सुशील यादव अपने मुल्क में खिसयानी बिल्लियों की तादात, कुछ अरसा पहले लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी |जन्तु शास्त्री चिंता जता रहे थे, कि ...
सुशील यादव
अपने मुल्क में खिसयानी बिल्लियों की तादात, कुछ अरसा पहले लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी |जन्तु शास्त्री चिंता जता रहे थे, कि देश में अमन चैन का माहौल ज्यादा चला तो इन बिल्लियों को संरक्षित-प्राणी की केटेगरी में रखने के लिए बिल पास करवाना पड़ेगा |
अपने तरफ के समाज- सुधारक लोग गाहे-बगाहे हर बात में बिल पास करवा लेने की मुहिम में जुट जाते हैं |
वे अपने चुने प्रतिनिधियों से अपेक्षा रखते हैं कि, बात को किसी ऊँचे धरातल पर रखने की कवायद करे|भूख-हड़ताल करें ,धरना-प्रदर्शन में हम लोगों का सहयोग मागें |
कैसे भी हो ‘बिल’ उचित समय में उचित पटल पर रखने की पहल की जानी चाहिए |
एक जब ‘बिल’ रखता है तो दूसरे का, विरोध दर्ज कराने की परंपरा, लोकतंत्र की मजबूती को दर्शाती है| बिल पर, ‘माथा-फोडी’ के लिए आप ही आप एक विरोधी दल का जन्म हो जाता हैं |
राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया वाले माइक लिए,गली-गली घूमने लग जाते हैं|
आप क्या कहते हैं ,बिल लाया जाना चाहिए या नहीं .....?क्या ये जनता के हित में है .....?
सवाल दागने के साथ ,वे ऐसे ताकते हैं कि , अगर जवाब देने में आनाकानी की गई तो बेताल की तरह, ‘तुम्हारे सर के तुकडे तुकडे’ कर दिए जायेंगे....ये भाव ,.उनके चेहरों से’ इस मुद्रा में उठते बैठते हैं जैसे वे एक बड़े परिवर्तन की संभावना,में आपको भागीदार होने की दावत दे रहे हों |
माइक में मुंह मारने वाला ,करीब-करीब बिद्काए मुंह से दो अर्थी संवाद बोल के कट लेना चाहता है |बिल लाना सरकार के हक़ में अच्छा रहेगा |वे पूछते हैं इससे जनता को क्या फायदा होगा ....? तो उनकी बगलें झांकने की नौबत आ जाती है |
बात हो रही थी ‘लोकतन्त्रीय सोच के खिसयानी बिल्लियों की ‘.....|
अपने दिल्ली के माहौल को इस मामले में हरदम गर्म समझना चाहिए |
एल जी ,आई ऐ एस लाबी ,अरर्विन्दी खेमा ,और बेचारी जनता |सबों की अपनी अपनी सोच हैं,|
इन सब को अपने-अपने बेसब्र नाख़ूनो को रगडने-घिसने के लिए खम्भों की जरुरत है |
दिली गौरमेंट को. जैसे पहले जमाने में कीर्ती स्तम्भ ,जय स्तम्भ,अशोक स्तंभ बनाए जाते थे उसी तर्ज पर “खिस्यानो का खंभा” बनवाना चाहिए|
आप की जीत की कोई यादगार निशानी ,कोई कुतुबमीनार नुमा खंभा गड जावे, जिससे पता चले कि किस पागलपन की हद तक जनता ने उन्हें बिजली पानी की लालच में ,दिल्ल्ली के लिए अपनाया|
आने वाली पीढियां या तो सबक ले या सैर सपाटे के लिए खंभों का इस्तेमाल करे जैसी उनकी मर्जी |
ये खंभे महज दिल्ली पर ही क्यूँ ......बाकी जगह भी तो , आफिसर मातहत से ,मंत्री- संतरी जनता से(उलट पुलट भी लागू ) ,सी एम अपने आप की नाकामी से, अगर हैरान परेशान है तो इस टाइप के खंभों पर जोर-जोर से नाख़ून रगड़ के भडास निकाल लें |
दूसरे शब्दों में इन भद्र जनों की , सोच की ‘भडास’ सुलभ शौचालय की तर्ज पर बाहर निकल जाए तो देश में खुद–ब-खुद स्वच्छ माहौल बनता नजर आयेगा |एक यही जगह है जहाँ आदमी जरूरत से ज्यादा चिन्तनशील,क्रियाशील और शांत पाया जाता है |
