प्रमोद भार्गव भारत सरकार ने देश में 100 स्मार्ट शहर बसाने का फैसला ठीक उस समय लिया है,जब नेपाल समेत भारत भूकंप की त्रासदी झेल रहा है। शहरों...
प्रमोद भार्गव
भारत सरकार ने देश में 100 स्मार्ट शहर बसाने का फैसला ठीक उस समय लिया है,जब नेपाल समेत भारत भूकंप की त्रासदी झेल रहा है। शहरों का आधुनिकीकरण करना या महानगर के बगल में नया उपनगर बसाना अह्म हो सकता है,लेकिन इन 100 शहरों में ज्यादातर वे शहर हैं,जो भूकंप की उस बुनियाद पर खड़े हैं,जिसके नीचे 57 फीसदी हिस्से में कई थर्मोन्यूक्लियर हाइड्रोजन बमों के बराबर विनाशकारी ऊर्जा अंगड़ाई ले रही है। बावजूद हमारे यहां भूकंप-रोधी भवनों का निर्माण नहीं हो रहा है। यह लापरवाही सरकारी और निजी दोनों स्तरों पर है। ऐसे में सोचनीय पहलू यह है कि भूकंप से होने वाली त्रासदी में जो सबसे ज्यादा नुकसान होता है वह पक्के व बहुमंजिला भवनों के ढहने से ही होता है। ऐसी विडंबनापूर्ण हालत में स्मार्ट शहरों की नींव रखने से पहले भूकंप-रोधी मानकों का कड़ाई से पालन करने के साथ,धरती के डोलने के समय लोग एहतियत के लिए क्या कदम उठाएं,इस हेतु पर्याप्त जागरूकता लाने की भी जरूरत है।
केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने पहले आम बजट में 100 स्मार्ट सिटी बसाने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना भाजपा के दृष्टि-पत्र में भी शामिल थी। भाजपा ने अब अपने इस चुनावी वादे पर अमल करने का फैसला केंद्रीय मंत्री मंडल में ले लिया है। दरअसल 2008 में महानगरीय आबादी से संबंधित एक रिपोर्ट के मुताबिक 34 करोड़ लोग शहरों में निवास करते हैं। साथ ही यह अनुमान भी लगाया गया है कि 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 59 करोड़ हो जाएगा और 2050 में 81 करोड़ के शिखर को छू लेगा। ऐसे में किसी भी जागरूक और संवेदनशील सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वह शहरों को भविष्य की संभावनाओं के साथ आधुनिक व सुविधा संपन्न बनाए। इस नाते स्मार्ट सिटी मिशन और अटल शहरी रूपांतरण एवं पुनरूद्धार मिशन के तहत शहरों के कायाकल्प के लिए पांच वर्षों में एक लाख करोड़ रूपए खर्चने का जो निर्णय लिया है वह उचित है। क्योंकि इसमें अधोसंरचना,साफ-पानी,साफ-सफाई,कचरे का प्रबंधन,सुचारू यातायात और भीड़ को नियंत्रण करने जैसे बेहद अह्म मुद्दे शामिल हैं। स्मार्ट शहरों में कमजोर आय वार्ग के लोगों को सस्ती दरों पर छोटे घर दिए जाने का भी प्रावधान है। इस स्मार्ट परियोजना को मोदी के डिजीटल इंडिया मिशन का भी अह्म हिस्सा माना जा रहा है,क्योंकि ये शहर वाई-फाई जैसी आधुनिकतम संचार तकनीक से भी जोड़े जाएंगे। लेकिन इस पूरी परियोजना में भूकंप-रोधी निर्माण की अनिवार्यता का कहीं जिक्र नहीं है ? जबकि दिल्ली,मुबंई,कोलकाता,अहमदाबाद और पटना समेत 38 ऐसे महानगर हैं,जो भूकंप प्रभावित खतरनाक क्षेत्रों में आते हैं और स्मार्ट परियोजना में शामिल हैं। जाहिर है,नेपाल की तबाही से रूबरू होने के बावजूद भूकंप जैसी भयावह प्राकृतिक आपदा से बचने के उपाय इस परियोजना में शामिल नहीं किया जाना हमारी अदूरदर्शिता दर्शाता है ?
यहां गौरतलब है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगाति के बावजूद भूकंप की भविष्यवाणी दो मिनट पहले भी करना संभव नहीं हुई है। भूकंप से संबंधित विश्वव्यापी शोध भूगर्भीय खुलासे और धरती की आंतरिक हलचलों का बयान करने में सक्षम हो गए हैं। भूकंपीय तरंगों से प्रभावित क्षेत्र भी वैज्ञानिकों ने चिन्हित कर दिए हैं। लेकिन ये किस क्षेत्र,किस समय और किस तीव्रता से धरती पर विभीषिका रचेंगे,इसका पूर्व खुलासा संभव नहीं हुआ है। लिहाजा जरूरी है कि भारत पहले जापान की तर्ज पर भूकंप से निरपेक्ष रहने वाली तकनीक हासिल करे और फिर इस योजना को आगे बढ़ाए ?
