आधुनिक भौतिक वैज्ञानिको को अपने नित नूतन आविष्कारों, शोध प्रक्रियाओं एवं निर्माणों पर गर्व है, और वह उचित भी है. पर इसका मतलब यह नहीं नि...
आधुनिक भौतिक वैज्ञानिको को अपने नित नूतन आविष्कारों, शोध प्रक्रियाओं एवं निर्माणों पर गर्व है, और वह उचित भी है. पर इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि भूतकाल में इस विद्या की जानकारी किसी को भी नहीं थी. सच तो यह है कि पुरातन काल में विज्ञान की अपनी विशिष्ट दिशाधारा थी,जिसमें पदार्थों का ही आश्चर्यजनक परिवर्तन नहीं होता था, वरन शरीरगत विद्युत-शक्ति का भी भू-चुम्बकीय धाराओं से सुनियोजन स्थापित किया जाता था, जिसकी दिशाधारा को अभी तक समझा नहीं जा सका है.
मिस्र के सैकडॊं मील क्षेत्र में फ़ैले हुए गगनचुम्बी पिरामिडॊं में रखे शवों में हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक बदबू या संडाध नहीं आयी है. इनके निर्माणकर्त्ताओं फ़ैराओ की रूहें तो अब किसी सूक्ष्म जगत में होगी किन्तु उनके स्मारकों के रूप में वृहदाकार पिरामिड आज भी सुसभ्य कहे जाने वाले संसार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इस विचित्र निर्माण को देखकर विज्ञान-वेत्ता भी आश्चर्यचकित हैं.
सुप्रसिद्ध लेखक प्लिनी और रोमनों ने लिखा है कि मिस्र के तीन पिरामिडों में अपनी ख्याति से सम्पूर्ण पृथ्वी को गुन्जित कर दिया है. हजारों वर्षों से प्राकृतिक थपेडॊं को सहने के बाद भी उनकी संरचना में कोई अन्तर नहीं आया है. उन्हें देखकर आश्चर्य यह होता है आरम्भिक काल में मानवों ने रेगिस्थानी पठार में प्राकृतिक संरचनाओं से स्पर्धा करते हुए ये कृत्रिम पर्वत कैसे बनाए होंगे? किन महाबली पुरूषॊं ने विशालकाय चट्टानों को सुदूर पर्वत श्रृंखलाओं से तोडकर उन्हें मरुस्थल में जुटाया होगा ? किन वास्तुकला विशेषज्ञों ने इनकी अद्भुत ज्यामितीय प्रक्रिया में अपना पसीना बहाया होगा ?.,
विश्व के अनेक भागों जैसे –दक्षिण अमेरिका, चीन, साइबेरिया, फ़्रांस, इंग्लैण्ड आदि देशों में पिरामिड मिले हैं, किन्तु इनमें सबसे अधिक विख्यात “गीजा का पिरामिड” है. इसका आधार क्षेत्र 13 एकड से अधिक है और ऊँचाई 150 मीटर है. इसमें 26 लाख विशाल पत्थर के टुकडॆ लगे हैं जिनका भार दो टन से 70 टन तक का है. ये पत्थर ग्रेनाइट और चूने से विनिर्मित हैं. सुप्रसिद्ध अंग्रेज पुराविद “फ़िल्डर्स पेट्री” के अनुसार 450 फ़ीट की ऊँचाई पर इन भारी चट्टानों को बिना किसी यान्त्रिक सहायता के ऊपर चढाया गया है, इनकी जुडाई में कहीं भी एक इंच के किसी भी भाग का अन्तर नहीं आया है. इन पिरामिडॊं के निर्माण में इतना ठोस पदार्थ लगाया गया है, जितना कि उस समय के निर्मित गिरिजाघरों तथा अन्य भवनों में कहीं प्रयुक्त नहीं हुआ है.
