पर्यावरण, पंचायतें एवं मानवाधिकार

SHARE:

डॉ0 विनोद शुक्ल   पर्यावरण ऐसी परिस्थितियों का समुच्चय है जिसमें मनुष्य प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। यह गतिमान होते हु...

image

डॉ0 विनोद शुक्ल

 

पर्यावरण ऐसी परिस्थितियों का समुच्चय है जिसमें मनुष्य प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। यह गतिमान होते हुए भी स्थान एवं काल के साथ-साथ परिवर्तित होता रहता है। पर्यावरण के बदलने से भी मनुष्यों तथा अन्य जीवधारियों में परिवर्तन हुआ और मनुष्य ने भी अपने क्रिया कलापों द्वारा पर्यावरण को प्रभावित किया है। प्रत्येक जीवधारी अपने अनुकूल पर्यावरण की उपज है। पर्यावरण के साथ अनुकूलन स्थपित करते हुए ही जीव के जीवन काल का क्रमिक विकास होता है। किंतु परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने पर जीवधारियों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के इस युग में प्रकृति पर समाज के क्रिया कलाप का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण उपयोग तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव सामान्यतः सामाजिक कारणों में बद्धमूल होता है। प्रकृति और जैवगत में मनुष्य के आर्थिक क्रियाकलाप के फलस्वरूप अनवरत परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों में निम्नांकित शामिल हैंः वनस्पति वाले क्षेत्रों का कम होना; जमीन और पानी में अम्लीकरण होना; औद्योगिक अपशिष्टों की अधिकता से जाना; ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि; परम्परागत ईधन बड़ी मात्रा में जलाया जाना; इनके परिणामों का हुए प्रभाव स्पष्टतः नजर आने लगा है।

प्राकृतिक संसाधन केवल साधन हैं जबकि मानवीय संसाधन साधन एव साध्य दोनों ही हैं। हम जानते हैं कि पानी वनस्पतियों व प्राणियों के लिए जीवंत महत्व का होता है और कृषि व औद्योगिक उत्पादन की लगभग सम्पूर्ण तकनीकी प्रक्रियाओं की एक अनिवार्य आवश्यकता है। ताजे पानी के इस प्रयोग से पानी का अभाव पैदा हो गया है। इस कमी में जल चक्र का कमजोर होना भी कारण माना जा रहा है। इस तरह जो कमी दृष्टिगत हो रही है उसके पीछे मानव समाज का एक शक्तिशाली, पर संख्या में कम मात्रा वाला वर्ग प्रभावी भूमिका निभा रहा है। पर जो प्रभाव पड़ रहा है वह सम्पूर्ण समाज पर पड़ रहा है। उदाहरणार्थ एक कृषि क्षेत्र में कोका कोला की फैक्ट्री नित्य हजारों लाखों लीटर पानी जमीन से निकाल कर उसका बोतलों में प्रयोग कर रही है फलतः वहाँ का भूमिगत जल स्तर नीचे जा रहा है। जिसका प्रभाव कृषि क्षेत्र में लगे नलकूपों पर पड़ रहा है और किसानों को सिंचाई के लिये पानी नहीं मिल पाता। यह किसानों का अधिकार हनन नहीं तो और क्या है। इसी तरह ग्रामीण पंचायतों पर भी नगरीय संस्कृति का दबाव पड़ रहा है। पर्यावरण एक अति विकसित दृष्टिकोण का विषय बन गया है। यह दिन-प्रतिदिन जटिलताओं से घिरता जा रहा है।

जीव जगत अपने बनाये पर्यावरण में ही आबद्ध हो कर उसी में जीवन निर्वाह करने का बाध्य हो गया है। क्षेत्रीय आधार पर पर्यावरण को सीमा में बांधा जा सकता है पर पर्यावरण एक अमूर्त तत्व है इसकी कोई सीमा नहीं है।

भारत में राष्ट्रीय विकास की मुख्य धारा गाँवों से प्रवाहित होकर नगरों को आप्लावित करती है। इस धारा में ग्रामीण संस्कृति और नगरीय संस्कृति का समन्वय होता है। नगर एवं ग्राम के बीच अन्योन्याश्रित संबंध पाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शासन व्यवस्था पंचायतों द्वारा आच्छादित होती है लेकिन एक सीमा के बाद नगरीय क्षेत्र ही उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी पंचायतों को प्रदान की गई है। इसमें ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत के रूप में तीन स्तर बनाए गए हैं। ग्राम पंचायत शासन सत्ता की अंतिम कड़ी है, जो महामहिम राष्ट्रपति महोदय एवं माननीय प्रधानमंत्री के निर्देशों का पालन करने को बाध्य है। अर्थात् केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार की सभी योजनाएं गांव से ही प्रारम्भ होती हैं और इन योजनाओं का सफल संचालन ही राष्ट्रीय विकास को गति प्रदान करता है। विकास और पर्यावरण संरक्षण परस्पर विरोधी नहीं है।

