पर्यावरण पथ के पथिक पर्यावरणविदों की असली जीवन कहानियां संपादनः ममता पंडया, मीना रघुनाथन हिंदी अनुवादः अरविन्द गुप्ता दीपक दलाल दीप...
पर्यावरण पथ के पथिक
पर्यावरणविदों की असली जीवन कहानियां
संपादनः ममता पंडया, मीना रघुनाथन
हिंदी अनुवादः अरविन्द गुप्ता
दीपक दलाल
दीपक दलाल ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई लवडेल, ऊटी में की और उसके बाद उन्होंने केमिकल इंजिनियरिंग में डिग्री हासिल की। एक युवा के लिये यह पेशा चुनना सही भी था क्योंकि उसे बाद में परिवार के इंजिनियरिंग उद्योग की कमान को संभालना था। उसने ऐसा किया भी। परंतु उद्योग ने दीपक को न तो प्रेरित किया न हो उसमें उसे कोई रास आया। कई वषरें तक असंतुष्टी महसूस करने के बाद दीपक ने अंत में बच्चों के लिये लेखन करने की एक बिल्कुल नयी राह चुनी। साहित्य और प्राकृतिक विज्ञान में कोई औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद दीपक ने इस चुनौती को स्वीकारा और प्रकृति की खोज के चमत्कारी अनुभवों को अपनी पुस्तकों के जरिये बच्चों तक पहुंचाया। इस पक्षी और वन्यजीवन प्रेमी को फोटोग्राफी, यात्राओं, विंडसरफिंग और नौ-चालन का बहुत शौक है और यह सब रुचियां उसके लेखन को समृद्ध करती हैं। दीपक ने अभी तक दो पुस्तकें लिखी हैं – लक्ष्यद्वीप एडवेंचर्स और रणथंबोर एडवेंचर्स ।
वन्यजीवन संरक्षण के लिये लेखन
मुझे लेखक बनने के लिये किस चीज ने प्रेरित किया? पेशे के रूप में बच्चों की पुस्तकें लिखने का काम बहुत
कम लोग ही अपनाते हैं। यह विकल्प कम्पयूटर, इंजिनियरिंग, डाक्टरी, अकाउंटिंग आदि, मानक पेशों से बहुत भिन्न है। मैंने एक केमिकल इंजिनियर की हैसियत से अपने जीवन का आरंभ किया। क्योंकि मेरा परिवार इंजिनियरिंग उद्योग में था इसलिये बिना सोचे ही मैंने इस पेशे को अपना लिया। केमिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई करते समय मेरा ध्यान इंजिनियरिंग की पढ़ाई की अपेक्षा नेशनल ज्योग्रफिक, सैंक्चुरी और बीएनएचएस की पत्रिकाओं की ओर आकर्षित हुआ। इंजिनियरिंग की पढ़ाई समाप्त करने के बाद जब मैंने विश्वविद्यालय से उद्योग और उत्पादन की असली दुनिया में प्रवेश किया तो मैं हतोत्साहित हुआ और इस प्रकार के काम में मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा।
औद्योगिक उपकरणों का निर्माण कर उन्हें बेंचने के काम ने, मुझे बिल्कुल भी प्रेरित नहीं किया। मुझे किस चीज में सबसे अधिक मजा आता है? यह सवाल मैंने पहली बार अपने आप से पूछा। वो कौन सी चीज है जो मुझे प्रेरित करती है? क्या कोई ऐसी चीज है जो मुझे दिन-रात काम करते रहने के लिये उत्साहित करेगी, एक ऐसा काम जिसमें लंबे घंटे गुजारने के बाद भी मैं ऊबूंगा नहीं। एक ऐसा काम जिसमें मुझे मजा आयेगा और जिसे मैं हर रोज, उत्साह और उमंग के भाव से कर पाऊंगा? मैंने अपने दिल को गहराई से टटोला। इस मंथन के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मुझे पढ़ाने में आनंद आता है। अपने प्रकृति प्रेम को अन्य लोगों के साथ, विशेषकर बच्चों के साथ बांटने में मुझे बहुत संतुष्टी मिलती है।
वैसे मैंने इस बारे में पहले कभी सोचा नहीं था परंतु मुझे इस बात पर आत्मविश्वास था कि मैं बच्चों की कल्पनाशक्ति को उड़ान देने वाली कहानियां लिख पाऊंगा। इसलिये कई सालों तक एक दुखी इंजिनियर रहने के बाद मैंने अपना अंतिम निर्णय लिया। अगर मैं बच्चों के लिये लिखना चाहता था तो इस काम को मैं अब बखूबी करूंगा। मैंने एक ऐसा नया पेशा अपनाने का निर्णय लिया जिसमें मुझे खुशी और संतोष दोनों मिले।
