योग के विरोध की नादानी प्रमोद भार्गव चंद धार्मिक समूहों के विरोध के चलते अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस 21 जून को योग के दौरान सूर्य-सलाम न...
योग के विरोध की नादानी
प्रमोद भार्गव
चंद धार्मिक समूहों के विरोध के चलते अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस 21 जून को योग के दौरान सूर्य-सलाम नहीं किया जाएगा। बेवजह किया जाने वाला यह विरोध वैसा ही है, जैसा इक्का-दुक्का इस्लामिक कट्टरपंथी राष्ट्रीय-गीत 'वंदेमातरम' गाने के दौरान करके जताते रहते हैं। कथित विरोधियों की यह नादानी इसलिए व्यर्थ है, क्योंकि दुनिया को समान रूप से रोशनी देने वाला सूर्य कोई ऐसा कृत्रिम या वैज्ञानिक गृह नहीं है, जिसे हिंदुओं ने अंतरिक्ष में किसी उपगृह की तरह प्रत्यारोपित किया हो ? सूर्य ब्रह्मांड का एक ऐसा अविभाज्य अंग है,जो किसी मानवीय शक्ति से नियंत्रित नहीं है। इसीलिए सृष्टि के अनवरत विकास क्रम में सूर्य की समान रूप से निर्विवाद भागीदारी बनी हुई है। सृष्टि को सूर्य की यही देन योग और भारतीय दर्शन में प्रणम्य है, वंदनीय है। गोया, सूर्य नमस्कार का विरोध कठमुल्लई नादानी के अलावा कुछ नहीं है। ईसाई धर्मावलंबी भी इसी तरह की नादानी जता चुके हैं, लेकिन योग की जीवंत-परंपरा को योग दिवस के रूप में वैश्विक मान्यता देने वाले देशों में ईसाई देशों की संख्या ही सबसे अधिक है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के बावत पिछले साल सिंतबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की थी। तब संयुक्त राष्ट्र में दिए अपने पहले भाषण में उन्होंने योग दिवस मनाए जाने के प्रस्ताव की पुरजोर पैरवी करते हुए कहा था,'योग जीवनशैली को बदलकर और मस्तिष्क की चेतना को जगाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद कर सकता है।' याद रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट में कहा भी गया है कि लोगों में जो गुस्सा देखा जा रहा है और जिस तेजी से दुनिया में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं,उनका एक कारण जलवायु में हो रहा बदलाव भी है। शायद इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में से 171 देशों ने योग दिवस को मान्यता दी। इनमें सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य देश रूस, चीन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन तो शामिल हैं ही, ईराक, ईरान, मिश्र और बांग्लादेश जैसे इस्लामिक देश भी शामिल हैं।
योग शब्द अपने भावार्थ में आज अपनी सार्थकता पूरी दुनिया में सिद्ध कर रहा है। योग का अर्थ है जोड़ना। वह चाहे किसी भी धर्म जाति अथवा संप्रदाय के लोग हों,योग का प्रयोग सभी को शारीरिक रूप से स्वास्थ्य और मानसिक रूप से सकारात्मक सोच विकसित करता है। योग भारत के किसी ऐसे धर्म ग्रन्थ का हिस्सा भी नहीं है, जो बाइबिल और कुरान की तरह पवित्र आस्था का प्रतीक हो ? योग की आसनें प्रसिद्ध प्राचीन ग्रंथ पतंजली योग सूत्र के प्रयोग हैं। जो हिंदु अथवा अन्य भारतीय धर्मों में धर्म ग्रन्थों की तरह पूज्य नहीं है। पतंजली योग सूत्र का सार इस एक वाक्य ''योगश्तिवृत्ति निरोधः'' में निहित है। इसका भावार्थ है,चित्त अथवा मन की चंचलता को स्थिर करना अथवा रखना। जिससे मन भटके नहीं और इन्द्र्रियों के साथ वासनाएं भी नियंत्रित हों। लेकिन योग केवल वासनाओं को नियंत्रित करने तक ही सीमित नहीं है। योग के नियमित प्रयोग से मधुमेह, रक्तचाप तो नियंत्रित होते ही हैं,कमोवेश मोटापा भी दूर होता है। यदि बाबा रामदेव की बात पर विश्वास करें तो कैंसर और एड्स जैसे असाध्य रोगों को भी योग नियंत्रित करता है। इसीलिए योग को जीवन की चेतना का मंत्र कहा जाता है।