वास्तव में र्प्यावरण को क्षति पहुँचने से खर्चे बढ़ते हैं जो विकास के मार्ग में बड़ी बाधा है। हरित क्रांति के अनेक दुष्परिणामों के कारण अब कृषि अनुसंधान तथा विकास की रणनीति में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन करने की आवश्यकता प्रतीत हो रही हैं। डा0 एम0एस0 स्वामीनाथन के अनुसार- ''पर्यावरण अनुकूल खेती ही स्थायी खाद्य और आजीविका सुरक्षा प्रदान कर करती है। किंतु इसमें हमें अपना ध्यान जिंस केंद्रित दृष्टिकोण से हटा कर सम्पूर्ण फसल या खेती व्यवस्था की ओर लगाना होगा। तभी इस दिशा में प्रगति की जा सकती है। इस तरह के अनुसांधन में सम्पूर्ण उत्पादन व्यवस्था की कुशलता और उत्पादन बढ़ाने में जोर दिया जाना चाहिए।'' यहाँ कृषि की वर्तमान व्यवस्था में रासायनिक उर्वरकों के अधिकाधिक प्रयोग और कीटनाशी रसायनों की अधिकता पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि के साथ मृदा में उपजाऊपन का ह्नास दिखायी दे रहा है। यह लक्षण ग्राम विकास का स्वरूप नहीं है जो पंचायती राज्य व्यवस्था के तहत भारत सरकार द्वारा कल्पना की गयी है।

पंचायतों के माध्यम से समग्र ग्रामीण विकास की दशा और दिशा में परिवर्तन लाने के लिए मानव अधिकार और पर्यावरण दोनों का समन्वय आवश्यक है। किसी भी समुदाय का समग्र विकास उच्चस्तरीय सरकारों द्वारा नहीं बल्कि स्थानीय लोगों द्वारा ही हो सकता है। 73 वें संविधान संशोधन के माध्यम से लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के नए युग की शुरूआत की गई जिसके अंतर्गत शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ दोनों ही तीनों स्तरों पर चुनी गयी पंचायतों को सौंपी गयी। पंचायतों को ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास के साथ ही सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी है इस संशोधन से ग्रामीण समाज में बदलाव आया है और धीरे-धीरे पंचायतें ग्रामीण विकास की महत्पूर्ण कड़ी बनती जा रही है। इसके बावजूद पंचायतों की भूमिका को सफल बनाने के लिए इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना जरूरी है। महिलाओं तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए आरक्षण तो किया गया है लेकिन सर्वेक्षणों और अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि महिलाओं को अभी इस अधिनियम के तहत अपनी शक्तियों का स्पष्ट ज्ञान नहीं है। पंचायतों की बैठक में उनकी अनुपस्थिति और कहीं-कहीं महिलाओं के प्रति कठोर एवं अमानवीय निर्णय भी उनके स्पष्ट ज्ञान न होने का संकेत देता है। यहाँ पंचायतों को सुदृढ़ करते हुए बच्चों, महिलाओं, वृद्धों एवं कृषकों की उचित हक के प्रति जन जागृति के माध्यम से सचेत करने की आवश्यकता है जैसा कि मेरे सपनों का भारत नामक लेख में गांधी जी ने कहा है कि पंचायतों को प्रभावशाली बनाने के लिए लोगो के शैक्षणिक स्तर में वृद्धि करनी होगी जिससे उनकी नैतिक शक्ति में स्वतः स्फूर्त वृद्धि होगी।

