लेखकों की बातें

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सूरज प्रकाश कथाकार सूरज प्रकाश अपने ब्लॉग (http://kathaakar.blogspot.in) तथा फ़ेसबुक पर बहुत ही उम्दा सीरीज लिख रहे हैं - लेखकों की बातें ...

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सूरज प्रकाश

कथाकार सूरज प्रकाश अपने ब्लॉग (http://kathaakar.blogspot.in) तथा फ़ेसबुक पर बहुत ही उम्दा सीरीज लिख रहे हैं - लेखकों की बातें. अब तक वे कुल चालीसेक किस्से लिख चुके हैं. हर किस्सा मनोरंजक और ज्ञानवर्धक. पेश है कुछ चुनिंदा संकलन -

 

लेखकों की बातें – किस्‍सा चालीस – बस्‍स, इत्‍ती सी कहानी है – अमृता प्रीतम
• 6 बरस की उम्र में सगाई, 11 बरस में मां का निधन, 16 बरस की उम्र में पहली किताब और सोलह बरस की उम्र में ही प्रीतम सिंह से विवाह। आजीवन साहिर से उत्‍कट प्रेम और जीवन के अंतिम पलों तक लगभग 50 बरस तक इमरोज का संग साथ। ये है अमृता (कौर) प्रीतम (1919-2005) की जीवनी जिसे बकौल खुशवंत सिंह डाक टिकट के पीछे लिखा जा सकता था। उनकी आत्‍मकथा का नाम भी इसी वजह से खुशवंत सिंह ने रसीदी टिकट सुझाया था।
• अमृता प्रीतम 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की बेहतरीन उपन्यासकार और निबंधकार थीं। उन्‍हें पंजाबी की पहली और सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। इनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी उतनी ही है। पंजाबी के साथ साथ हिन्दी में भी लेखन।
• उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखीं।
• उन्‍हें पद्मविभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्‍कार और ज्ञानपीठ  पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। वे साहित्य अकादमी पुरस्‍कार पाने वाली पहली महिला थीं।
• अमृता को साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत थी।
• साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे और एक के बाद एक सिगरेट पिया करते थे। साहिर के जाने के बाद वो उनकी सिगरेट की बटों को साहिर के होंठों के निशान के हिसाब से दोबारा पिया करती थीं। इस तरह उन्हें सिगरेट पीने की लत लगी।
• अमृता साहिर को ताउम्र नहीं भुला पाईं।
• साहिर उनके लिए मेरे शायर, मेरा महबूब, मेरा खुदा और मेरे देवता थे। दोनों एक दूसरे को प्‍यार भरे खत लिखते थे।
• साहिर के लाहौर से बंबई चले आने और अमृता के दिल्‍ली आ बसने के कारण दोनों में भौगोलिक दूरी आ  गयी थी। गायिका सुधा मल्‍होत्रा की तरफ साहिर के झुकाव ने भी इस दूरी को और बढ़ाया।
• बावजूद इसके साहिर भी कभी अमृता को दिल से दूर नहीं कर पाये। अगर अमृता के पास साहिर की पी हुई सिगरेटों के टोटे थे तो साहिर के पास भी चाय का एक प्‍याला था जिसमें कभी अमृता ने चाय पी थी। साहिर ने बरसों तक उस प्‍याले को धोया तक नहीं।
• इमरोज़ अमृता के जीवन में 1958 में आये। दोनों इस मामले में अनूठे थे कि उन्होंने कभी भी एक दूसरे से नहीं कहा कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं। दोनों पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहते रहे।
• अमृता रात के समय लिखती थीं। जब न कोई आवाज़ होती हो न टेलीफ़ोन की घंटी बजती हो और न कोई आता-जाता हो।
• इमरोज लगातार चालीस पचास बरस तक रात के एक बजे उठ कर उनके लिए चाय बना कर चुपचाप उनके आगे रखते रहे।
• इमरोज़ के पास जब कार नहीं थी वो अक्सर उन्हें स्कूटर पर ले जाते थे और अमृता की उंगलियाँ हमेशा उनकी पीठ पर कुछ न कुछ लिखती रहती थीं...  अक्‍सर लिखा जाने वाला शब्‍द साहिर ही होता था।
• जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया तो इमरोज़ हर दिन उनके साथ संसद भवन जाते थे और बाहर बैठकर उन का इंतज़ार किया करते थे। जब वे संसद भवन से बाहर निकलती थीं तो उद्घोषक को कहती थीं कि इमरोज़ को बुला दो। एनांउसर समझता था कि इमरोज उनका ड्राइवर है। वह चिल्लाकर कहता था- इमरोज़ ड्राइवर गाड़ी लेकर आओ।

