मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊंगा.... लोकमित्र गौतम शब्दलोक प्रकाशन आफिस नं . 412, जी-55, रॉयल पैलेस, नियर वालिया नर्सिंग होम मेन विक...
मैं अपने साथ बहुत कुछ
लेकर जाऊंगा....
लोकमित्र गौतम
शब्दलोक प्रकाशन
आफिस नं. 412, जी-55, रॉयल पैलेस, नियर वालिया नर्सिंग होम
मेन विकास मार्ग, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-110092
फोन : 011-22025912, मोबाइल : 09350222313
lokmitra4irc@gmail.com
------------.
समर्पित
मेरे प्रिय बच्चों
गुड्डन और साशा
को
------------.
अनुक्रम
भूमिका
1. जब प्यार किसी से होता है
2. मैं क्यों लिखता हूं प्रेम कवितायें ?
3. ...जब याद तुम्हारी आती है
4. कविताओं से किया मैंने गुरिल्ला इश्क
5. बगावत की कोई उम्र नहीं होती
6. आखिरी अफसाना
7. मेरे सपनों अब तुम विदा लो
8. मैं लिखूंगा
9. व्यस्तता
10. मैं नया कुछ नहीं कह रहा
11. शिकायतों का महाभारत
12. प्रेमपत्र
13. लाओ, मेरे धन्यवाद वापस दो
14. मैं भी तुम्हारी जमात का हूं
15. संयोग से नहीं मिली तुम
16. तुम्हारी दूरबीन
17. चिट्ठी
18. बेचैन सफर
19. जब मैं तुम होकर सोचता हूं
20. तुम्हारे बिना एक दिन
21. प्यार और इंतजार से चलती है दुनिया
22. तुम उदास मत होना
23. कोरा कागज
24. तुम्हारी छुअन
25. मैं दिहाड़ी में ढोल बजाता हूं, नगाड़ा नहीं
26. विरासत
27. काश तुम देखते...
28. साझी पहचान
29. मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊंगा....
----------.
आमुख
प्रेम का प्रजातंत्र
'प्रेम' शब्द आज भी हमारे समाज में बड़ी ही रूढ़ि के साथ लिया जाता है। 'प्रेम' आज भी हमारे समाज में अच्छा या पवित्र शब्द नहीं माना जाता। ऐसे समाज में प्रेम कविताएं लिखना, हमेशा संकट से घिरा होना ही होगा। वैसे तो यह साहित्य का काम है कि वह रूढ़ि, बौद्धिक पिछड़ेपन को तोड़े और उसे नई गरिमा और परिभाषाएं प्रदान करे। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक साहित्य में भी 'प्रेम' परंपरागत सोच और परिभाषाओं तक ही सीमित है। अपवाद जरूर हो सकते हैं; लेकिन अभी तक प्रेम को दो लोगों के दरमियान ही बरतने वाला व्यापार मानकर कर लिखा और समझा जाता है।
प्रेम इसी दुनिया का एक अंग है और प्रेम की संपूर्ण दुनिया इस दुनिया का एक भाग है। ऐेसे में यह सहज पूछा जा सकता है कि फिर गौतम की इन प्रेम कविताओं में नया क्या है? प्रेम पर कविताएं तो पहले भी लिखी गई हैं, और लिखी जाती रहेंगी। दरअसल गौतम की कविताओं को परंपरागत प्रेम के अर्थ में और संदर्भ में पूरा नहीं समझा जा सकता है। आपको इन कविताओं को समझने के लिए सोच की दहलीज (परंपरागत) को लांघकर बाहर आना ही पड़ेगा। इन कविताओं में प्रेम सिर्फ भावुक नहीं है, दो लोगों के दरमियान चलने वाला व्यवहार भी नहीं है न ही 'देह' के स्तर पर या लिंग आकर्षित कोई सहज उद्दीपन है। यहां चालू दुनिया के मुहावरों के साथ प्रेम की अपनी दुनिया नहीं है। गौतम की कविताओं में दुनिया अपना स्थान बनाती है, यहां प्रेम ही प्रमुख घटना है और दुनिया एक परिघटना है। प्रेम एक बड़ी वास्तविकता हैं और उसके अंदर दुनिया की रोजमर्रा की छोटी-छोटी वास्तविकताएं है। उनमें फिर उलझना है, संघर्ष करना है, ऊपर उठना है। प्रेम ही कारक भी है, कार्य भी, प्रेरक भी है और प्रेरणादायक भी। प्रेम से बाहर कुछ भी नहीं है। प्रेम में आप वोल्शेविक सैनिक भी हो सकते हैं और युधिष्ठिर जैसे धर्मावतार भी। प्रेम में यह रोजमर्रा का संघर्ष तोड़ता नहीं बल्कि एक गहरी जिजीविषा का वितान रचता है। जिजीविषा के बारे में गौतम कहते हें कि मैं तिनके तिनके जोड़कर बना हूं। मुझमें इस धरती का सब कुछ थोड़ा थोड़ा है। गौतम के यहां प्रेम कई आयामों वाला प्रेम है। यहां इतिहास की हदें नहीं है, भविष्य की सीमा नहीं है। उनके यहां प्रेम है, इसलिए कविता है। कविता है तो उससे उनका संबंध गुरिल्ला युद्ध सा है। दोनों परस्पर चौंकाते, रीझते और रिझाते रहते हैं। इसी से कविता और प्रेम ने उन्हें अराजक बना दिया इतना अराजक, जहां तमाम सीखें और दुनियादारी बेमानी हो गई है। यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि गौतम प्रेम से मांगते क्या हैं? गौतम प्रेम से पारंपरिक अर्थों के विपरीत जिंदगी में जिंदगी को जीने का नशा बचा रहे, मांगते हैं, खुद पर बना रहे भरोसा, सपने देखूं और उम्मीदें पालूं, मांगते हैं। गौतम के यहां प्रेम में जीवन की छोटी-छोटी चीजों को जीने की ख्वाहिश है। प्रेयसी की गर्दन के नमकीन एहसास के सामने बड़ी-बड़ी संसदीय बहसें बेकार हैं, फीकी हैं। ऐसा नहीं है कि गौतम की कविताओं में और प्रेम के दायरे में समाज, राजनीति, संसार, नहीं है बल्कि भूमंडलीकरण है, यहूदी हैं, तो उनका गैसचैंबर भी है, झूठे नोबल पुरस्कार भी हैं, तो अमरीकी राष्ट्रपति भी इस दुनिया का अंग है। जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी चीजें और बातों पर उनका ध्यान इसलिए है क्योंकि संसार में, राजनीति में जो कुछ हो रहा है, वह सब बहुत ऊबड़-खाबड़़, झूठा, फूहड़ और पाखंडपूर्ण है। लगभग हर कविता अपने व्यापक अर्थों में इन्हीं विडंबनाओं, क्षुद्रताओं की तरफ भरपूर इशारा ही नहीं करती बल्कि अपने कथ्य में बेहद मुखर है। उनके अनुसार ऐसे प्रेम की पराकाष्ठा क्या हो सकती है? कवि के प्रेम की पराकाष्ठा यह है कि वह प्रेम से किसी सत्य के अन्वेषण या जानने की इच्छा नहीं रखते।
गौतम के अनुसार सत्य साधारण है क्योंकि वह कल्पना पर विराम लगा देता है। यही सत्य की सीमा भी है और उसकी साधारणता भी है। इसलिए गौतम सत्य के नहीं कल्पनाशील होने, बने रहने के आकांक्षी हैं। जोकि एक कवि के लिए सहज भी है और जरूरी भी है। गौतम मूलतः और अंततः एक कवि की तरह व्यवहार करते हैं। अब कवि 'कल्पना' ही मांगेगा, दार्शनिक की तरह 'सत्य' नहीं। कवि का सत्य दार्शनिक का सत्य होता भी नहीं, वैसे भी बिना कल्पनाशीलता के कवि, किसी काम का नहीं होता। इन कविताओं में एक बात और स्पष्ट होती है कि प्रेम और जिंदगी दो शब्द नहीं हैं बल्कि एक ही है। इसलिए गौतम की कविताओं में प्रेम ''लार्जर दैन लाइफ'' नहीं है। बल्कि जीवन का ही पर्याय है। प्रेम कविताओं में दूसरा पक्ष भी महत्वपूर्ण होता है। इन कविताओं में प्रेयसी सिर्फ स्त्री ही नहीं है बल्कि वह और कई भूमिकाएं निभाती नजर आती है। मगर यह तथ्य थोड़ा चुभता सा है कि इन कविताओं में जहां कहीं प्रेयसी मौजूद है तो कवि को उससे शिकायत ही है कि वह वैसा प्रेम या उस स्तर का प्रेम नहीं करती जिस स्तर का कवि करता है। प्रेयसी से संवाद शिकायती लहजे का ही है। जैसे लाओ मेरे धन्यवाद मुझे लौटा दो या शायद तुम्हें मालूम नहीं की मैं धीरे-धीरे रेत बनता जा रहा हूं...। प्रेम कविताएं हैं तो भावुकता भी होगी और होनी भी चाहिए। लेकिन कवि ने कोरी भावुकता पर नियंत्रण रखा है। भावुकता की नमी उतनी ही है जितने से प्रेम उग सके। भावुकता को कवि अपने विभिन्न विषयों के ज्ञान से संभालता है। यही कारण है कि इन प्रेम कविताओं में विषय की विविधता है। विभिन्न विषयों, संदर्भों, परिस्थितियों के तहत प्रेम को परिभाषित किया गया है। इसलिए इन कविताओं में राजनीति, इतिहास, संस्कृति, विज्ञान के संदर्भ सहजता से आते रहते हैं।
यह प्रेम और ऐसा प्रेम कवि को इतना कुछ देता है कि कवि बहुत ही आत्मविश्वास से सामान्य मान्यता के विपरीत घोषणा करता है कि मैं इस दुनिया से खाली हाथ नहीं जाऊंगा, मैं अपने साथ बहुत कुछ ले जाऊंगा वो हिम्मतें, जो मेरे सिवा सब के लिए हास्यास्पद थीं, वो तरकीबें, जो खालिस मेरी अपनी थीं, जिन्हें कोई प्रबंधन संस्थान नहीं सिखाता, जिंदगी का ऊबड़-खाबड़ ही सिखाता है, तुम सचमुच मेरे जाने का शोक मनाना, क्योंकि मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा, एक मुकम्मिल दुनिया यह कविता इस संग्रह की उल्लेखनीय कविताओं में से एक है।
गौतम के पास गांव का मन भी है और संस्कार भी। साथ ही शहरों की वास्तविकताएं और औपचारिकताएं से भी वह वाकिफ हैं। इसलिए प्रेम कनेर का फूल तो हो जाता है। लेकिन शहरों की तरह पिंजरे का कैद पंछी होने से इंकार करता है। गौतम के पास बहुत से अनुभव भी हैं और अनुभूतियां भी हैं। समझ भी है और संवेदना भी। जो उनकी कविताओं में परिलक्षित होता है। गौतम की कविताओं की लम्बाई पर कई लोगों का ऐतराज हो सकता है। लेकिन होना नहीं चाहिए, क्योंकि लम्बी या छोटी कविता किसी भी या किसी भी प्रकार के साहित्य का मापदंड नहीं हैं। गौतम की कविताओं में अक्सर एक कथा भी होती है। यह उनकी काव्यदृष्टि के साथ कथाकार दृष्टि का परिणाम है। दूसरी बात यह कि आपके पास जब कहने को अधिक होगा तभी आप कहेंगे और यह अधिक कई दृष्टियों पर निर्भर करता है।
गौतम की काव्यदृष्टि की बात करें तो यह कविता महज निजी आवेग या भोगा हुआ यथार्थ नहीं है। बल्कि अपनी जिजीविषा में जिंदगी के छोटे छोटे ब्यौरों से उलझती है, मुठभेड़ करती है सिर्फ अपने लिए नहीं, अपनी दुनिया के लिए भी नहीं बल्कि जो कुछ भी मानवीय है उसको बचाए रखने के लिए। इसलिए यह जिजीविषा रोजमर्रा की उन छोटी-छोटी चीजों से, बातों से भी शक्ति पाती है जिनका उल्लेख गौतम अपनी कविताओं में करते हैं। जो शायद कथित बड़े आलोचकों और लेखकों के लिए नगण्य या गैर साहित्यिक हो मगर गौतम की कविताएं और व्यक्तित्व इन छोटी-छोटी चीजों से निरंतर प्रेरणा पाता है, उर्जा लेता रहता है। कविता भाषा में अपने को पहचानना ही है। इस पूर्ण यांत्रिक और व्यक्तित्वहीन समय में अपनी परिस्थितियों और आत्मस्थितियों को सही सही पूरा अभिव्यक्त कर पाना किसी कवि के लिए आसान नहीं है।
क्या गौतम की काव्यदृष्टि कुछ नया देख पाती है, और हमें कुछ नया दिखा जाती है? निश्चित ही गौतम की काव्यदृष्टि प्रेम के संदर्भ में बहुत कुछ नया देख जाती है और हमें भी दिखाती है, बशर्ते हम देखना चाहें? गौतम की लंबी कविताओं में कई बार काव्यदृष्टि ब्योरों के दबाव में कथादृष्टि बन गई है। कुछ लोगों की कविताओं से यह शिकायत हो सकती है कि ये छंदयुक्त नहीं हैं। मगर यह समझना चाहिए कि कविता कब का विकास करके छंद से लय के सोपान तक आ चुकी है। महत्वपूर्ण यह देखना और समझना है कि क्या लंबी कविताओं में लय टूटती है? जहां लय टूटती है वहीं कवि विफल माना जाएगा जैसे कहानी में जहां कथा का रस सूख जाए या छूट जाए, वहां गद्य विफल है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या पाठक इस लय को रस को समझता है? जैसे अन्य कलाओं में दर्शक या श्रोता का एक स्तर होना अनिवार्य शर्त होती है, वही साहित्य में क्यों नहीं होना चाहिए?
