डॉ दीपक आचार्य दुनिया भर में ढेरों प्रजातियों के कुत्ते विद्यमान रहे हैं। देशी भी हैं, विदेशी भी, और तमाम प्रकार के संकर भी। नाम, ठाम ...
डॉ दीपक आचार्य
दुनिया भर में ढेरों प्रजातियों के कुत्ते विद्यमान रहे हैं।
देशी भी हैं, विदेशी भी, और तमाम प्रकार के संकर भी।
नाम, ठाम और व्यवहार कैसा भी हो, भौंकने के मामले में ये अनेकता में एकता का राग अलापने वाले हैं।
कुत्ता किसी भी प्रजाति का हो, भौंके बगैर नहीं रहता।
भौंकने के एकमेव लक्षण से ही पता चलता है कि यह कुत्ता ही है। नहीं भौंके वो कुत्ता काहे का।
इसलिए कुत्तों के बारे में ज्यादा गंभीर और चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
इस शाश्वत सत्य को स्वीकार कर लें कि कुत्ते हैं तो भौंकेंगे ही। भौंकना बंद कर दें तो उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाए।
जब भी कोई कुत्ता चुपचाप बैठा रहे या दूर-दूर तक भौंकने की आवाज नहीं सुनाई दे, तब निश्चित मान कर चलियें कि किसी अंधेरे कोने में दुबक कर किसी न किसी षड़यंत्र के बारे में गहन चिन्तन कर रहा होगा या फिर अकेला किसी हड्डी या रोटी का स्वाद ले रहा होगा।
एक जमाने में कुत्तों के बारे में जरूर कहा जाता था कि वे स्वामीभक्त होते हैं, अपने मालिक के प्रति वफादार होते हैं, जिसका नमक खाते हैं उसी का बजाते हैं। लेकिन अब ऎसा नहीं रहा।
आदमी की झूठन खा-खाकर कुत्तों का स्वभाव बिल्कुल बदल गया है।
कुत्तों के लिए अब कोई एक स्वामी नहीं रहा। हर बार स्वामी बदलते रहते हैं। जो मुफत का कुछ खिला-पिला दे, चटा दे, सूँघा दे या फिर कुत्तों की मंशा को भाँप कर इंतजाम कर दे, उसी के हो जाते हैं, उसी की भाषा बोलते रहते हैं, उसी के चरणों में लौटते रहते हैं।
जी भर जाने के बाद नए मालिक की तलाश शुरू कर देते हैं।
इन कुत्तों के लिए अब किसी एक मालिक से बंध कर जिन्दगी यों ही गुजार देने जैसी बातें बेमानी हो गई हैं।
देश, काल, परिस्थितियों के साथ ही माल और स्वाद के हिसाब से मालिक बदल-बदल का क्रमिक स्वामीभक्ति का परिचय देते रहते हैं।
कुत्तों की साफ-साफ दो किस्में हमारे सामने हैं।
एक वे हैं जो पराया माल खा खाकर बदहजमी का शिकार हो गए हैं और पेट में जमा माल को पचाने भर के लिए बेवजह भौंकते रहते हैं।
इन कुत्तों को अपने खाने-पीने या रहने की कोई फिकर नहीं है क्योंकि पैदा होने के बाद से ही इन्हें बड़े घरानों, आनंददायी परिसरों और रसोईघरों की स्वादिष्ट झूठन बिना किसी प्रयास के प्राप्त होती रही है।
इसलिए वे इस मामले में निश्चिन्त हैं। तभी तो भौंकने के अपने एकसूत्री एजेण्डे पर पूरी निष्ठा के साथ लगे हुए हैं।
कुत्तों की दूसरी प्रजाति पीढ़ियों से भूखी-प्यासी है और इसलिए दूसरे कुत्तों के ऎशोआराम और सहूलियतों, मुफतिया खान-पान और वर्चस्व को देखकर कुढ़ती और चिढ़ती भी है तथा उनके जैसा भाग्य पाने के लिए हमेशा जायज-नाजायज कोशिशों में लगी रहती है।
ये कुत्ते इसके लिए अपने वजूद को हर गली-कूचे में पूरे दम-खम से दर्शाने के लिए नॉन स्टाप भौंकते भी रहते हैं। इनके भौंकने की और कोई वजह नहीं होती, सिवाय अपने होने का अहसास कराने के।
कुत्तों का भौंकना वह शाश्वत सत्य और सनातन परंपरा है जो तमाम युगों में यों ही चलती चली आयी है।
यह तो गनीमत है कि पुराने युगों की तरह कुत्ते आदमी की भाषा बोलना नहीं जानते वरना कितना ग़ज़ब हो जाता , इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
अपने आस-पास बोलने वालों की यों भी कोई कमी नहीं है और ऎसे में बोलने वालों की भीड़ में कुत्तों की मौजूदगी से पैदा हो जाने वाला शोर जाने किस विस्फोटक हालात में पहुँच जाता, इसकी कल्पना की ही जा सकती है।
बस्तियों से लेकर हर तरफ तमाम किस्मों और आकार-प्रकारों के कुत्तों की मौजूदगी के इस दौर में कुत्तों का भौंकना बदस्तूर जारी है। कभी कोई कुत्ता भौंकता है, कभी कोई। हर कुत्ते के भौंकने का अपना अलग ही अन्दाज है।
अब तो कुत्ते भी बस्तियों का माल खा खाकर हाथियों की तरह मदमस्त होकर भौंकने लगे हैं। बेचारे वे भी हैं जिन्हें खाने को नहीं मिल रहा है या दूसरों की रसोई को देखकर ईष्र्या हो रही है। ये भी पानी पी-पीकर कोस रहे हैं अपने भाग्य को।
और ढेरों ऎसे भी हैं जो बेवजह औरों पर भौंकने की आदत पाल चुके हैं। इन कुत्तों का लगता है कि ये अपनी दिव्य दृष्टि से जो कुछ देखते हैं वही सब कुछ जमाने भर में होना चाहिए या कि जमाना ही उनकी सोच के मुताबिक अपने डग भरे।
कुत्तों का अपना अलग ही मनोविज्ञान होता है जिसे कुत्ते ही समझ सकते हैं या दिन-रात इन कुत्तों के साथ रहने वाले अथवा कुत्तों की सेवा-चाकरी में लगे हुए लोग ही।
इंसानों और कुत्तों में मैत्री और शत्रुता हर युग में रही है। कभी कुत्ते बिगड़ जाते हैं, कभी इंसान फितरती हो जाता है। कभी कुत्तों में सुधार दिखने लगता है और भी इंसान में कुत्तों के प्रति प्यार जग जाता है।
इस सारी ऊहापोह में समस्या उनकी है जो न इंसानों के दुश्मन हैं, न कुत्तों के। ये लोग कुत्तों के बेवजह भौंकने से परेशान हैं और हमेशा कुत्तों की शिकायत करते रहते हैं।
कुत्तों या कुत्तों का पावन सान्निध्य पाने वालों को इन शिकायतों से कोई फर्क नहीं पड़ता। हम ही को इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि कुत्ते भौंकने के लिए ही पैदा हुए हैं, सदियों से भौंकते आए हैं और भौंकते ही रहेंगे।
कुत्ते इंसानों को देखकर ही भौंकते हैं इसलिए जहाँ कहीं कुत्ते भौंकें, अपने आप पर गर्व करें कि हम इंसान हैं।
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- डॉ. दीपक आचार्य
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