पंचायत भारतीय समाज व्यवस्था का प्रचीन काल से ही एक आधारभूत शक्ति सम्पन्न सत्ता का स्वरूप रहा परंतु सत्ता का अधिकार, समाज पर प्रभाव, समाज की आवश्यकता आदि में समय-समय पर परिवर्तन होने से इसका स्वरूप बदलता रहा है। आज की पंचायत व्यवस्था भारतीय शासन तंत्र की नींव के रूप में विकसित हो रही हैं। आज हम पंचायती राज व्यवस्था के सबको उसमें सक्रिय पा रहे हैं। पंचायतों का सीधा संबंध गांवों से है। गांव का विकास इस तरह होना चाहिए कि समस्याओं का खात्मा तो हो लेकिन गांव का मूल स्वरूप न बदलने पाए। गांव में बिजली, और पानी और सड़क की व्यवस्था जानी चाहिए, लेकिन उसे उस प्रदूषण से बचाए रखना होगा। गांव से शहर की ओर होते पलायन को रोकना होगा। इस संबंध में पंचायतों के जरिये ग्रामीण विकास का सपना सच करने की कोशिश शुरू करने के पीछे काफी हद तक यही सोच है कि गांव से पलायन रूकना ही चाहिए। गांव की जिंदगी में पालतू पशुओं एवं जीवों से जैसे मनुष्य का आत्मीय संबध होता है वैसा शहरों में देखने को नहीं मिलता है। गांव में लोग पशु पक्षियों को अपने जीवन के सुख दुख का सहभागी और सहयोग मानते हैं और उनके साथ पारिवारिक सदस्य जैसा व्यवहार करते हैं। गांव का पर्यावरण बदल रहा है यह सामाजिक, आर्थिक सभी दृष्टियों से प्रभावित हो रहा है। उदाहरण स्वरूप देखें तो हम पाते हैं कि पशुओं को चराने के लिए गांव में चारागाह की व्यवस्था थी, पर आज नहीं है। पशु पालक अपने पशुओं को चराने के लिए जब निकलता है तब उसके स्वच्छंद अधिकारों पर रोक लगती है। सार्वजनिक क्षेत्र की कमी होने के कारण उसे जलालत झेलनी पड़ती है, क्योंकि उसके अपने अधिकार के साथ अपने परिवार के प्रमुख अंग उन पशुओं के अधिकार का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है।

मानव अधिकार के अंतर्गत अपने तथा अपने परिवार की तंदुरूस्ती तथा स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार सभी को है, जिसमें भोजन, वस्त्र, आवास तथा चिकित्सा सुविधा, बीमार और अशक्त होने पर सुरक्षा का अधिकार सम्मिलित है। इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों जैसे पौधों, जंतुओं, नदियों आदि का संरक्षण आवश्यक है। प्राचीन काल में प्रकृति पर मानव का प्रभाव क्षतिपूर्ण नहीं था इससे पर्यावरण संतुलित था। आज जनसंख्या का दबाव और उनकी बढ़ती मांग का सीधा प्रभाव प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर पड़ रहा है। इससे नगर ग्राम सभी क्षेत्रों में इस बात का अनुभव किया जा रहा है कि प्राकृतिक संसाधन संरक्षण की उसी पुरानी भावना को पुनः जगाया जाए। जीवन मानव का मूलभूत अधिकार है। यह मानव जीवन पर्यावरणीय दशाओं और तत्वों के पारिस्थितिकीय प्रंबधन पर आधारित है। पारिस्थितकीय संतुलन सभी जीवधारियों की उत्तर जीविता के लिए अनिवार्य है। एक संतुलित एवं उत्फुल्ल र्प्यावरण से ही सतत् विकास का प्रयास जारी रह सकता है।

मानव अधिकार के माध्यम से हम पर्यावरण को बचाने का प्रयास करते हैं पर प्रदूषक तत्वों को उत्पन्न करने वाले लोग भी अपने अधिकार का प्रयोग करके अवशिष्ट का उत्सर्जन करते हैं और वह उत्सर्जन धीरे-धीरे जानलेवा होता जा रहा है। समाज के विकास की प्रत्येक अवस्था के लिए हर प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों का एक सा महत्व नहीं होता है। मिट्टी की उर्वरता जलवायु, जंगल, वनस्पति, जंतु, नदियों, सागर तथा महासागर, खनिज संसाधन और वायुमंडल के अनुगुनों पर बहुत निर्भर करती है। लेकिन प्राकृतिक संसाधन स्वयं कोई उत्पादन नहीं करते, उन्हें कमोबेश समाज द्वारा ही प्रयोग किया जा सकता है। समाज द्वारा आर्थिक वृद्धि के तीन कारको को- श्रम, उत्पादन के साधन और प्राकृतिक पर्यावरण उत्पादन के विकासार्थ मिलाकर उपयोग में लाया जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया से प्राकृतिक संसाधनों का निशेषी करण हो रहा है तथा औद्योगिक व उपभोक्ता अपशिष्टों और गंदे बहिप्रवाहों में वृद्धि हो रही है जो पर्यावरण में प्रविष्ट हो कर उसे प्रदूषित कर रहें हैं।