विलियम पीटरसन कालेज न्यूजर्सी के प्राचीन इतिहास के मूर्धन्य प्राध्यापक डा.लिवियो.सी.स्टेचिनी के अनुसार मिस्र के लोग ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व भी आधुनिक टेलिस्कोप और क्रोनोमीटर से भली-भांति परिचित थे. उन्होंने पिरामिड के निर्माण में उच्च स्तरीय वैज्ञानिक यन्त्रों का प्रयोग किया था. पिरामिड की चोटी ध्रुव के एवं परिधि भूमध्य रेखा के सदृश है. इसका जब वैज्ञानिक परीक्षण किया गया और इसके त्रिभुजाकार दीवारों की माप ली गई तो इनके विभिन्न आयामों में गणितीय स्थिरांक- पाई 3.14) एवं फ़ाई (1.618) का महत्त्वपूर्ण अनुपात पाया गया. पुनर्जागरण काल में इन अनुपातों का शिल्पकला में बहुतायत से प्रयोग किया गया. विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात मानवी काया के सौंदर्य व आकर्षण उत्पन्न करता है. टी.ब्रून्स ने अपनी पुस्तक “सीक्रेट्स आफ़ एन्शीएण्ट ज्यामेट्री” में पिरामिडॊं के रहस्यमय आकार व उनके प्रभावों का गहराई से विवेचन किया है.
वैज्ञानिकों ने आकृति व आयामों की विभिन्न माप एवं उनके पारस्परिक अनुपातों के अन्य अनेक रहस्यों का पता लगाया है. इससे गीजा पिरामिड के रचनाकाल की भी जानकारी मिली है. इन मापों में अन्तरिक्षीय ग्रह पिण्डॊं की दूरियों की भी जानकारी मिलती है. उन्नीसवीं सदी के प्रख्यात खगोलवेत्ता प्राक्टर ने अपने अनुसन्धान निष्कर्ष में कहा था कि इन पिरामिडॊं का उपयोग ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन के लिए वेधशालाओं के रूप में किया जाता रहा होगा. उनके अनुसार इतनी बहुमूल्य वेधशालाएँ न तो कभी पहले तैयार की गई थीं न ही भविष्य में कोई सम्भावना है.
विशेषज्ञों का कहना है कि गीजा का पिरामिड निखिल ब्रह्माण्ड का एक छॊटा सा माडल है. इस महान पिरामिड की स्थिति मिस्र के लिए ही नहीं, वरन समस्त भूमण्डल के लिए सेन्ट्रल मेरीडियन-केन्द्रीय याम्योत्तर है. सम्पूर्ण विश्व मानचित्र को दो बराबर भागों में बाँटने वाली रेखा के मध्य बिन्दु पर यह स्थित है. यदि इससे गुजरती हुई कोई क्षेतिज रेखा खीचीं जाय तो इस रेखा के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र परस्पर बराबर होंगे. इस प्रकार इसका केन्द्रीय यामोत्तर भूमण्डल के देशान्तर का प्राकृतिक शून्य है. मानव निर्मित यह स्मारक पृथ्वीवासियों की तत्कालीन तीक्ष्ण प्रतिभा का अद्वितीय परिचायक है.
महान पिरामिड के निर्माताओं ने वृत्तों में वर्गीकरण और घनत्वीकरण इस प्रकार से निर्मित किया है कि रेखागणित के कोणॊं के स्थायित्व को वक्रों की अस्थिरता में परिवर्तित किया जा सके. पिरामिडॊं को शंकु के रूप में, वक्र को ग्लोब के रूप में देखा जा सके. इसका शंकु वाला भाग ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है. वैज्ञानिकों ने अपने पर्यवेक्षण में पाया है कि कास्मिक ऊर्जा शक्ति पिरामिड के क्षेत्र में अणु-अणु में व्याप्त है. भौतिक, मानसिक, आध्यात्मिक, आत्मिक सभी प्रकार की ऊर्जाएँ वहाँ विद्यमान हैं. वहाँ पर जीवन पूर्णरूपेण भावना से सम्बन्धित हो जाता है. ऎसे अनेकों प्रमाण प्राप्त हुए हैं कि पिरामिड की ऊर्जा पदार्थीय और सूक्ष्मीय चेतना को प्रभावित करने में सक्षम है. प्रयोग परीक्षणॊं के समय ऎसा देखा गया है कि इसके अन्दर उत्तर-दक्षिण अक्ष में रखे गए फ़ूल, फ़ल, माँस बहुत दिनों तक यथावत ताजे बने रहते हैं. पानी तथा अन्य द्रवीय पदार्थों को पात्रों में भर कर रखने से उनके गुणॊं में आश्चर्यजनक परिवर्तन पाया गया. फ़्रान्स और इटली की दो विभिन्न फ़र्मों में पिरामिड की आकृति के कण्टेनरों का निर्माण किया और उनमें दूध रखकर उसका परीक्षण किया है. इसमें पाया गया कि चौकोर आकृति की अपेक्षा पिरामिड आकृति के कण्टेनरों में दूध ताजा और अधिक सुरक्षित रहता है. शंकु की आकृति वाले कण्टेनरों में पौधे अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता से बढते देखे गए हैं.
