- हनुमान मुक्त कंचन वन का उल्लू बड़ा पॉवर फुल मंत्री था। उसके यहां किसी चीज की कमी नहीं थी, कंचन वन का वह जाना मान रईस था। आपदा प्र...
- हनुमान मुक्त
कंचन वन का उल्लू बड़ा पॉवर फुल मंत्री था। उसके यहां किसी चीज की कमी नहीं थी, कंचन वन का वह जाना मान रईस था। आपदा प्रबंधन विभाग का दायित्व होने के कारण उन्हें आपदा-प्रबंधन के बिजनेस की अच्छी नॉलेज थी। वर्षों से वे इस पद को बखूबी से संभाले आ रहे थे। उनके प्रबंधन पर अंगुली उठाने का पिछले कई वर्षों से किसी को कोई अवसर नहीं मिला था।
प्रबंधन में इस बार जाने कहाँ चूक हो गई कंचन वन के सैकड़ों जानवर बाढ़ की चपेट में आ गए। सड़कें टूट गई, मकान बह गए। प्रबंधन की पोल खुल गई।
बातों को दबाने की पूरी कोशिश की गई, गलत आंकड़े और तथ्य प्रस्तुत कर मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों में काफी कम प्रस्तुत की गई लेकिन फिर भी बात जाने कैसे कंचन वन के राजा लम्बू बाघ के कानों तक पहुंच ही गई।
लम्बू बाघ काफी नाराज हुआ, करोड़ों का बजट हर साल जारी करने के बावजूद प्रजा बाढ़ की चपेट में आ जाए, करोड़ों अरबों का नुकसान हो जाए यह उन्हें गवारा नहीं था।
लम्बू बाघ ने मुनादी करावा दी कि आपदा प्रबंधन के मुख्य गैर जिम्मेदार अधिकारी को फांसी पर लटका दिया जावे। फांसी का समय दो दिन बाद का नियत किया गया उस दिन लम्बू बाघ का जन्म दिन था।
फांसी की बात सुनते ही मुख्य अधिकारी भेड़िया अपने विभाग के मंत्री उल्लू के बंगले पर जा धमका। उन्होंने मंत्री महोदय की पूजा-अर्चना की। पूजा की सामग्री इस बार पहले से काफी ज्यादा थी।
पूजा अर्चना से भगवान भी प्रसन्न हो जाते हैं, वह तो वैसे भी भगवान नहीं था, साथ में भेंट सामग्री की मात्रा से उल्लू मंत्री का दिल पसीज गया। फिर भी हमेशा की तरह श्रद्धालु से उसने पूछा।
ये सब क्या है? यहां क्यों आए हो?
हाथ जोड़ते हुए विनती करते हुए वह बोला-महाराज यदि आप मुझे ही इस सबका जिम्मेदार मानते हैं तो मैं फांसी पर लटकने को तैयार हूं, पर इसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं। इसकी एक मात्र जिम्मेदार बरसात है। फांसी पर चढ़ना ही है तो बरसात को चढ़ाओ। उसे इतना बरसना ही नहीं था। बरसात को हाजिर करो। पलक झपकते ही बरसात हाजिर।
महाराज इसमें मेरी क्या गलती। मैं तो कंचन वन के कृषकों और अन्य पूजा की आर्तनाद सुनकर बरसी हूं, कुछ वर्षों से मेरे अभाव में इनकी फसल चौपट हो रही थी, ये भूखे मर रहे थे, जमीन में जलस्तर काफी नीचे चला गया था। प्रजा पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही थी।
मुख्य अधिकारी भेड़िया पासा पलटते देख तुरन्त बोला महाराज ये सब तो ठीक है लेकिन इसको बरसने से पहले आपसे पूछना चाहिए था आप इस वन के मंत्री है। आपके क्षेत्र में बरसे और आपकी कोई परमीशन नहीं? ये तो आपकी तौहीन है।
तौहीन की बात सुनते ही उल्लू मंत्री को इसमें अपनी तौहीन नजर आने लगी, उसे लगा कि वास्तव में बरसात ने बरसने से पहले उसकी परमीशन नहीं लेकर राज की तौहीन की है।
बरसात को फांसी पर लटका दो। ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। हमेशा के लिए ही इससे मुक्ति।
पर महाराज मुझे फांसी पर लटकाने से पहले सोचिये, आप जो आपदा प्रबंधन के नाम से प्रति वर्ष करोड़ों रुपए का बजट जारी करते हैं, उसका उपयोग ये कैसे करते है?
