तलाश के साथ ज़िंदगी को तराशना ही है बंदगी

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डॉ.चन्द्रकुमार जैन  सचमुच ये दुनिया एक जादू  का खिलौना है और ज़िंदगी एक पहेली। यहां कब क्या हो जाये कहा नहीं जा सकता। हादसे आम बात की तरह हो...

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डॉ.चन्द्रकुमार जैन 

सचमुच ये दुनिया एक जादू  का खिलौना है और ज़िंदगी एक पहेली। यहां कब क्या हो जाये कहा नहीं जा सकता। हादसे आम बात की तरह हो चले हैं। साजिश और शक का माहौल सब तरफ जैसे जाल बिछाए फैला है। आदमी,आदमी से काम लेता है लेकिन उस पर पूरा भरोसा करना उसे गवारा नहीं है। विश्वासघात भी गाहे बगाहे किये जाते ही हैं। फिर भी, इसी दुनिया में प्रेम के, आस्था के,विशवास के, सहयोग और सहभागिता के ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जिनसे ये दुनिया कुछ ज्यादा हसीन और ज़िंदगी कुछ अधिक ज़िंदादिल मालूम पड़ती है। आइये ऎसी ही कुछ मिसालें देखें और हम भी जहाँ तक मुमकिन हो कुछ नए कदम उठायें।


बच्चों ने मित्र की माँ का इलाज़ करवाया

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तो ये रही पहली मिसाल - अपने एक बीमार सहपाठी रोनिश उपाध्याय के इलाज के लिए उसकी मां को आर्थिक मदद पहुंचाकर केंद्रीय विद्यालय भोपाल क्रमांक-2 के छात्रों ने मानवता का उदारहण पेश किया है। स्कूल के छात्रों ने अपने जेब खर्च से 17 हजार रुपए इकठ्ठे किए। जिससे रोनिश का इलाज चल रहा है। यह स्कूल के छात्रों की दुआओं का असर ही था, जो रोनिश कोमा से बाहर आ गया।

गौरतलब है कि दशहरा अवकाश के दौरान छात्र रोनिश बीमार हो गया था। छुट्टियां खत्म होने के बाद भी वह स्कूल नहीं पहुंचा। चूंकि दीवाली तक छात्रों की उपस्थिति कुछ कम रहती है इसलिए स्कूल प्रबंधन ने छात्र की अनुपस्थिति पर विशेष ध्यान नहीं दिया, लेकिन करीब चार दिन बाद छात्र की मां नीतू उपाध्याय को फोन किया गया। तब पता चला कि छात्र बीमार है। हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट लगातार कम हो रहे हैं और छात्र कोमा में चला गया है। शिक्षकों के बीच चली यह बात बच्चों तक पहुंच गई। छात्रों को जैसे ही रोनिश की स्थिति और पिता के नहीं होने का पता चला, तो छात्र खुद मदद के लिए आगे आ गए।

महंगे इलाज से जूझ रहे इस परिवार की सहायता के लिए छात्रों ने गुल्लक तोड़ी और अपना जेब खर्च भी दे दिया। छात्रों ने करीब 17 हजार रुपए जुटाए, जो रोनिश की मां को दिए हैं। इनमें सबसे ज्यादा राशि इकठ्ठा करने वाले छात्र प्राइमरी सेक्शन के हैं। छात्रों ने शपथ ली कि वे चॉकलेट नहीं खाएंगे, लेकिन अपने सहपाठी की मदद करेंगे। यह सिलसिला अब भी जारी है। छात्र सोमवार को फिर से राशि इकठ्ठा करेंगे। यह राशि भी रोनिश की मां को दी जाएगी। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस पहल में स्कूल प्रबंधन का कोई रोल नहीं है। हां क्लास टीचर और प्राचार्य की गैर हाजिरी में छात्रों को मानवता का यह पाठ स्कूल की काउंसलर ने पढ़ाया है।

