अमरीका - जैसा मैंने देखा

SHARE:

यात्रा संस्मरण डॉ . महेश परिमल 1 अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी है, रटगर्स यूनिवर्सिटी। यहाँ हिंदी के लिए बहुत काम हो रहा है। वहाँ हर साल हि...

image

यात्रा संस्मरण

डॉ. महेश परिमल

1

अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी है, रटगर्स यूनिवर्सिटी। यहाँ हिंदी के लिए बहुत काम हो रहा है। वहाँ हर साल हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। इस साल उसमें भाग लेने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया था। आयोजन केवल तीन दिन यानी 3, 4 और 5 अप्रेल तक ही था, पर मैं वहाँ पूरे 19 दिन रहा। इसमें से तीन दिन तो न्यू जर्सी, 5 दिन बोस्टन और शेष दिन फिलाडेल्फिया में बिताए। इस दौरान खूब घूमना हुआ। कई संग्रहालय देखे। कई लोगों से परिचय हुआ। सबसे बड़ी बात यह रही कि अमेरिका में मुझे केवल अंगरेजी ही नहीं, बल्कि गुजराती, बंगला, पंजाबी और छत्तीसगढ़ी काम आई। अपने अनुभवों को शब्दों का रूप दे रहा हूँ। कहीं-कहीं अतिशयोक्ति हो सकती है। इसके लिए पहले से ही क्षमा चाहता हूँ।
------------------------------------------------------------------------------------
मैंने कभी करीब से विमान नहीं देखा था। घरेलू उड़ान का भी मुझे अनुभव नहीं था। मेरे सामने इंटरनेशनल उड़ान का प्रस्ताव था। हतप्रभ था। भीतर से कहीं अंगरेजी न आने की पीड़ा भी थी। इसके बाद भी मैं निकल पड़ा, एक दूसरी ही दुनिया को करीब से देखने के लिए। भोपाल से निकलकर मेरा पहला पड़ाव था, दिल्ली के मित्र विनोद वर्मा का घर। निजामुद्दीन में उतरकर नोएडा स्थित सीधे उनके घर ही पहुँचा। विनोद भाई को विदेश यात्राओं को अच्छा-खासा अनुभव है। इसलिए उनके विदेश और विशेषकर विमान यात्राओं के अनुभवों को जाना। उन्होंने बड़ी सादगी से अपने अनुभव मुझसे बाँटे। कुछ हिम्मत बँधी। वे घर पर अधिक समय तक नहीं रह पाए। आवश्यक मीटिंग होने के कारण वे जल्द ही नौकरी के लिए निकल पड़े। इसके बाद मोर्चा सँभाला, उनके पुत्र तथागत ने। उसने भी विदेश में एक वर्ष तक रहने और विमान यात्राओं के अपने अनुभव मुझे बताए।

इसके बाद तो मैं चल निकला। मेट्रो से मैं राजीव चौक तक पहुँच गया। उसके बाद वहाँ से सीधे एयरपोर्ट। बड़ा ही आल्हादकारी अनुभव। मेट्रो ने केवल 19 मिनट में ही मुझे एयरपोर्ट पहुँचा दिया। इस ट्रेन में आप चालक से लेकर गार्ड के डिब्बे तक आराम से पहुंच सकते हैं या अपनी सीट पर बैठकर दोनों दिशाओं की ओर देख सकते हैं। पूरी तरह से वातानुकूलित इस मेट्रो ट्रेन पर बैठना अच्छा लगा। एक तरह से यह विदेशी अनुभव का पहला पाठ ही था। जहाँ मुझे जाना था, उसके पहले ककहरे का ज्ञान मुझे मेट्रो में बैठकर ही हुआ। उसके बाद जब मेट्रो से उतरकर एयरपोर्ट पर पहुँचा, तो लगा कि क्या यही भारत है? चमचमाते फर्श पर फिसलती सामानों की ट्राली।

जो अशक्त हैं, उनके लिए व्हीलचेयर या फिर छोटी-सी मोटरगाड़ी, जिसमें करीब 7 लोग एयरपोर्ट के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँच सकते हैं। एयरपोर्ट पर पहुँचकर सबसे पहले बोर्डिंग पास बनवाना होता है। यह टिकट होता है, जिसके आधार पर आपको यात्रा करने की अनुमति मिलती है। यहाँ मैंने देखा कि यदि आप किसी ने कुछ न पूछें, बल्कि एयरपोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे, तो आप सही स्थान पर पहुँच सकते हैं। कहाँ क्या करना है, वहाँ क्या होता है, यह सब-कुछ लिखा होता है, वह भी अंगरेजी में।