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लेखकों की बातें – किस्‍सा तैंतीस दूसरे की पिरो कर दी गयी सुई से कोई कशीदा नहीं निकाल सकता - बिज्‍जी


दूसरे की पिरो कर दी गयी सुई से कोई कशीदा नहीं निकाल सकता - बिज्‍जी
• राजस्थान की रंग रंगीली लोक संस्कृति को आधुनिक कलेवर में पेश करने वाले, लोककथाओं के अनूठे चितेरे विजयदान देथा बिज्‍जी हरे रंग के काग़ज़ पर हरी स्‍याही से लिखते थे।
• लेखन-सामग्री के साथ उनका लगाव बच्चों जैसा हुआ करता था। जैसे पहले से एक ज्योमेट्री-बॉक्‍स होते हुए भी बच्चा हमेशा एक नया लेने को लालायित रहता है, वैसे ही वे हर बार नया पेन, मनपसंद हरे कागज, उम्दा किस्म की स्याही की दवातें आदि खरीदने को तैयार रहते।
• वे हमेशा मोटी निब वाले फाउंटेन-पेन से अक्षर जमा-जमा कर लिखने में ही आनंद अनुभव करते थे। वे दूसरों को भी ऐसे ही पेन से लिखने को प्रेरित करते थे और पेन खरीद कर देते रहते थे।
• बिज्जी लेखक के जीवन की कालावधि की तुलना आकाशीय बिजली की कौंध से करते थे। वे अक्सर कहते, बिजली चमकने के दौरान ही जो अपना मोती पिरो ले, वही हुनरमंद होता है।
• वे लेखक के फालतू बातों में समय गंवाने पर बहुत नाराज होते थे । शाम को रोजाना शराबनोशी करने वाले लेखकों से कहते, "तुममे और तोल्स्तोय में यही तो फर्क है, वे चौबीसों घंटे जीवित रहते थे और तुम रात के नौ बजते ही मर जाते हो।" वैसे वे खुद एक सेंटीमीटर वाला पैग पीते थे।
• अंतिम दिनों में अपने उपन्‍यास महामिलन की पंक्तियां दिन में कई बार पढ़ने की जिद  करते और मात्र उंगलियों की पोरों से किताब सहलाते रहते। जब दिखायी नहीं देता और पढ़ नहीं पाते थे तो टेबल लैंप को धकेल धकेल कर किताब के पन्‍ने पर टिकाते।
• कवि श्रेष्‍ठ हरीश भादाणी की मृत्‍यु पर मालचंद तिवाड़ी ने एक ट्रिब्‍यूट लिखा था। उसे पढ़ कर तिवाड़ी के पास पहला फोन बिज्‍जी का आया था - लेखक की मौत पर इतना अच्‍छा लिखता है तो मुझ पर लिख कर मुझे पढ़वा दे। मरने के बाद तो दूसरे पढ़ेंगे, मैं कैसे पढूंगा।
• कंघी स्‍नान बिज्‍जी का आविष्‍कार था। अशक्‍त हो जाने पर सर्दियों में नींद से जागते ही अपनी कमर के पूरे हिस्से पर हलके हलके एक छोटी कंघी फिरवाते। बताते – इससे रक्‍त संचार ठीक रहता है और न नहाने की क्षतिपूर्ति हो जाती है। राजस्‍थानी में वे इसे कांगसिया सिनान कहते।
• अपनी अमर राजस्‍थानी कृति फुलवाडियां छापने के लिए उन्‍होंने 55 बरस पहले अपने गांव बोरूंदा में हाथ से चलने वाली ट्रेडल मशीन लगवायी थी और बोरूंदा के कई माणुसों को रोजगार दिलाया था।
• तब वे सुबह तीन बजे जाग जाते, सुबह होते होते कापी के 10-15 पन्‍ने लिख लेते। दिन उगते ही प्रेस में पहुंच जाते। वहां 20 कम्‍पोजीटर होते। अब बिज्‍जी और सब कम्‍पोजीटरों में होड़ लग जाती। बिज्‍जी लिखते जाते, और पेज कम्‍पोज होते जाते। बिज्‍जी बाद में गैली प्रूफ ही देखते।
• कथाकार और अनुवादक मालचंद तिवाड़ी बाताँ री फुलवारी का बोरूंदा में बिज्‍जी के पास रह कर ही हिंदी अनुवाद कर रहे थे और बिज्‍जी सारी तकलीफों के बावजूद रोज़ाना किये जाने वाले अनुवाद का एक एक शब्‍द सुनते थे। ये संयोग ही कहा जायेगा कि बरस भर की मेहनत के बाद जिस दिन बिज्‍जी के स्‍नेही मालू ने अनुवाद पूरा किया, बिज्‍जी ने आखिरी सांस ली।
• बिज्‍जी  की लिखी कहानियों पर दो दर्जन से ज़्यादा फ़िल्में बन चुकी हैं। मणि कौल द्वारा निर्देशित 'दुविधा' पर अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।
• रंगकर्मी हबीब तनवीर ने बिज्‍जी की लोकप्रिय कहानी 'चरणदास चोर' पर नाटक तैयार किया था और श्याम बेनेगल ने इस पर एक फिल्म भी बनाई थी।
• 2007 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित बिज्‍जी को 2011 के साहित्य नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था।
आज की ये पोस्‍ट कथाकार मित्र मालचंद तिवाड़ी से की गयी बातचीत और राजकमल प्रकाशन से छपी उनकी अद्भुत किताब बोरूंदा डायरी के आधार पर तैयार की गयी है

