डॉ.चन्द्रकुमार जैन हाल ही में हमारे यहां उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्राध्यापकों के कार्यों की परफॉरमेंस आधारित मूल्यांकन पद्धति एक स...
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
हाल ही में हमारे यहां उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्राध्यापकों के कार्यों की परफॉरमेंस आधारित मूल्यांकन पद्धति एक स्वागतेय कदम है,क्योंकि हर जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी की क्षमता व दक्षता की झलक उसके कार्य और कार्यशैली का आइना कहा जा सकता है। वैसे प्रत्येक संस्थान में कर्मचारियों के वर्क परफॉरमेंस का विश्लेषण करने के उद्देश्य से विशेष प्रावधान होता है। निजी संस्थाओं में तो इसे हर दौर में अहम समझा गया है।
बहरहाल यदि राजकीय सेवा में भी विशेषकर उच्च शिक्षा की संस्थाओं में इसकी ज़रुरत महसूस की जा रही है तो यह स्वाभाविक व उपयुक्त भी है। इससे बेहतर ढंग से कार्य निष्पादन के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। संस्थाओं में सजग रहकर काम करने की प्रवृत्ति को बल मिलेगा। समय और सिस्टम की मांग के अनुरूप प्राध्यापक की शिक्षा व शिक्षण कर्म के प्रति समर्पण, शोध और नवाचारों में दिलचस्पी, गुणवत्ता केंद्रित वातावरण के निर्माण में उसकी सजग सहभागिता जैसे कई बिंदु परफारमेंस के अंकन के आधार हो सकते हैं। बदलते दौर में जरूरत के अनुरूप परफॉरमेंस अप्रेजल टूल्स बदले भी जा सकते हैं। इसके लिए बाकायदा फार्मेट बनाये गए हैं, जिनमें निहित प्रश्न और संकेत आपको स्वयं और सिस्टम को भी आपका मूल्यांकन करने का अवसर देते हैं।
जॉन वुडन ने ठीक ही कहा है अपने प्रत्येक दिन को सर्वोत्तम बनाएं। इस विचार को परफारमेंस की दृष्टि से भी कारगर ढंग से अपनाया जाना चाहिए। सच है प्रत्येक व्यक्ति की अपनी क्षमता और कुछ सीमाएं भी होती हैं, किन्तु गैरजिम्मेदार रुख और लगन की कमी तो कतई अच्छी बात नहीं कही जा सकती। लिहाज़ा, मूल्यांकन का अपना महत्व है। इसे एक तरह की प्रेरक शक्ति भी काम करती है कि आप अपनी जिम्मेदारी को अपनी समझ, शक्ति और व्यवस्था की अपेक्षाओं के पैमाने पर जांचने और तराशने के लिए आगे आते हैं। याद रखना चाहिए कि कल आप आज से बेहतर कर सकें यह सिर्फ कार्यस्थल नहीं, पूरी ज़िंदगी की बुनियादी मांग है। इस कोशिश को जारी रखने से गाहे-बगाहे आप खुद पर जीत के हकदार बन सकते हैं।
जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है - आप कांच के दर्पण में अपना चेहरा देख सकते हैं; और अपने कर्म में आप अपनी आत्मा को देख सकते हैं। इसमें विनम्रता पूर्वक जोड़ा जाना चाहिए कि आप अपने निष्पादित कार्यों में अपनी निष्ठा और ईमानदारी की छवि निहार सकते हैं। बहरहाल गौर कीजिए कि शब्दकोश में परफारमेंस के माने वैसे तो कई हैं,पर कार्य निष्पादन, कार्य सम्पादन और शीघता के साथ समय पर ठीक-ठाक कार्य पूर्ण करना जैसे अर्थ ही यहां लागू होते हैं।
यदि हम सिर्फ उच्च शिक्षा नहीं बल्कि किसी भी सेवा में परफारमेंस के महत्व पर चर्चा करें तो इसका आकलन या तो हर छह महीने में या फिर वर्ष में एक बार किया जाता है। परफॉम्रेस अप्रेजल के अनुसार ही किसी भी संस्थान में कर्मचारियों की पदोन्नति, वेतन वृद्धि के अलावा अन्य सुविधाओं के लिए उन्हें पात्र माना जाता है। दूसरी तरफ हमारा मत है कि यह परफॉरमेंस ही तो आपकी संस्था की छवि-गति-प्रगति का आइना है। संस्था की छवि लोगों के भरोसे का आधार बनती है।गुणवत्ता के साथ विश्वसनीयता का संगम सोने पे सोहागा के समान समझना चाहिए।
