उपकथा अजय गोयल 'डियर, सारा क्रेडिट किसी फकीर के मजार पर लटका आना हमारी विरासत का हिस्सा है।'' कहकर सीनियर स्पेशलिस्ट डॉ. विम...
उपकथा
अजय गोयल
'डियर, सारा क्रेडिट किसी फकीर के मजार पर लटका आना हमारी विरासत का हिस्सा है।'' कहकर सीनियर स्पेशलिस्ट डॉ. विमल ने फोन रख दिया।
डॉ कैलाश को समझने में कुछ क्षण लगे। रात भर जागरण के बाद सर भारी था। सुबह चार बजे वह चाहता था कि थोड़ी देर के लिए अपनी कमर सीधी कर ले, परन्तु कहीं संभव था यहां. डॉक्टर्स ड्यूटी रूम को डॉ. विमल ने प्राइवेट रूम में बदल दिया था। उसमें काले का बेटा पप्पू था। काले...। सांसद वर्मा जी का बायाँ हाथ। उसका बेटा जनरल वार्ड में कैसे रहता? मुस्तैदी से कैलाश हर दो घण्टे बाद पप्पू की ब्लड ग्लूकोज लेवल की सूचना डॉ. विमल को देता रहा था। नाइट ड्यूटी का चार्ज लेकर कैलाश ने डॉ. विमल से फोन पर कल शाम बात की थी, ''काले को जानते हो ?'' गम्भीरता से उन्होंने पूछा था।
' 'जी' ' संक्षिप्त-सा उत्तर कैलाश ने दिया।
अस्पताल ज्वाइन किए उसे लगभग महीना हुआ था। वह भरे जाड़े की एक दोपहर थी। वार्ड का शेष काम कैलाश निपटा रहा था। काले से उसका परिचय हुआ, वह एक प्रौढ़ आदमी के साथ आया था।
''हम कोशिश कर रहे हैं।' ' कैलाश ने पहली भेंट में काले को उत्तर दे दिया था।
''खून की काफी कमी है, बच्चे को खून चाहिए।' ' ' 'कैलाश ने इलाज के लिए जरूरत बताई।''
अवाक् रह गया था काले।
''खून, पेशाब, रीढ़ की हड्डी का पानी इन सबकी जाँच हो चुकी है।' '
' 'पर डॉक्टर साहब, आपकी दवा का असर तो बाबा की भभूत देने के बाद ही हुआ है।' ' काले के साथ आये आदमी ने कहा।
असहमति में प्रसन्नता जोड़ लेना, खिन्नता में भी चेहरे पर मुस्कराहट... और गुस्से में संयम का घालमेल। ये सब गुण डॉ. कैलाश में भी घुलमिल चुके थे।
कैलाश की चुप्पी से शायद चिढ़ गया था काले, ' 'मेरे बारे में पूछ लेना डॉ. विमल से। पहली बार देख रहा हूँ तुम्हें। मैं वर्मा भाईजी का आदमी हूँ। उनके एम.पी. के इलेक्शन में खून-पसीना एक कर दिया था। उन्होंने मुझे इस एरिया के लए पार्टी प्रधान बनाया है। मैंने तुम्हारे एमएस. ने कह दिया है। तुमने पप्पू के लिए खून माँगा था। आ रहा है। क्या खून-खून लगा रखा है ?' ' अपनी छाती पर लगे तमगों की एक साथ पहचान करा गया था काले।
कुछ देर बाद ही ब्लड लेकर वार्ड ब्वाय उपस्थित था। पप्पू के लिए स्पेशल कोटे से ब्लड रिलीज कर दिया था।
काले के व्यक्तित्व में खलनायक जैसा कुछ नहीं था। चुनाव यज्ञ में अपना कर्मकाण्ड उसने विरोधियों के पोस्टर फाड़ने से शुरू किया था। और विजय प्राप्त करने के लिए उसने बूथ कैप्चरिंग जैसी अन्तिम आहुति वर्मा जी के लिए दी थी।
काले को कैलाश एक सफल प्लेटफार्म मानता था, जहाँ वर्माजी गाँधी जयन्ती जैसे आउटडेटेड समारोह में अहिंसा को इंकलाबी सूलीपर बुलन्द कर मीट-मदिरा में सुस्ता सकते थे। आम आदमी चैन से शहीद हो सके, इसके लिए वहाँ स्मैक के गटर का प्रबन्ध था। कंगाली बाँटने के लिए जुआघर मौजूद था।
कैलाश को वर्माजी और काले के लिए निक्कू वार्ड बाय की समीक्षा पसन्द आती। वह कहता, ''वर्मा भाईजी राजा आदमी हैं। जब इलेक्शन जीते, तो उसमें जुटी कारों के लिए फैसला दिया कि जो जिसके पास है, उसे अपने घर ले जाए। खरा सोना है काले भी। आपको किसी का मर्डर कराना हो, तो कह दो उससे। रकम जमा करो और चैन की बंशी बजाओ। फिर किसी दिन अखबार में न्यूज पढ़ लो। आखिर एरिया की प्रतिष्ठित हस्तियों की पुलिस सूची में नाम है काले का।' '