अबूधाबी में इंतजार करते यात्री

आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि आपका टिकट किस एयरलाइंस का है, बस आप उस एयरलाइंस के काउंटर पर चले जाएँ, सब कुछ पता चल जाएगा। यहाँ एक बात देखने में आई, वह है अनुशासन। कोई भी कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे लाइन पर लगना ही होगा। वोर्डिंग पास देने के पहले आपसे काफी पूछताछ होती है। वे अधिकारी यह जानना चाहते हैं कि आप विदेश केवल घूमने ही जाना चाहते हैं, उन्हें यह शक होता है कि लोग पर्यटन का पास बनवाकर वहीं बस जाते हैं। हालांकि ऐसे लोगों को खोज निकालना बड़ी बात नहीं होती। पर परेशानी इसी बात की होती है कि विदेश जाकर व्यक्ति अपना नाम-पता बदल देता है। यहाँ आपके बेग की पूरी तलाशी होती है। कहीं आप ऐसी कोई चीज तो नहीं ले जा रहे, तो विदेशों में प्रतिबंधित है। उनकी आपत्ति सबसे अधिक द्रव्य पदार्थ एवं अचार पर होती है। अचार को वे किसी भी तरह से खाने की चीज़ नहीं मानते। उनके लिए यह ज़हर से कम नहीं। बेग का वजन भी तौला जाता है।  एक बेग का वजन 23 किलो के भीतर ही होना चाहिए। आप 46 किलो से अधिक का सामान अपने साथ नहीं ले जा सकते। इससे अधिक वजन होने पर उसका अलग से चार्ज वसूला जाता है। इसके बाद एयरपोर्ट अधिकारी से यह जवाब मिलता है कि यह बेग आपको आपके लास्ट डेस्टिनेशन पर मिलेगा। यात्रा के अंतिम पड़ाव यानी आप जहाँ जाना चाहते हैं, उसके आखिरी स्टेशन पर। इसके साथ का बेग जो करीब 7 या 8 किलो का होता है, उसे आप अपने साथ विमान में भी रख सकते हैं।

इस बेग को साथ रखकर हमें कई सुरक्षा संसाधनों से गुजरना होता है। आपके बेग की स्केनिंग तो होगी ही, आप की जेब में जो कुछ भी है, उसे भी बाहर निकालकर एक ट्रे में रखना होगा। उन चीजों का भी स्केन होता है। इन चीजों में शामिल है, पर्स, जूते, बेल्ट, डायरी आदि। आपके पूरे शरीर का भी स्केन होगा। ताकि यह पता चल सके कि आप अपने साथ कुछ भी आपत्तिजनक चीज नहीं ले जा रहे हैं। यह कार्य कई स्तरों पर होता है, इसलिए इसमें करीब डेढ़ घंटे का वक्त लग जाता है। इसके बाद आपको लाउंज पर बैठकर उस उद् घोषणा का इंतजार करना होता है, जो आपके विमान के बारे में होगी। इसके बाद सबके विमान में जाने की तैयारी होती है। यहाँ सभी के बोर्डिंग पास की बारीकी से जाँच की जाती है। काफी लंबी लाइन होती है। अपने बेग के साथ आप यहीं से सीधे विमान में प्रवेश कर सकते हैं। विमानतल में प्रवेश से लेकर विमान में प्रवेश करने तक जितनी भी जाँच होती है, वह न केवल एयरपोर्ट बल्कि देश की सुरक्षा से भी जुड़ी होती है। विमान में यात्रियों के लिए तीन श्रेणी होती ेहै। पहली बिजनेस, यह वह श्रेणी है, जिसमें यात्री को पूरा एक कमरा ही दे दिया जाता है। जहाँ पर आराम से सोया भी जा सकता है। कमरे में सारी सुविधाएँ होती हैं। इसके बाद होता है फर्स्ट क्लास। इसमें यात्री को थोड़ी ज्यादा जगह मिलती है। विमान में प्रवेश करते ही हमें फर्स्ट क्लास की सीटें दिखाई देने लगती हैं। उसके बाद की श्रेणी होती है, इकॉनामी। इसमें केवल बैठने की सीट होती है। जिसमें यात्री को 12 से 14 घंटे तक बैठना होता है। सीट कुछ पीछे हो सकती है, जिससे कुछ आराम मिलता है। विमान के अंदर होने वाली तमाम गतिविधियां और सामने की सीट पर लगे टीवी के कारण यात्री बोर नहीं होता। सीट पर लगे टीवी से हिंदी, अंग्रेजी फिल्में, टीवी शो और फिल्मी गानों का आनंद लिया जा सकता है। इसके अलावा विमान की तमाम गतिविधियां जैसे वह कहाँ से होकर गुजर रहा है, भीतर का तापमान कितना है, बाहर का तापमान कितना है, विमान की गति कितनी है, विमान कितने मीटर की ऊँचाई पर है आदि जानकारी भी मिलती रहती है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी होती है। फिल्मों के बजाए हम अपना ध्यान इसी में लगाएँ, तो यात्रा सुखद और ज्ञानवर्धक बन सकती है।