आखिर बच्चों की दुआ रंग लाई। छात्र रोनिश अब खतरे से बाहर बताया जा रहा है। बच्चों की मदद उस तक पहुंच गई है और अब वह जल्द घर लौटेगा। वैसे तो छात्रों ने नफा-नुकसान देखे बगैर रोनिश की मदद की है, लेकिन स्कूल प्रबंधन मददगार साबित हुए छात्रों की मदद वार्षिक परीक्षा में करेगा। सूत्र बताते हैं कि समग्र सतत मूल्यांकन प्रक्रिया के तहत इन छात्रों को वार्षिक परीक्षा में फायदा पहुंचाया जाएगा। इससे छात्रों के ग्रेड में बढ़ोत्तरी होगी। उल्लेखनीय है कि समग्र सतत मूल्यांकन के तहत छात्रों की सालभर की एक्टिविटी पर नजर रखी जाती है और वार्षिक परीक्षा में ग्रेड दिया जाता है।

हार न मानने के हौसले को सलाम

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ये दूसरी मिसाल इंदौर की। अगर कोई कुछ कर गुजरने की ठान ले, उसके लिए आसमान भी छोटा पड़ जाता है। यहीं कहानी इन्दौर के नेहरू नगर में रहने वाले रिक्शा चालक संजय खकाल की पुत्री आरती खकाल की है,जिसने ताइक्वांडो खेल को अपना जुनून बना लिया था और हर कठिनाई को पार कर कल वह द. कोरिया के इंचियोन शहर में चल रहे एशियाई खेलों में खेलने के लिए रवाना हुई। सरकार ने ताइक्वांडो दल में कटौती कर दी थी, लेकिन साथियों के साथ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई और शुक्रवार को फैसला खिलाड़ियों के पक्ष में आया।  11 साल की उम्र में पास ही में स्थित दिनदयाल परिसर में संचालित होने वाले इन्दौर ताइक्वांडो क्लब में वीरेंद्र पवार और विकास सिमरैया सर से प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू किया। मप्र सरकार से एकलव्य और विक्रम अवार्ड प्राप्त कर चुकी आरती को मप्र ताइक्वांडो एकेडमी ने और निखारा। आज वह सीआरपीएफ में खेल कोटे से जॉब कर रही है। दिल्ली में पदस्थ आरती हाल ही में ईरान में प्रशिक्षण प्राप्त कर आई है।

आरती के अनुसार जब 10 तारीख को पता चला कि हमारा नाम सरकार ने काट दिया है, तो बहुत बुरा लगा था। हम ईरान में प्रशिक्षण प्राप्त करने गए थे, लेकिन साथी खिलाड़ी सौरभ शर्मा के पिता द्वारा हमें भरपुर सहयोग मिला और कोर्ट में अर्जी लगाई। चार दिन तक लगतार बहस के बाद शुक्रवार को फैसला हमारे पक्ष में आया और पूरी टीम दक्षिण कोरिया के जाने की तैयारी में लग गई। वहां जाने की बहुत खुशी हो रही है, हर हाल में पदक जीतना चाहूंगी। पिता संजय के मुताबिक़ वर्ष 2009 में द. कोरिया में ही एशियन चैंपियनशिप के लिए स्पर्धा खेलने के लिए आरती को जाना था, लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, उसका जुनून देख कर हमने रिक्शा बेचने का फैसला किया। तीस हजार की राशि के लिए हमें किसी ने मदद नहीं की। हमें इसका कोई दुख भी नहीं है। आज हमारी बेटी ने हमारा सिर ऊंचा कर दिया है।