संस्थान का मैनेजमेंट कई बार परफॉम्रेस अप्रेजल को कर्मचारी को रिवार्ड देने और स्टार परफॉर्मर को उसके बेहतर भविष्य के लिए प्रोत्साहित करने के रूप में प्रयोग करता है। यही वजह है कि अधिकतर कर्मचारी परफॉरमेंस अप्रेजल का बेसब्री से इंतजार करते हैं क्योंकि इसी के आधार पर तरक्की और बेहतर कार्य करने का जज्बा और ज्यादा बढ़ता है। हालांकि जब किसी कर्मचारी का परफॉम्रेस अप्रेजल निगेटिव फीडबैक मिलता है तो यह न केवल उसे हतोत्साहित करने वाला बल्कि उसकी पदोन्नति और वेतन वृद्धि के अवसर को भी कम करने वाला होता है।
सबसे बड़ी बात यह कि नेगेटिव फीडबैक से कर्मचारी के आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचती है। ऐसी परिस्थिति में कर्मचारी को खुद को उबारने और दोबारा से काम में जुटकर कुछ ऐसा परफॉरमेंस देने का मन बनाना चाहिए जिससे कि उसके करियर पर लगे निगेटिव परफॉम्रेस का धब्बा साफ हो सके। इससे भी बड़ी बात यह है कि स्टार परफारमेंस का तटस्थ और शीघ्र मूल्यांकन हो, जिससे उसे उसके काम का रिवार्ड समय पर मिल सके। इससे अच्छा काम करने वालों का मनोबल बढ़ेगा। उन्हें बेहतर कर दिखने की नई ताकत व प्रेरणा भी मिलेगी।
अप्रेजल का निगेटिव फीडबैक मिलने पर उसका सामना कुछ इस तरह किया जा सकता है - अगर आपके अधिकारी ने आपको निगेटिव रेट दिया है तो बिना झिझक यह सोचें कि उनसे निगेटिव रिस्पॉन्स मिलेगा, तुरंत बात करें। संवादहीनता की स्थिति कायम न रहे। इस बात की जानकारी लें कि आपके प्रति निगेटिव अप्रेजल देने का कारण क्या है। इससे आपको अपने कमजोर या नकारात्मक पहलू को जानने का अवसर मिलेगा और फिर आप उस मामले में खुद को सुधारने के लिए काम कर सकते हैं।
वैसे आजकल पारदर्शिता का तकाज़ा सब तरफ है। लिहाज़ा माहौल तो ऐसा बने कि अधिकारी-कर्मचारी को अपने पॉज़िटिव या निगेटिव परफार्मेंस की तहकीकात की ज़रुरत ही न रहे। जो भी है ,जैसा भी है वह उसके सामने आना चाहिए। संशोधन और सुधार की संभावना कभी ख़त्म नहीं होती। उसे अवसर मिलना चाहिए। सफाई देने से नहीं, सुधार से प्रगति का पथ प्रशस्त होता है। ऐसा करने से आपके भविष्य की प्रगति को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा।
बेहतर प्रदर्शन का अवसर मिले
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कितना अच्छा हो कि सभी संस्था प्रमुख अपने अधिकारियों से सक्रिय-सकारात्मक सहयोग के लिए बात करें, उन्हें संस्था की योजनाओं की भावी जानकारी दें और उनसे कहें कि वे आपको अगली बार के बेहतर प्रदर्शन का अवसर देना चाहते हैं। आवश्यक हो तो उनका मार्गदर्शन भी करें। जब किसी को निगेटिव फीडबैक मिलता है तो सबसे पहले उसके दिमाग में विक्षोभ पैदा होता है। इससे हताशा भी पैदा हो सकती है। स्मरणीय है कि यहीं पर भविष्य के परफॉरमेंस के मद्देनज़र संस्था में सकारात्मक ऊर्जा के संचार को ज़िंदा रखने की अहमियत बढ़ जाती है।
निगेटिव फीडबैक के कारणों तक पहुंचने में जल्दबाजी नहीं बल्कि धैर्य से काम लेना चाहिए। अगर फिर भी आप खुद को भेदभाव का शिकार मानते हैं, तब इस पर ईमानदारी से अपनी प्रतिक्रिया दें। निगेटिव फीडबैक मिलने पर निराश होना या नौकरी से त्यागपत्र दे देना अपनी काबिलियत को साबित करने का सही उपाय नहीं है। बल्कि आपको अपनी कमियों को दूर करते हुए बेहतर कर दिखाने की ओर ध्यान देना चाहिए। अगर आप दूसरे संस्थान में जाते हैं तो अपने से होने वाली लगातार एक सी गलतियों को दोहराने से खुद को रोकें। अपनी कमियों पर तुरंत काम करना शुरू करें और उन्हें जल्द से जल्द दूर करने का प्रयास करें। मेहनत करें और अपने अंदर छिपी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन करें। ऐसा करने से अगले अप्रेजल में आपको पॉजिटिव फीडबैक जरूर मिलेगा।
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लेखक शासकीय दिग्विजय पीजी
ऑटोनॉमस कालेज में प्रोफ़ेसर हैं।
मो.9301054300
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