गौतम की लंबी कविताओं में कुछ स्थानों में ऐसा लगता है कि सपाट बयानी हो गई है। यह भाषा के 'अभिज्ञा' के गुण पर ही ज्यादा निर्भर हो गई है। लेकिन इसके बावजूद गौतम की यह सफलता भी है कि भाषा के स्तर पर वह सहज हैं, सम्प्रेषणीय हैं। लेकिन उपमाओं के स्तर पर वह निराले हैं। उपमा देने में उनके अनुभव और ज्ञान की सम्पन्नता दिखती है। तभी उनकी कविताओं में कनेर के फूल, पश्चिमी विक्षोभ, रासायनिक समीकरण, गुरुत्वाकर्षण जैसी उपमांए बड़ी सहजता से आती रहती हैं। ये कविताएं पढ़ते हुए जिस एक कवि की बहुत याद आती है, वह हैं 'पाश'। महत्वपूर्ण है कि पाश याद आते हैं, मुक्तिबोध नहीं। गौतम, पाश की परंपरा का अनुकरण करते हुए से प्रतीत होते हैं। कहीं कहीं उनका अंदाजे बयां भी मिलता हुआ है। पाश की पंक्ति है मैं आदमी हूं, बहुत छोटा-छोटा जोड़कर बना हूं तो गौतम भी कहते हैं कि मैं तिनका-तिनका जोड़कर बना हूं, मुझमें इस धरती का सबकुछ थोड़ा-थोड़ा है।
इस संकलन की कविताओं में भरपूर समाज है, दुनिया है, दुनिया की समस्याओं व संकटों का इन कविताओं में भरपूर स्वर भी है और गूंज भी। लेकिन यह तथ्य लगातार खटकता रहता है कि आंतरिक संकट की आहटें और द्वंद्व लगभग नदारद है। स्वयं पर शक, अपने 'आत्म' को संकट में देखने का भाव नहीं है। अब संकट को सिर्फ बाहर देखना और खोजना 'दृष्टि' की अपूर्णता ही माना जाएगा। ऐसा लगता है कि जीवनानुभव की जटिलताओं को महज भावना और श्रद्धा से सरल कर देने की इच्छा है। परिस्थितिजन्य नायकत्व है। विचार की गहराई, मंथन के सागर से पैदा होने वाली 'इनसाइट' की समझ कम है?
लेकिन गौतम के लेखन कर्म में जो बात सबसे अधिक आकर्षित करती है वह है उनकी आत्माभिव्यक्ति की अकुलाहट। एक ऐसे देश में, समाज में, जहां जिंदा रहने का संघर्ष और सतत् प्रयास ही चरम वास्तविकता हो और जिस समाज की वैचारिक और सृजनात्मक गतिशीलता ही कुंठित हो, वहां 'आत्माभिव्यक्ति' का प्रश्न किसी के लिए इतना महत्वपूर्ण हो जाए कि वह साहित्यिक और गैर साहित्यिक सारे खतरे उठाने को तैयार हो जाए, यह बहुत ही महत्वपूर्ण लगता है। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि गौतम कोई पेशेवर लेखक नहीं हैं। वैसे पेशेवर लेखकों के सामने आत्माभिव्यक्ति का सवाल नहीं होता। वह अधिक से अधिक अभिव्यक्ति के स्तर तक ही पहुंच पाते हैं।
इस संकलन की कविताओं से यह तो स्पष्ट ही है कि गौतम 'नई संभावनाओं' के कवि हैं। कविता की नई जमीन गढ़ने की क्षमता उनमें है। सवाल यही है कि अपनी सृजनात्मक सामर्थ्य और संभावना को कितना बचा और बढ़ा पाते हैं; क्योंकि आज के दौर में 'सृजन' के पक्ष में एक भी तर्क और जरूरत नहीं है। लेकिन उम्मीद कवि की वही पंक्तियां जगाती हैं, जहां वह कामनसेंस के दायरे में सीखी गई सारी दुनियादारी और दी गई सीखों को खारिज कर देते हैं। धूमिल के शब्दों में कहें तो कविता भाषा में आदमी होने की तमीज है और यह तमीज गौतम के पास निःसंदेह है।
गोविंद मिश्र
(कवि एवं पत्रकार)
1
जब प्यार किसी से होता है
मुझे नहीं पता जब दुनिया
गुरुत्वाकर्षण के बारे में नहीं जानती थी
तब पेड़ से गिरते हुए सेब को
और जमीन से उठते हुए कदमों को
कैसे समझती थी ?
मुझे नहीं पता जब दुनिया में
क्लासिनोव राइफलें नहीं थीं
तब बन्दूक से होने वाली मौतों का
सालाना औसत क्या था ?
या कि मरने और तड़पने के बीच की
न्यूनतम समयावधि क्या थी ?
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बिगबैंग सिद्धांत के मुताबिक
जब दहकते हुए गोले से धरती बनी
क्या तब पदार्थ को द्रव्यमान वैसे ही मिला
जैसे हेड्रान कोलाइडर ने साबित किया है
या यह सिर्फ एक अनुमान भर है ?
मुझे नहीं पता
मगर मुझे ये पता है कि क्या होता है
जब प्यार किसी से होता है।
जब प्यार किसी से होता है
तब हम मनुष्यता के सबसे ऊंचे टीले में
पहुंच गए से लगते हैं
आंखों में दूर-दूर तक दिखने लगता है
बातों में बच्चों की सी मासूमियत झरने लगती है
कदमों में लय आ जाती है
..और जिन्दगी का बीहड़ समतल नजर आने लगता है
जब प्यार किसी से होता है
तो लगने लगता है हम बंदरों की नहीं
शायद पक्षियों की प्रजाति से हैं
और यह सोचते हुए तमाम बार
बांहें खुद ब खुद पसर जाती हैं उड़ने के लिए
जब प्यार किसी से होता है
तो हमारे अन्दर सांस लेने लगते हैं
धर्मराज युधिष्ठिर
और फैसले करने लगते हैं किंग सोलोमन
हमारे अन्दर जिरह करने लगता है
एक किशोर अभिमन्यु
और बताने लगता है
कि कैसे चक्रव्यूह का सातवां द्वार तो वह
अपनी विरासत की ताकत से ही तोड़ देगा
जब प्यार किसी से होता है
तो हमारे अंदर आ बैठता है एक कर्ण
जो कृष्ण से लेकर कुंती तक
इंद्र से लेकर दुर्योधन तक
किसी को निराश नहीं करता
किसी को बेनकाब नहीं करता
सबको देता है, सब कुछ दे देता है
दे देता है कवच कुंडल भी
जैसे जीवन का बोझ हों
जब प्यार किसी से होता है
तो अन्दर और बाहर निरंतर
छिड़ा होता है एक महाभारत
जब प्यार किसी से होता है
तो चिलचिलाती धूप
भली भली सी धीमी आंच लगने लगती है
नख से शिख तक इतनी ऊर्जा बहने लगती है
कि चाहें तो अंधेरा भगाने के लिए
जला सकते हैं रौशनी का एक बल्ब
जब प्यार किसी से होता है...
तो समुद्र पिता हो जाते हैं
और नदी, कभी मां लगती है, कभी प्रेमिका
कभी लोरियां सुनाती है, कभी चुनौती देती है
लो पकड़ो मुझे
जब प्यार किसी से होता है...
तब धरती के सारे कोण बदल जाते हैं
सारे रंग इन्द्रधनुषी हो जाते हैं
मन वोल्शेविक सैनिक हो जाता है
खूबसूरत कल पर फिदा फिदा...
जब प्यार किसी से होता है
तो आंखें बोलने लगती हैं
और जुबान बेरोजगार हो जाती है
जब प्यार किसी से होता है
तभी समझ में आता है
क्यों ...अजल से मुहब्बत की दुश्मन है दुनिया ?
तभी समझ में आता है
कि दुनिया की तमाम प्रेमकथाएं दुखांतिकाएं क्यों हैं ?
तभी समझ में आता है
कि प्रेम दरअसल वह पराकाष्ठा है
जहां उसके कुछ न होने में ही होने की पूर्णता है
क्योंकि कुछ होना, कभी भी पूरा होना नहीं होता है
प्रेम आकार को निराकार तक फैला देता है
व्यतीत को कालातीत कर देता है
प्रेम प्रयोगशालाओं में हासिल नहीं होता
प्रेम में दोहराव की समरूपता नहीं है
किसी का प्रेम किसी रंग में सिरजता है
तो किसी का किसी और रूप में निखरता है
जब प्यार किसी से होता है
तो विज्ञान के सारे नियम बदल सकते हैं
आप हवा खाकर भी पर्याप्त कैलोरी पा सकते हैं
और दिल के बिना धड़के भी जिंदा रह सकते हैं
जब प्यार किसी से होता है
तो हम बहुत ताकतवर हो जाते हैं
एक रक्कासा भी ऐलान कर देती है
प्यार किया तो डरना क्या ...!
प्यार इसीलिए
हर तरह की व्यवस्थाओं के लिए खतरा है
प्यार किसी भी व्यवस्था का हुक्म नहीं मानता
इसीलिए व्यवस्थाएं
चाहे वो पूरब की हों या पश्चिम की
सभी प्यार को खारिज करती हैं
खारिज ही नहीं करतीं
बल्कि इस पर पहरे भी बिठाती हैं
कि कोई मना करने के बाद भी
प्यार न कर डाले
प्यार इतना कुछ है
कि एक नजर में
तो उसका क्षितिज भी नहीं समाता
एक नजर में तो उसे देख पाना ही मुश्किल है
किसी एक भाषा में
तो उसे व्यक्त कर पाना ही मुश्किल है
प्यार न मिले तो लालसाओं की आदिम भूख है
और मिल जाय तो जगत की आदिम अनिच्छा
जब प्यार किसी से होता है
तो यह लिख पाना बहुत मुश्किल होता है
कि क्या-क्या होता है
कि क्या-क्या नहीं होता ?