मानव अधिकार का क्षेत्र दिन-प्रतिदिन व्यापक होता जा रहा है। लोगों के क्रिया कलाप पूर्णतः स्वतंत्र होते जा रहे है। जिससे मानव अधिकारों का हनन भी हो रहा है। किसानों द्वारा सब्जी की खेती में आक्सीटोन का प्रयोग कर पैदावार बढ़ाई जा रही हैं।, कृषि में अनेको कीट नाशकों का अवैज्ञानिक प्रयोग किया जा रहा है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। बढ़ती जनसंख्या की मांग को देखते हुए कृषि उत्पादकता एवं निरंतरता बढ़ाने, मृदा की गुणवत्ता सुधारने के लिए जैविक खाद कृषि अपशिष्ट और रासायनिक उर्वरकों के साथ उनकी सह क्रियाशीलता के प्रभावों की उपेक्षा की जा रही है। जबकि स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सभी जैविक संसाधनों को एकत्र करने और उनसे प्राप्त पोषक तत्वों को कुशलता पूर्वक पुनः उपयोगी बनाने के हर संभव प्रयास किये जाने चाहिए। साथ ही जनसंख्या वृद्धि को सीमित रखने की आवश्यकता के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए उसे यह जानकारी देना जरूरी हैं कि हमारी भूमि, पानी वन और अन्य पारिस्थितिक संघटक कितने लोगों को सहारा दे सकते हैं।

पर्यावरण तथा प्रदूषण के प्रभाव से भौगोलिक परिवेश व मानव जीवन का कोई भी पहलू अछूता नही रह पाया है। मानव अपनी समस्याओं के निवारण व विकास के लिए कई प्रकार के वैज्ञानिक उपकरणों को प्रयोग करता है परंतु समग्रतः इसका प्रभाव समानुकूल नहीं होता। इससे प्रदूषण की जड़े मजबूत होती हैं। पंचायतों के माध्यम से जनसहयोग एवं सहभगिता की भावना का विकास कर जीवन दायिनी पारिस्थितिकीय प्रणाली को संतुलित बनाये रखा जा सकता है। साथ ही सतत विकास की अवधारणा को भी मूतरूप दिया जा सकता है। सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उचित प्रौद्योगिकी व्यवहार से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहता है। इससे मानव समाज की क्षमताओं और जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

पंचायती राज प्रणाली से गांवों की सामाजिक व्यवस्था में सार्थक, संरचानात्मक एवं प्रकार्यात्मक परिवर्तन हुआ है। सिद्धांतः ग्राम पंचायत स्थानीय स्तर पर सर्वोच्च स्वशासन सत्ता के रूप में गांव के समग्र विकास का दायित्व लिए हुए है। पंचायत अधिनियम 1996 में भूमि, वन, जल एवं अन्य स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन एवं नियंत्रण पंचायतों को सौंप दिया गया है। गांव की भौगोलिक परिस्थितियाँ एक समान न होने के कारण उनके विकास की समान नीतिगत व्यवस्था विकास में बाधक ही हो जाती है। गांव में जल निकासी प्रणाली की व्यवस्था कहीं-कहीं अत्यंत जटिल दिखाई पड़ती है। सड़कों का निर्माण, तालाबों के निर्माण में जल अपवाह और ढाल को नजर अंदाज करके सही स्वरूप नहीं प्राप्त हो सकता है। इन सब में अधिक मात्रा में धन व्यय होता है फिर भी सही दिशा न होने से अपव्यय साबित होता है। ग्राम प्रधानों को इस दिशा में सामूहिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है जिनमें आपदा प्रबंधन, जल संरक्षण, भूमि जल संचय आदि के बारे में आधारभूत जानकारी दी जाए जिससे विकास कार्यो में लगा धन अपव्यय का रूप न ले। आपदा के संबंध में ग्राम पंचायत को यह अधिकार दिया गया है कि अपने क्षेत्र में हुई आगजनी, महामारी या अन्य किसी भी प्रकार के हुए हादसों से प्रभावित परिवार को सहायता प्रदान करें। लेकिन इसके साथ आपदा प्रबंधन की दिशा में भी प्रयास होने चाहिए। पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन की सफलता सबसे अधिक इस बात पर निर्भर करती है कि जन सहभागिता किस तरह की और किस हद तक प्राप्त हो सकी है। जब तक स्थानीय नागरिक आपदा के प्रति सजग होकर राहत एवं बचाव कार्य में हिस्सा नहीं लेते तब तक आपदा प्रबंधन का उद्देश्य अधूरा ही रह जाऐगा। जिसका सीधा प्रभाव पर्यावरण और मानव अधिकार के हनन पर पड़ेगा।