मैं दिल्ली से अबूधाबी पहुँचा, वहाँ सघन जाँच से गुजरना पड़ा। इस दौरान मैंने पाया कि किसी को कोई हड़बड़ी नहीं है। सभी इत्मीनान से अपना सामान लेकर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। जाँचकर्ता अधिकारी को पूरा सहयोग कर रहे हैं। कहीं किसी तरह की कोई बहस नहीं। सभी लोग प्रसन्नता पूर्वक अपने सामान की जाँच करवा रहे हैं। आगे जाने वाले यात्रियों के पास दूसरे विमान में जाने के लिए काफी वक्त था, इसलिए बिना हड़बड़ी के सारे काम संपादित होते रहे। थोड़ी-सी झुंझलाहट तब हुई, जब एक सघन जाँच के कुछ ही देर बाद दूसरी सघन जाँच से गुजरना पड़ा। पुन: वही प्रक्रिया। बेल्ट, जूते, मोजे, पर्स, मोबाइल, डायरी आदि सब कुछ ट्रे में रख दो,वह ट्रे स्केनर से होकर गुजरेगी। यदि कुछ गलत पाया गया, तो आपको रोक लिया जाएगा। इसके बाद भी एक और पूछताछ से गुजरना होता है। आप किस देश में जा रहे हैं और क्यों? वहाँ जाकर क्या करेंगे? वहाँ आपके रहने का पता-ठिकाना क्या होगा? आपको अंगरेजी नहीं आती, पूछने वाला यदि अंगरेज है, तो यहाँ भाषा नहीं, हमारा आत्मविश्वास काम आएगा। वह हमारी आँखों को ही पढ़कर हमारी ईमानदारी को पहचान जाता है। मेरे-उसके बीच थोड़ी-बहुत बातचीत हुई, जिससे वह समझ गया कि यह केवल हिंदी सम्मेलन में भाग लेने जा रहा है।

 

न्यूयार्क एयरपोर्ट में भूप्पी अपने परिवार के साथ लेने आए

वैसे उनके पास हमारी दी हुई सभी जानकारियाँ होती हैं। इसके बाद भी वे अवश्य पूछते हैं कि आपका लौटना कब होगा? वहाँ जाकर अाप क्या करेंगे? किस तरह से करेंगे? इस तमाम बातों से संतुष्ट होकर वह एक निश्चित तिथि तक आपको उस देश में रहने की अनुमति देते हैं। मुझे अक्टूबर तक यानी छह माह तक अमेरिका में रहने की अनुमति मिली थी। इसके बाद भी वहाँ काफी समय तक आराम करने का अवसर मिला। अबूधाबी से न्यूयार्क के लिए विमान सुबह 5 बजे रवाना हुआ। कुछ देर बाद सुबह का नजारा विमान से देखा। बहुत ही अच्छा लगा। विमान दिन भर उड़ता रहा। इसी बीच करीब 13 घंटे की यात्रा पूरी होने के कुछ घंटे पहले एक सूर्योदय और देखा। उस समय विमान कहाँ से उड़ रहा था, यह समझ नहीं आया। पर एक ही दिन में दो सूर्योदय देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था। जब भारत में शाम के पौने 6 बज रहे थे, तब न्यूयार्क में सुबह के सवा नौ बज रहे थे। उसी समय विमान न्यूयार्क एयरपोर्ट पर उतरा। वहाँ मेरे साथी भूपिंदर, अपनी पत्नी और प्यारी-सी बिटिया अर्पण को लेकर मेरा इंतजार कर रहे थे। मुझे देखते ही भूप्पी ने मुझे बुरी तरह से अपनी बाँहों में जकड़ लिया। बाँहों की जकड़न आज भी याद है। इस जकड़न में था, उनका प्यार, विश्वास और अपनापन। जिसका मैं पूरी अमेरिका यात्रा के दौरान कायल रहा।

 