जब प्यार किसी से होता है
तो हम बिना दीक्षा लिए ही
महात्मा हो जाते हैं
जब प्यार किसी से होता है
तो हम गौतम से बुद्ध हो जाते हैं
वीर से महावीर हो जाते हैं
दसों इन्द्रियों को साधने में दक्ष
दशम गुरु हो जाते हैं
बोले सो निहाल...
जब प्यार किसी से होता है
2
मैं क्यों लिखता हूं प्रेम कवितायें ?
मैं अक्सर सोचता हूं
आखिर क्यों लिखता हूं प्रेम कवितायें ?
जवान होते बच्चों से नजरें बचाते हुए
जासूस होती पत्नी से सन्दर्भों को छिपाते हुए
क्यों खड़ा करता रहता हूं
खुद को सवालों के घेरे में ?
मैं जानता हूं मेरी इस आदत के चलते
न जाने कितने सवाल
न जाने कितनी सवालिया निगाहें
मुझ पर हर समय
टूट पड़ने का मौका तलाशती रहती हैं
मौका न भी मिले तो भी
पत्नी थोड़े उपदेशक, थोड़े पुलिसिया अंदाज में
छेड़ ही देती है किस्सा
घर, बीवी, बच्चे होते हुए
तुम क्यों करते हो ये सब ?
अपनी उम्र देखो...
इन सब हरकतों की है ?
थोड़ी तो शर्म करो !
आखिर जिन्दगी में कितनी बार करोगे प्रेम !!
दोस्त थोड़ा लिहाज करते हैं
मुंह पर कुछ कहने से बचते हैं
अकेले मिलने पर थोड़ी तारीफ भी करते हैं
लेकिन मेरी गैर मौजूदगी में
जब वो होते हैं इकट्ठा
फिर न पूछो कैसे चटखारा ले लेकर
व्यक्तित्व से ....मनोविज्ञान तक का
विशद विश्लेषण करते हैं
जो सबसे कम बोलता है
वह भी इसे मेरी दुखती रग बताकर
रहस्यमयी मुस्कान बिखेर देता है
पत्नी हमेशा
आंधी तूफान ही नहीं बनी रहती
कई बार मां बन जाती है
...और तब बहुत प्यार से समझाती है
इसके ऊंच-नीच बताती है
बड़े होते बच्चों का वास्ता देती है
और अंत में
मुझे जिम्मेदारियां याद दिलाती है
मैं सोच-सोचकर परेशान हो गया हूं
समझ नहीं आता इन सबको कैसे समझाऊं
कि प्रेम कवितायें लिखने का मतलब
गैर-जिम्मेदार बाप हो जाना नहीं है
बल्कि हकीकत में
तो कहीं ज्यादा जिम्मेदार हो जाना है
कि प्रेम कवितायें लिखने का मतलब
पत्नी से विश्वासघात करना नहीं है
बल्कि ये प्रेम कवितायें ही हैं
जो विश्वासघात नहीं करने देतीं
समझ नहीं आता कि कैसे समझाऊं
कि प्रेम कवितायें लिखने का मतलब
आधा अधूरा होना नहीं है
सच तो ये है कि ये प्रेम कविताएं ही हैं
जो मुझे भरा पूरा आदमी बनाती हैं
वरना तो मैं पांच फिट सवा आठ इंच का
एक जिस्म भर ही था
चलो मैं यह मानने की जिद नहीं करता
कि सबके साथ ऐसा ही होता होगा
मगर यकीन करो
मेरे साथ तो ऐसा ही है
मेरे लिए प्रेम कवितायें लिखने का मतलब है
जिन्दगी का उम्मीदों से भर जाना
जमीन में चलते हुए खुद को
जमीन से दो इंच ऊपर उड़ते हुए पाना
और महसूस करना
कि जैसे दुनिया मेरी मुट्ठी में हो
मेरे लिए प्रेम कवितायें लिखने का मतलब है
उम्र की खाईं से
चालीस साल पीछे छलांग लगा देना
जब सिर्फ एहसास होता था
न व्यक्त करने के लिए भाषा
न विशेष साबित होने के लिए संदर्भ
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूं
ताकि खुद पर भरोसा बचा रहे
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूं
ताकि जब सुबह काम करने बैठूं
तो वह पहाड़ सरीखा न दिखे
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूं
ताकि भरोसा बना रहे अपनी मेहनत पर
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूं
ताकि सपने देखूं और उम्मीदें पालूं
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूं
ताकि अखबारों में जब छपें
घोटाले की मोटी-मोटी धनराशियां
तो पढ़कर हताश न हों उम्मीदें
यकीन मानों मैं किसी 'इस' या 'उस' के लिए
नहीं लिखता प्रेम कवितायें
मैं लिखता हूं प्रेम कवितायें
ताकि जिन्दगी में जिन्दगी को
जीने का नशा बचा रहे
------------------.
3
...जब याद तुम्हारी आती है
अगर बिना व्यंजना या विशेषण कहूं
तो जब याद तुम्हारी आती है
दिल बड़ा-बड़ा सा महसूस करने लगता है
तमाम बड़ी-बड़ी समस्याएं
मामूली सी लगने लगती हैं
तुम्हारी याद आ जाए और नल में पानी न आये
तो भी म्युनिस्पलटी को
गाली देने का मन नहीं करता
बिजली के बिना भी गर्मी सहनीय हो जाती है
मन भूल जाता है सरकार को कोसना
तब चुभती नहीं है सरकार की अनदेखी
जब दिल में कब्जा जमाये होती है तुम्हारी याद
मैं ऐसा नहीं कहूंगा
कि हमेशा से ही ऐसा था
एक दौर था जब मैं भी
तुम्हारी याद में बहुत बेचैन हो जाता था
कुछ अच्छा नहीं लगता था
भूख प्यास सब खत्म हो जाती थी
बेचैन मन अकुलाया अकुलाया सा
हर तरफ भटकता रहता था
पर अब ये सब किस्से पुराने हो चुके हैं
जैसे अमीर हो जाने के बाद
पुरानी गरीबी भली-भली सी लगने लगती है
उससे एक आत्मीय रिश्ता
महसूस होने लगता है
क्योंकि वह बिना कहे
हमारी कामयाबी का परचम बुलंद करती है
हमारे सामान्य कद को आदमकद बनाती है
मेरे लिए कुछ उसी तरह की कहानी
अब तुम्हारी यादों के साथ है
हो सकता है आज तुम मेरे साथ होते
तो मेरा कद इतना बड़ा न होता
क्योंकि होना, न होने की तमाम असीमताओं को
सीमित कर देता है
सत्य कल्पनाओं को विराम दे देता है
यही उसकी सीमा है
सत्य की यही साधारणता है
...और साधारण चीजों से सिर्फ गुजाराभर होता है
चाहे दौलत हो या उल्फत
हो सकता है हम मिले होते
तो मुहल्ले का सबसे झगडालू जोड़ा होते
नून तेल लकड़ी में उलझे रहते
उस दौलत के कभी दरवाजे तक भी नहीं फटकते
जिसका कम से कम मैं तो आज स्वामी हूं
सुनो !
तुम्हें अपने बचपन का एक किस्सा सुनाता हूं
बचपन में मुझे जागते हुए
सपने देखने की आदत थी
पुस्तकालय में बैठा होता
सामने मायकोवस्की की कविताएं होतीं
लेकिन मैं वहां नहीं होता
मैं कल्पनाओं में हिसाब किताब कर रहा होता
मैं कल्पना करता
कि अपने घर से निकला हूं
कुछ कदम चलकर अभी
दूसरी गली की तरफ मुड़ा ही हूं
कि सामने देखता हूं
नोटों की एक गड्डी पड़ी है
मैं दौड़कर नोटों की गड्डी उठाता हूं
सपनों को साकार करने वाली दौलत...
और शुरू कर देता हूं गढ़ने
सपनों के रंगमहल
नक्काशियां, कंगूरे, आकार...
सब कुछ अपने मन का
सब कुछ सपनीला
सब कुछ, सब कुछ से अच्छा
सर्वश्रेष्ठ !!
अरे! लेकिन ये क्या
दौलत तो कम पड़ गयी ?
मगर चिंता की कोई बात नहीं
बस सपने की रील को ही तो
थोड़ा रिवर्स घुमाना है ?
घुमा देता हूं
इस बार गली के कोने में
मिलती है जो नोटों की गड्डी
वह मात्रा में दुगनी और मूल्य में तीन गुना होती है
हां ! ये ठीक है
अब जिस तरह के महल का मेरा ख्वाब है
बन जाएगा
फिर नींव से शुरू करता हूं
फिर नए सिरे से रचता हूं
भव्य से भव्यतम
सपनों से भी सपनीला
ये मेरी बैठक होगी
आलीशान ...दुनिया की सारी सुविधाओं से सजी
यहीं मैं अपने बचपन के जिगरी यारों के साथ
बैठकर गप्पें लगाऊंगा
उन्हें हर पल यह अनुमान लगाने में बेचैन रखूंगा
कि मेरी इस सपनीली कामयाबी का राज क्या है ?
ये होगा मेरा बागीचा
जहां मैं अपने सपनों की परी के साथ
टहलते हुए ठंडी-ठंडी हवाओं का आनंद लूंगा
बचपन में रूसी उपन्यास पढ़ते हुए
हवेलियों के बागीचों का जो रोमांच
दिलो-दिमाग में घुसकर बैठा है
मेरे बागीचे का मनोहारी रूप देखकर
वह रोमांच भाग जाएगा
लेकिन नहीं मैं उसे भागने नहीं दूंगा
उस रोमांच को इस बागीचे का
माली बना दूंगा
जो मुझसे पूछ-पूछकर
मेरी पसंद के फूलों से
मेरी पसंद के रंगों से
बागीचे का नक्शा तैयार करेगा
ये होगा मेरा आधुनिक अस्तबल
जहां दुनिया की सारी मंहगी से मंहगी कारें
ड्राइवरों के साथ खड़ी
मेरे इशारों का इंतजार करेंगी
ये है कुदरती झरनों से सुसज्जित मेरा स्नानागार
ये रहा ताजे और मीठे पानी से लहलहाता
मेरा स्विमिंग पूल
ये देखो, ये है मेरा अध्ययनकक्ष
जहां दुनिया की सारी
कीमती से कीमती, नयी से नयी
और पुरानी से पुरानी
किताबें सजी होंगी
ये है मेरे महल का भव्यतम परकोटा
यहां मैं अपनी जाने-जहान के साथ
सुरमई शाम में चाय की चुस्कियों का आनंद लूंगा
ये है मेरे महल का गोल्फ कोर्स
ये रहा रेस कोर्स
...अरे जरा एक मिनट रुकना
महल के पूरे नक्शे को देखते हुए
ये रेसकोर्स, थोड़ा छोटा नहीं लग रहा ?
इसका शेप भी सही नहीं लग रहा है
खासकर इसका टर्न
यह उल्टे मेहराब कट का है
जबकि इसे धनुषाकार होना चाहिए
देखिये प्रबंधक महोदय
रेसकोर्स के इस डिजाइन को बदलिए
जैसा मैं कह रहा हूं वैसा करिए
जी ...जी ...वो तो ठीक है
मगर...
मगर क्या, बोलिए ?
अच्छा ! सब खत्म..! सारा !!
इस तरह मुझे अपनी फंतासी का
सफर फिर शून्य से शुरू करना पड़ता
कई बार सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक
पुस्तकालय में बैठे हुए
मुझे अपनी फंतासी का सफर
दर्जनों बार नए सिरे से शुरू करना पड़ता
गली के कोने में मिलने वाले कुछ लाख रुपयों से
शुरू होकर ये सिलसिला
नोटों की खान तक पहुंचता
तो भी अंत में
ख्वाबों के महल को अधूरा ही छोड़ना पड़ता
क्योंकि चाहत का पैमाना
हमेशा बड़ा निकलता
दौलत कम ही पड़ जाती
इसलिए मुझे शक है
कि हम तुम अगर मिले होते तो बहुत खुश होते
जितना आज मैं तुम्हारी यादों के साथ हूं
तुम्हारी यादें अब मेरी
चाहत के हर अधूरेपन को पूरा करती हैं
क्योंकि उन्हें मैं जब चाहूं तब
जैसे चाहूं, वैसे
रिवर्स कर सकता हूं
अपने मन मुताबिक
सच की कोई साधारणता
इसके आड़े नहीं आती
इसलिए मैं अब बेचैन नहीं होता
सिर्फ रील भर रिवर्स करता हूं
जब याद तुम्हारी आती है
------------------.
