हास्य-व्यंग्य : एक मुटियाये व्यक्ति की व्यथा

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- हनुमान मुक्त   पिछले कुछ बरसों से मुटियाने की इच्छा बलवती होती जा रही थी, अपनी बिरादरी के लोगों से कुछ अलग हट कर दिखने की इच्छा ने मोटे...

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- हनुमान मुक्त

 

पिछले कुछ बरसों से मुटियाने की इच्छा बलवती होती जा रही थी, अपनी बिरादरी के लोगों से कुछ अलग हट कर दिखने की इच्छा ने मोटे होने के फॉर्मूले पर शोध करना शुरू करवा दिया था। कोई कहता सुबह-सुबह भूखे पेट दूध के साथ केले खाओ, कोई कुछ कहता, तो कोई कुछ।

मुटियाए अनुभवी लोगों द्वारा इस्तेमाल किए गए फार्मूले का अपने ऊपर प्रयोग कर अब मैं भी मुटिया गया हूँ। मेरा वजन भी पहले से 20 किग्रा. बढ़ गया है। तोंद ने भी गणितीय दीर्घवृत्त सा रूप ले लिया है।

मैं अब काफी खुश सा दिखने लगा हूँ, एक अजीब सी संतुष्टि मोटे होने के अहसास से रहने लगी है। चेहरे पर सुर्खाई और शरीर में चर्बी बढ़ गई है। मेरी पत्नी को मेरी यह खुशी नहीं सुहाती। उन्हें अब मेरे साथ बाजार जाने में परेशानी होने लगी है। अपनी नई सहेलियों से परिचय कराने में भी उन्हें शर्म सी आने लगी है। उनका कहना है कि मेरी तोंद कुछ ज्यादा ही मुटिया गई है।

जब मैं दुबला था तो रूपए-पैसों की खींच तान पर पत्नी से चिक-चिक जरूर हो जाया करती थी, लेकिन मेरी पत्नी ने मुझसे कभी नहीं पूछा कि तुम इतने दुबले क्यों हो? भारतीय संविधान में दुबला होना लिखा है या नहीं मुझे नहीं पता। लेकिन करोड़ों लोगों की तरह हमारी पत्नी ने भी नियति मानकर इसे स्वीकार कर लिया था।

लेकिन जब से हममें यह परिवर्तन आया है लोग हमारे ऊपर अंगुलियां उठाने लगे है। वे समझते है या तो मैं किसी स्मगलिंग के काम में लगा हूँ या कोई फर्जी संस्था खोलकर उससे चंदा हड़प रहा हूँ अथवा किसी अधिकारी या नेता का एजेन्ट बन कर घूसखोरी में से कमीशन खा रहा हूँ। वे सोचते है, इसके बिना पेट मुटिया ही नहीं सकता। हमने लोगों को खूब समझाने की कोशिश की, कि भई हम भूखे पेट दूध और केले खाकर मोटे हो रहे है, लेकिन लोगों के गले यह बात उतरती ही नहीं। वे मानते है भूखे पेट दूध और केला खाकर कोई मुटिया ही नहीं सकता। वे यह सब समझते वहां तक तो ठीक है, लेकिन इसका ढिंढोरा पीटे वह कहां तक उचित है।

लोकतंत्र में जनता यूं ही भोंकती रहती है, उसकी आवाज की समझदार लोग परवाह नहीं करते, हमने भी नही की। लेकिन गृह लक्ष्मी को कौन समझाएं, हमें हैण्डसम बनाने का प्रण जो कर रखा है। हमारी बढ़ी हुई तोंद के कंचन को काट कर हमारी मसल्स पर लगाने का उपक्रम केशवदास की तरह करने पर तुली हुई है। जैसा उन्होंने नायिका के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए ‘कनक लता सी कामिनी, काहे को कटि क्षीण। कटि को कंचन काटि कै, कुचन मध्य धरि दीन।’ दोहे में लिखा है। इस कंचन प्रत्यारोपण से दोनों ही अंग सुंदर हो गए, नायिका की सुंदरता को चार चांद लग गए।