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लेखकों की बातें –किस्‍सा इकतीस गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर


भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) आठ बरस की उम्र में वे कविता लिखने लगे थे और सोलह बरस की वय में वे भानुसिंह के छद्मनाम कविता संग्रह दे चुके थे।
वे भोर होते ही तैयार हो कर अपनी सजी धजी मेज पर आ विराजते। एक अगरबत्‍ती  जलाते और लिखना शुरू करते। ग्‍यारह बजे तक लिखने का काम करते।
लिखने के बाद का समय मिलने जुलने वालों के लिए और खाने का होता था। मेहमान अगर खास हुए तो उन्‍हें भी भोजन के लिए बुलाते।
दोपहर भर आराम करते और शाम के वक्‍त वे अपनी मित्र मंडली में अपनी रचनाएं सुनाते। ये रचनाएं दो तीन बार भी सुनायी जातीं और सबकी राय ली जाती। बांग्‍ला में इसे आवृत्‍ति कहा जाता है।
उनकी रचनाओं में जो काटा पीटी होती थी उसमें भी आप उनकी कला के दर्शन कर सकते थे।
उनकी रचनाओं में संशोधन करते समय जो चित्रांकन किये गये हैं, उनसे महाकवि की मन:स्‍थिति को समझने में बहुत मदद मिलती है।
बाद के जीवन में जब वे अस्‍वस्‍थ रहने लगे थे, वे बोल कर लिखाने लगे थे। दो सहायक उनके लिए रचनाएं लिपिबद्ध करते। लिपिक शब्‍द वहीं से आया है।
इसके अलावा, दिन भर आने वाले विचारों को रोका तो नहीं जा सकता था, इन कीमती विचारों को लिखने के लिए उनके आसपास कागज, कलम और स्‍याही का इंतजाम रहता।
उन्‍होंने इंगलैंड में रहने वाले अपने भाई से और दुनिया भर में बसे अपने मित्रों से कह रखा था कि उन्‍हें जो भी उपहार भेजना चाहे, केवल साहित्‍य की किताबें ही भेजी जायें।
गीतांजलि की रचना से पहले उन्‍होंने एक अध्‍यापक की सेवाएं ले कर संस्कृत सीखी थी और उपनिषदों का अध्‍ययन किया था।
वे दुनिया के एकमात्र ऐसे व्‍यक्‍ति हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।
टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की।

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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