*****

2

न्यूयार्क एयरपोर्ट पर उतरने के पहले पायलट की आवाज विमान में गूँजी। अबूधाबी एयरपोर्ट पर आप सभी का स्वागत है। यह सुनकर लोग हँसने लगे। इसके बाद पायलट ने तुरंत अपनी गलती सुधारते हुए माफी मांगी और कहा कि न्यूयार्क एयरपोर्ट पर आपका स्वागत है। मेरे लिए एकदम नया अनुभव। मेरा सामान कहाँ होगा? किस हालत में होगा? कहाँ मिलेगा? इसी चिंता में विमान से बाहर आया। सभी यात्रियों के साथ-साथ चलता हुआ मैं उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ एक गोल घेरे में सबका सामान आ-जा रहा था। मैंने ध्यान से देखा कि एक स्थान पर हमारे ही विमान का अगला भाग है, जहाँ से सामान बाहर निकल रहा है और सीधे उस स्थान पर गिर रहा है, जो एक गोल घेरे में है। यात्री उसके चारों तरफ खड़े हैं, जिसका सामान है, वह अपने सामान को पहचान कर उठा लेता। अगर गलत सामान उठाया है, तो फिर उसी स्थान पर रख देता है। यदि किसी के दो बेग हैं, तो आवश्यक नहीं कि दोनों साथ-साथ आएँ। एक बेग मिलने के बाद दूसरा बेग कुछ देर बाद भी मिल सकता है।

मेरा ध्यान अपने बेग की ओर था कि पीछे से किसी ने मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा-आखिर आ गए डॉक्टर! मैंने पीछे देखा, तो मेरा मित्र भूपिंदर मेरे सामने था। उसने मुझे भींच लिया, कहो डॉक्टर कैसे हो? मैंने कहा-मैंनू तो चंगा है प्राजी, तुस्सी सुनाओ,  कैसे हो? मैंने भी उसे गले लगाते हुए कहा-प्राजी तुम्हारी जिद थी कि डॉक्टर को अमेरिका आने से कोई रोक नहीं सकता, देखो मैं तुम्हारे सामने हूँ। इसके बाद मैं उनकी पत्नी सुखविंदर से मिला। उनकी बेटी अर्पण को गोद में लिया। भूप्पी ने तुरंत कुछ तस्वीरें लीं। उसके बाद एक विदेशी यात्री से अनुरोध किया कि हम चारों की तस्वीर हमारे मोबाइल में कैद कर दे। उसके बाद मैं अपने बेग को तलाशने लगा, तब तक भूप्पी ने कुछ तस्वीरें फेसबुक में डाल दी। इस बीच मेरे बेग भी मुझे मिल गए। इसके बाद मैं पूरे न्यूयार्क एयरपोर्ट को जी भरकर निहारा। रोशनी से नहाया हुआ एयरपोर्ट, दूर-दूर तक विदेशी यात्री, कुछ भारतीय यात्री भी दिख जाते। मेरी गोद में अर्पण थी, मेरा सामान भूप्पी ने उठाया हुआ था। हम बाहर आए। सामान गाड़ी में रखा। भूप्पी ने कहा-सीट पर बैठो। मैं भारतीय परंपरा के अनुसार अगली सीट पर बैठने जा ही रहा था कि आवाज आई, ओए प्राजी, उत्थे नई, इत्थे। मैं भौचक! तब भूप्पी ने खुलासा किया-डॉक्टर इस देश में लेफ्ट हेंड ड्राइविंग है। तुम उधर बैठो, मैं इधर बैठकर गाड़ी चलाता हूँ। पहली बार मैं उस स्थान पर बैठा, जहाँ भारत में ड्राइवर बैठते हैं। बड़ा अजीब-सा लगा। हमारी गाड़ी चल पड़ी फिलाडेल्फिया की ओर।

रास्ते में भूप्पी ने अमेरिका के बारे में जो कुछ बताया, उसमें पहले तो यातायात के नियमों का जिक्र करना चाहूँगा:-


यहाँ हार्न बजाना प्रतिबंधित है। यदि किसी चालक ने कुछ ही देर में तीन बार गाड़ी का हार्न बजा दिया, तो उसे पुलिस तुरंत डॉक्टर के पास ले जाकर उसका मानसिक परीक्षण करवाती है।
दस वर्ष से कम उम्र्र के बच्चे वाहन की अगली सीट पर नहीं बैठ सकते।
बच्चे को गोद में लेकर कहीं बाहर नहीं निकले सकते। बच्चा हमेशा (स्ट्रालर) बच्चा गाड़ी में ही होना चाहिए। इस गाड़ी को चलाने के लिए मॉल या स्टोर्स में विशेष व्यवस्था होती है।
हाइवे पर ट्रकों के लिए अलग से सड़क होती है। उस सड़क पर कार नहीं जा सकती।
वहाँ कार वाहनों की लाइट दिन में भी ऑन रखी जाती है। वाइपर चल रहा हो, तो लाइट का ऑन होना अनिवार्य है। ये वहाँ का नियम है।
यदि आपने यातायात नियमों का तीन बार से अधिक उल्लंघन किया है, तो आपका लायसेंस रद्द हो सकता है। फिर आपका लायसेंस पूरे अमेरिका में कहीं भी नहीं बन सकता।
पिछले माह ही टेक्सास में गति सीमा से तेज चलाने पर एक व्यक्ति को टिकट मिल गया, वह व्यक्ति थे, जार्ज बुश यानी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति। यानी वहाँ कानून व्यक्ति से ऊपर है।
यातायात नियमों के उल्लंघन के बाद यदि आपने पुलिस वाले को रिश्वत देने की कोशिश की, तो उसे यह अधिकार है कि वह आपको तुरंत गिरफ्तार कर ले। इस संबंध में पुलिसवालों का कहना है कि हमें कानून का पालन करवाने के लिए ही वेतन दिया जाता है। हमें पर्याप्त वेतन मिलता है, फिर हम अपने काम में बेईमानी क्यों करें?