इसके लिए कभी वे आस्था चैनल पर आ रहे बाबा रामदेव की योग क्रियाएं करने की हमसे जिद करती है तो कभी वे खाने के मीनू को अपने हिसाब से देकर हमें भूखा रखने का प्रयास करती है।

रोज सुबह-सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं है लेकिन वे है कि पांच बजे का मोबाइल में अलार्म भरकर नाहक नींद खराब कर देती है और चला देती है टीवी पर योग गुरू बाबा रामदेव का योग चैनल।

उनको हम कैसे समझाए कि वैसे ही हमारा पेट नहीं मुटियाया है, इसके लिए हमने जाने कितने लोगों के पेट को काट-काट कर अपने पेट पर चिपकाया है तब जाकर हमारी तोंद में इजाफा हुआ है। हर किसी से यह बात कहते अच्छे भी नहीं लगते, और एक वे है कि हमारी पत्नी होते हुए भी हमारी इतनी सी बात को समझने का नाम नहीं लेती।

अभी कुछ दिनों पहले एक आश्चर्यजनक घटना घटित हुई। एक मजदूर मोटा हो गया, पिछले एक साल में उसका वजन 18 किग्रा. बढ़ गया। कंकाल सी दिखने वाले हड्डियों के ढांचे पर मांस की परत चढ़ गई, चेहरा सुर्ख हो गया। मजदूर और उसका मुटिया जाना बड़ा ही कौतूहल व आश्चर्य का विषय था। उसकी जांच पड़ताल की गर्ई। उसके विगत पांच सालों के इतिहास का कच्चा चिट्ठा मालूम किया गया। जानकारी करने पर पता चला कि वह करीब दो साल पहले एक सरकारी महकमे के बड़े अफसर के यहां चाकरी करता था। घर पर उसका रहना, सहना, खाना-पीना सब कुछ था। बड़े साहब की तोंद भी अच्छी खासी थी। वहीं से ये मजदूर महानुभाव सरकारी ठेका लेकर ठेकेदार बन गए थे।

अब ये अनाज नहीं खाता था, ईंट, सीमेंट, बजरी, रोड़ी, गिट्टी, मिट्टी खाता था। मजदूरों की मजदूरी और खून पसीने की कमाई भी वह हजम कर जाता था। इन सब खाद्य पदार्थों के सेवन से उसकी काया में यह अभूतपूर्व परिवर्तन आया था।

मोटा होना कोई सामान्य काम नहीं है, कि जिसका जी चाहा, वो मोटा हो गया। जिसका जी चाहा जब मोटा हो गया। मोटा होने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते है ये मुटियाये लोगों को ही पता है। फालतू बात बनाने वाले, इधर-उधर अपनी हड्डियों का प्रदर्शन कर देश की साख को बट्टा लगाने वाले लोगों को क्या पता।

इस बात को हमारी श्रीमती को कैसे समझाऐ? कि हम कोई कुंवारी लड़की तो है नहीं जिसे अपना गर्भ छिपाने की जरूरत पड़े, बल्कि हम तो उस विवाहित स्त्री के समान है जो अगर गर्भवती नहीं हो तो उसके इलाज के उपक्रम कराने शुरू कर दिए जाते है। उसका मुटियाना शर्म की नहीं गर्व की बात होती है।

मुटियाये लोगों की कंपनी में बैठने के लिए आवश्यक है मुटियाना। अगर मोटे होने की सभी खाद्य सामग्री का भक्षण करने के बाद भी नहीं मुटियाये तो यह हमारे लिए शर्म की बात है। हमें ऐसा कोई काम नहीं करना है जिसके करने से शर्मिन्दगी उठानी पड़े। अपने सोशल स्टेटस को आंच आए।

आओ हम सब मिलकर सभी के मोटे होने की प्रार्थना करें। परमात्मा से प्रार्थना करें कि मुटियाये लोगों की पत्नियों को सदबुद्धि दें।

 

Hanuman Mukt

93, Kanti Nagar

Behind head post office

Gangapur City(Raj.)

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रचनाकार: हास्य-व्यंग्य : एक मुटियाये व्यक्ति की व्यथा
हास्य-व्यंग्य : एक मुटियाये व्यक्ति की व्यथा
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