रात दस बजे तक पप्पू की हालत में सुधार आने लगा था।
''कुछ समझ में नहीं आ रहा हो, तो बता देना। बस, फोन की देर है। अपना यार है डॉ. विमल। तभी मैंने पप्पू को इस अस्तपाल में भर्ती कराया है।' ' काले ने कैलाश से कहा था।
पप्पू की ब्लड ग्लूकोज जल्दी नॉर्मल हो जाएगी।' ' कैलाश ने उसे समझाने की कोशिश की।
''फिर भी दिल की तसल्ली के लिए बुला लेता हूँ।' ' कहते हुए काले ने पास खड़े आदमी से कान में कुछ कहा।
काले पट्टाधारी था। ऊपर तक पहुँच वाला। इसलिए दिन भर खासी चौड़ी चिन्ता की रेखाओं वाले चेहरों का ताँता लगा रहा। हर कोई अपनी उपस्थिति खासतौर पर दर्ज करवाना चाहता।
' 'बड़ों की शुगर की बीमारी इस मासूम पप्पू को कैसे हो गई ?' ' लोग मुँह खोलकर और आसमान को टटोलते हुए समझने की नाकाम बेवकूफी करते।
डॉ. विमल ने आकर पप्पू को देखा।
लौटते समय काले और वे साथ-साथ चल रहे थे। कैलाश उन दोनों के पीछे था।
''डॉक्टर साहब, पप्पू के पैन्क्रियाज ने क्यों काम करना बन्द कर दिया? यह ससुरी इन्सुलिन क्या बला हे?'' उलझन में काले मिमिया रहा था।
कार के पास आकर डॉ. विमल रुक गए, ''तुम आराम करो काले भाई। थक गए हो। तुम्हारे हर सवाल का जवाब है मेरे पास। बस, मुझ पर भरोसा रखो।'' डॉ. विमल ने काले के कन्धे पकड़कर उसे हौसला दिया। दाढ़ी खुजलाकर काले कुछ क्षणों बाद वापस मुड़ गया।
डॉ. विमल कार में बैठ गए, सन्तुष्ट मुद्रा में।
कैलाश मानता था कि परिपक्व उम्र में आदमी भँवर बन जाता है। ऊपर से शान्त और निर्मल। भीतर से अन्धड्।
''जब कोई हाथी गटर में फँसता है, बस, उस क्षण मुझे अदृश्य शक्ति का अनुभव होता है। पप्पू को उठाए अस्पतालों के चक्करों में टाँगें घिस जाएँगी काले की। दरगाह से लायी राख मलता रहेगा। यह शुरुआत भर है।'' डॉ. विमल कैलाश के कान में फुसफुसाए थे। उनकी आँखों में विचारों का अनुवाद था, फिर तेजी से कार मोड़कर डॉ. विमल ओझल हो गए थे।
आश्वस्त हो गया था काले।
उस रात कैलाश को ना चाहते हुए भी काले के होटल से आया चिकन खाना पड़ा था।
' 'प्राइवेट प्रैक्टिस करते हो ?' ' अकस्मात् ही काले ने कैलाश से पूछ लिया।
''नहीं।''
' 'क्यों डरते हो। मैं जो हूँ। दवाइयाँ अस्पताल से निकलती रहेंगी। अरे, भ्रष्टाचार भी सनातन है। हर दौर में मन्त्री से सन्तरी तक तृप्त होते रहे हैं।' '
कैलाश ने चुप रहना बेहतर समझा।
''तुम्हारे विमल साहब की शिकायत हुई थी, पर हमारे होते हुए ना कुछ उनका होना था, ना हुआ।' ' कुछ क्षण चुप्पी रही।
' 'नये हो तुम! वर्मा भाई जी ने अपनी कैरियर की शुरुआत चाकू भोंककर की थी। आज संसद में झंडा गाड़ने का इतिहास लिख चुके हैं। बाबा की कृपा से वे जीते। हमने बाबा का मजार संगमरमर का बनवा दिया। हमने क्या जी ?'' ...रुककर काले मुस्कराया, ' 'बस निवेदन किया था अपनी दो पार्टियों से। उनमें एक डॉ. विमल भी हैं। आज की तारीख में रुपया।... नो प्रॉब्लम।'' हाथों को आकाश की ओर उठाते हुए काले बोला था।
''सुन डॉक्टर, पते की बात। क्या सोचा है कभी? जिन्दगी भर सूद खाने वाला चोर एक धर्मशाला बनवाकर धर्मात्मा क्यों बन बैठता है? इसलिए धर्म को मत भूलना। दिमागी भरम है। पब्लिक को बेवकूफ इसी से बनाया जा सकता है।'' काले जोश में आ गया।
