं अपने वजूद और प्रतिष्ठा को बचाए रखने के लिए। इसलिए लोग भी कुछ कहने में शर्माने लगे हैं। जिन कामों को लेकर हम हमेशा व्यस्त रहने की हायतौबा मचाते रहते हैं उन कामों के प्रति भी हम सारे के सारे ‘नैष्ठिक कर्मयोगी’ उपेक्षित व्यवहार करते रहे है। फिर आखिर ऎसे कौनसे काम हैं जो हमेशा बार-बार बिजी टोन सुनाते रहते हैं।
खूब सारे लोग ऎसे हैं जिनका महीने भर का काम एक संजीदा और होशियार इंसान दो दिन में पूरा कर सकता है लेकिन हमसे वो काम महीने भर में नहीं हो पा रहे हैंं। असल मेंं हमारे पास कोई ज्यादा काम हैं ही नहीं, कामों का भार हमारे आलस्य और हर काम को लम्बा से लम्बा खिंचने की बुरी आदत की वजह से ही विद्यमान रहता है।
इस वजह से कर्महीनता की यह स्थितियाँ हमारे दिमाग को शैतान का घर बना डालती हैं और हमें नए-नए फितूर, खुराफात और षड़यंत्र सूझने लगते हैं ताकि हमारा रोजमर्रा का टाईम किसी न किसी तरह पास होता रहे। इसी प्रकार के टाईमपास गोरखधंधों और शैतानी हरकतों से हमें मानसिक और शारीरिक ऊर्जा का संबल प्राप्त होता रहता है। फिर हमारी ही तरह के बहुत सारे संगी-साथी भी हैं जिन्हें हमारा पावन सान्निध्य अत्यन्त सुखद, अनिर्वचनीय आनंद और सुकून देने वाला सिद्ध होता है और सभी लोग अपने आपको परस्पर महान एवं धन्य समझते हुए उन सभी प्रकार के सोच-विचार और कर्मों में लगे रहते हैं जो शैतानी दिमाग की उपज के सिवा कुछ नहीं हुआ करते।
आजकल हर तरफ शैतानी दिमाग वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी है जिनकी मौजूदगी शैतानी कामों को हवा देने के सिवा और किसी काम नहीं आती। हम लोग अपने दिमाग में किसी और को भले नहीं बसा पाएं मगर शैतान की प्रतिष्ठा कर अपने आपको दुनिया का सर्वाधिक बुद्धिमान, कूटनीतिज्ञ, औरों को हाँकने और मनमाफिक चलाने का सामथ्र्य रखने वाला तथा अपनी-अपनी गलियों और बाड़ों का शेर मानने में कहीं पीछे नहीं रहते।
बहुत सारे लोग हैं जिनके पास वास्तविक तौर पर देखा जाए तो कोई खास काम नहीं है। यही कारण है कि इन लोगों को फिजूल की चर्चाएं करने और नित नए षड़यंत्रों और खुराफातों की खिचड़ी पकाने से ही फुर्सत नहीं है। जिन-जिन लोगों के दिमाग में शैतान घुसा हुआ है उन्हें शैतान मानने से किसी को क्या दिक्कत हो सकती है। अपने आस-पास के उन लोगों के बारे में भी तहकीकात कर लें जिनका दिमाग शैतानी हो चला है।
सच में कहा जाए तो ये शैतान ही जिम्मेदार हैं सब तरफ कबाड़ा करने के लिए। और इनसे भी अधिक जिम्मेदार वे लोग हैं जो इन शैतानों में हवा भरते हैं, इन्हें पनाह देते हैं और इनकी शैतानी हरकतों को तटस्थ भाव से देखते रहने के आदी हैं।
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- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
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