हास्य-व्यंग्य : मैडम को दावत

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- हनुमान मुक्त   मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक। अलादीन का चिराग साहब अंकल ही नजर आए दीनू को, अपने भाग्य-विधाता, कष्ट-निवारक। जा पहुंचा घर पर...

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- हनुमान मुक्त

 

मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक। अलादीन का चिराग साहब अंकल ही नजर आए दीनू को, अपने भाग्य-विधाता, कष्ट-निवारक।

जा पहुंचा घर पर, खूब रोया, गिडगिड़ाया।

साहिबा मैडम को भी कम द्रवित नहीं किया दीनू ने, अपनी दयनीय स्थिति से।

मैडम आखिर मैडम थी, स्त्रियोचित्त ममतामयी गुणों की खान, उन्हें पिघलना था, पिघल गई।

जो साहब इतनी देर से दीनू की दीनता को मूक-दर्शक होकर सुन और समझ रहे थे, अपनी पत्नी के चेहरे को पढ़कर दीनू की ओर मुखातिब हो ही गए।

बोले, रोने गिड़गिडाने से काम नहीं चलने वाला, कोई ना कोई रास्ता हम-तुम मिल बैठकर निकालेंगे, तभी पार पड़ेगी।

भगवान के मुंह से इतना सुनते ही भक्त की बांछें खिल गई, शिराओं में खून का प्रवाह तेज हो गया, लगा जैसे शरीर में अब प्राणों का संचार हुआ हो।

साहब मेहरबान तो गधा पहलवान। दीनू कुछ पहलवान जैसा दिखाई दिया। सर्विस काल में कितना बैंक वैलेंस इकट्ठा कर लिया है तुमने, साहब बोले।

दीनू को सुनकर एक बारगी तो झटका सा लगा, लेकिन तुरन्त ही अपनी दूरदृष्टि का इस्तेमाल किया और बोला, साहब यही कोई पचास-साठ हजार। पचास-साठ हजार, साल भर की सर्विस में बस इतना ही?

 

क्यों झूठ बोलते हो, मैंने तो सुना है तुम्हारे पास कम से कम एक-डेढ़ लाख से ऊपर है।

वैसे भी पचास-साठ से तो काम नहीं चलने वाला, साहब ने गहरी सांस लेते हुए कहा।

दीनू को मन ही मन कुढ़न सी हुई, पता नहीं, जाने कौन-कौन साहब को उसके बारे में सही सही रिपोर्ट दे देते हैं।

बोला, साहब बैंक बैलेंस तो इतना ही है, फिर भी आप कहोगे तो दस पांच हजार का बन्दोबस्त इधर उधर से कर ही दूंगा।

साहब मन ही मन हंसते हुए सोचने लगे कि जरूर एक सस्पेन्ड बाबू दस पांच हजार का बंदोवस्त इधर-उधर से ही कर सकता है।

नहीं दीनू, इससे तो काम नहीं चलने वाला, मैं जानता हूं इस काम की रेट्स कितनी होती है।

साहब, कुछ भी करो, मुझे बचाओ, मेरी जिन्दगी तबाह हो जाएगी, मेरी शादी नहीं होगी, मैं भूखा मर जाऊंगा, सब लोग मुझे हिकारत भरी नजरों से देखेंगे।

दीनू एक तरह से साहब के पैरो पड़ गया।

 

शादी। शादी-वादी तो मैं करवा दूंगा, लेकिन दान दहेज कुछ नहीं मिलेगा, तैयार हो तो बोलो।

आसमान से गिरा खजूर पर अटका, कहां तो लाखों मिल रहे थे, कहां साहब बिना दान दहेज में शादी करवा रहे है। मरता क्या न करता, हां करनी ही पडी, नौकरी जो बचानी थी, दीनू को।

बोला साहब आप ही मेरे माई-बाप हो, जैसा चाहो वैसा करो, लेकिन अब तो मुझे बचाओ।

दीनू के भक्ति भाव से साहब और साहिबा प्रफुल्ल्ति हो उठे, काफी दिनों से इसके चक्कर में थे, आज मौके पर दीनू कबादे में आ ही गया।

दीनू साठ हजार रुपए बैंक से निकलवा कर मेरे यहां पहुंचा देना। हां, इन्हें खर्च करने में कोई दिक्कत तो नहीं। साहब ने दीनू को आदेश दे ही डाला।