' 'बस, वर्मा भाई जी मंत्री बनने की कसर है, फिर देखना, इस अस्पताल को चार पहिए लगाकर शहर से दूर धकिया देंगे। यहाँ पर एक मार्केट और सद्भावना सेन्टर बनवाने का प्लान है। अरे, आजकल लोगों का दिमाग हरदम तवे जैसा गर्म रहता है। तभी तो नेता लोग पॉलिटिकल रोटियाँ सेंक लेते हैं...,'' काले सहसा रुक गया था। सूचना मिली थी कि वर्मा भाईजी ने याद किया है। उसने हाथ-पैर समेटे। खड़ा हुआ, ''देखा डॉक्टर, बाबा के मेले की आन-बान-शान !'' कहते हुए काले चला गया।
पिछले महीने सम्पन्न हुए मेले में काफी भीड़ जुटी थी।
वही कौमी एकता का नारा संजीवनी बूटी की तरह उछला रहा था। उसे गाया गया, बजाया गया, ऊँचा टाँगा गया। मजार जिन्दा हो गयी थी। झुक-झुक वर्मा भाई जी कहते, ' 'सब बाबा की कृपा है।' '
अब मजार पर भीड़ ही भीड़ रहती है। चढ़ावा तगड़ा होने लगा है। दिन फिर चुके हैं। एक वह जमाना भी था, जब न यहाँ अस्पताल था। न कोई आबादी। बस, बाबा का टीला था। इसी नाम से मशहूर थी यह जगह। खादिम साहब के परदादा उस समय खिदमत करते थे। पास में राहगीरों के लिए एक रास्ता भर था। एक दिन गुजर रहे मुसीबत के मारे कोई बाप-बेटे को पीछे लगे डकैतों ने यहाँ घेर लिया। पहले दोनों को खूब सूता बदमाशों ने। पिटाई वे पी गए, पर जब तलवार से बेटे का पैर काट डाला, तो बाप ने अशर्फियों की पोटली झाड़ियों से निकालकर दे दी।.. और क्या करता बेचारा बाप? उनके जाने के बाद खादिम साहब के परदादा ने देखा कि बच्चे के कटे पैर में गर्मी थी। बस, उन्होंने कटे पैर समेत बच्चे को कमर तक टीले में गड्ढा खोदकर गाड़ दिया। उस दिन घना कोहरा लगा था। इतना कि हाथ को हाथ सुझाई न दे। बस, अगली सुबह लड़का जुड़े पैर समेत निकला। टूटी की बूटी हैं बाबा।
बाबा इसी नाम से चारों तरफ मशहूर थे। अस्पताल आते-जाते कैलाश का ध्यान मजार पर अवश्य अटकता। पक्के गले की ऊँची तान, लयबद्ध ढोलक और हारमोनियम के सधे सुरों के बीच उसे झोलियाँ भर लो, लुटता है खजाना...' जैसी पंक्तियाँ सुनने को मिलतीं। बुझे-बुझे से खादिम हमेशा हाजिर रहते। उन्हें दो बार खूनी उल्टियाँ हो चुकी थीं। कैलाश समझ नहीं पाता था, बाबा के खिदमत में खादिम साहब की पीढ़ियाँ गुजर चुकी थीं। फिर भी उम्र भर बाबा की छतरी के नीचे रहने वाला खादिम उनकी कृपा से वंचित...?
सुबह तक पप्पू की चेतना लौट चुकी थी। थकान की सलवटों का रंग कैलाश व स्टाफ नर्स के चेहरों पर गहरा हो गया था।
काले अब सन्तुष्ट था। वह कह रहा था, ''एक बार तो डॉ. विमल भी हिल गया था। बेहोशी का कारण समझ ही नहीं आया उसे। मैंने बाबा के सामने अपना पल्ला फैला दिया। अपना तो बस पप्पू है। जान अटकी रहती है इसमें मेरी। अब में बाबा के मजार की चाहरदीवारी बनवाऊँगा। ''
सुना कैलाश ने। ठगा-सा रह गया वह। सोचा उसने, ' 'क्या जान पाएंगे लोग कि बाबा ने हाथ पकड़ा, तभी डॉ. विमल की समझ में आया केस। घबराहट में रात के दस बजे चला आया था। पर काले निश्चिंत था। उसका सहारा हो, तो फिर क्या कुछ नहीं हो सकता? काले अब चहारदीवारी बनवाएगा। ''
मजार गाथा में एक पन्ना और जुड़ चुका था।
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-अजय गोयल
निदान नर्सिंग होम
फ्री गंज रोड
हापुड़ - 2451०1
बहुत बेहतरीन कथा सर ।
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