डॉ. दीपक आचार्य जो लोग माता-पिता को सिर्फ इंसानी देह मानते हैं वे सारे के सारे लोग भ्रमों, शंकाओं और मूर्खताओं में जी रहे हैं। माता-प...
डॉ. दीपक आचार्य
जो लोग माता-पिता को सिर्फ इंसानी देह मानते हैं वे सारे के सारे लोग भ्रमों, शंकाओं और मूर्खताओं में जी रहे हैं। माता-पिता स्रष्टा हैं और धरती के वे देवता हैं जिनका जितना अधिक सान्निध्य हमें प्राप्त होता है उतने दिन हमारे जीवन के स्वर्णकाल से कम नहीं हैं।
जब तक माता-पिता का संरक्षण और उनका सामीप्य हमें प्राप्त होता रहता है तब तक हमारे जीवन की कई समस्याएं और विपदाएं हम तक पहुंच ही नहीं पाती, इससे पहले ही इनका स्वतः समाधान हो जाता है।
जो दैवीय ऊर्जा ईश्वर और प्रकृति से हमारे लिए सृजित की होती है वह माता-पिता से होकर आने पर बहुगुणित और तीव्र प्रभावी हो जाती है और उसका लाभ हमें प्राप्त होता है।
इसके विपरीत हम से संबंधित जो भी नकारात्मक ऊर्जा कहीं से भी हमारी तरफ आने लगती है तब माता-पिता की मौजूदगी हमारे पास होने से इसका प्रभाव समाप्त हो जाता है अथवा इनका नकारात्मक प्रभाव अत्यन्त क्षीण हो जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्तों को भी देखें तो किसी भी जातक पर ग्रहों और नक्षत्रों का चाहे कितना बुरा और अनिष्टकारी प्रभाव हो, इसका कोई असर नहीं पड़ता यदि उनके माता-पिता जीवित हों तथा उनके साथ रह रहे हों।
इसी प्रकार किसी भी प्रकार की बुरी हवाओं और तंत्र-मंत्रों का भी उन लोगों पर कोई असर नहीं होता जिन्हें माता-पिता का सान्निध्य प्राप्त होता है। माता और पिता के साथ अपना होना ही जीवन की शताधिक समस्याओं का अपने आप निदान कर दिया करता है।
जिनके लहू से हमारा निर्माण होता है उस लहू की जीवन्तता में परमाण्वीय शक्ति और असीम ऊर्जा निहित होती है जो अपने सभी प्रकार के जीवंत अंशों को हर प्रकार से सुरक्षित भी करती है और अभयदान भी देती है। और यह सब सूक्ष्मतम तरंगों से इस प्रकार से होता है कि किसी को पता भी नहीं चलता कि आखिरकार यह दिव्य और अदृश्य सुरक्षा कवच कहाँ से संचालित और संरक्षित कर रहा है।
दुनिया की सारी नकारात्मक शक्तियों, दुष्ट तथा विघ्नसंतोषी लोगों के विध्वसंकारी विचारों और हीन हरकतों से लेकर सभी प्रकार की आसुरी-पाशविक वृत्तियों से यदि कोई बचाता है तो ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली होता है माता-पिता का सुरक्षा कवच, जो कि संतति के पास आने से पहले ही क्षीण हो जाता है और अपना प्रभाव खो देता है।
यह वह अवस्था होती है जिसमें माता-पिता की अदृश्य कृपा और आशीर्वाद का सुरक्षा कवच हर क्षण हमें सुरक्षा का वो सुदृढ़ एवं दुर्लभ कवच प्रदान करता है जिसे कोई कभी नहीं भेद सकता। यहाँ तक कि कई मामलों में ईश्वर भी यदि किसी का अनिष्ट करना चाहे तो नहीं कर सकता, यदि वह माता-पिता के साथ रहता है तथा माता-पिता उस पर दिल से प्रसन्न हों।