4
कविताओं से किया मैंने गुरिल्ला इश्क
लैपटॉप बस शट डाउन करने ही वाला था
कि वो हुआ
जो इन दिनों पहले भी कई बार हो चुका है
मेरी निगाहें ठिठक गयीं और होंठ बुदबुदाए
मिल गयी
शुरूआती पंक्तियां पढ़ते ही
दिल की धड़कनें तेज हो गयीं
आंखों में हलकी हलकी रौशनी बढ़ने लगी
मैंने होंठों की आकृति गोल गोल करके
हवा में एक किस उछाली
और जैसे खुद को ही बताया
निजार कब्बानी की वो प्रेम कविता मिल गयी
जिसे मैं पिछले एक घंटे से
गूगल में सर्च कर रहा था
हां, वही दो घंटे पहले फेसबुक में
जिसकी चर्चा सुन रोमांचित था
ओह माय लव
अरब के धूसर रेगिस्तान में
प्यार का लहलहाता आख्यान
जिसने अरब में तहलका मचा दिया था
जिसने अलेप्पो की हवाओं को आवारा कर दिया था
जिसने दजला फरात के पानी को नशीला कर दिया था
वही, ओह माय लव ...
अरब के सन्नाते रेगिस्तान में
पूरे गले की पहली पुकार
यह कविता नहीं सिम्फनी है
रेत के आसमान में इतराती बलखाती नदी
मैं इसमें जरा सा नीचे उतरा और बहने लगा
दो घूंट पानी पीया और बहकने लगा
न जाने कब तक बेसुध रहता
कि तभी फोन की घंटी बज उठी
अनुमान के मुताबिक फोन पत्नी का ही था
'गए कहीं आज काम ढूंढ़ने या...'
उसने बिना किसी भूमिका के सीधे सवाल किया
और जानबूझकर
इनवर्टेड कामा के एक भरे पूरे वाक्य को
उसके अंत में अधूरा छोंड़ दिया
क्योंकि मुझे पता था
कि आगे उसे क्या बोलना है
और वो भी जानती थी कि मैं जानता हूं
इसलिए समझदार के लिए इशारा बहुत था
उसका सवाल सीधा था और वाजिब भी
क्योंकि इस बारे में सुबह ही हमारी बात हुयी थी
पत्नी का ही फोन आया था
उसने कहा था
आज काम ढूंढने चले जाना
घर में ही न बैठे रहना
आज प्रेशर थोड़ा कम है
मैं संभाल लूंगी दफ्तर
मैंने कहा ठीक है
ऐसा ही करूंगा
मेरा खुद का भी यही इरादा था
मुझ पर उसे वैसे तो भरोसा खूब है
फिर भी डेढ़ हजार किलोमीटर दूर है
तो इतनी असुरक्षा
तो आदत का हिस्सा हो ही जाती है
कि सोच ले ऐसा होगा भी या नहीं
शायद इसीलिए उसने फोन रखने के पहले
पुनश्च की शैली में दोहराया भी था
लापरवाही मत करना
ऐसे काम नहीं मिलता
माना तुम बहुत टैलेंटेड हो
लेकिन कंपटीशन देख रहे हो न
इसीलिए कहती हूं लापरवाही मत करना
...और हां, इस पढ़ने सढ़ने की लत से
कुछ दिन दूर रहो
जीवन भर पढ़ते ही रहे हो
और आगे भी पढ़ना ही है
यह कहते हुए, कुछ दिन और दूर रहना, वह
कुछ पलों के लिए ठिठकी थी
शायद कुछ दिन के आगे वह
कुछ और जोड़ना चाहती थी
कि मुझे वास्तव में किस चीज से बचना है
लेकिन मुझे कहीं बुरा न लग जाए
इसलिए उसने
अपनी नसीहत को बहुत स्पष्ट नहीं किया
एक सामान्य नसीहत ही बनाए रखा
हालांकि मैं समझता था
कि अगर वह आगे जोड़ेगी तो क्या जोड़ेगी ?
और वो भी समझती थी कि मैं समझता हूं
कि उसके ठिठकने का मतलब क्या था ?
इसलिए उसने आधी अधूरी चेतावनी के साथ ही
फोन रख दिया
पर मैं आपको बताता हूं
कि वो जहां ठिठकी थी
वहां दरअसल वह क्या कहना चाहती थी
वास्तव में वह
कविताओं के प्रति आगाह करना चाहती थी
कविताओं के साथ मेरे इश्क को लेकर वो
अकसर असहज रहती है
हालांकि कविताओं के साथ मेरा कोई
बहुत आदर्श किस्म का और बहुत व्यवस्थित
लव अफेयर कभी नहीं रहा
पर हां, मेरा उनके साथ
गुरिल्ला इश्क जरूर है
जो तमाम व्यवहारिक अड़चनों के बाद भी
कभी खत्म नहीं हुआ
उल्टे दिन पर दिन गाढ़ा ही होता जा रहा है
शायद इसलिए
कि यह हम दोनों के लिए मुफीद है
इसीलिए कभी मैंने मौका ढूंढ़ा
कभी कविताओं ने
कभी मैंने जरिया तलाशा
कभी कविताओं ने
कभी मैंने कविताओं को बेवकूफ बनाया
कभी उन्होंने मुझे
लब्बोलुआब यह
कि हमने एक दूसरे को कभी हंसाया है
कभी रुलाया है
कभी छकाया है
कभी सताया है
शायद हम दोनों ने ही
एक दूसरे को अराजक बनाया है
या फिर यह हमारे इश्क का गुरुत्वाकर्षण है
कि हम सारे सामान्य नियम भूल गए
तरीका भूल गए
यहां तक कि इश्क के लिए जरुरी
माहौल बनाना भी भूल गए
जब मौका मिला तभी कर लिया
हमें इश्क का कोई तय कायदा नहीं पता
हमें इश्क का कोई तय उसूल नहीं पता
हमारे लिए पहले से ही सुरक्षित संरक्षित
तमाम सीखें बेईमानी हैं
मैं अकेले रहता हूं
तो दाल में तड़का मारते हुए भी
मेरा इश्क चलता रहता है
इसका भी मजा है
इसका भी नशा है
कभी करके देखो
मेरे साथ तो बहुत बार हुआ है
कि मैंने तड़के में प्याज की जगह आलू काट दिया
फिर भी दाल के स्वाद ने अंगुलियां चटवायीं
न जाने कितनी बार इन कविताओं ने
मेरी सजगता छीन ली है
और मेरी चाय बिना चीनी के बनी
फिर भी मजाल है
कि जरा भी फीकी लगी हो
लेकिन इश्क कभी न कभी तो
रंगे हाथों पकड़ा ही जाता है
जैसे मैं आज पकड़ा गया
फोन पत्नी का ही था
उसने फिर सीधा पूछा था, आज कहीं गए ?
वो ..वो...! ... मैं हकला रहा था
------------------.
5
बगावत की कोई उम्र नहीं होती
जब डूबते सूरज को मैंने
पर्वत चोटियों को चूमते देखा
जब बाग के सबसे पुराने दरख्त को मैंने
नई कोंपलों से लदे देखा
तो समझ गया
फूल की तरह खिल जाने
खुशबू की तरह बिखर जाने
...और गले से लगकर मोम की तरह पिघल जाने की
कोई उम्र नहीं होती
कोई उम्र नहीं....
तुम्हें ताउम्र मुझसे शिकायत रही न कि मुझमें धैर्य क्यों नहीं है ?
मैं हर मौसम में इतना बेचैन क्यों रहता हूं ?
सुनो, मैं आज बताता हूं
मैं तिनके तिनके जोड़ जोड़कर बना हूं
मुझमें इस धरती का सब कुछ थोड़ा थोड़ा है
मुझमें इस नशीली धूप का
इस सुलगती बारिश का
इस हाड़कंपाती ठंड का
सबका कुछ न कुछ हिस्सा है मुझमें
फिर भला बदलते मौसमों में
मैं अपने बेचैन बदलावों को कैसे छिपा पाऊंगा ..?
मैं कोई सॉफ्टवेयर नहीं हूं
कि एक बार में ही प्रोग्राम कर दिया जाऊं उम्रभर के लिए..
और मेरी हरकतें हमेशा हमेशा के लिए
किसी माउस के इशारे की गुलाम हो जाएं ?
नहीं मेरी जान ..
मैं तो हर मौसम के लिए बेकरार पंछी हूं
तुम मुझे मोतिया चुगाओ या रामनामी पढ़ाओ
जिस दिन धोखे से भी पिंजरा खुला मिला
उड़ जाऊंगा..
कतई वफादारी नहीं दिखाऊंगा
फुर्र से उड़कर किसी डाल में बैठूंगा
और आजादी से पंख फड़फड़ाऊंगा
क्योंकि मुझे पता है
चाहत का कोई पैमाना नहीं होता
और बगावत की कोई उम्र नहीं होती
कोई उम्र नहीं मेरी जान... कोई उम्र नहीं..
जिनके पास इतिहास की हदें न हों
वो बेशर्मी की सारी हदें तोड़ सकते हैं
जिनके पास अतीत की लगामें न हों
वो बड़े शौक से बेलगाम हो सकते हैं
लेकिन मुझे ये छूट नहीं है
क्योकि मैं एक ऐसे इतिहास की निरंतरता हूं
जहां कदम कदम पर दर्ज है
कि गर्व में तन जाने
जिद में अड़ जाने
और बारूद की तरह फट जाने की
कोई उम्र नहीं होती
कोई उम्र नहीं मेरी जान... कोई उम्र नहीं
तुमने गलत सुना है
कि अनुभवी लोगों को गुस्सा नहीं आता
अनुभव कोई सैनेटरी पैड नहीं है
कि सोख ले हर तरह की ज्यादती का स्राव ?
अनुभवी होना
कुदरतन कुचालक हो जाना नहीं होता
कि जिंदा शरीर में अपमान की विद्युतधारा
कभी बहे ही न
न...न..न.. जब तिलमिलाता है अनुभव
तो उसके भी हलक से
निकल जाता है बेसाख्ता
समझदारी गई तेल लेने
लाओ मेरा खंजर
लो संभालो मेरा अक्लनामा
क्योंकि नफरत की कोई इंतहां नहीं होती
और अक्लमंदी की कोई मुकर्रर उम्र नहीं होती
कोई उम्र नहीं होती मेरी जान ... कोई उम्र नहीं
अगर तुम्हे याद नहीं तो मैं क्यों याद दिलाऊं
कि जब हम पहली बार मिले थे
उस दिन अचानक बहुत तेज बारिश होने लगी थी
और हम दोनों साथ साथ चलते हुए
काफी ज्यादा भीग गए थे
तुम्हें कुछ नहीं याद तो
मैं कुछ याद नहीं दिलाऊंगा
क्योंकि ये तुम भी जानती हो और मैं भी
कि याद्दाश्त का रिश्ता
याद करने की चाहत से है
याद करने की क्षमता से नहीं
फिर तुम क्यों चाहती हो कि मैं भूल जाऊं
कि भूल जाने की कोई उम्र नहीं होती
कोई उम्र नहीं मेरी जान ..कोई उम्र नहीं
मुझे सफाई न दो, मुझे सबूत नहीं चाहिए
कि तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं
मोहब्बत कभी सात पर्दों में छिपकर नहीं बैठती
मोहब्बत बहुत बेपर्दा होती है
उसकी बेपर्दगी की कोई हद नहीं होती
कोई हद नहीं मेरी जान ...कोई हद नहीं
------------------.
