बा बा साहब भारतीय संस्कृति के आलोक पुरुष व पोषक थे। उनका नाम मन में आते ही सहसा एक सौम्य छवि नेत्रों के सामने आ जाती है। एक महान व्यक्तित्व...
बाबा साहब भारतीय संस्कृति के आलोक पुरुष व पोषक थे। उनका नाम मन में आते ही सहसा एक सौम्य छवि नेत्रों के सामने आ जाती है। एक महान व्यक्तित्व जो बौध्दिक और सांस्कृतिक भ्रम की शिकार मानवता को सन्मार्ग की ओर ले जाकर गतिशीलता प्रदान करते हैं। शोषितों और पीड़ितों की दर्द भरी मूक भाषा को अमर स्वर प्रदान करने वाले, राष्ट्रीय एकता व साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये जन-जन में अलख जगाने वाले, समाजवाद के कट्टर समर्थक, अहिंसा की प्रतिमूर्ति, बंधुत्व के प्रतिमान, भारत के संविधान के पावन शिल्पी बाबा साहब जैसे महामानव धरती पर जन्म लेने वाले सूरज की तरह हैं।
बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जीवन संघर्ष का प्रतीक है। वे उच्च कोटि के नेता थे। जिन्होंने अपना सारा जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में समर्पित कर दिया। भारत के 80 फीसदी दलित जो सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. अम्बेडकर का जीवन संकल्प था। डॉ.अम्बेडकर का लक्ष्य था- सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना। बाबा साहब एक मनीषी, योद्धा, नायक, विद्वान, दार्शनिक,वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धीर-गम्भीर प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी अद्वितीय प्रतिभा चमत्कृत कर देने वाली और अनुकरणीय है।
बाबा साहब डा.अम्बेडकर ने सयाजीराव गायकवाड से कहा था- महाराज! मैं अध्ययन कर पता लगाऊंगा कि, जिस समाज में मेरा जन्म हुआ हैं, उस की ऐसी दुर्दशा क्यों हैं, और उसकी दुर्दशा के कारणों का पता लगाकर उन्हें दूर करने की कोशिश करूँगा। बचपन से लेकर,जब मैंने यह समझना शुरू किया कि जीवन का अर्थ क्या हैं, मैंने अपने जीवन में हमेशा एक ही सिद्धांत का पालन किया हैं और वह सिद्धांत हैं - अपने समाज के लोगों की सेवा करना। मैं जहाँ कही भी और जिस हैसियत में भी रहा हूँ मैं हमेशा अपने भाइयों की बेहतरी के लिए विचार और कर्म करता रहता हूँ। मैंने इतना अधिक ध्यान किसी और समस्या पर नहीं दिया हैं। समाज के लोगों के हितों की रक्षा करना ही मेरे जीवन का मकसद रहा हैं और भविष्य में भी वह जरी रहेगा। मोटी रकम वाले आकर्षक वेतन के साथ मुझे अनेक लुभावने पदों के प्रस्ताव दिये गये परन्तु मैंने उन सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया क्योंकि मेरे जीवन का एक ही उदेश्य है और वह उदेश्य हैं अपने समाज के लोगों की सेवा करना।
आगे बाबा साहब ने कहा था - मैं अपने विद्यार्थियों से एक पूछना चाहता हूँ आप लोग डिग्री लेकर नौकरी पाने के बाद अपने समाज के लिए क्या करेंगे? आप लोगों को अपने घर-संसार में ही मग्न न होकर, अपने समाज की सेवा की ओर भी ध्यान देना चाहिए। अपने समाज के लिए अपने वेतन से यथाशक्ति अधिकाधिक धन देना चाहिए। नवयुवकों तथा विद्यार्थियों से मेरा अनुरोध हैं कि वे अपने समुदाय की सेवा का भाव अपने मन में जगायें, समुदाय की बेहतरी डा भावी भार उन्हीं के कन्धों पर होगा और वे किसी भी जगह और किसी भी हैसियत में क्यों न रहें, उन्हें इस बात को किसी भी हालत में हरगिज नहीं भूलना चाहिए।
हमारे देश को आजादी मिल गई यह तभी मानना चाहिए जब ग्रामीण लोग, जाति और अन्धविश्वास से छुटकारा पा लेंगे। मैं व्यक्तिगत तौर पर किसी से प्रेम नहीं करता, प्रेम केवल उनके कार्य से ही करता हूँ. जो निस्वार्थ भाव से कार्य करता है वही मुझे अच्छा लगता है। अच्छे काम करने के लिए कठिन परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। हर तरक्की की कीमत अदा करनी पड़ती है और जो लोग इसके लिए त्याग करते है, उन्हें तरक्की के लाभ मिलते है। डॉ.अम्बेडकर ने कहा - युवाओं को मेरा पैगाम है कि एक तो वे शिक्षा और बुद्धि में किसी सी कम न रहें। दूसरे,ऐशो-आराम में न पड़कर समाज का नेतृत्व करें। तीसरे, समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी संभालें तथा समाज को जागृत और संगठित कर उसकी सच्ची सेवा करें। एक आत्म-सम्मानी व्यक्ति, तर्क की कसौटी पर यह निश्चित करता है कि अमुक बात अच्छी है या बुरी। तर्क बुद्धि ही उसे सच खोजने में सहायता करती है।