मूर्धन्य फ़्रान्सीसी इन्जीनियर एल.तुरीनी ने अपनी पुस्तक “ वेव्स फ़्राम फ़ार्मस” में लिखा है कि कोण, पिरामिड स्फ़ियर्स आदि में विभिन्न प्रकार की ब्रह्माण्डीय ऊर्जाएँ- जैसे कास्मिक, सोलर जियोमैग्नेटिक करेण्टस आदि का समावेश रहता है. यही कारण है कि पिरामिड ऎसे चमत्कारिक कार्यों को सम्पादित करते हैं. प्रख्यात नोबेल पुरस्कार विजेता डा.लुइस अलवरेज के अनुसार पिरामिड की संरचना ऎसे हुई है कि उसके अन्दर की खुली हुई जगह सदैव इलैक्ट्रोमैग्नेटिक प्रतिबिम्बीय ऊर्जा उत्पादित करती है तथा ऊपर से अन्तरिक्षीय ऊर्जा किरणॆं प्रविष्ट होती रहती है. कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार पिरामिड से न केवल ऊर्जा प्रवाहित होती है, वरन ऊर्जाओं को वहाँ रूपान्तरित भी किया जाता है. सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक येथ और नेल्सन ने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया है कि पिरामिड की ऊर्जा मध्यान्ह को विस्तृत भी होती है.
मिस्त्र के पिरामिड प्राचीन प्रतिभा की ऎसी अमूल्य निधि है, जिसमें क्यों और कैसे का बाहुल्य है और पूर्णरूपेण गणित पर आधारित है. इसकी आकृति मायावी है, जिसमें ज्ञात और अज्ञात ऊर्जा जीवित और निर्जीव पदार्थों कॊ प्रभावित किए बिना नहीं रहती. आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए पिरामिड की संरचना आज भी चुनौती बनी हुई है.
“पिरामिडॊलाजी” नामक एक विशुद्ध विज्ञान का विकास आज इन्ही संरचनाओं के रहस्यों को समझने के लिए किया गया है. इसके प्रवक्ताओं का मत है कि पिरामिडॊं के विशिष्ट आकार-प्रकार में अलौकिक शक्ति छिपी पडी है. इनकी आकृति इतनी मायावी है कि उसे निखिल ब्रह्माण्ड का मानव कृत लघु संस्करण कहा जा सकता है. उसमें क्षूक्ष्म ब्रह्माण्डीय़ ऊर्जा का बहुलता से एकत्रीकरण होता है, जो जीवित तथा निर्जीव पदार्थों को प्रभावित किए बिना नहीं रहती. कुछ अन्वेषणकर्त्ताओं का कहना है कि इन्हें लोकोत्तरवासियों ने विनिर्मित किया था, तो कुछ का मत है कि उन्हें भवनकला विशेषज्ञों ने बनाया है. जो ज्योतिर्विज्ञान और भौतिकी के निष्नात विद्वान थे.
DD DDaa daaडा. विलशुल एडपेटिट, डा.टाम्पकिन्स, डा. पीटर जैसे विख्यात वैज्ञानिकों ने पिरामिडोलाजी पर गहरा अध्ययन किया है. इनका निष्कर्ष है कि पिरामिड के अन्दर कुछ विलक्षण प्रकार की शक्ति तरंगे काम करती हैं, जो जड और चेतन दोनों को प्रभावित करती है. प्रयोग परीक्षणॊं में पाया गया है कि संरचनाओं के अन्दर नीचे के एक तिहाई ऊपर के दो तिहाई भाग के जंक्शन पर पुराने सिक्के एवं ब्लेड रखने पर शक्ति के प्रभाव से क्रमशः सिक्कों पर चमक एवं ब्लेड के धार में तेजी आ जाती है. लम्बे समय तक रखे जाने पर भी दूध खराब नहीं होता, वरन बाद में स्वतः ही दही में बदल जाता है, पर फ़टता नहीं.
अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार पिरामिड आकार में वस्तुओं को जल शुष्क करके खराब होने से बचाए रखने की अद्भुत क्षमता है. इसमें रखे गए फ़ूल एवं पत्तियाँ जलहीन होकर ज्यों के त्यों बने रहते हैं. न तो वे मुर्झाते हैं और न ही उनका रंग उडता है. इसी गुणवत्ता के कारण मिस्र के पिरामिडों में अब से ढाई सहस्त्राबदी पूर्व रखी गई वस्तुएँ यथावत पायी गई हैं.
“वेव्स फ़्राम फ़ार्मस” नामक कृति में फ़्रान्स के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एल.तूरेने ने कहा कि ब्रह्माण्ड से अपने अनुकूल एवं प्रभावशाली ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ही सम्भवतः पिरामिडॊं की संरचना वास्तुविद्या विशारदों द्वारा की गई थी. इनका निर्माण मात्र मिस्र में ही नहीं हुआ, वरन संरचनाएँ दक्षिण अमेरिका, चीन, साइबेरिया, मेक्सिको, कम्बोडिया, फ़्रांस, इंग्लैड आदि देशों में भी पायी गई हैं. नेल नदी के पश्चिम तट पर लगभग एक सौ पिरामिड फ़ैले हुए हैं. काहिरा के गीजा पहाड पर एक वर्ग मील के दायरे में पिरामिडों के त्रिकोणाकार पहाड खडॆ हैं. इसमें “खूफ़ू” का पिरामिड सबसे पुराना एवं आकार में बडा है. आधुनिक वास्तु-शिल्पियों एवं विज्ञानवेत्ताओं का ध्यान इन दिनों इस ओर विशेष रूप से आकृष्ट हुआ है और वे इस अध्ययन-अनुसंधान में निरत हैं कि भवनों के संरचनाओं का आकार का मानव स्वास्थ्य एवं मनःसंस्थान पर क्या कुछ प्रभाव पडता है ?. व्यस्तता एवं तनावग्रस्तता भरे इस तकनीकी युग में इस तरह के निर्माणॊं में लोगों को बसाकार क्या उन्हें तनाव से मुक्ति दिलाई जा सकती है?. एल.तूरेने इसका उत्तर “हाँ” में देते हुए कहते है कि पिरामिडनुमा भवन चाहे वह चौकौर हो अथवा गोलाकार, विभिन्न प्रकार की ब्रह्माण्डीय तरंगों को आकर्षित कर अपना प्रभाव शरीर और मन पर अवश्य डालते हैं.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सभी पिरामिड उत्तर-दक्षिण एक्सिस पर बने हैं. यह भी एक वैज्ञानिक रहस्य है, जो बताता है कि भू चुम्बकत्व एवं ब्रह्माण्डीय तरंगों का इस विशिष्ट संरचना से निश्चिय ही कोई सम्बन्ध है. उत्तर-दक्षिण गोलार्धों को मिलाने वाली रेखा पृथ्वी की चुम्बक रेखा है. चुम्बकीय शक्तियाँ विद्युत-तरंगों से सीधी जुडी हुई हैं, जो यह दर्शाती है कि ब्रह्माण्ड में बिखरी मैग्नेटॊस्फ़ीयर में विद्यमान चुम्बकीय किरणॊं कॊ संचित करने की अभूतपूर्व क्षमता पिरामिड में है. यही किरणॆं एकत्रित होकर अपना प्रभाव अन्दर विद्यमान वस्तुओं या जीवधारियों पर डालती हैं. इन निर्माणॊं में ग्रेनाइट पत्थर का उपयोग भी शूक्ष्म तरंगों को अवशोषित करने की क्षमता रखता है.
इस संदर्भ में अनुसन्धान कर रहे चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि सिर दर्द और दांत दर्द के रोगी को पिरामिड के अन्दर बिठाने पर वे दर्द मुक्त हो जाते हैं. गठिया, वातरोग, पुराना दर्द भी इस संरचना में संघनित ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के प्रभाव से दूर हो जाते हैं. पेड-पौधों पर पिरामिड के प्रभाव के अध्ययन से भी निष्कर्ष सामने आया है कि एक ही प्रकार के पौधों को अन्दर के तथा बाहर के वातावरण में रखने पर पिरामिड के अन्दर वे कहीं ज्यादा तेजी से पनपते हैं. उसकी ऊर्जा तरंगें वनस्पतियों की वृद्धि पर शूक्ष्म एवं तीव्र प्रभाव डालती है.