6
आखिरी अफसाना
मानता हूं कई तोहफे
बिना उम्मीद मिलते हैं
न देने वाले का पहले से इरादा होता है
न पाने वाले को उम्मीद
पर याद रखो
यह सब अंजाने में
अंजानों में होता है
जबकि हमने तो कोशिशन मुहब्बत की है
फिर भला
ऐसे चमत्कारों की उम्मीद क्यों रखें?
इसीलिए मैं कहता हूं
इससे पहले कि मेरे सपनों के पंख झड़ जाएं
...और तुम्हारे अरमानों की उम्र ढल जाए
आओ
दिल्लगी की किताब का
आखिरी अफसाना लिख दें
शुक्र मनाओ कि बहानों के वास्ते
यह बहुत जरखेज दौर है
भूमण्डलीकरण और भूमण्डलीय गर्माहट ने
सब्जियों को देखकर
मौसम का अनुमान लगाने की
हमसे तमाम सहूलियतें छीन ली हैं
वरना पूस में करेले खाकर
तुम्हारे बीमार पड़ने को मैं
तुम्हारा एक और खूबसूरत बहाना ही मानता
इससे पहले कि सच और झूठ
पूरी तरह से अपनी पहचान खो दें
बहानों और असलियत में
फर्क करना मुश्किल हो जाए
आओ
सच में झूठ की सैद्धांतिक मिलावट तय कर लें
हमारे सम्बंधों में
दिनोदिन पसरते सन्नाटे को पढ़ना
मुश्किल नहीं है
तुमने भले न गौर किया हो
मैंने किया है
हमारी बतकही में इन दिनों
अर्धविराम बहुत आने लगे हैं
यह संवाद की कोई नई शैली नहीं है
ये आने वाली संवादहीनता की
बानगी है
ये अर्धविराम हमारी बतकही को
अर्थहीन बनाएं
यह संवादहीनता
हमें इतिहास बनाए
इससे पहले
आओ
अपनी बातचीत का
आखिरी पूर्णविराम चुन लें
------------------.
7
मेरे सपनों अब तुम विदा लो
मेरे सपनों
तुम्हारा बोझ ढोते ढोते
मैं थक गया हूं
अब तुम विदा लो...
मेरी हकीकतों
तुममें कल्पनाओं का रंग भरते भरते
मैं ऊब गया हूं
अब मुझे बख्शो
मेरा सब्र जवाब दे रहा है
ढांढस मुझे झांसा लगने लगा है
मैं उस सुबह की इंतजार में जो अब तक नहीं आयी
और कब तक अपनी मासूम शामों का कत्ल करूंगा
मैं अब जीना चाहता हूं
अभी, इसी वक्त से
मेरे सपनों मुझे माफ करना
तुम्हारा इस तरह यकायक साथ छोड़ देने पर
मैं शर्मिंदा हूं
पर क्या करता तुम्हारी दुनिया का
इतना डरावना सच देखने के बाद
मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं था
हालांकि मैंने सुन रखा था
कि सपनों की दुनिया खौफनाक होती है
मगर जो अपनी आंखों से देखा
वह सुने और सोचे गए से कहीं ज्यादा भयावह था
मैंने तुम्हारी दुनिया में खौफनाक जबरई देखी है
मैंने देखा है
एक तानाशाह सपना
अनगिनत कमजोर सपनों को लील जाता है
तानाशाह सपनों की खुराक भी बहुत तगड़ी होती है
और कमजोर सपनों की बदकिस्मती यह है
कि किसी सपने की खुराक
कोई दूसरा सपना ही होता है
शायद इसीलिए
सपनों के आदिशत्रु सपने ही हैं
ताकतवर सपने
कमजोर सपनों को सांस नहीं लेने देते
ताकतवर सपने जानते हैं
सपनों का सिंहासन
सपनों की लाशों पर ही सजता है
फिर सपना चाहे कलिंग विजय का हो
या आल्पस से हिमालय के आर पार तक
अपनी छतरी फैलाने का
इन शहंशाह सपनों की पालकी
तलवार की मूठ में कसे कमजोर सपने ही ढोते हैं
फिर चाहे
मुकुटशाही की रस्मों को वो देख पाएं
या थककर तलवार की मूठ पर ही
हमेशा हमेशा के लिए सो जाएं
इसकी परवाह भला कौन करता है ?
मेरे बाबा कहा करते थे
एक जवान सपना
घने साये का दरख्त होता है
इसकी ठंडी छांव और मीठी तासीर के लालच में
कभी मत फंसना
इसके साये में कुछ नहीं उगता
इसका नीम नशा होश छीन लेता है
फिर यहूदी इंसान नहीं
गैस चैंबर का ईंधन दिखता है
इसका खौफनाक सुरूर
कुछ याद नहीं रहने देता
याद रखता है तो बस
मकुनी मूंछों को ताने रखने की जिद
क्योंकि जिदें सपनों की प्रेम संतानें होती हैं
मुझे पता है
सपनों के खिलाफ जंग में
मैं अकेला खड़ा हूं
क्योंकि सपनीली प्रेम गाथाएं
बहुत आकर्षक होती हैं
सफेद घोड़े में सवार होकर आता है राजकुमार
और सितारों की सीढ़ियों से उतरती है सोन परी
सुनने और सोचने में कितना दिलकश है ये सब
मगर मैं जानता हूं
कितना हिंसक है यह सब
ऐसे सपने सिर्फ सपनों में ही सच होते हैं
हकीकत में नहीं
जब भी कोई उतारना चाहता है
इसे हकीकत की दुनिया में
पानी का इन्द्रधनुषी
बुलबुला साबित होता है, यह सपना
आंखें खुलते ही
सितारों से उतरी सोनपरी की हथेलियां
खुरदुरी मिट्टी की हो जाती हैं
और सफेद घोड़ा नीली आंखों वाले राजकुमार को
जमीन पर पटककर घास चरने चला जाता है
इसीलिए मैं परियों और राजकुमारों वाले सपनों से
तुम्हें बचाना चाहता हूं
इसीलिए मैं तुम्हें सपनीली नहीं बनाना चाहता
मैं तुमसे सर्द सुबहों के उनींदे में
बांहों में कसकर भींच ली गई
गर्म रजाई की तरह लिपटना चाहता हूं
मैं तुम्हें लार्जर दैन लाइफ नहीं बनाना चाहता
इसलिए मैं अपने सपनों से कह रहा हूं
अब तुम विदा लो ...
------------------.
8
मैं लिखूंगा
मानता हूं तुम मेरे शुभचिंतक हो
मानता हूं तुम्हारे तर्क अकाट्य हैं
मानता हूं तुम मुझे व्यवहारिकता सिखा रहे हो
मानता हूं तुम्हारी सलाहें न मानने के कारण ही
मैं अब तक असफल हूं
मगर माफ करना मेरे दोस्त
न लिखने की तुम्हारी सलाह मैं अब भी नहीं मानूंगा
मैं अब भी नहीं मानूंगा कि लिखने से कुछ नहीं होता
नहीं मानूंगा कि लिखना समय की बर्बादी है
या बेहूदी भलमनसाहत
तुम्हारे ताकतवर तर्कों के बावजूद
मैं लिखने का सिलसिला जारी रखूंगा
क्योंकि लिखने के अलावा मैं कुछ नहीं जानता
न लिखना भी नहीं
इसलिए न लिखना मुझसे नहीं होगा
और हां, मैं सिर्फ इसलिए भी नहीं लिखूंगा
कि मैं एक अक्षरशाला में शब्दों का कारीगर हूं
जहां लोगों की मांग के मुताबिक
शब्दों का फर्नीचर बनता है
नहीं, मैं इसलिए लिखूंगा
क्योंकि मैंने स्मृतिकोशों को खूब खंगाला है
श्रुतियों-प्रतिश्रुतियों को छान मारा है
मगर कहीं भी मुझे पूरी की पूरी अपनी दास्तान नहीं मिली
एक लाख इक्कीस हजार से भी ज्यादा
शब्दों वाली अपनी भाषा में
मुझे कोई एक शब्द भी ऐसा नहीं मिला
जो पूरी की पूरी मेरी बात कहता हो
मैं नहीं चाहता
कि मुझे उधार के शब्दों और पराये एहसासों से समझा जाय
मैं इसलिए लिखूंगा
मैं लिखूंगा क्योंकि मैंने खूब पढ़कर जाना है
कि हर कोई पूरी तरह से
सिर्फ अपनी बातें ही लिखता है
वो दूसरों के चाहे जितने नजदीक हों
पूरी की पूरी उनकी नहीं होतीं
मैं सालों साल अपने एहसासों को
दूसरे के शब्दों का लिबास पहनाता रहा हूं
मेरे एहसास उतरन पहनते पहनते
कई बार मुझे ही अजनबी लगने लगते हैं
अपने एहसासों को अपना बनाये रखने के लिए लिखूंगा
मैं लिखूंगा
क्योंकि यह सिर्फ मैं ही जानता हूं कि वह लड़की
दूब से ज्यादा लचीली थी
36
जिसे बेईमान मौसम ने लकड़ी बना दिया
मैं लिखूंगा
क्योंकि सुन सुनकर बोलते बोलते मैं थक चुका हूं
मैं लिखूंगा
क्योंकि देख देखकर सीखते सीखते मशीन बन चुका हूं
------------------.
9
व्यस्तता
हमने बार बार वायदे करके मिलना टाला
मोबाइल में मैसेज देखकर भी उन्हें पढ़ना टाला
फोन की घंटियों को या तो अनसुना कर दिया
या म्यूट कर दिया
आखिर क्यों न करते ये सब
व्यस्त जो थे हम
इतने
कि संयोग से भी टकरा गए
तो भी एक दूसरे को छुआ तक नहीं
यहां तक कि
कई बार तो देखा तक नहीं
व्यस्तता ने हमें
अजनबी बना दिया
गूंगा, बहरा और अंधा बना दिया
लेकिन तुम अब फिक्र न करो
मैंने ढूंढ़ निकाला है
उस साजिश का बुनियादी सिरा
जिसे व्यस्तता कहते हैं
जो हमें कुछ खास हुए बिना भी
व्यस्त रखती है
जो हमें कभी
बेमतलब नहीं होने देती
हमेशा मतलब के कोल्हू में नाधे रखती है
बिना किसी वजह के
बिना किसी नतीजे के भी ...
पहले मैं सोचता था कि ये हैसियत है
जो हमारी तुम्हारी मुहब्बत के बीच
एक दीवार है
लेकिन अब समझा
हैसियत नहीं ये व्यस्तता है
जो मुझको
तुम्हें भरपूर निहारने नहीं देती
जो मुझको
तुम्हारी जुल्फों में अपनी अंगुलियां उलझाने का
नशीला खेल नहीं खेलने देती
जो मुझको
तुम्हारी भीनी भीनी खुश्बू
नहीं महसूसने देती
लेकिन अब मैंने जिंदगी की जरखेज जमीन में
गहरे तक धंसी
व्यस्तता की जहरीली जड़ों को पहचान लिया है
और देखना
जल्द ही इन्हें उखाड़ फेंकूंगा
फिर हम
खूब सारी बातें करेंगे
मतलब की भी
बेमतलब की भी
हम बातें करेंगे
नयी फसल के आलू जैसे रंग वाले
तुम्हारे उस टाप की
जिसमें तुम मुझे पहली बार
इतनी खूबसूरत लगी थी
कि मुझे सूझ ही नहीं रहा था, तुम्हे कहूं क्या ?
हम बातें करेंगे
कि तुमपे खुले बाल अच्छे लगते हैं
या पोनीटेल
हम बातें करेंगे
कि जिन्दगी में हर एक दोस्त जरूरी होता है
या कारोबार में हर एक ग्राहक
हम बातें करेंगे
कि सपनो की मां कौन है ?
किताब या कल्पना
हम दुनिया की मंदी के बारे में परेशान नहीं होंगे
गो कि फिक्र करेंगे
मगर हम दुबले नहीं होंगे
कि शांति का नोबेल पुरस्कार
अमरीका के राष्ट्रपति को क्यूं दिया गया?
