पर्यावरण पथ के पथिक पंद्रह पर्यावरणविदों की असली जीवन कहानियां संपादनः ममता पंडया, मीना रघुनाथन हिंदी अनुवादः अरविन्द गुप्ता इसाक क...
पर्यावरण पथ के पथिक
पंद्रह पर्यावरणविदों की असली जीवन कहानियां
संपादनः ममता पंडया, मीना रघुनाथन
हिंदी अनुवादः अरविन्द गुप्ता
इसाक केहिमकर
बांबे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) से जुड़े इसाक केहिमकर करीब 20 साल से संरक्षण के काम में जुटे हैं। 1979 में उन्होंने बीएनएचएस में, सहायक लाब्रेरियन की हैसियत से में काम शुरू किया। अब वो वहां पर जनसंपर्क अधिकारी हैं और लोकप्रिय पत्रिका हार्नबिल के संयुक्त संपादक हैं। इसाक का काम कार्यशालाएं, लेक्चर, स्लाइड-शो, और शिक्षकों, छात्रों, आम लोगों और फौजी अफसरों जैसे कुछ विशेष समूहों के साथ बाहरी परिभ्रमण आयोजित करना है। कई टीवी कार्यक्रमों और फिल्मों में वो प्रकृति विशेषज्ञ रहे हैं। इसाक ने अपनी बहुमुखी रुचियां के कारण बहुत सी कुशलताएं अर्जित की हैं जिनमें सिनेमाटोग्राफी, बागबानी, तितलियों और पक्षियों के लिए विशेष बगीचों का डिजाइन और तितलियों और पतंगों को उपजाना आदि शामिल हैं। इसाक ने प्रकृति के विभिन्न पक्षों पर कई लेख लिखे हैं ओर तितलियों, पतंगों और कीटों के बारे में उनके कई प्रकाशन हैं। इसाक को फोटोग्राफी और घूमने का बहुत शौक है। वो देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित राष्ट्रीय उद्यानों और जंगली क्षेत्रों का भ्रमण कर चुके हैं।
कीड़े-मकौड़े भी वन्यजीव ही हैं!
मैं खुशनसीब हूं कि मैं अपना बचपना एक प्राकृतिक परिवेश में गुजार पाया। मैं महाराष्ट्र में स्थित मुंबई के उपनगर गोवंडी में बड़ा हुआ। हमारे बड़े घर में खेलने के लिए एक विशाल बगीचा था। पास ही में कुछ तालाब थे जिनमें मैं मछलियां और केंकड़े पकड़ता था। वहां मनोरंजन के लिए कोई क्लब या खेल के मैदान नहीं थे। प्रकृति ही मेरा खेल का मैदान थी। जिन चीजों को करने में मुझे खुशी मिलती थी उन्हें करने के लिए मेरे माता-पिता ने मुझे प्रोत्साहित किया। प्राणियों और प्रकृति का प्रेम मुझे अपनी दादी से विरासत में मिला। उन्हें जानवर बेहद पसंद थे इसलिए घर में हमेशा मुर्गियां, कुत्ते और और अन्य कुछ जानवर होते ही थे।
कुछ अन्य पालकों के विपरीत मेरे माता-पिता घर में पालतू जानवरों का स्वागत करते थे। मेरे पिता का मानना था कि घर में अगर कोई पालतू जानवर हो तो उससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उनका मानना था कि पालतू जानवरों से लोगों में एक जिम्मेदारी की भावना पनपती है। जानवरों से केवल प्यार के कारण ही आप उन्हें पालतू नहीं बनाते हैं। आपको उनकी देखभाल करनी पड़ती है और अंत में पालतू जानवर घर के ही सदस्य बन जाते हैं। पालतू जानवरों द्वारा आप जिंदगी में दुख सहना भी सीखते हैं। उनक द्वारा आप जीवन के कठिन क्षणों को झेलना सीखते हैं। जब मैं छात्र था तो मेरी कोई भी महत्वाकांक्षा नहीं थीं। विज्ञान में मेरी शुरू से ही रुचि थी। परंतु गणित में फेल हो जाने के कारण मैं कालेज में विज्ञान विषय को नहीं ले सका। इसलिए मुझे राजनैतिक शास्त्र पढ़ना पड़ा। जैसे-जैसे समस्याएं आती गयीं वैसे-वैसे मैं उनका सामना करता गया।