शिक्षा के सम्बन्ध में उनके विचार नई दिशा व प्रेरणा देते हैं - जैसे शिक्षा शेरनी के दूध के समान है, जिसे पीकर हर व्यक्ति दहाड़ने लगता हैं। शिक्षा एक ऐसा माध्यम हैं जिसे प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचानी चाहिए। शिक्षा सस्ती से सस्ती हो जिससे निर्धन व्यक्ति भी शिक्षा प्राप्त कर सके। शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। शिक्षा के मार्ग सभी के लिए खुले होने चाहिए। किसी समाज की प्रगति उस समाज के बुद्धिमान, कर्मठ और उत्साही युवाओं पर निर्भर करती है। मैंने जिस प्रकार से शिक्षा प्राप्त की, आप भी प्राप्त कीजिए। केवल परीक्षा पास करने तथा पद प्राप्त करने से शिक्षा का क्या उपयोग? आपको यह याद रखना चाहिए कि कोई समाज जागृत, सुशिक्षित और स्वाभिमानी होगा तभी उसका विकास होगा। अपने गरीब और अज्ञानी भाईयों की सेवा करना प्रत्येक शिक्षित नागरिक का प्रथम कर्तव्य है। बड़े अधिकार के पद पाते ही शिक्षित भाई अपने अशिक्षित भाईयों को भूल जाते हैं। यदि उन्होंने अपने असंख्य भाईयों की ओर ध्यान नहीं दिया तो समाज का पतन निश्चित हैं। अपने बच्चों को विद्यालय जरुर भेजें। उन्हें शिक्षित बनाओ. शिक्षा के बिना समाज को सुधारने का और कोई चारा नहीं।
बाबा साहब का मानना था कि यदि समाज को एक वृक्ष मान लिया जाये तो अर्थनीति उसकी जड़ है, राजनीति आधार, विज्ञान आदि उसके फूल हैं। इसलिए नये समाज की अर्थनीति या राजनीति पर दृष्टिपात करने से पूर्व उसकी संस्कृति की ओर सबसे अधिक ध्यान देना होगा, क्योंकि मूल और तने की सार्थकता तो उसके फूल में है। इसी श्रृंखला में उन्होंने बहिष्कृत हितकारी सभा का गठन कर तेरह शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने समाज की नींव नारी को पुरुष के समान सशक्त बनाने का बीड़ा भी उठाया। नागपुर के दलित महिला सम्मेलन में बोलते हुए बाबा साहब ने कहा था कि वे किसी भी वर्ग की उन्नति का अनुमान इस बात से लगा लेते हैं कि उस वर्ग की महिलाओं ने कितनी उन्नति की है।
डा.अम्बेडकर ने अहिंसा के माध्यम से हिंसा का दमन किया। वे अपनी व्यापक अहिंसा की दृष्टि से ही लोकतंत्र व समाजवाद के समर्थक थे। उन्होंने पूंजीवाद और जमींदारी प्रथा का विरोध अपनी अहिंसक नीति के अनुसार ही किया। पूंजीपतियों और जमींदारों द्वारा मजदूरों और किसानों के शोषण को वे हिंसा का पर्याय मानते थे। मानव कल्याण के विरुध्द किये गये प्रत्येक कार्य को वे हिंसा की श्रेणी में रखते थे। उन्होंने नवभारत के निर्माण के लिये सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि प्रत्येक क्षेत्र का गहन अध्ययन किया और पूर्व तथा पश्चिम के श्रेष्ठ तत्वों को समन्वित करके संविधान के रूप में जीवन शैली तैयार की। उन्होंने मानव जीवन को अमूल्यनिधि इस मंत्र के रूप में प्रदान की - शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो। हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कर उन्होंने सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोने का सफल प्रयास किया।
आज हर क्षेत्र में नई चेतना के साथ-साथ परिवर्तन की लहर भी दिखाई दे रही है, लेकिन आज बाबा साहब के विचारों और संदेशों को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। अब समय आ गया है असत्य से लड़ने, विद्रूप हिंसा की बाढ़ रोकने तथा मानवता विरोधी शक्तियों का डटकर मुकाबला करने का और कहना न होगा कि बाबा साहब की सीख हमें सफलता का सीधा रास्ता बता सकती है।
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
लेखक शासकीय दिग्विजय पीजी ऑटोनॉमस
कालेज, राजनांदगांव के राष्ट्रपति सम्मानित
प्रोफेसर हैं। संपर्क- 9301054300
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