रात के दो बजे भी यदि रेड लाइट है, तो आपको रुकना होगा। भले ही कोई ट्रेफिक न हो।
हर चौराहे पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जिससे आपके वाहन के बारे में एक बार में पूरी जानकारी मिल जाती है।
आपके वाहन के आगे यदि कोई स्कूल बस हो और वह आगे जाकर बच्चों को उतारने लगी हो या फिर बच्चों को वाहन में लेने लगी हो, तो आप उस स्कूल बस को किसी भी तरह से क्रास नहीं कर सकते। भले ही ग्रीन सिगनल क्यों न मिल रहा हो। स्कूल बस के चलने पर आप उस वाहन को क्रास कर सकते हैं।
जहाँ जितनी स्पीड तय की गई है, वहाँ उतनी ही स्पीड आपके वाहन की होनी चाहिए। अन्यथा आपको जुर्माना हो सकता है। कई स्थानों पर ऐसी भी मशीन लगी होती है, जिसमें वहाँ की स्पीड लिमिट और आपके वाहन की स्पीड बताई जाती है। यानी आप वाहन स्पीड लिमिट से अधिक तेज चला रहे हैं। ये मशीन केवल आपको सूचित करती है कि आप वाहन की गति को नियंत्रित रखें।


टोल टैक्स देने के लिए वाहन को खड़े नहीं करना होता, वहाँ लगे कैमरे से कार के स्क्रीन पर लगे बिल्ले के नम्बर के मिलान से ही चालक के डेबिट कार्ड से राशि निकल जाती है।
हर 50 या 100 मीटर पर सिगनल होते हैं। इसलिए शहर से बाहर निकलने में ही आधा घंटा लग जाता है। इसके अलावा जिन चौराहों पर सिगनल नहीं लगे हैं, वहां आपको वाहन धीमा करना ही होगा। यातायात हो या न हो, यह नियम हमेशा लागू होता है।

 

चलते-चलते वाहन यदि खराब हो जाए, तो उसे सड़क के किनारे खड़े करने के लिए जगह होती है। वहां वाहन खड़े कर टो वाहन का इंतजार किया जाता है। इस वाहन को आने में अधिक समय नहीं लगता।
जाम की स्थिति बहुत ही कम आती है। बाइक दिखाई नहीं देती। यदि कहीं दिखी भी तो वह हार्ली डेविडसन पर भागते अंग्रेज ही दिखाई दिए।
पार्किंग के लिए अच्छी सुविधा है। जहाँ वाहन पार्क करना है, वहीं एक खंबे पर मशीन लगी है, जहाँ आप नियत समय तक अपना वाहन खड़ा कर सकते हैं, इसके लिए मशीन से ही भुगतान भी हो जाता है। तय समय से अधिक समय तक वाहन खड़ा मिला, तो फिर जुर्माना।


साइकिल के लिए अलग ट्रेक और उसे खड़े करने के लिए अलग से व्यवस्था होती है।
शनिवार-रविवार को साइकिल एवं बाइक किराए पर मिलते हैं। बाइक के लिए अलग से रास्ता होता है। लोग स्केटिंग करते हुए भी तेजी से निकल जाते हैं।
वहां के प्रत्येक पेट्रोल पंप पर एक रेस्टारेंट होता ही है। जहाँ यात्रियों की हर सुविधा का ध्यान रखा जाता है। आप वहां इत्मीनान से नाश्ता कर सकते हैं, फ्रेश हो सकते हैं। भारतीय लोगों के लिए विशेष रूप से शाकाहारी खाद्य सामग्री होती है। पेट्रोल अपने हाथ से ही लेना होता है। कहीं-कहीं वहाँ का कर्मचारी भी देता है। पेट्रोल को वहाँ गैस कहा जाता है। पेट्रोल का आशय वहां पुलिस की पेट्रोलिंग से लगाया जाता है। यह गैलन के हिसाब से मिलता है। वहां लीटर का प्रचलन नहीं है। एक गैलन में करीब तीन लीटर पेट्रोल आता है। पेट्रोल की कीमत में अधिक अंतर नहीं है।