परंतु इस सब को कहना तो आसान था परंतु इसे करना काफी कठिन था। इतने वर्षों के इंजिनियरिंग काम को त्याग कर एक नया पेशा अपनाना असल में एक कठिन काम था। परंतु मैंने इस चुनौती को स्वीकारा। लिखना कोई आसान काम नहीं है, परंतु इस काम को जो चाहे सीख सकता है। यह जीवन के किसी भी अन्य कार्य के समान हैः आप उसे जिनती अधिक लगन और मेहनत से करेंगे आप उसमें उतने ही अधिक पारंगत होते चले जायेंगे। मुझे इतना अवश्य लगा कि अगर मैंने कालेज में इंजिनियरिंग की बजाये अंग्रेजी साहित्य पढ़ा होता तो मैं इस काम में कहीं अधिक तेजी से प्रगति कर पाता। तब मुझे अलग-अलग लेखन शैलियों और साहित्यिक कृतियों का अच्छा ज्ञान होता और इससे मुझे अपने काम में बहुत सहायता मिलती। अगर अंग्रेजी साहित्य की बजाये मैंने कालेज में वन्यजीव विज्ञान पढ़ा होता तो उससे मुझे प्राणिविज्ञान और वनस्पतिविज्ञान का एक पुख्ता आधार मिलता। जब मैं अपनी पुस्तकों के लिये शोधकार्य करता हूं तो इस प्रकार की सुदृढ़ पृष्ठभूमि का अभाव मुझे अक्सर खलता है।
यह मुझे पेशे के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर ले आता है। पेशे का चयन! यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय है। काश कि स्कूल के दिनों में मैंने इस प्रश्न पर थोड़ा अधिक मनन-चिंतन किया होता! इस गंभीर प्रश्न को नजरंदाज करने के कारण ही मैं इंजिनियरिंग में चला गया और इस प्रकार मैंने कई बहुमूल्य वर्ष गंवा दिये। अगर मैंने अपने विवेक से काम लिया होता तो शायद मैंने अपने साहित्यिक जीवन में तेजी से प्रगति की होती और फिर शायद मैं बेहतर पुस्तकें भी लिख पाता। जो बच्चे अभी भी स्कूल में हैं उनके लिये यह विकल्प अभी भी खुला है।
मैं चाहता हूं कि अपना पेशा चुनने से पहले आप गहराई से उसके बारे में सोचें। आप अपने आप से एक अहम सवाल पूछें: ‘मैं जो कोई पेशा चुन रहा हूं क्या मैं उसमें पूरे जीवन भर खुश रहूंगा? क्या वो मुझे उत्साहित करेगा? क्या उसमें मुझे संतोष और खुशी मिलेगी?’ मुझे पता है कि स्कूली बच्चों के लिये इन सभी प्रश्नों के उत्तर दे पाना कठिन होगा, परंतु फिर भी इन प्रश्नों को पूछने से उनके दिमाग में अनेकों नई संभावनायें जगेंगी और यह एक बहुत अच्छा काम होगा।
पेशे के चयन संबंधी चर्चा को मैं अब खत्म करूंगा। मैं प्रकृति और वन्यजीवन के उन पक्षों पर थोड़ा प्रकाश डालूंगा जिन्होंने मुझे प्रेरित और उत्साहित किया है। मुझे बाहर की दुनिया ने शुरू से ही आकर्षित किया है। प्रकृति के प्रेमजाल में मैं धीरे-धीरे करके ही फंसा। शायद बाहर घूमने-फिरने और यात्राओं के कारण ही मुझ में प्रकृति के प्रति अनुराग पैदा हुआ। घुमक्कड़ी करते हुये, पहाड़ों पर चढ़ते हुये, समुद्री यात्रायें और विंडसरफिंग करते हुए आपका प्रकृति के साथ एक निकटता का संबंध बनता है। प्रकृति अद्भुत सुंदरता से परिपूर्ण है और जब एक बार आप उसकी खूबसूरती को निहारने लगते हैं तो वो आपको सदा के लिये वशीभूत कर लेती है।
छोटी और सरल चीजें मेरे मन को मोह लेतीं थीं। जैसे मकड़ियों के जाल पर मोतियों जैसी चमकती ओस की कुछ छोटी बूंदें। जब सूरज की किरणें इन बूंदों से होकर गुजरती हैं तो वा सैकड़ों इंद्रधनुषों का निर्माण करती हैं। सूर्यास्त की मनोरम छटा और लालिमा मुझे हमेशा अपनी ओर खींचती है। बदलते मौसम का जादुई तमाशा हमेशा जारी ही रहता है। धीरे-धीरे धरती, भूरी ओंढनी उतार कर हरी चादर लपेटती है। प्राणी और पौधे इस प्राकृतिक चक्र के अनुसार अपने आपको किस प्रकार ढालते हैं वो मुझे हमेशा मंत्रमुग्ध करता है। जानवरों ने मुझे हमेशा ही आकर्षित किया है।
परंतु जहां तक चिड़ियों को सवाल है उनको मैं बहुत समय तक सिर्फ पेड़ों पर शोर मचाने वाले जीव ही मानता था। मुझे याद है कि रक्तासन बुलबुल (रेडवेंटिड बुलबुल) वह पहली चिड़िया थी जिसे मैंने बहुत ध्यान से देखा और जिसकी मैंने डा सलीम अली की पुस्तक द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स से पहचान की। बाईनौक्यूलर (दूरबीन) से पक्षियों को निहारने का आनंद कई गुना बढ़ गया। अचानक वो शोर मचाते जीव मुझे अद्भुत सुंदर प्राणी लगने लगे। अलग-अलग लंसों की सहायता से मैं शक्करखोरे (सनबर्ड) के गहरे नीले पंखों को, धूप में झिलमिलाते हुये देख सका। मैं बबूना (व्हाईट आई) नामक चिड़िया की पूरनमासी के चांद जैसी आंख को निहार सका और सुनहरी पीठ वाले कठफोड़वे (गोल्डन बैक्ड वुडपैकर) के रंगों की छटा का आनंद ले सका।