व्यस्तता में बच्चों की उपेक्षा को समझा

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और ये रही तीसरी दास्तान - दुनिया के सबसे बड़े और जाने माने वित्तीय सलाहकार मोहम्मद अल-एरियन को हजारों करोड़ डॉलर के निवेश संभालने और बेहद मुश्किल आर्थिक संकटों से पार पाने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। लेकिन एक बार उन्होंने अपनी बेटी से दांत ब्रश करने के लिए कहा और उनके सामने जिंदगी की सबसे बड़ी दुविधा खड़ी हो गई, जब ऑक्सब्रिज से पढ़े अर्थशास्त्री एरियन ने पिछले साल दिग्गज इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट कंपनी पिमको से सीईओ की नौकरी छोड़ी थी  तब चर्चा थी कि कंपनी के संस्थापक बिल ग्रॉस से रिश्ते खराब होने की वजह से ऐसा हुआ। लेकिन अल-एरियन ने असल वजह का खुलासा किया है कि आखिर उन्होंने कंपनी क्यों छोड़ी थी।

एरियन के अनुसार एक दिन उन्होंने अपनी 10 साल की बेटी को दांत ब्रश न करने पर टोका। ऐसे में बेटी ने अपनी ज़िंदगी के 22 ऐसे खास लम्हों की लिस्ट एरियन को थमा दी, जिनमें वह काम में व्यस्त होने की वजह से शिरकत नहीं कर पाए थे। वह न तो अपनी बच्ची के स्कूल में पहले दिन पर मौजूद रहे थे, न पहले फुटबॉल मैच में और न ही हैलोवीन परेड में।

एक वक्त उक्त कंपनी में सीईओ के तौर पर सालाना 100 मिलियन डॉलर यानी करीब 6 अरब 14 लाख रुपये कमाने वाले अल-एरियन बताते हैं कि इस घटना के बाद उन्हें महसूस हुआ कि काम  की वजह से उन्होंने अपनी बच्ची के साथ रिश्ते को सही ढंग से नहीं निभाया। वर्थ पत्रिका से मुलाकात में  में उन्होंने कहा, 'साल भर पहले मैंने अपनी बेटी से कई बार कहा कि दांत ब्रश करे, लेकिन वह इसे अनुसना कर दे रही थी। फिर मैंने उसे याद दिलाया कि कुछ दिन पहले तो तुम तुरंत मेरा कहा मान लिया करती थी।'

एरियन कहते हैं इसके बाद मेरी बेटी ने मुझसे 2 मिनट रुकने के लिए कहा। वह अपने कमरे में गई और कुछ देर बाद कागज का एक टुकड़ा लेकर आई। इसमें उसने अपने उन खास पलों, उन घटनाओं की लिस्ट बनाई थी, जिन्हें मैंने अपने काम की वजह से मिस कर दिया था।मुझे बहुत बुरा लगा। मेरे पास हर मिस इवेंट के लिए अच्छा बहाना था- ट्रैवल, जरूरी मीटिंग्स, जरूरी फोन कॉल या अचानक आया कोई काम। मगर मुझे अहसास हुआ कि कैसे मैं इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण बात को मिस कर रहा हूं।' एरियन ने बताया, 'कितनी भी कोशिश कर रहा था, काम और जिंदगी के बीच का संतुलन बिगड़ रहा था। इसका सीधा असर मेरी बेटी के साथ मेरे रिश्ते पर पड़ रहा था। मैं उसके लिए वक्त नहीं निकाल पा रहा था।

'

56 साल के इन्वेस्टमेंट गुरु एरियन ने बीते साल कंपनी के कैलिफोर्निया हेडक्वॉर्टर से नाता तोड़कर पार्ट टाइम जॉब्स पोर्टफोलियो अपना लिया था। वह जर्मन कंपनी आलियांस के चीफ अडवाइजर फंड्स काम भी देख रहे हैं।


लिहाज़ा ज़िंदगी आपको नसीहत के साथ-साथ  बहुत कुछ अच्छा करने के अवसर देती है। आप भी चाहें तो उसकी पुकार सुनकर सुधार की दिशा में बेहतर कदम उठा सकते हैं।

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प्राध्यापक, दिग्विजय कालेज,

राजनांदगांव, मो.9301054300

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रचनाकार: तलाश के साथ ज़िंदगी को तराशना ही है बंदगी
तलाश के साथ ज़िंदगी को तराशना ही है बंदगी
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