नहीं साहब, इसमें मुझे क्या दिक्कत, जैसे आया था, वैसे चला जाए, बस मेरी नौकरी बहाल हो जाए

ठीक है, फिर कल शाम को आना, बैठ कर बातें करेंगे

साहिब, साहिबा दोनों खुश थे, साहिबा को बिना दान-दहेज अपनी रिश्ते की बहिन का संबंध करने का मौका मिल गया, तो साहब को दलाली की मोटी रकम, साथ ही ए सी डी जैसे महकमे के बॉस तक अपनी पहुंच बनाने का अवसर।

एसीडी के बॉस को खुश करने की योजना के तहत साहब ने जांच पड़ताल की, उन्होंने सुना कि बॉस, उनकी बीबी की मुट्ठी में है, वे रीझ जाए तो बॉस रीझ जाए और बॉस रीझ जाए तो दीनू की नौकरी बहाल हो जाए।

 

आखिर बॉस की बीबी को दावत देने की योजना बना डाली। दीनू को दावत वाले दिन बॉस की बीबी की प्रशंसा में कुछ जुमले कहने थे।

आप तो बस आप है। साहब का अहोभाग्य है, कि उन्हें आप जैसी सुन्दर जीवन संगिनी मिली। आप जैसी शालीनता और विदुषिता एक साथ कम ही देखने को मिलती है। आप स्त्री जाति का गौरव हो, आपकी नेकनीयती और सह्दयता का डंका चतुर्दिक व्याप्त है। दीनू को चाटूकारिता करनी थी, प्रशंसा के नाम पर।

साहब ने कुछ सोचते हुए दीनू से कहा, यह मालूम करो कि बॉस की बीबी का नेचर कैसा है? उनकी पसंद क्या और और उनकी क्वालिफिकेशन कितनी है?

कहीं ऐसा ना हो उन्हें डिस्को पसंद हो और हम धार्मिक गीत लगा दे, उन्हें पसंद हो बरफी और हम परोस दे खीरमौन। उनका नेचर हो पतला और हम पतले की बुराई कर दे, वे पढी लिखी हो आठवीं और हम अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव की चर्चा छेड़ दे।

दीनू साहब के अन्तदर्शन को समझ गया। बॉस की बीबी की पर्सनल्टी के बारे में संपूर्ण जानकारी करना आवश्यक था। सोच विचार कर बॉस के बंगले पर काम करने वाले चपरासी को इस जानकारी के लिए सर्वथा योग्य समझा गया।

 

बॉस और उनकी बीबी पर कोई अथोरिटी हो सकता है, तो उनके बंगले का चपरासी।

दीनू को पता करने में क्या देर लगती, पहुंच गया चपरासी के घर। लेकिन यह देखकर दंग रहा गया कि वहां पर भी मिलने के समय की तख्ती टंगी थी, और आज मिलने का समय समाप्त हो चुका था। खूब घंटी बजाई, बाहर से लेकिन क्या मजाल जो कोई उसकी आवाज सुन ले, आखिर लौट आया।

दूसरे दिन मिलने के समय अन्तराल में ही दीनू चपरासी के घर जा धमका, घंटी बजाई। दरवाजा खुला, खोलने वाला रामसनेही, तुरन्त पहचान गया दीनू उसको।

अरे रामसनेही तुम। नहीं पहचाना मुझे? बड़े ठाठ हो गए तुम्हारे, बाहर मिलने तक के लिए तख्ती टांग रखी है

इसमें क्या गलत किया है मैंने, रामसनेही बड़े रूखाई से बोला। कोई कभी भी चला आता है, आखिर मेरी भी तो अपनी लाइफ है, प्रतिष्ठा है

मैं कोई ऐरे-गेरे विभाग का चपरासी तो हूं नहीं, ए सी डी विभाग के बॉस का चपरासी हूँ और वह भी उनके बंगले का। (करेला और वह भी नीम चढ़ा)

रामसनेही का तख्ती टांगना स्वाभाविक ही था

 

अच्छा अब यह बताओ, यहां कैसे पधारे? मेरे पास समय कम है, अपना काम बोलो।

रामसनेही के मुंह से इस तरह सुनकर दीनू का माथा ठनका। खैर उसे अपने आने के बारे में रामसनेही को सब कुछ साफ-साफ बता दिया।