पंचायतों के विकास में सबसे बड़ी बाधा पंचायतों के स्वरूपए व संगठन में देशभर में व्याप्त विषमता एवं विभिन्नता है। ग्राम पंचायतों का भौगोलिक क्षेत्रफल तथा जनसंख्या अनुपात भी सभी राज्यों में भिन्नता लिए हुए है। स्थिति यह है कि केरल में ही इडुक्की जिले की एक ग्राम सभा बट्टाबडा में 4508 जनसंख्या है तो इस जिले की मुन्नार ग्राम पंचायत की जनसंख्या 74343 है। इसी राज्य में बल्लापट्टनम कन्नूर का क्षेत्रफल 2.4 वर्ग किमी0 तो इडुक्की जिले की ग्राम पंचायत कुमिली का क्षेत्रफल 7.95 वर्ग किमी है। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार केरल में ग्राम पंचायतों की औसत जनसंख्या 25200 है जबकि राजस्थान में यह 5400 है। इन भिन्नताओं के लिए एक ऐसे मान्य प्रतिमान को विकसित करने की आवश्यकता है जिसे प्रायः सभी राज्यों एवं स्थानों पर लागू किया जा सके।

राष्ट्रीय विकास की दिशा में पंचायतों का सशक्त और सुव्यवस्थित होना समय की आवश्यकता है। खाद्य पदार्थों में मिलावट की विभीषिका, नकली दवाइयाँ, पेयजल में बढ़ती विषाक्तता और आतंकवाद का खतरा अब नगरों से गांवों की ओर जा रहा है। इन सब के प्रति सचेष्ट होने के लिए तत्संबंधी जानकारी एवं प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए ग्राम समूहों के बीच नोडल केंद्र की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके माध्यम से पर्यावरण प्रबंधन, आपदाप्रबंधन, भूमि प्रबंधन, जल प्रबंधन, की दिशा में नागरिकों को प्रशिक्षण के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं को संगठनात्मक भागीदारी देकर उनका सहयोग लिया जा सकता है।

पर्यावरण, पंचायतें एवं मानवाअधिकार की त्रिवेणी में अवगाहन करते हुए आज हमें उन सभी तथ्यों का दिग्दर्शन हो रहा है जो भारत के विकास पथ के निर्माण सामग्री के अवयव है परंतु उन्हें यथोचित ढंग से प्रयोग न करने के कारण विकास पथ पर अवरोध बन गये है। देश में पंचायतें जिन्हें चार्ल्स मैटकाफ ने लघु गणराज्य का नाम दिया था। उन्हें धर्म निरपेक्षता के आधार पर विकास के सभी संसाधनों का प्रयोग सतत विकास की प्रक्रिया के आधार पर करना चाहिए। विकास की अवधारणा में इस बात पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि मानवाधिकार की सीमा में उसके व्यापक अर्थों में पर्यावरण संतुलन बना रहे जिससे आने वाली पीढ़ी पंचायतों के विकास की दिशा में सुख शांति का अनुभव प्राप्त कर राष्ट्र को मजबूत करने में अपना योगदान देने को तत्पर हो।

 

' ' ' '

( राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत, मानवाधिकार संचयिका से साभार )

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पर्यावरण, पंचायतें एवं मानवाधिकार
पर्यावरण, पंचायतें एवं मानवाधिकार
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEZI5BI4YB6vO9rE5JmdL1FfC_QAr51PmO3wzKQsnSd3TS6fEFNCNSgJp0VRENE-YELIKhmWozTd9ujymdFvmojMoN8pqe0IYih6BiBT4Kq7hH9oe38Pa4FUEpvRCn-SaNpQTX/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEZI5BI4YB6vO9rE5JmdL1FfC_QAr51PmO3wzKQsnSd3TS6fEFNCNSgJp0VRENE-YELIKhmWozTd9ujymdFvmojMoN8pqe0IYih6BiBT4Kq7hH9oe38Pa4FUEpvRCn-SaNpQTX/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/05/blog-post_7.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/05/blog-post_7.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content