थाने की सर्प प्रर्दशनी मेरी जिंदगी में एक निश्चित बदलाव लायी। प्रर्दशनी के संयोजकों को कुछ स्वयंसेवी चाहिए थे। मैंने इस काम को अपने हाथ में लिया क्योंकि मुझे सांपों का संभालने का कुछ अनुभव था। प्रर्दशनी खत्म हुयी परंतु मेरा प्रदर्शनी के आयोजकों के साथ एक नया संबंध जुड़ गया। प्रदर्शनी का आयोजन बांबे नैचरल हिस्ट्री सोसाइटी ने किया था जिसे लोग बीएनएचएस के लोकप्रिय नाम से अधिक जानते हैं। प्रर्दशनी के बाद 1979 में, मुझे बीएनएचएस में सहायक लाइब्रेरियन के पद के लिए आमंत्रित किया गया। मैंने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया। बाद में मैंने पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। बीएनएचएस के साथ वो पुराना रिश्ता आज भी बरकरार है। अब मैं पूरे समय बीएनएचएस में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में काम करता हूं।
मेरे पेशे के चयन से मेरी मां अवश्य निराश हुयीं परंतु मेरे पिता ने कहा, "पैसा तो कभी मिल जायेगा परंतु खुशी नहीं।" उन्होंने मुझे हमेशा उन कामों को करने के लिए प्रोत्साहित किया जिनसे मुझे संतोष और खुशी मिले। लाइब्रेरियन की हैसियत से मुझे प्रकृति के बारे में पढ़ने का अच्छा अवसर और समय मिला। साथ में मुझे छात्रों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और प्रकृति में रुचि रखने वाले अन्य लोगों और ग्रुपों से मिलने का भी मौका मिला। बीएनएचएस में ही मैं पहली बार पक्षियों के विशेषज्ञ डा सलीम अली से मिला। डा सलीम अली एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे मेरे काम में प्रेरित किया। डा सलीम अली एक तितली की तरह थे। जब आप किसी तितली को पकड़ते हैं तो वो आपकी उंगलियों पर एक पाउडर छोड़ जाती है। इसी प्रकार डा सलीम अली से मिलने पर आप हर बार उनसे कुछ नया सबक सीखते, विशेषकर - श्रेष्ठता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और उनके गुणों के बारे में। डा सलीम अली इस बात पर बहुत जोर देते थे कि हर काम को अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठतम किया जाए। उन्हें चालू काम करने के रवइये से सख्त नफरत थी।
शुरू में मेरी जलथली प्राणियों और सरीसृपों में अधिक रुचि थी। मैंने हार्नबिल पत्रिका - जिसका मैं अब सहसंपादक हूं के लिए गोह (मानीटर लिजर्ड) के ऊपर एक लेख तैयार किया था। लेख को पढ़ने के बाद श्री जे सी डेनियल जो उस समय बीएनएचएस के निदेशक थे और अब उसके अवैतनिक सचिव हैं ने मुझे से लेख में कुछ व्यक्तिगत टिप्पणियां और अवलोकन जोड़ने को कहा। उनके अनुसार ऐसा करने से मेरा लेख अधिक प्रभावशाली होगा। क्योंकि जानकारी तो किसी भी विश्वकोष से हासिल की जा सकती है। इस सुझाव का मुझ पर काफी असर पड़ा और उसी दिशानिर्देश के अनुसार मैं आज भी लिख रहा हूं। कीट-पतंगों की दुनिया से मेरा परिचय तक हुआ जब मैंने एक तितली के पूरे जीवन-चक्र का अवलोकन किया।
कोवे (ककून) में से एकदम जादुई तरीके से निकलती तितली ने मुझे बहुत आकर्षित किया और उसके बाद से मैं तितलियों और पतंगों का अध्ययन करने लगा। आज इतने साल बाद भी जब कभी मैं कोवे में से किसी तितली को निकलते देखता हूं तो मेरा मन खुशी से पुलकित हो जाता है। कीटों की आकर्षक दुनिया ही मुझे उनकी ओर खींचती है। कीट हमारे इतने करीब होते हैं फिर भी हम उनके बारे में बहुत कम जानते हैं। कीटों का अध्ययन आपको धीरज और सहनशीलता सिखाता है। कीट होना क्या है? आप इस बात की कल्पना करना भी सीखते हैं। उदाहरण के लिए एैटलस पतंगे (मौथ) को अपने कोवे मं से बाहर निकलने में आठ महीने तक का समय लग सकता है!