ठीक है, मिल जाएगी और बीबीजी की नेचर और पर्सनल्टी के बारे में संपूर्ण जानकारी, लेकिन पहले फीस के सौ रुपए निकालिए। सौ रुपए? इतनी सी बात के, दीनू एक तरह से चौंकता हुआ कह उठा।

मजबूरी का नाम, महात्मा गांधी। उसने सौ रुपए रामसनेही को थमा दिए, सौ रुपए मिलते ही रामसनेही चालू हो गया।

सच कहो तो मैं बीवीजी को आज तक अच्छे ठंग से नहीं समझ पाया, उनकी नेचर कैसी है, इसका भी ठीक-ठीक अंदाजा लगाना मुश्किल है, कब उनका मूड कैसा रहता है, इसके बारे में सही-सही बता पाना नामुमकिन सा नहीं है।

कभी-कभी तो वे हाइली एज्यूकेटेड, क्वालिफाइड नारी की तरह टॉप स्कर्ट पहनकर साहब के गले में हाथ डाल कर लंबी ड्राइव पर निकल जाती है तो कभी कभी वे बिल्कुल अशिक्षित महिलाओं की तरह भारतीय पहनावे में पूरी तरह शरीर को ढ़ंककर सती-सावित्री का जीता-जागता रूप बनकर ईश्वर की पूजा-अर्चना करने लग जाती है।

दोनों ही रूपों में उनकी पसंद और नेचर बिल्कुल भिन्न होती है।

 

वैसे घर में उनकी ही चलती है, साहब की क्या मजाल जो उनकी बात को टाल सकने की हिम्मत दिखायें।

सुना है, इनके पिता ने ऊंचा दान दहेज दकर साहब को इनके लिए खरीदा था। वैसे पढ़ी-लिखी ये कम ही है, लेकिन खान-पान, डांस और पहनावे में ये आज तक पढ़ी-लिखी लेडिजों से कमजोर आज तक साबित नहीं हुई। विदेशी कुत्ते को भी ये गोद में खिला लेती है, साहब को इनकी इन्हीं विशेषताओं पर गर्व है

वैसे तुम्हारे लिए इनका ये ही रूप ठीक रहेगा। तुम ईश्वर से प्रार्थना करो कि मैडम हाइली क्वालिफाइड लेडी के रूप में ही तुम्हारी दावत में पधारे, डेट और मीनू मै मैड़म के मूड को देखकर तुम्हें बता दूंगा।

हां मंगलवार इससे अलग है, इस दिन साहब और मैडम पूरी तरह शाकाहारी रहकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुसार पूर्णतः आध्यात्म और धार्मिक भाव से हनुमानजी का वृत रखते है। अपनी तनख्वाह की कमाई में से ही प्रसाद चढ़ाते है। सुना है साहब, मैडम की इच्छा से ही ये सब करते है। वैसे इस दिन ऑफिस का काम भी नहीं के बराबर हो पाता है, मैडम का सत निर्देश है कि मंगलवार को कोई गलत काम नहीं किया जाए।

 

मंगलवार के अलावा जो दिन शूट करेगा, मैं तुम्हें बता दूंगा, लेकिन अगली बार फीस लाना मत भूलना।

सौ रुपए का काम समाप्त हुआ, तुम घर जा सकते हो।

दीनू, रामसनेही से विदा लेकर अपने साहब के यहां पहुंचा। सुना दिया सब कुछ, मैडम की पर्सनल्टी का समूचा गुणगान, जो रामसनेही ने उसे बताया था।

रामसनेही के आदेशानुसार बीबीजी की दावत की तिथि और मीनू सब कुछ साहब ने तय कर लिया। हां दीनू को कुछ जुमलों में परिवर्तन अवश्य करना पड़ा, लेकिन सब कुछ ठीक-ठाक ढंग से संपन्न हो गया।

साहब ने एसीडी के बॉस तक कितने रुपए पहुंचाए, ये तो नहीं पता लेकिन दीनू रिश्वत के आरोप से बरी हो गया, उसकी नौकरी बहाल हो गई। दीनू पुनः दीनदयाल बन गया। समाप्त

 

Hanuman Mukt

93, Kanti Nagar

Behind head post office

Gangapur City(Raj.)

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रचनाकार: हास्य-व्यंग्य : मैडम को दावत
हास्य-व्यंग्य : मैडम को दावत
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