साथ ही बाढ़ राहत के नाम पर आपके द्वारा खर्च किया जाने वाला बजट हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा।
अब बात उल्लू के समझ में आने लगी थी, सोने की मुर्गी फिसलते नजर आने लगी थी।
हां, तुम हमेशा करोड़ों रुपए बाढ़ राहत के नाम से जो खर्च करते हो, इस बार राहत के लिए तुमने क्या किया? उल्लू मंत्री, भेड़िया अधिकारी की ओर मुखातिब होते हुए बोला-
महाराज प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी मिट्टी बजरी के हजारों कट्टे भरवाकर रखवा दिए थे, चिन्हित स्थानों पर उन्हें पहुंचा भी दिया था। स्थान-स्थान पर एनीकट भी बनवा दिए थे।
आप चाहो तो समस्त कागजों को, बिल वाउचर्स को आपके समक्ष प्रस्तुत कर दूं। इन सबके ठेके रंगा सियार को दिए थे।
ठेकेदार रंगा सियार को हाजिर किया जावे। रंगा सियार घिघियाता हुआ हाथ जोड़ कर दरबार में हाजिर हुआ।
महाराज नियमानुसार वर्कआउट की पालना की गई है, मिट्टी-बजरी के कट्टे भरवाकर रखवा दिए थे, एनीकट बनवा दिए थे, इंजीनियर भूरा बंदर को दिखाकर एम.वी.भरवाई थी, इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।
इंजीनियर भूरा बंदर दरबार में हाजिर हुआ। महाराज इस बाढ़ की जिम्मेदारी हमारी नहीं है लोक निर्माण विभाग ने सरकारी जमीन, सवाया चक भूमि, नाले की जगह सभी ओर लोगों को मकान बनाने की स्वीकृति दे दी थी। पानी का निकास इनके मकानों की वजह से रूक गया था।
लोक निर्माण विभाग के अधिकारी अपने पाले में आती गेंद को देखकर घबराया, बोला- महाराज ये जितनी भी परमीशन जारी की गई है वे सभी उन लोगों को ही जारी की है जिनके लिए सरकार की ओर से सिफारिश आई थी। भला सरकार की सिफारिश कैसे टाली जा सकती है। वैसे भी ज्यादातर मकान उनके चहेतो के ही है।
मंत्री उल्लू के बात कुछ समझ में आने लगी थी, राजा लम्बू बाघ की विश्वस्त मुख्य सचिव लोमड़ी मौसी के पास जाकर उन्होंने सारी बातें विस्तार से बताई। ये सब करने में सरकार की बदनामी थी। सरकार का रूआब बनाये रखने के लिए जरुरी था, किसी ना किसी को फांसी पर जरुर लटकाया जाये।
नियत तिथि और नियत स्थल पर भोलू खरगोश को इसका जिम्मेदार मानते हुए फांसी पर लटका दिया गया। किसी ना किसी की जिम्मेदारी तय करना आवश्यक था, लम्बू बाघ से लोमड़ी मौसी ने विशेष परमीशन लेकर जांच आयोग बना दिया। जिसमें स्वयं लोमड़ी मौसी, उल्लू मंत्री, भेड़िया अधिकारी, इंजीनियर भूरा बंदर इनको जांच करने का जिम्मा सौंपा गया।
दो दिन बाद ही भोलू खरगोश को सर्वसम्मति से बाढ़ आने का जिम्मेदार मानते हुए फांसी पर लटका दिया गया। आयोग ने अपने निर्णय में लिखा था कि एनीकट पर उगी हुई घास को भोलू खरगोश द्वारा खाए जाने के कारण मिट्टी में कटाव पैदा हो गया। जिसके कारण बाढ़ आई।
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