गाड़ियाँ जीपीएस सिस्टम से चलती हैं, जहाँ जाना हो, वहाँ का डेस्टीनेशन फीड कर दिया जाता है, फिर तो जैसा जीपीएस का आदेश होगा, चालक अपना वाहन वहीं ले जाएगा। जीपीएस से यह भी पता चल जाता है कि कितने समय में डेस्टीनेशन तक पहुँचा जा सकता है। कहाँ रास्ता जाम है, कहाँ काम चल रहा है। कौन-सा मार्ग डायवर्सन पर है। ये सारी जानकारी जीपीएस से ही पहले ही मिल जाती है।
पूरे 19 दिनों में मैंने करीब तीन हजार किलोमीटर की यात्रा वाहन से की। पर रास्ते में कहीं भी न तो कोई जानवर देखा, न कोई ठेला वाला और न ही खराब वाहन। यदि वाहन स्टार्ट न हो, तो धक्का नहीं लगाया जाता, बल्कि वाहन में अलग से बैटरी होती है, जिसे वाहन की बैटरी से जोड़कर वाहन स्टार्ट किया जाता है। यदि बैटरी नहीं है, तो एक वायर होता है, जिसे किसी दूसरे के वाहन की बैटरी से जोड़कर अपने वाहन की बैटरी को पावरफुल कर दिया जाता है, फिर अपना वाहन स्टार्ट किया जाता है।

*****

3

इस बार मैं अमेरिका की संस्कृति की चर्चा करुंगा। अमेरिकी खुशमिजाज हैं। अपने काम से काम रखते हैं। पर व्यावहारिक भी बहुत हैं। थैक्यू और सॉरी शब्द उनकी जबान में हमेशा रहता है। वे लोग काम के प्रति समर्पित हैं। दूसरों से कोई लेना-देना नहीं। कम से कम बातचीत और अधिक से अधिक काम में विश्वास रखते हैं। युवतियाँ कान में ईयर फोन लगाकर ही घर से बाहर निकलती हैं। जहाँ जगह मिली, वे नाचने-गाने में भी संकोच नहीं करते। पूरी मस्ती के साथ जीवन जीते हैं। वहाँ हर घर में कार है, सभी कार चलाते हैं। फिर भी युवक-युवतियाँ साइकिल पर कॉलेज जाने या फिर घूमने के लिए निकलती हैं। शनिवार-रविवार को वहाँ बाइक और साइकिल किराए पर भी मिलती हैं। ताकि लोग छुट्‌टी के मजे ले सकें। कुछ और बातें बिंदुवार इस प्रकार हैं:-


सहेजने की प्रवृत्ति:-फिलाडेल्फिया में कई ऐसे संग्रहालय हैं, जहां अमूल्य निधि सँजोकर रखी हुई है। यहाँ एक ऐसा संग्रहालय है, जिसमें मेडिकल के क्षेत्र में होने वाले शोध के लिए एक फीट से लेकर साढ़े 6 फीट के कंकाल रखे हुए हैं। यही आइंस्टीन का मस्तिष्क भी रखा हुआ है। मेरे विचार से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को एक बार यहां अवश्य आना चाहिए।


शिक्षा के प्रति समर्पित:-गुड फ्राइडे को मैंने वहां बच्चों को स्कूल जाते हुए देखा। उस दिन मैं कहीं भी किसी तरह का जलसा होते नहीं देखा। बारहवीं तक सभी की शिक्षा मुफ्त है। स्कूलों में हर तरह के खेलों के लिए बड़े-बड़े मैदान हैं। एक स्कूल करीब चार-पाँच एकड़ जमीन पर होता है। अंदर बच्चों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था होती है। एक क्लास में 20 से अधिक बच्चे नहीं होते। बच्चे की एक-एक हरकत पर कैमरे से निगरानी होती है। ताकि यह पता चल सके कि बच्चे का दिलचस्पी किस काम पर अधिक है। लोग कानून से बहुत डरते हैं। वहाँ व्यक्ति कानून से नीचे है। कानून को हाथ में लेने से हर कोई डरता है। सभी देश के नियम-कायदों की इज्जत करते हैं। हमारे यहां जिस तरह से यातायात के नियमों को तोड़ना अपनी शान समझते हैं, वहाँ ऐसा नहीं है। जो कानून तोड़ेगा, उसे सजा भुगतनी ही है। पूरे अमेरिका में व्यक्ति कहीं भी हो, अपनी पहचान नहीं छिपा सकता। आधार कार्ड की तरह एक कार्ड होता है, जो सभी सरकारी काम में उपयोग में लाया जाता है। आपके तमाम कागजात में उस नम्बर का जिक्र होता है। उस नम्बर के आधार पर कुछ ही सेंकेंड मं आपको ट्रेस किया जा सकता है।