हालांकि हम नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो
इस बिना पर भी नहीं कि हमें पता नहीं था
हम ध्यान रखेंगे कि जो अमरीका
दुनिया की दो तिहाई अशांति का कारण है
उसके अगुआ को
विश्व का अग्रज शांतिदूत न कहा जाये
यह शांतिदूतों का ही नहीं शांतिकामना का भी अपमान है
मगर हम ध्यान रखेंगे
कि इस सबमें हम खुद को इतना व्यस्त न कर लें
कि हमें मौका ही न मिले
कभी अपनी ही धड़कनों को सुनने का
अपनी ही सांसों में घुले गीत गुनगुनाने का
तुम्हारे टिफिन के पराठों और ढाबे की रोटियों में
फर्क करने का
व्यस्तता को नकारने के लिए
व्यस्तता की अनसुनी करने के लिए
उन किस्सों को हम बार बार छेड़ेंगे
जिन्हें हम सपनों में बुदबुदाते हैं
जिन्हें हम ख्वाहिशों में दोहराते हैं
मगर जागने पर बेजुबान हो जाते हैं
तुम देखना
एक बार मैं इस व्यस्तता की जड़ों को खोद डालूं
फिर हम क्या नहीं करेंगे?
हम बातें करेंगे
फूलों की
रंगों की
नगमों की
बेमौसम बारिश की
तुम्हारी बिखरी लटों की
चॉकलेट के उस टुकड़े की
जो तुमने मुझे अपने होठों से दिया था
जिसका सही सही स्वाद
मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा
हम बातें करेंगे उस लड़ाई की
जिसे लड़ते हुए भी हम जान रहे थे कि ये नकली है
मगर जिसे असली जताने के लिए लड़ रहे थे
हम बातें करेंगे
उस रिश्ते की जो कभी होना ही नहीं
हम बातें करेंगे
उस कल की जो हमारी सुरमई कल्पनाओं में है
पूरी रात गुजर जाएगी
मगर हमारी बातें खत्म नहीं होंगी
तब कोई भी व्यस्तता
हमारी चाहत के आड़े नहीं आयेगी
हमारा दिल और दिमाग
हरगिज उसका बोझा नहीं ढोयेगा
न ही वह
हमारी कामयाबी का सौन्दर्यबोध होगी
क्योंकि हम जानते हैं व्यस्तता दोधारी तलवार है
यह अगर कीमत देती है
तो दो गुना कीमत लेती भी है
कारखाना युग में जन्मी व्यस्तता
इस सूचना युग में पैमाना बन गई है
हमारी सफलता का
हमारी हैसियत का
जो कहती है अगर आप व्यस्त नहीं हैं
तो आपकी कीमत नहीं है
मगर जरा सोचिये अगर आप हमेशा व्यस्त हैं
तो आपकी किसी भी कीमत की आखिर क्या कीमत है?
मैंने व्यस्तता के साथ एक लम्बा अरसा गुजारा है
उसे गहराई से जाना है
...और जानकर इस नतीजे पर पहुंचा हूं
कि व्यस्तता हमारी जिन्दगी के महाभारत का
एक चक्रव्यूह है
जिसके एक भी दरवाजे का तोड़
अभिमन्यु की छोड़िये
किसी अर्जुन के पास भी नहीं है
इसे हर दौर के द्रोणाचार्य
कुशलता, कायरता और काइयांपन की सभी ताकतों को
मिलाकर बनाते हैं
ताकि जब भी इसमें घुसे कोई मासूम अभिमन्यु
कभी बाहर न निकल सके
मगर
मैं तुमसे वायदा करता हूं
एक दिन मैं अपनी तमाम व्यस्तताओं को कुचलकर
रिसाईक्लिंग मशीन में डाल दूंगा
फिर उससे उड़ने के लिए दो चमचमाते पंख बनाऊंगा
जिनमें तुम्हें बिठाकर
इन्द्रधनुषी आसमान की ओर उड़ जाऊंगा
दूर गगन में
जहां कोई भी व्यस्तता हमारा पीछा नहीं कर सकती
तब मैं पूरी फुरसत में तुम्हें निहारूंगा
तुम्हें महावर और आलता लगाते देखूंगा
तुम्हें गुगुनाते हुए पुरसुकून सुनूंगा
तब मैं व्यस्त नहीं होऊंगा
------------------.
10
मैं नया कुछ नहीं कह रहा
मुझे पता है मैं नया कुछ नहीं कह रहा
फिर भी मैं कहूंगा
क्योंकि
सच हमेशा तर्क से नत्थी नहीं होता
कई बार इसे छूटे किस्सों
और गैर जरुरी संदर्भों से भी
ढूंढ़कर निकालना पड़ता है
कई बार इसे
तर्कों की तह से भी
कोशिश करके निकालना पड़ता है
मुस्कुराहट में छिपे हादसों की तरह
जब चकमा देकर पेज तीन के किस्से
घेर लेते हैं अखबारों के पहले पेज
तो आम सरोकारों की सुर्खियों को
गुरिल्ला जंग लड़नी ही पड़ती है
फिर से पहले पेज में जगह पाने के लिए
मुझे पता है तुम्हे देखकर
सांसों को जो रिद्म
और आंखों को जो सुकून मिलता है
उसका सुहावने मौसम
या संसदीय लोकतंत्र की निरंतरता से
कोई ताल्लुक नहीं है
फिर भी मैं कहूंगा
संसदीय बहसों की निरर्थकता
तुम्हारी गर्दन के नमकीन एहसास को
कसैला बना देती है
जानता हूं
मुझे बोलने का यह मौका
अपनी कहानी सुनाने के लिए नहीं दिया गया
फिर भी मौका मिला है तो मैं दोहराऊंगा
वरना समझदारी की नैतिक उपकथाएं
हमारी सीधी सादी रोमांचविहीन प्रेमकथा का
जनाजा निकाल देंगी
और घोषणा कर दी जाएगी की यह प्रेमकथा
अटूट मगर अदृश्य
हिग्स बोसान कणों की कथा है
इसलिए दोहराए जाने के आरोपों के बावजूद
मैं अपना इकबालनामा पेश करूंगा
क्योंकि इज्जत बचाने में
इतिहास के पर्दे की भी एक सीमा है
इसलिए मेरा मानना है
कि मूर्ख साबित होने की परवाह किये बिना
योद्धाओं को युद्ध का लालच करना चाहिए
45
मुझे पता है
मैं नया कुछ नहीं कह रहा
फिर भी मैं कहूंगा
ताकि इंतजार की बेसब्री और खुश होने की
मासूमियत बची रहे
ताकि कहने की परंपरा और सुने जाने की
संभावना बची रहे
ताकि देखने की उत्सुकता
और दिखने की लालसा बची रहे
असहमति चाहे जितनी हो मगर मैं नहीं चाहूंगा
बहस की मेज की बायीं ओर रखे पीकदान में
आंख बचाकर
साथ साथ निपटा दिए जाएं
गांधी और मार्क्स !
------------------.
11
शिकायतों का महाभारत
मैंने उसके मोबाइल में मैसेज किया
एक रुटीन मैसेज
...और चाहा कि वह भी फटाफट जवाब दे
जैसा कि हम दोनों
बिना कुछ कहे अकसर करते थे
मगर न जाने क्या हुआ
आज उसने पलटकर मैसेज नहीं किया
सुबह से दोपहर हो गयी
दोपहर से शाम ढल गयी
शाम से रात गहरा गयी
मगर उसका कोई मैसेज नहीं आया
मैं चौंका
थोड़ा हैरान
थोड़ा परेशान भी हुआ
फिर दिल को समझाने की कोशिश की
मैसेज नहीं आया तो क्या हो गया?
हो सकता है...?
रिक्त स्थान में मैंने तमाम बातें भरकर देखीं
फिर भी जब संतुष्ट नहीं हुआ तो
इसे मामूली बात मानकर
दिमाग से दूर फेंकने की कोशिश की
पर ऐसा भी नहीं कर सका
यह जानने की जिज्ञासा
न दिल से निकली
न दिमाग से
कि आखिर उसका मैसेज क्यों नहीं आया ?
जाने, अनजाने
किसी न किसी बहाने
आज पूरे दिन
मैं हर पल उसके मैसेज के इंतजार में ही रहा
बिना इच्छा काफी पीते हुए
बिना कुछ सुने, बिना कुछ समझे
टीवी पर समाचार देखते हुए
पूरे समय
मेरी नजर अपने मोबाइल स्क्रीन पर ही रही
मैसेज ट्यून के अभ्यस्त मेरे कान
पूरे दिन इसे सुनने के लिए बेचैन रहे
ऐसा नहीं है कि आज मैसेज आए ही नहीं
एक नहीं कई आए
एक- मोबाइल में फटाफट भविष्य जानने के लिए
एक- सस्ते में रिंगटोन पाने के लिए
एक- बुआ जी के यहां कथा में आने का
एक- दो बेडरूम का फ्लैट खरीदने के लिए
और भी कई आए
जिन्हें मैंने पूरा पढ़े बिना ही डिलीट कर दिया
क्योंकि इनमें उसका कोई मैसेज नहीं था
जिसका मुझे पूरे दिन से इंतजार था
आप सोच रहे होंगे
मैं क्या बेमतलब बात का बतंगड़ बना रहा हूं
अपनी संदेशगाथा को राई का पहाड़ बना रहा हूं
अरे मैसेज नहीं आया तो नहीं आया
कोई भी वजह हो सकती है
पलटकर मैसेज न करना
गुस्सा दर्ज कराने का भी एक जरिया हो सकता है
इसकी और भी कई वजहें खोजी जा सकती हैं
बेहद आदर्श
बेहद विश्वसनीय
पर यह भी तो सच है
जो हमेशा पलटकर जवाब देता हो
उसकी पहली पहली चुप्पी
किसी की अकसर लगाई जाने वाली चुप्पियों से
कहीं ज्यादा खतरनाक होती है
क्योंकि उसकी इस पहली अनदेखी का गुरुत्वाकर्षण
इतना अधिक होता है कि उससे बने ब्लैक होल में
सपनों और संभावनाओं के तमाम क्षितिज
हमेशा हमेशा के लिए समा जाते हैं
मोबाइल मैसेज महज
एक सौ साठ अक्षरों की इबारत भर नहीं है
सोचकर देखो
यह अंगुलियों की सहमति से किया गया
दिल का खामोश इकरारनामा है
मानता हूं
आवाज, शब्दों से ज्यादा आत्मीय होती है
मानता हूं
नजरें, अनंत संदेशे दे सकती हैं
मानता हूं
मौन, मौजूदगी का सबसे बड़ा संबल है
लेकिन दिल के कारोबार में
ये सब मौखिक दस्तावेज हैं
यही वजह है
कि लिखित संदेशों का गुरुत्वाकर्षण
हमेशा ज्यादा रहा है
चाहे बात कबूतर युग की रही हो
या सैटेलाइट युग की
वैसे भी आज की उसकी चुप्पी
उसकी पहली चुप्पी है
विरोध का पहला मौन कदम
सबसे मजबूत
सबसे ताकतवर
क्योंकि यह पहला है
यह पहल है
इसके बाद का हर कदम तो बस
पहले का दोहराव होगा
महज अनुवर्ती क्रिया
जैसे साइकिल चलाने के लिए
पैडल पर पैर मारना
पहली चुप्पी ही तो साहस है
बाद का हर दुस्साहस तो बस
पहले की पुनरावृत्ति है
उसकी यह पहली चुप्पी
इसलिए भी खतरनाक है
क्योंकि इसमें
किसी नौसिखिये आतंकी द्वारा की गई
पहली हत्या का सा हौंसला है
डरता
कांपता
पल पल इरादे बदलता हौंसला
जो समझ न पा रहा हो
गलत क्या है
सही क्या है....