भडास निकालने की प्रक्रिया में उन्हें ,देश के बारे में सोचने का विस्तार से मौक़ा मिलेगा ,जनता से किये वायदे बिना जोर लगाए याद आयंगे |नाख़ून की पैनी धार ज़रा भोथरी होना शुरू हो जाएगी तो व्यर्थ के अहंकार भी आप से आप कम होने लग जायंगे |हमे लगने लगेगा कि चलो सुलभ काम के बहाने नेता जमीन से जुड़ने की कहीं तो सोच रखने लगा है |
अपने तरफ ट्रांसफर पोस्टिंग का सीजन, ‘आई पी एल’ की तर्ज पर सालाना त्यौहार का रूप अख्तियार किये रहा है |
किसी मुहकमे में ट्रांसफर पोस्टिंग की बाकायदा बोलियाँ बोली जाती हैं |
कहीं विधायक .नेता .बाहुबली का इसमें दबदबा दिखता है | सरकारी खजाने के करोड़ों रूपयों की बर्बादी अपनी समझ से कोसों परे, यूँ है कि सरकारी मुलाजिम एक तो काम में धीमापन पहले से रखे रहता है ,मर्जी से आफिस में आना-जाना करता है |नई जगह जाकर कोई नया तीर क्या मार लेगा......? पता नहीं ?
ऐसा कम ही होता है कि नया रंगरूट आ जाने से अपराध के ग्राफ कहीं गिरे हों |बस ‘रेट’’ नए तय होने लगते हैं ,भइ ,फलाने जी अगर उतने में करते थे, तो उन्हीं से ‘करवा लो .....?हम फाइल में दस्तखत करते हैं, आटोग्राफ देने अपने शहर से दूर तो आये नहीं न ....?तुम्हीं बताओ .....?
इस विडम्बना को झेलने वाला ‘आम आदमी’ तब आसपास खंभा ढूढता है ,अपने आक्रोश के पैने नाखूनों को सम्हालने के लिए कोई तो बहाना मिले वरना ‘गैर इरादतन वाले केस में इजाफा होने में वक्त नहीं लगने का |
‘गैर इरादतन’ का जिक्र जब छिड़ ही गया तो दो किस्सों को भी निपटाते चलें |
जनाब को, उनके हलक के नीचे ज़रा सी उतरी हुई का, हिसाब इतना लंम्बा देना होगा ,......?कहाँ मालूम था ...?क्या- क्या दिन नहीं देखने पड़े |गैर इरादतन नाम देकर इरादतन से भी ज्यादा दुःख जमाने ने दे दिया| वो तो अपने काले कोट वालों की फौज भिड़ गई जो तात्कालिक समस्या की भीषण गरमी में तम्बू तान के अपने पक्षकार को फिलहाल बचा लिए |
दूसरे मामले में ,खुदा के शुक्र से ,चेन्नई वाली अम्मा के भी ‘दुख भरे दिन बीते रे भइय्या अब सुख आयो रे’ का तमिल संस्करण(यदि हो तो ) गुनगुनाने के दिन आ गए |
ये लोग सर धुनने के बाद जरुर किसी काल्पनिक खंभे की सोच में पड़े रहते होंगे......?”दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है”? इनके जेहन में खंभे की जगह लिए होते हैं |
इस गरमी में ‘मफलर लेस मेंन’ को अंदरुनी सुकून तो जरुर होगा कि, इस खिसियाने की आड़ में वे अपने मतदाताओं से किये वायदे से मुंह मोड़ने का सटीक और दमदार बहाना अगले इलेक्शन में दम से रख सकेंगे | वो ताल ठोक के कहता फिरेगा ,अगर ब्युरोक्र्ट्स उनकी पसंद के बिठाए जाते तो, बिजली चार सौ चालीस की जगह आठ सौ अस्सी के करेंट से बहती,वो भी घटी दरों पर |दिल्ली में पानी की भी कमोबेश ये स्थिति रहती कि आप अपने करीब गाव के सभी मेहमान- रिश्तेदारों को दिन में दो बार नहला-धुला के खुशी-खुशी वापस भेज सकते |
चलो, “आप” की खिदमत में बनाए जाने वाले ‘खिसयानो खंभे’ का मिल –जुल के इंतिजार करें |
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
०९४०८८०७४२०
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