खुशमिजाज- वहां के लोग खुशमिजाज हैं। अपने काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित। अपरिचितों से न के बराबर बातचीत करते हैं। पर उन्हें सम्मान दो, तो वह मुस्करा धन्यवाद कहना नहीं भूलते। बच्चों को बहुत प्यार करते हैं। जहाँ कहीं भी छोटा-सा प्यारा बच्चा दिखा कि वे उसे अपनी गोद में लेने को आतुर दिेखते हैं।
सड़क किनारे मोबाइल पर तेज आवाज के साथ युवक-युवतियाँ डांस करते दिखाई दे जाते हैं। खुशी मनाने का कोई अवसर वे नहीं छोड़ते।


समय के पाबंद-यदि डॉक्टर से मरीज ने समय लिया होता है, तो मरीज की पूरी कोशिश होती है कि वह समय पर पहुँचे। इस बीच यदि उसका वाहन खराब हो जाए, तो वह किसी को भी यह कारण बताकर लिफ्ट ले लेता है। लोग खुशी से उसकी सहायता करते हैं। जहाँ कहीं भी जाना, तो वे समय से पहले पहुँचने की पूरी कोशिश करते हैं। हाँ भारतीय कहीं कोई कार्यक्रम आयोजित करते हैं, तो उसमें देर हो ही जाती है।
सैलानी प्रवृत्ति:- सड़क पर चलते हुए कई ऐसे लोग भी दिखाई दे जाते हैं, जो एक पटे पर खड़े होकर कारों के साथ-साथ चलते रहते हैं। लकड़ी के पटे पर बेयरिंग लगी होती है, जिस पर वे आड़ा खड़े होकर सड़क पर चलते हैं। जहाँ कहीं भीड़ हुई, वह उसे अपने कांधे पर रखकर पैदल चलना शुरू कर देते हैं। मनमौजी की तरह से कहीं भी दिखाई दे जाते हैं। इसमें युवक ही नहीं, युवतियाँ भी शामिल होती हैं।


भेदभाव नहीं:-वहाँ काले लोगों की संख्या बहुत है। यात्री बस, स्कूल बस को अक्सर महिलाएँ ही चलाती हैं। बड़े-बड़े ट्रेकर भी महिलाओं को चलाते देखा है मैंने। कुछ युगल ऐसे भी दिखाई दे जाते हैं, जिसमें महिला गोरी एवं पुरुष काला, दोनों पति-पत्नी के रूप में। दोनों की दो संतानें, बेटी काली और बेटा पूरा गोरा। लेकिन वे बिंदास होकर मॉल या स्टोर में सामान की खरीददारी करते हुए दिखते हैं। कालों की संख्या को देखते हुए स्टोर में उनके हिसाब से कपड़े आदि रखे होते हैं। तम्बू आकार के शर्ट-पेंट आदि देखकर ऐसा लगता है कि यह शो-पीस है। पर ऐसा नहीं, वहाँ ऐसी चीजों के खरीददार होते हैं।


शांत स्वभाव:-वहाँ किसी को कहीं भी जाने की हड़बड़ी नहीं होती। पूरे इत्मीनान से वे गाड़ी चलाते हुए चले चलते हैं। यदि किसी को जल्दी है, तो उसके वाहन की गति से सभी समझ जाते हैं और उसे रास्ता दे देते हैं। पर ऐसा कम ही होता है। सब एक-दूसरे का खयाल रखते हुए अपने वाहन चलाते हैं।
हिंदी का माहौल:-न्यू हेम्पशायर में मैं एक हिंदी के कार्यक्रम में शामिल हुआ। पूरे पाँच घंटे तक चलने वाले इस कार्यक्रम में शामिल होकर ऐसा लगा ही नहीं कि मैं भारत से बहुत दूर अमेरिका में हूं। सभी लोग हिंदी में बात करते हुए। दो नाटक भी हिंदी के। लोगों ने अपनी कविताएँ भी सुनाई, शायरी भी सुनाई। पूरा माहौल हिंदी का था। मुझे लगा मैं तो मानों अपने ही शहर के किसी कार्यक्रम में शामिल हुआ हूँ।


परस्पर सम्मान:- वहाँ लोग एक-दूसरे को पूरा सम्मान देते हैं। रिसेप्शन में पहुँचते ही पहले  गुड मार्निंग, हाऊ आर यू से बातचीत की शुरुआत करते हैं। फिर भले काम की बातें शुरू हो जाए। इस दौरान कहीं किसी के चेहरे पर आलस या पराएपन का अहसास होता दिखाई नहीं दिया। पूरे सम्मान के साथ वे अभिवादन करते हैं। बातें करते हैं। किसी मॉल या स्टोर में जाते हुए हम किसी के पीछे जा रहे है, तो वे दरवाजा खोलकर पहले हमें जाने देते हैं, फिर वे प्रवेश करते हैं। इस दौरान हमें उन्हें धन्यवाद अवश्य कहना चाहिए। यदि हम ऐसा करें, तो वे खुश होकर धन्यवाद अवश्य कहते हैं।