मैं चिड़ियों के बीच, अंतरों को पहचानने लगा। मैं उनकी मधुर आवाजों और गीतों को ध्यान से सुनने लगा और प्रवासी पक्षियों की उड़ानों को समझने लगा। पक्षी-निरीक्षण मेरे जीवन में अनेकों खुशियां लाया है और यह एक ऐसा शौक है जिसकी सिफारिश मैं युवा पीढ़ी के सभी लोगों से करना चाहूंगा। यह एक ऐसी रुचि है जिससे गहरे संतोष के साथ मानसिक तुष्टि भी मिलेगी। मैंने बच्चों के लिये क्यों लिखना शुरू किया? इसके असल में कई कारण हैं। यह दुख की बात है, मगर सच है कि भारत में बच्चों के लिये लिखने वालों का नितांत अभाव है। छोटे बच्चों के लिये प्रकृति पर लिखी कहानियों की संख्या लगभग नगण्य है। बच्चों को केवल पाठ्यपुस्तकों द्वारा ही प्रकृति और वन्यजीवों के बारे में कुछ जानकारी मिलती है, या फिर इन विषयों को उबाऊ भाषणों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। क्योंकि बहुत से बच्चे बड़े, भीड़-भड़ाके वाले शहरों में रहते हैं इसलिये उन्हें प्रकृति से प्रत्यक्ष भेंट करने का या उसके बारे में जानने का बहुत कम ही मौका मिलता है।
स्कूली शिक्षा में, अन्य चीजों को ताक पर रखकर, पूरा जोर अच्छे नंबर लाने पर ही होता है। इस कारण भी समस्या ने एक विकराल रूप धारण कर लिया है। प्रकृति और प्राकृतिक चक्रां के ज्ञान को एक तरफ पटक दिया गया है। मेरी पुस्तकें इस कमी को पूरा करने की कोशिश करती हैं। मैं अपनी कहानियों के जरिये प्राकृतिक ज्ञान का एक मजबूत आधार प्रदान करने का प्रयास करता हूं। अपनी कहानियों में एक अन्य पक्ष पर भी जोर देता हूं। उनके जरिये मैं देश की विविधता पर प्रकाश डालता हूं। भारत में कितने ही सुंदर और रमणीक स्थान हैं।
लक्ष्यद्वीप में मूंगे के द्वीप हैं, अरुणाचल और बंगाल में रेनफारेस्ट हैं और हिमालय पर्वत की गोद में बसे सिक्किम, हिमाचल और कश्मीर के राज्य हैं। यह एक अंतहीन सूची हैः लद्दाख, अंडमान द्वीप, थार का रेगिस्तान, अभयारण्य और हमारा लंबा तटवर्ती इलाका आदि। हम बहुत खुशनसीब हैं क्योंकि हमारे यहां विविध प्रकार के लोग, स्थान, पक्षी और जानवर पाये जाते हैं। मेरी कहानियां कभी भी शहर की पृष्ठभूमि पर आधारित नहीं होतीं। उनकी पृष्ठभूमि हमेशा देश का कोई दूर-सुदूर का सुंदर इलाका होता है। मुझे आशा है कि इन कहानियों को पढ़ने के बाद आपको देश के इन क्षेत्रों के बारे में भी जानकारी हासिल होगी। आज भारत में वन्यजीवन और वन एक खतरे के दौर से गुजर रहे हैं। हमारे राष्ट्रीय जानवर बाघ की जान भी खतरे में है।
प्राणियों की कई अन्य प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। लालची उद्योगपति और भ्रष्ट राजनेता जंगलों का सफाया कर रहे हैं। हमारे दुखों की एक अंतहीन सूची है। मेरी कहानियों का बस एक ही उद्देश्य है - बच्चों में प्रकृति प्रति प्रेम पैदा करना और वन्यजीवन के इस अंधाधुंध विनाश के बारे में उनके दिमाग को खोलना। जल्द ही मेरी पीढ़ी द्वारा किया विनाश तुम्हारी पीढ़ी को विरासत में मिलेगा। कुछ समय बाद हमारे जंगलों और वन अभयारण्यों के प्रबंधन का कार्य भी तुम ही संभालोगे। अगर मेरी कहानियां तुम्हारे हृदय को थोड़ा स्पर्श कर तुम्हें भविष्य का एक जिम्मेदार लीडर बनाने में सहायक होंगी तो इससे मुझे गहरा संतोष मिलेगा।
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(अनुमति से साभार प्रकाशित)
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