दूसरी स्थिति में ईश्वर भी चाहते हुए उन लोगों का भला नहीं कर सकता जो माता-पिता को खुश नहीं रखते, जिनके माता-पिता नाराज, दुःखी और आप्त रहते है। यही कारण है कि उन लोगों पर ग्रह-नक्षत्रों और असुरों का प्रभाव अधिक होता है जो माता-पिता के साथ नहीं हैं अथवा उनका आदर-सम्मान नहीं करते।
इस दृष्टि से दुनिया में सर्वाधिक भाग्यशाली अगर कोई है तो वे लोग हैं जिन्हें माता-पिता का सीधा सान्निध्य प्राप्त है और जो लोग अपने माता-पिता के साथ रहते हैं, उनके मनोनुकूल रहकर समर्पित भाव से निष्काम सेवा करते हैं।
माता-पिता जब तक जीवित रहते हैं तब तक संतान पर किसी ग्रह-नक्षत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। संतान पर ग्रहों-उपग्रहों की प्रतिच्छाया और प्रभाव तभी परिलक्षित होता है जबकि मातृत्व-पितृत्व सुख से कोई वंचित होने के दुर्भाग्य से घिर जाए।
जीवन का कोई सा कर्म हो, इसमें आशातीत सफलता और तीव्रता पाने के लिए सबसे बड़ा कारक है तो वह है माता-पिता का आशीर्वाद और कृपा। इस एकमेव अनुकंपा के सामने दूसरी सारी कृपाएं बौनी हैं।
संसार में किसी भी इंसान के सौभाग्य और दुर्भाग्य का सीधा और सहज-सरल प्रतीक है उसकी मातृ-भक्ति। संस्कारवान और सौभाग्यशाली लोग वे हैं जो अपने माता-पिता के साथ रहते हैं या जिन पर माता-पिता की कृपा बनी हुई रहती है जबकि दुर्भाग्यशाली लोग वे हैं जो माता-पिता से वंचित हैं अथवा जिनके माता-पिता असन्तुष्ट और रुष्ट हैं।
हम चाहे कितनी साधना कर लें, कितने ही महान होने के प्रयत्न कर लें, कितना ही बड़ा पद पा लें, कितने ही वैभवशाली हो जाएं, अपने आपको कितना ही बड़ा धार्मिक मानते रहें, यह सब बेकार है यदि हम अपने माता पिता के प्रति आदर-सम्मान के भाव नहीं रखते।
हमारे जीवन के सारे धर्म-कर्म का कोई औचित्य और प्रभाव नहीं है यदि हम माता-पिता के प्रति अपने दायित्वों को अच्छी तरह नहीं निभा पाते। सब कुछ हमारे हाथ में है। जीवन में सफलता चाहते हों तो माता-पिता के प्रति दिली आदर-सम्मान रखें, उनकी सेवा-सुश्रुषा में कहीं कोई कमी नहीं रखें और हमेशा हर क्षण उन्हें प्रसन्न रखने के प्रयत्न करें।
जीवन विकास और आशातीत सफलता पाने का एकमात्र मूलमंत्र यही है कि मातृ-पितृ सेवा को सर्वोपरि मानें। इसके साथ ही उन लोगों से दूर रहें, उनके घर का का खान-पान न करें जो अपने माता-पिता का अपमान करते हैं, उन्हें दुःखी करते हैं और पीड़ा पहुंचाते हैं।
संतति चाहे कितनी ही खराब निकल जाए, आमतौर पर माता-पिता उनके लिए बुरा कभी नहीं सोचते। इसी का फायदा हममें से बहुत सारे लोग हमेशा उठाते आए हैं। लेकिन जब पानी से सर से गुजरने लगता है तब माता-पिता की आह ऎसी निकलती है कि नालायक संतति का कोई कुछ भी भला नहीं कर सकता, चाहे वह भगवान भी क्यों न हो।
धरती के देवताओं को जानें, पहचानें और आदर-सम्मान देते हुए सदैव प्रसन्न रखें और अपना सौभाग्य मानें कि हम दुनिया के उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें माता-पिता का सान्निध्य मिला हुआ है।
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- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
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