मुझे अंदाजा है
इस पहली पहली चुप्पी के लिए
वह कितना लड़खड़ाई होगी
की-बोर्ड तक पहुंचकर
न जाने कितनी बार अंगुलियां
मैसेज लिखने के लिए कांपी होंगी
जैसे पहली बार किसी की जान लेने के पहले
कोई नौसिखिया आतंकी
'हां' और 'न' के बीच के बालिश्त भर का फासला
तय करते हुए
कशमकश की पूरी एक जिंदगी जीता है
यह बात अलग है कि अगर सफल रहा
तो यही पहली हत्या
उसे छेड़ने के लिए
जिंदगीभर का एक निरीह चुटकुला बन जाती है
इसलिए मैं नहीं चाहता
कि वह जिद पर अड़ी रहे
....और मैसेज न करने का
उसका कमसिन हौंसला
पिघलकर इस्पाती खौफ बन जाए
मैं इसीलिए उसकी चुप्पी से
उसके जिद्दी मौन से डर रहा हूं
और चाहता हूं वह जवाब दे
ताकि उसकी नाजुक शिकायत
हम दोनों के बीच
तीखे संदेश युद्ध का जरिया बन जाए
मोबाइल की लाइटें
रह रहकर जलें बुझें
मैसेज ट्यून
रुक रुककर चेतावनी का सायरन बजाए
मगर इस सबसे बेपरवाह जारी रहे
हमारी शिकायतों का महाभारत
------------------.
12
प्रेमपत्र
अच्छा ही किया तुमने
जो मुझे कभी कोई
प्रेमपत्र नहीं लिखा
वरना........
इस दुश्मन दुनिया से
मैं उसे
कहां कहां छिपाता....
कब तक बचाता
उसके गुलाबी रंग को
पीला पड़ने से
कब तक बचाता
उसकी मुलामियत को
सख्त होने से
कब तक सहेजता मैं
उन शब्दों का नशा
इस नश्वर दुनिया में
जहां हर नशे की
मियाद तय है
जहां हर नशे की
कीमत तय है
इसलिए अच्छा ही किया तुमने
जो मुझे कभी कोई
प्रेमपत्र नहीं लिखा
वरना एक वक्त के बाद
तुम खुद भी मुझसे
इसी वजह से डरी डरी रहती
हर पल अतीत का
एक खौफनाक साया
मंडराता रहता
तुम्हारी निष्ठा के इर्द गिर्द
तब मैं रह रहकर
तुम्हारी इन झील सी आंखों में
मगरमच्छ सा नजर आता
इसलिए अच्छा ही किया तुमने
जो मुझे कभी कोई प्रेमपत्र नहीं लिखा
यह
इसलिए भी अच्छा हुआ
क्योंकि वक्त के साथ
मैं चिड़चिड़ा हो गया
जिंदगी की नियति की तरह
और वक्त के साथ
तुम स्थिर होती गयी
मैदान में उतरी
पहाड़ी नदी की तरह
जैसे जैसे झमेले बढ़े
जिंदगी के
मैं भूल गया महसूसना
तुम्हारे शब्दों में मौजूद
कच्चे आम और खट्टी
इमली की सिहरन
धरती को मुट्ठी में
बंद कर लेने की फैंटेसी
सितारों के झुरमुट में बैठकर
कभी न आये कल की कल्पना
और सांसों में
उगते सूरज की तपिश
जबकि गुजरते वक्त के साथ ही
तुममे बढ़ता गया
मेरे शब्दों में
दिवाली और होली
महसूसने का एहसास
बढ़ गयी तुममें
अतीत की जुगाली
....और अब मैं
आश्चर्य से सोचता हूं
क्या तुम वही
छुई मुई सी लजाती शरमाती लड़की हो
जो हाय कहने के लिए
पहले आधे घंटे रिहर्सल करती थी
तुम्हारा उन दिनों का लिखा
कोई प्रेमपत्र होता
तो पता नहीं आज
उसे पढ़ते हुए
कैसा लगता ?
इसलिए अच्छा ही किया तुमने
कि मुझे फिर से
उन दिनों में लौटने का
कोई मौका नहीं दिया
जब गुलाबी धूप
बड़ी नशीली हुआ करती थी
जब साथ साथ भीगना
किसी ईनाम से कम नहीं होता था
मैं यह इसलिए कह रहा हूं
क्योंकि अगर मेरे पास होता भी
तुम्हारे अल्फाजों का
वह पहला रेतमहल
तो भी आखिर वह कितने दिनों
सलामत रहता
अरे! मैं तो बताना ही भूल गया
कि तुम्हारे जाने के बाद
यहां कई तूफान आये
अंधड़ चले
जिनमें ढह गए
कच्ची रेत के वो तमाम
पक्के से लगने वाले महल
जिनमें अभी वक्त के पसीने का
गारा लगना था
इसलिए अच्छा ही हुआ
कि तुमने मुझे
घरौंदों की ख्वाहिश के सुरमई दिनों में
अल्फाजों का कोई
रेतमहल नहीं सौंपा था
मुझसे उसका ढहना देखा न जाता
मैं खुश हूं कि
पुलिसवाले की तलाशी के दौरान
मेरी पुरानी किताबों के बीच
तह करके छिपाया गया
तुम्हारा कोई प्रेमपत्र नहीं मिला
इसलिए नहीं कि उससे
मेरी क्रांतिकारिता का भाव गिरता
इसलिए कि
मेरे ही सामने
वह तुम्हारे नाजुक शब्दों से
बलात्कार करता
और मैं बेबस देखता रहता
उस समय न धरती फटती
न जलजला आता
मुझे बेनूर हो चुकी
अपनी पथराई आंखों से
वह मंजर देखना ही पड़ता
इसलिए अच्छा ही हुआ
जो तुमने मुझे कभी कोई
प्रेमपत्र नहीं लिखा
------------------.
13
लाओ, मेरे धन्यवाद वापस दो
मुझे पता है मेरा ये कहना
'लाओ, मेरे तमाम धन्यवाद वापस दो'
तुम्हें अटपटा लग रहा होगा
तुम इसे मजाक मान रही होगी
मगर मैं
मजाक नहीं कर रहा
मैं गंभीर हूं
ओफ्फो...! फिर बहस
मैं नहीं चाहता कि हम अब भी यहीं अड़े रहें
कि गलती किसकी है ?
यकीनन यह सवाल पेंचीदा है
मगर
बीजगणित के पास इसका हल है
जवाब पाने की सुविधा के लिए मान लेता हूं
मैं ही कुसूरवार हूं
जो तुम्हें
उस रास्ते को बताने के लिए धन्यवाद दिया
जिसके चप्पे चप्पे से मैं वाकिफ था
मगर मैं भी क्या करता
तुमसे बात करने के लिए मेरे पास
रास्ता पूछने के सिवाय
कोई और बहाना भी तो नहीं था
मुझे अफसोस है
मैंने तुम्हें यह याद दिलाने के लिए
धन्यवाद दिया था
कि आज सोमवार है
और सरकारी नियमों के मुताबिक
सोमवार को तमाम संग्रहालय बंद रहते हैं
मुझे यह स्वीकारते हुए अब झेंप हो रही है
कि मैंने ये जानकारी
आश्चर्यचकित होते हुए सुनी थी
जबकि सच ये है कि संग्रहालयों में
मेरी कोई दिलचस्पी ही नहीं है
...और याद्दाश्त मेरी कमजोर नहीं है
धन्यवाद अदायगी
तो महज उस झूठ का खामियाजा था
जो झूठ रास्ता पूछकर मैं पहले ही बोल चुका था
एक धन्यवाद वह.....
खैर छोड़ो! यह सूची बहुत लम्बी है
फिर भी मैं चाहता हूं
जब तुम मेरे दिए धन्यवाद वापस करो
तो अनमनी और उदास न दिखो
हालांकि यह तुम पर है
मेरी बात मानो या न मानो
मैंने तो बस इच्छा जताई है
वैसे मैंने यह बताने कि तो नहीं सोचा था
कि मैंने यह अटपटा निर्णय क्यों किया ?
दिए हुए धन्यवाद
इतनी बेरुखी से वापस क्यों मांग रहा हूं ?
पर अब तुम आग्रह ही कर रही हो तो
बताता हूं
दरअसल आजतक मैंने कभी कुछ देकर
कुछ पाने का रोमांच नहीं महसूस किया
मुझे नहीं पता
किसी को दिल दो तो बदले में क्या मिलता है ?
क्योंकि मैंने जब दिया
तो सोचा बदले में मुझे धड़कनें मिलेंगी
पर ऐसा नहीं हुआ
धड़कनें तो दूर
अदना सा एहसान भी नहीं मिला
कई बार लगा कहीं गफलत तो नहीं हुई
जिसे दिल दिया है
उसे पता भी है
कि वह जिस खिलौने से खेल रही है
वह मेरा दिल है ?
मगर जब उसने मेरे पास आकर
शिकायत के लहजे में कहा
तुम्हारे शरीर में गर्म खून नहीं है क्या ?
यह कैसा लिजलिजा सा है
न फिसलता है
न उछलता है...
सुनकर संतोष हुआ
चलो उसे पता तो है
मैं दाता हूं
मैनें हर बार चुनावों में
किसी न किसी को अपना भरोसा दिया
और बदले में थोड़ी सी उम्मीदें चाही
अपने हिस्से की धूप और बारिश चाही
मगर हर बार निराश हुआ
अपनी नींदों को मैंने
बेशुमार सपने दिए
सोचा
ये मेरी सुबहों को मालामाल कर देंगी
पर अफसोस ऐसा कभी नहीं हुआ
फिर तुम्हीं बताओ
मैं आखिर कब तक
नेकी करके दरिया में डालता रहता
बहुत हो गया
जब किसी ने खुद
कुछ पलटकर देने का मुझसे लिहाज नहीं बरता
तो मैं अपने धन्यवाद वापस मांगने में
संकोच क्यों बरतूं ?
किसी न किसी दिन तो ये होना ही था
वैसे भी मैंने कुछ अनुभवी किसानों से सुना है
अगले साल सूखा पड़ने वाला है
सरकारी मौसम विज्ञानी कुछ भी कहें
मुझे इन अनुभवी किसानों पर ज्यादा भरोसा है
क्योंकि वो आज भी
पूरब से आने वाली हवाओं से बोलते बतियाते हैं
पश्चिम को जाने वाली धूप से
सुख दुःख साझा करते हैं
परछाइयों के इशारे और रात की उम्र पढ़ने में
आज भी उनका कोई सानी नहीं है
उनके कदम दूरी नहीं
धरती का सब्र नापते हैं
इन अनुभवी किसानों का कहना है
धरती का सब्र जवाब दे रहा है
फिर बताओ
मैं और कितने दिन इंतजार करता
लाओ मेरे धन्यवाद वापस दो......
------------------.
14
मैं भी तुम्हारी जमात का हूं
मैं कई बार अपने आंसू पी चुका हूं
इसलिए पूरे यकीन से कहता हूं
मुझे तुम्हारे और अपने
आंसुओं के खारेपन में
जरा भी फर्क महसूस नहीं हुआ
मुझे कभी भी नहीं लगा कि किसी एक में
नमक या तेजाब ज्यादा है
मैंने अपनी और तुम्हारी
सांसों की गर्माइश को
बहुत गहराई से महसूसा है
मगर दोनों की तपिश में
कभी भी कोई फर्क नहीं पाया
फिर तुम्हें क्यों लगता है
तुम्हारे सीने में धधकती आग सुर्ख
और मेरे सीने की आग नीली है ?
नहीं दोस्त
आग, आग है
उसकी तासीर को
लाल और नीले की फेहरिस्त में न बांटो
आग को आग ही कहो
राख को राख ही कहो
चूल्हे बदल जाने से
आग की तासीर नहीं बदल जाती
माफ करना
पुरुष प्रवृत्ति
मर्दवादी सोच
पितृसत्ता
या इनके तमाम दूसरे पर्याय
कोई पुरुषांग नहीं .....