1980 के दशक के शुरू से ही मैंने सैंक्चुरी पत्रिका के लिए लेख लिखने लगा। मैंने मेंढकों, पतंगों, तितलियों, सरीसृपों और अन्य छोटे परंतु आकर्षक जीवों के बारे में लिखा। 1992 में मेरी पहली पुस्तक कामन बटरफ्लाइस आफ इंडिया छपी। इसे मैंने थामस गे के साथ मिलकर लिखा था। समय के साथ-साथ मेरी रुचियां भी बदलीं। मैंने सरीसृपों से शुरू कर कीटों की दुनिया को खोजा। अब मेरी रुचि जंगली फूलों में है। प्रकृति में रुचि रखने वाले हरेक व्यक्ति को फोटोग्राफी सीखने से बहुत फायदा होगा। मेरी फोटोग्राफी की धुन 1986 में महज एक शौक से शुरू हुयी। मैंने अपनी तनख्वाह में से पैसे बचाकर एक कैमरा खरीदा। जब आप किसी व्यक्ति या चीज से बहुत प्यार करते हैं तो आप उसे अपने पास रखना चाहते हैं। प्रकृति से अगर आपको अथाह प्रेम हो तो आप उससे कुछ चुराना नहीं चाहेंगे। फोटोग्राफी द्वारा मैं अपने प्रेम को अपने पास संजो के रख सकता हूं! फोटोग्राफी से मुझे अपने अपने आपको अभिव्यक्त करने का मौका मिलता है।
फोटोग्राफी द्वारा मैं प्रकृति की विविधता और सुंदरता का गुणगान कर सकता हूं। जब कभी भी मैं पुराने फोटोग्राफ्स को देखता हूं तो प्रकृति में गुजारे सुनहरे पल मेरे लिए दुबारा तरोताजा हो जाते हैं। प्रकृति प्रेमी के लिए फोटोग्राफी महज कैमरे का बटन दबाना नहीं होता है। उसे उस विषय का व्यवस्थित अध्ययन करना होता है, उसके बारे में पढ़कर और अधिक जानकारी हासिल करनी होती है। कभी-कभी इसमें बहुत उदासी और दिक्कत भी आती है। प्रकृति आपके लिए ‘माडल’ नहीं करती। आपको उस विशेष क्षण का शांति से इंतजार करना पड़ता है। मुझे एक खास कुमुदिनि के फूल का फोटोग्राफ लेने के लिए 6-7 साल तक इंतजार करना पड़ा। ये फूल बारिश के बाद खिलते हैं और फिर एक-दो दिनों में ही मुरझा जाते हैं। परंतु प्रकृति में चुनने के लिए भी बहुत कुछ है। एक बार मैं अंडे देते हुए गिरगिट की फोटोग्राफ खींचने में सफल हुआ। इसके लिए मुझे एक पुरुस्कार भी मिला। मुझे बीबीसी के साथ तब काम करने का मौका मिला जब डेविड एैटनबरो अपनी फिल्म ‘ ट्रायल्स ऑफ लाइफ ’ बना रहे थे। मैंने कुछ अन्य फिल्म निर्माताओं के साथ भी काम किया। वन्यजीवन और प्रकृति को फिल्म करने और फोटोग्राफी सीखने के ये बहुत ही सुनहरे अवसर थे।
मुझे आशा है कि आने वाले कई वर्षों तक मैं फोटोग्राफी करता रहूंगा और प्रकृति की महिमा के बारे में लिखता रहूंगा। मेरे दो बेटे हैं - अमित और समीर। मुझे लगता है कि समीर को प्रकृति प्रेम विरासत में मिला है क्योंकि मेरी पत्नी नंदनी ने भी, बीएनएचएस में, डा सलीम अली के साथ ही अपना काम शुरू किया था। जब बच्चे बोर्डिंग स्कूल से वापिस आते हैं तो हमारा घर एक छोटे चिड़ियाघर का रूप ले लेता है जहां हम बीमार और चोट लगे प्राणियों का इलाज करते हैं। मुझे इस बात का दुख है कि शहरों में रहने के कारण आजकल बच्चों और युवा पीढ़ी को प्रकृति का आनंद लेने और उससे रिश्ता जोड़ने का मौका नहीं मिलता है। वो कितना सुंदर अनुभव खो देते हैं! जब कभी भी मौका मिलता है तो हमारा पूरा परिवार मिलकर कहीं भी सैर-सपाट के लिए निकल पड़ता है। मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे स्वच्छ हवा में सांस ले पायें और वो हरे-भरे जंगलों और किलकिलाते झरनों का आनंद ले सकें।
अच्छाई और सुंदरता का अनुभव करने के बाद ही आपको खराबी और अप्राकृतिक चीजों का सही बोध होगा। मैं अपने बेटों के साथ घुमक्कड़ी के लिए जाता हूं जिससे पहाड़ियों पर चलते समय वो झरनों का आनंद ले सकें और साफ हवा में सांस ले सकें। बिगड़ती हालत और गंभीर हादसों के बारे में लिखकर पर्यावरण चेतना जगाने में मेरा विश्वास नहीं है। इसके विपरीत मैं चाहता हूं कि लोग अपने आसपास के परिवेश को बारीकी से देखें, प्रशंसा करें और उससे प्रकृति के प्रति अपनी संवेदनाओं को बढ़ाएं। जब आप एक बार प्रकृति की जटिलताओं को बारीकी से ‘देखने’ और समझने लगेंगे तब आप खुद ही सचेतन होकर उसकी सुंदरता का बचाने और संरक्षण के लिए कदम उठाएंगे। (सेंटर फार इंवायननमेंट एडयुकेशन में अंबिका अइयादुराई और कल्याणी कांडुला के साथ बातचीत पर आधारित।)
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(अनुमति से साभार प्रकाशित)
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