हालांकि योग शिक्षा को लेकर एक समय अमेरिका और ब्रिटेन के धर्मगुरुओं में भी भय व्याप्त हो चुका था,क्योंकि वे योग को धार्मिक शिक्षा के रुप में देख रहे थे। उन्हें आशंका थी कि यदि योग की शिक्षा दी जाती गई तो उनके बच्चे भारतीय धर्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं। इसी शंका के चलते केलिर्फोर्निया नगर में तो विद्यालयों में योग की शिक्षा से जुड़े पाठों को हटाने की मांग भी की गई थी। उस समय अकेले इस शहर की पाठशालाओं में पांच हजार से भी ज्यादा बच्चे योग सीखकर स्वास्थ्य व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे थे। इसी तरह चर्च ऑफ इंग्लैंण्ड ने टॉन्टन में योग के पाठ पर प्रतिबंध लगा दिया था। दलील दी गई थी कि योग पाठ ईसाई धर्म की मूल मान्यताओं के विरूद्ध है। टॉन्टन की एक चर्च के पादरी स्मिथ ने तो यहां तक कह दिया था कि योग ईसाई धर्म के आस्थावान लोगों को भटकाने का रास्ता है। यह भारतीय मूल के हिंदू व बौद्ध धर्म व दर्शन से कतई अलग नहीं है। हालांकि तब इसी चर्च की योग शिक्षिका लुई बुडकॉक ने योग कक्षाओं पर पाबंदी का विरोध करते हुए पादरियों को दाकियानूसी तक कह दिया था।
दरअसल भारत अथवा पूर्वी देशों से जो भी ज्ञान यूरोपीय देशों में पहुंचता है, तो इन देशों की ईसाइयत पर सकंट के बादल मंडराने लगते हैं। इसी तरह भगवान रजनीश ने जब अमेरिका में गीता और उपनिषदों को बाइबिल से तथा राम,कृष्ण, बुद्ध और महावीर को जीसस से श्रेष्ठ घोषित करना शुरू किया था। और धर्म तथा अधर्म की अपनी विशिष्ट शैली में व्याख्या की थी तो रजनीश के आश्रमों में अमेरिकी लेखक ,कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, वैज्ञानिक और प्राध्यापकों के साथ आमजनों की भीड़ उमड़ने लगी थी। उनमें यह जिज्ञासा भी पैदा हुई कि पूरब के जिन लोगों को हम हजारों ईसाई मिशननरियों के जरिए शिक्षित करने में लगे हैं,उनके ज्ञान का आकाश तो कहीं बहुत ऊंचा है। यही नहीं जब रजनीश ने व्हाइट हाउस में राष्ट्र्र्रपति रोनाल्ड रीगन,जो ईसाई धर्म को ही एक मात्र धर्म मानते थे और वेटीकन सिटी में पोप को धर्म पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी तो ईसाइयत पर संकट छा गया था। नतीजतन देखते ही देखते रजनीश को उनके तामझाम समेत अमेरिका से बेदखल कर दिया गया था।
योग के रहस्यों को स्वास्थ लाभ से जोड़कर बाबा रामदेव ने जब से सार्वजनिक किया है, तभी से योग की महत्ता को पूरे विश्व ने स्वीकारा, न कि किसी धार्मिक प्रचार प्रसार के चलते ? योग, ध्यान, और प्राणायाम के द्वारा मस्तिष्क को एकाग्र कर शरीर को चुस्त - दुरूस्त व निरोग बनाए रखने की धर्मनिरपेक्ष वैज्ञानिक आसनें हैं, न कि हिंदू धर्म के विस्तार के उपाय ? इतना जरूर है कि भारत के सांस्कृतिक स्वरूप से जुड़ी जो भी मान्यताएं या परंपराए है,वे हिंदू और बौद्ध जीवन दर्शन के निकट हैं। इन्हें न तो नकारा जा सकता है और न ही इन्हें कृत्रिम एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के बहाने परिभाषित किया जा सकता है। योग के रूप में यह सांस्कृतिक विरासत दीर्घकालिक अनुभवों और विश्वासों की ऐसी मनुष्य जीवन के लिए लाभदायी देन है, जो अनेक कालखंडों में विदेशी संक्रमणों से टकराकर निखरती रही है। क्योंकि योग की क्रिया सूर्य को नमस्कार भी धर्म से नहीं स्वास्थ्य लाभ से जुड़ी क्रिया है,लिहाजा इन्हें नकारना अपने स्वास्थ्य को ही हानि पहुंचाना है। इसलिए योग के विरोध की नादानी से बचने की जरूरत है।
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
इतने ज्ञानवर्धक लेख के लिये धन्यवाद ।
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