पिरामिड के रहस्योघाटन के सम्बन्ध में अनेकों पुस्तकें लिखी गई हैं. टाम्पकिन्स कृत “सीक्रेट्स आफ़ द ग्रेट पिरामिड” एवं एडपेडिट की “दि सीक्रेट पावर आफ़ पिरामिड”, टॊथ की “पिरामिड पावर” आदि पुस्तकों में इन आकृतियों में छिपी सूक्ष्म शक्तियों का विस्तारपूर्वक वर्णण किया गया है. “साइकिक डिस्कवरीज बिहाइण्ड दि आयरन करटेन” नामक पुस्तक में कहा गया है कि पिरामिडॊं के अन्दर विद्युत चुम्बकीय शक्तियाँ होती हैं. यह ब्रह्माण्डीय ऊर्जा इतनी सशक्त होती है कि अन्दर हजारों वर्षों के जो शव एक विशिष्ट स्थान पर रखे हैं, वे अभी भी सुरक्षित हैं, सडे नहीं. इसका प्रमुख कारण यह है कि जिस विशिष्ट ज्यामितीय आधार पर उन्हें बनाया गया है, उस कारण उनके अन्दर विशेष प्रकार के ऊर्जा प्रवाह विनिर्मित होते हैं और सूक्ष्म माइक्रोवेव सिग्नल्स सतत प्रकम्पित होते रहते हैं. पूजाघरों की भाँति इन भवनों का निर्माण भी कभी किन्हीं उच्च उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही हुआ होगा, ऎसा विशेषज्ञों का मत है.
पिरामिड के अन्दर रखे जल का प्रयोग करने वाले पाचन सम्बन्धी अनियमितता से मुक्ति पाते देखे गए हैं. यही जल जब त्वचा पर लगाया जाता है तो झुर्रियाँ मिटा देता है. घावों को जल्दी भरने में भी इस प्रकार का ऊर्जा जल एण्टीसेप्टिक औषधियों की तरह प्रयुक्त होता है. विश्लेषण कर्त्ताओं का कहना है कि इस प्रकार के जल के अन्दर छिपी हुई शूक्ष्म सामर्थ्य ऋणायनों की अभिवृद्धि के कारण होती है.
पिरामिड के अन्दर बैठकर ध्यान साधना करने वाले साधकों पर भी कुछ प्रयोग परीक्षण हुए हैं. पाया गया है कि इसके अन्दर बैठने पर तनाव से सहज ही छूटकारा मिल जाता है और शरीर में एक नई स्फ़ूर्ति के संचार का अनुभव होता है. जिस प्रकार पवित्र वातावरण युक्त मन्दिरों, उपासना-गृहों में प्रवेश करने और साधना उपक्रम अपनाने पर मन की एकाग्रता सधती और शान्ति की अनुभूति होती है, ठीक उसी तरह के लाभ इन संरचनाओं के अन्दर बैठने पर मिलता है. जिन्हें स्नायविक गडबडियों के कारण नींद नहीं आती, वे गहरी नींद सोने लगते हैं. विचारकों, लेखकों एवं अन्वेषणकर्त्ताओं को अपने-अपने विषयों में अधिक गहराई तक प्रवेश करते और उच्च स्तरीय परिणाम हस्तगत करते पाया गया है. पिरामिड के अन्दर उत्तराभिमुख होकर बैठने पर कार्यक्षमता बढती है और अच्छे परिणाम मिलते हैं. वस्तुतः “पिरामिडॊलाजी” एवं पिरामेडीटेशन” अपने आप में एक ऎसा विज्ञान है, जो गम्भीरतापूर्वक अन्वेषण, परीक्षण की अपेक्षा रखता है. यदि भवन निर्माण-कला एवं साधना विज्ञान का परस्पर सामन्जस्य स्थापित किया जा सके तो स्थापत्य के क्षेत्र में नूतन क्रांति लायी जा सकती है व परोक्ष जगत के प्रवाह से लाभान्वित हुआ जा सकता है.
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गोवर्धन यादव
गोवर्धन यादव
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07162-246651,9424356400
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