उत्सव  प्रेमी:-चूँकि अमेरिकी उत्सव प्रिय होते हैं, इसलिए किसी के घर पार्टी हो, तो शराब अपनी ही ले जाते हैं। ताकि सामने वाले को किसी तरह की परेशानी न हो। जन्म दिन, सालगिरह आदि समारोह सप्ताहांत में ही आयोजित किए जाते हैं, ताकि अधिक से अधिक लोग आकर एंज्वाय कर सकें।


लकड़ी के घर:- अधिकांश घर लकड़ी के होते हैं, इसलिए घर की रसोई पर चूल्हे के आसपास काफी सतर्कता रखी जाती है। घर पर किसी तरह की भट्‌ठी नहीं होते। मांसाहार के लिए भुनने के लिए घर के बाहर बिजली से चलने वाला यंत्र होता है, जिस पर मांस लटकाकर नीचे ताप से उसे भुना जाता है। इस काम में सभी सहयोग करते हैं, फिर मिलकर सभी एंज्वाय करते हैं। सड़क के दोनों किनारे घर बने होते हैं। जिसमें तलघर में पानी गर्म करने के लिए बॉयलर, एसी आदि की व्यवस्था होती है। उसके ऊपर वाले पर रहना होता है। अधिकांश समय ठंड होती है, इसलिए दरवाजे तुरंत बंद होन वाले होते हैं। घर हमेशा गर्म होता है। बाथरूम में ठंडे और गर्म पानी की पूरी व्यवस्था होती है। लोग गर्म पानी से ही नहाते हैं। हाँ मकानों के नम्बर क्रमवार होते हैं। जैसे 111, 113,115,117 आदि एक साथ मिलेंगे। उसके सामने की ओर वाले मकानों के नम्बर 112, 114, 116 आदि होते हैं। यानी सम संख्या वाले एक ओर और विषम संख्या वाले दूसरी ओर होते हैं।


नो धोबी घाट:-वहाँ एक बात यह देखने में आई कि भारत की तरह वहाँ किसी घर या बाहर रस्सी पर कपड़े सूखते दिखाई नहीं देते। वहाँ सभी के घर वाशिंग मशीन और साथ में ड्रायर मशीन भी होती है। एक घंटे में कपड़े धुलकर और सूखकर आपके पास आ जाते हैं। जिनके घर वाशिंग मशीन नहीं होती, वे अपने घरों से कपड़ों का गट्‌ठर ले जाते हैं, एक ऐसी जगह, जहाँ सभी तरह के कपड़े धुलते हैं। वहाँ कई वाशिंग मशीनें रहती हैं। वहाँ पहले आपके कपड़ों को तौला जाएगा, उसके बाद कपड़ों की धुलाई और उसे सूखाकर आपको सौंप दिया जाएगा। लोग सप्ताह भर के कपड़े ले जाते हैं, सुबह देकर दोपहर को ले आते हैं। खर्च आता है, कपड़ों के तौल से। फिर भी भारतीय मुद्रा में 400 रुपए लग ही जाते हैं।


वायु-ध्वनि प्रदूषण नहीं:- वहाँ कभी कहीं भी शोर सुनने को नहीं मिला। इसके अलावा वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने के लिए कोई उपक्रम करता हुआ भी नहीं देखा। न कहीं धुआं, न कचरे का ढेर, न लाउडस्पीकर, न ही और ऐसा कुछ, जिससे ध्यान भटकता हो। लोग शांति से जीना चाहते हैं। लाउडस्पीकर पर वहां प्रतिबंध है। न मंदिरों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों का इस्तेमाल हाेता है, न मस्जिदों में और न ही िगरजाघरों में। चारों ओर शांति और केवल शांति

(महेश परिमल के ब्लॉग संवेदनाओं के पंख -  http://dr-mahesh-parimal.blogspot.in से साभार)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अमरीका - जैसा मैंने देखा
अमरीका - जैसा मैंने देखा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilg_e1YKnLEU65bCBF67VYj2MA-I2ZTeXLL6LMe1vVu5oPH9wTt2z3cE34u-CItMN1YB3NEMLwWUvTLL7T1Q5wAZTn4r2_PPClHnVS0wtqVkPThQ0J5y7DK5njH-Awl07KSsN-/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilg_e1YKnLEU65bCBF67VYj2MA-I2ZTeXLL6LMe1vVu5oPH9wTt2z3cE34u-CItMN1YB3NEMLwWUvTLL7T1Q5wAZTn4r2_PPClHnVS0wtqVkPThQ0J5y7DK5njH-Awl07KSsN-/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/06/blog-post_12.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/06/blog-post_12.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content