हमारे यहां सबसे आधुनिक व स्मार्ट निर्माण दिल्ली मेट्रो को माना जाता है। इस रेल में 23 लाख यात्री रोजाना सफर करते हैं। बावजूद विश्वस्तरीय भवन निर्माण और पथ संचालन के मानकों से जुड़ी यह रेल सरंचना 7.5 तीव्रता वाले भूकंप का सामना करने में अक्षम है। संयुक्त राष्ट्र की आपदा के खतरे कम करने संबंधी ग्लोबल एसेसमेंट रिपेर्ट के मुताबिक भी दिल्ली मेट्रो भूकंप व बाढ़ के हिसाब से सुरक्षित नहीं है। मेट्रो में इंसानी त्रासदी इसलिए भी ज्यादा हो सकती है,क्योंकि यह एक साथ सुरंग,उपरिमागी व सतही पथों से गुजरती है। गोया,जब दिल्ली मेट्रो का निर्माण भूकंप की कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है तो यह उम्मीद कैसे की जाए कि पहले से ही बड़ी आबादी का संकट झेल रहे शहरों का विस्तार भूकंप-रोधी अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से संपन्न होगा ?
दरअसल जापान ने अपने देश में भूकंप रोधी भवन निर्माण और जीवन शैली विकसित करके यह साबित कर दिया है कि भूकंप आने के बावजूद त्रासदी को कम भी किया जा सकता है और बचा भी जा सकता है। जापान दुनिया में ऐसा देश है,जहां आए दिन भूकंप आते हैं और लोग बिना जन व धन हानि के बच जाते हैं। बतौर उदाहरण नेपाल में रिक्टर पैमाने के हिसाब 7.9 तीव्रता का भूकंप आया और 6000 से भी ज्यादा लोग मारे गए। जबकि 2011 में फुकुशिमा में 8.5 तीव्रता का भूकंप आया,किंतु महज एक सैकड़ा लोग मारे गए थे। हम बखूबी जानते हैं कि भारत और नेपाल एक जैसी मानसिक धरातल के देश हैं। इसलिए किसी भी कुदरती आपदा की त्रासदी,दोनों देशों में कमोबेश एक जैसी होती है। क्योंकि हमने भी भूकंप रोधी भवन निर्माण और नगर विकास योजनाएं विकसित नहीं की हैं और नेपाल भी तथाकथित आधुनिक विकास की इसी बद्हाली से रूबरू है। नतीजतन भूकंप के आने पर सबसे ज्यादा जन व धन हानि भवनों के ढहने से हुई है। गोया,नेपाल जैसे संकट से हम लातूर,कच्छ जबलपुर और चमोली में हो चुके हैं। बावजूद कोई सबक लेने की बजाय कथित शहरी विकास का पहलू जस का तस बना हुआ है।
भारतीय उपमहाद्वीप का आधा हिस्सा भूकंप की दृष्टि से संवेदनशीन माना जाता है और यही वह क्षेत्र है,जहां धनी और बेतरतीब आबादी निवासरत है। लिहाजा भवन निर्माण की भूकंप रोधी तकनीकी जरूरतें पूरे होने के साथ-साथ,भूकंप के सिलसिले में व्यापक जन-जगरूकता लाने की भी जरूरत है। क्योंकि हमारे यहां भूकंप के कंपन की आहट महसूस करने के बावजूद हम में से ज्यादातर लोग घरों में से बाहर नहीं निकलते हैं। यह मानसिकता यदि बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले लोगों की भी बनी रहती है,तो यह अनुमान लगाना मुश्किल होगा कि जनहानि कितनी विकट होगी ? गोया,देश में स्मार्ट शहर तो विकसित हों,लेकिन शहरी विकास-नियोजन में भूकंप-रोधी उपेक्षित सावधानियां बरती जाएं तो बेहतर होगा। इससे भी अच्छा होगा,सरकार ऐसी नीतियों को अमल में लाए,जिससे गांव और छोटे कस्बों में रहने वाले लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार,आवास,शिक्षा,चिकित्सा सुविधा,बिजली,संचार और परिवहन सुविधाएं हासिल हों। ऐसा होगा तो गांवों से पालयन नहीं होगा और शहर आबादी के अतिरिक्त बोझ से बचे रहेंगे। नतीजतन 100 स्मार्ट शहरों की जरूरत ही नहीं रह जाएगी ?
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
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(ऊपर का चित्र - इशा भगवानजी बाविसकर की कलाकृति - विश, कैनवस पर मिश्रित मीडिया)
बड़ा ही सारगर्भित लेख है भार्गव जी। मैं आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूँ। जब तक हम अनियोजित और अंधाधुंध शहरीकरण और अधोमानक निर्माण पर रोक नहीं लगाते तब तक भूकंप से होने वाली त्रासदी को कम नहीं किया जा सकता। इलाज से परहेज हमेशा बेहतर होता है। आपदा प्रबन्धन के अलावा भूकम्प की भविष्यवाणी से संबंधित तकनीक पर विश्व के जिन देशों ने अग्रणी खोज की है उनके साथ कोलैबोरेट करके हमें इस दिशा में भी कुछ काम करना चाहिये।
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