जो अनिवार्य रूप से
हर पुरुष में पाया ही जाय
यह एक मानसिकता है
जिसका मालिक कोई भी हो सकता है
मर्द भी, मादा भी
यह एक नशा है
जो किसी के सिर चढ़कर बोलने के लिए
लिंगबोध का ख्याल नहीं रखता
इसलिए मैं सहमत नहीं
कि पुरुष सब कुछ के बाद भी
पुरुष ही होता है
नाक के नीचे मूंछें
और कमर के नीचे पुरुषांग का स्वामी
होने के बावजूद मैं भी तुम्हारी जमात का हूं
क्योंकि स्त्री महज लिंगबोध नहीं
स्त्री एक वर्गबोध भी है
इस नाते बलात्कार की शिकार
सिर्फ तुम नहीं
मैं भी हूं
इस लड़ाई में हिस्सा मेरा भी है
यह सिर्फ
तुम्हारे हिस्से की लड़ाई नहीं है
मुझसे अपने कंधे सटे रहने दो
ताकि हम दुश्मन को
साथ साथ और एक साथ देख सकें
अलग अलग देखेंगे
तो वह हम पर भारी पड़ेगा
------------------.
15
संयोग से नहीं मिली तुम
मैं चाहूं तो अपनी बात
यूं भी कह सकता हूं
कि मुहब्बत और जंग में
सब कुछ जायज है
यह ढंग
बात को अर्थ भी देगा
और अंदाज भी
लेकिन माफ करना
मैं चापलूसों द्वारा बेदम कर दिये गए
इस मुहावरे की पीठ पर
नहीं चढूंगा
दूसरे की जुबान से
अपने दिल की बात नहीं कहूंगा
क्योंकि मैंने तुम्हें अक्षर अक्षर रचा है
अपनी पहली कविता की तरह
मैंने तुम्हें किरचे किरचे गढ़ा है
आखिरी मूरत की तरह
क्योंकि मुझे मालूम था
तुम्हारी खूबसूरती देखकर
बादशाह मेरे हाथ काट ही लेगा
मैंने तुम्हें आरती और अजान की तरह
गुनगुनाया है
ओ! मेरी मुहब्बत की नशीली धुन
सुन!
तुम मुझे संयोग से नहीं मिली
मैंने बहुत कोशिशें की हैं तुम्हारे लिए
फिर पाया है तुम्हें
हां, ये जरूर कहूंगा
तुम मुझे उम्मीद से ज्यादा मिली
बहुत ज्यादा
बल्कि कहूंगा बहुत ज्यादा से भी बहुत ज्यादा
मैंने तो बस चंद बूंदों की
ख्वाहिश की थी
मेरी भोली बदरिया
तुम तो झूमकर
पूरी की पूरी बरस गई मुझपे
मैं बागीचे की सरहद पर खड़ा
कनेर का फूल
तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूं
हां, हां मैं तुम्हीं से कह रहा हूं
पगली
सुन
सुलझा ये मेरी उलझन
क्योंकि मैं कभी नहीं मानूंगा
कि तुम्हारे इस तरह
उमड़ घुमड़कर बरसने के पीछे
किसी पश्चिमी विक्षोभ का कमाल है
अथवा
अचानक बने
हवा के किसी कम दबाव वाले क्षेत्र का
या चक्रवाती तूफान का
नहीं ऐसा हरगिज नहीं है
ये सच है
मैंने तुमसे
इस तरह बरसने की उम्मीद नहीं की थी
फिर भी तुम मानसून की झड़ी नहीं हो
कि बरसना ही था
तुम मुहब्बत की वह कड़ी हो
जिसे मैंने
दिन रात एक करके जोड़ा है
तुम संयोग से नहीं मिली मुझे
मैंने तुम्हें बहुत कोशिशों से पाया है
मैं देखने की शुरुआत से
देखने की सीमा तक
तपता हुआ रेगिस्तान था
मदारों और नागफनियों से भरा
मेरी सुप्त सलिला
तुमने मुझे
लहराता हुआ दरिया बना दिया
हां! हां!!
लहरों का प्रियतम
अब ये साहिल
तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करे
मैं यही सोचता रहता हूं
गुमसुम गुमसुम
क्योंकि
तुम सगर पुत्रों की नियति नहीं
मेरा भगीरथ प्रयास हो
तुम मुझे महज
जटाओं के खोल देने से नहीं मिली
मैंने बहुत तपस्या की है तुम्हारे लिए
फिर पाया है तुम्हें
संयोग से नहीं मिली तुम....
------------------.
16
तुम्हारी दूरबीन
जब तुमने सहजता से कहा
मैं किसी से दोस्ती करने से पहले
उसकी जन्म तिथि देखती हूं
तो मुझे हैरानी नहीं हुई
तुम पर थोड़ा तरस जरूर आया
नहीं
मैं ऐसा नहीं कहता
कि जन्मतिथि की दूरबीन से
कुछ भी नहीं दिखता
यकीनन इससे जिन्दगी के आंगन का
बहुत कुछ दिखता है
तुम कई दस्तावेजी तकनीकी सच
इस दूरबीन से देख सकती हो
तमाम निष्कर्ष निकाल सकती हो
मसलन
निष्कर्ष, सरकारी नौकरी की बची संभावनाओं का
निष्कर्ष, त्वचा में पड़ने वाली झुर्रियों का
(बावजूद बोटोक्स के प्रतिरोध के)
निष्कर्ष, किसी के पसंदीदा पहनावे का
(पसंदीदा हीरो जानने के बाद)
निष्कर्ष, फुरसत में या समय काटने के लिए
सुनाए जाने वाले मंहगाई के किस्सों का
लेकिन कहता चलूं ...ताकि सनद रहे
जन्मतिथि की इस दूरबीन से
सब कुछ साफ साफ नहीं दिखता
वजह फिर चाहे
दिखने की ठोस सैद्धांतिकी का अभाव हो
या देख पाने की क्षमता
जन्मतिथि की दूरबीन
उम्र के भरे भदूले आंगन में बिखरी
तमाम सच्चाइयों को बिलकुल नहीं देख पाती
जैसे
ख्वाहिशों के मुजस्समें की झुर्रियां
महत्वाकांक्षाओं का ओर छोर
हौंसले का गलनांक बिंदु
समझदारी के थर्मामीटर की हलचल
और उम्मीदों की ध्रुवीय ज्योति
जन्मतिथि के गणित से तुम मेरी
उड़ान का आसमान नहीं नाप सकती
सच्चाई तुम्हें वैसे ही हैरान कर सकती है
जैसे यमराज को किया था
नचिकेता के सवालों ने
जैसे द्रौपदी को किया था
कुरु सभा में
महारथियों की झुकी निगाहों ने
उम्र एक हद तक नजर तो देती है
नजरिया नहीं
नजरिया उम्र की तिथि का गुलाम नहीं है
इसलिए मुझे शक है कि तुम
मुझे जन्मतिथि की दूरबीन से देख पाओगी ?
देखा भी तो कितना देख पाओगी ?
------------------.
17
चिट्ठी
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहे जाने वाले
उस पुलिस सब-इंस्पेक्टर को
अब भी यकीन नहीं हो रहा
कि मारे गये आतंकवादी की
कसकर बंद मुट्ठी से मिला पुर्जा
उसके महबूब की चिट्ठी थी
उसकी आखिरी निशानी
जो उसने उसे
आखिरी बार बिछुड़ने से पहले दी थी
न कि किसी आतंकी योजना का ब्लू प्रिंट
जैसा कि उसके अफसर ने
उसके कान में फुसफुसाकर बताया था
पुलिस अफसर के मुताबिक
भला कागज के एक टुकड़े के लिए भी
कोई अपनी जान देता है ?
73
नामुमकिन
ऐसा हो ही नहीं सकता
काश ! अघाई उम्र का वह अफसर
कभी समझ पाता कि चिट्ठी
महज लिखे हुए कागज का टुकड़ा
या निवेश पत्र भर नहीं होती
कि वक्त और मौसम के मिजाज से
उसकी कीमत तय हो
कि मौकों और महत्व के मुताबिक
आंकी जाए उसकी ताकत
काश! सिर्फ आदेश सुनने
और निर्देश पालन करने वाला
वह थुलथुल पुलिस आफीसर
जो खाली समय में अपनी जूनियर को
अश्लील एसएमएस भेजता रहता है
कभी समझ पाता
कि चिट्ठी के कितने रंग होते हैं ?
उसकी कितनी खुश्बुएं होती हैं
कि कैसे बदल जाते हैं
अलग अलग मौकों में चिट्ठी के मायने
सरहद में खड़े सिपाही के लिए चिट्ठी
महज हालचाल जानने का जरिया नहीं होती
देश की आन बान के लिए
अपनी जान से खेलने वाले सिपाहियों के लिए
महबूब का मेहंदी लगा हाथ होती है चिट्ठी
निराशा से घिरे क्रांतिकारी के लिए
उसमें हौंसला भर देने वाला विचार होती है चिट्ठी
चूमकर चिट्ठी वह ऐलान कर देता है
'शून्य थेके शुरु'
साथी! चलो फिर शुरू करते हैं शुरु से
सब-इंस्पेक्टर से झूठ कहता है उसका ऑफीसर
कि कोई मुट्ठी में दबी मामूली चिट्ठी के लिए
जान नहीं दे सकता
उसे पता नहीं
प्रेमियों के लिए क्या मायने रखती है चिट्ठी ?
उसके लिए चंद अलफाजों की ये दुनिया
समूचा कायनात होती है
जो उन्हें जीने की हसरत देती है
और जरूरत पड़ने पर मरने का जज्बा भी
क्योंकि चिट्ठी
महज कागज का टुकड़ा भर नहीं होती...
------------------.
18
बेचैन सफर
मैं तो सोच रहा था
मेरी चुप्पी तुमसे सब कुछ कह देगी
मेरा मौन तुम्हारे अंतस में
स्वतः मुखरित हो जायेगा
लेकिन लगता नहीं है कि बात बनेगी
बनेगी भी तो पता नहीं
कितना वक्त लगेगा
मेरा धैर्य अब जवाब दे रहा है
मैं अब अपनी बात कहे बिना
रह नहीं सकता
सोचता हूं शुरूआत कहां से करूं
वैसे एक आइडिया है
जो शायद तुम्हें भी पसंद आए
आओ बातचीत के मौजूदा क्रम को
बदल लेते हैं
आज जवाबों से
सवालों का पीछा करते हैं
पता है
हम तुम क्षितिज क्यों नहीं बन पाए?
इसलिए कि मैं तो तुम्हें धरती मानता हूं
मगर तुम मुझे आसमान नहीं समझती
तुम्हें लगता है
तुम पर समानुपात का नियम
लागू नहीं होता
मगर एक बात जान लो
मैं भी हमेशा
पाइथागोरियन प्रमेय नहीं रह सकूंगा
मेरी समझदारी का विकर्ण हमेशा ही
तुम्हारी ज्यादती के लम्ब
और नासमझी के आधार के
बराबर नहीं होगा
मैं द्विघाती समीकरणों का
एक मामूली सा सवाल हूं
कितने दिनों तक उत्तरविहीन रहूंगा?
क्यों मुझे फार्मूलों की गोद में डाल रही हो?
तुम्हें पता है न
मैं बहुत प्यासा हूं
मेरे हिस्से के मानसून का अपहरण न करो
शायद तुम्हें मालूम नहीं
मैं धीरे धीरे रेत बनता जा रहा हूं
इतनी ज्यादती न करो
कि मैं पूरा रेगिस्तान बन जाऊं
तुम्हें क्या लगता है
इस उम्र में मुझमें प्रयोगों का नशा चढ़ा है?
भुलावे में हो तुम
इस उम्र में
मैं थामस अल्वा एडिसन बनने का
रिहर्सल नहीं कर सकता
मेरा बचपन जिज्ञासाओं की आकाशगंगा
निहारते गुजरा है
मुझे समय को परछाइयों से
और धूप को जिंदगी से
नापने की तालीम मिली है
मैं इसी विरासत की रोशनी में
अपने मौजूद होने को दर्ज कर रहा हूं
जिन्हें तुम प्रयोग कहती हो
दरअसल वह मेरे स्थायित्व की खोज का
बेचैन सफर है
------------------.
19
जब मैं तुम होकर सोचता हूं
कभी कभी
जब मैं तुम होकर सोचता हूं
तो लगता है
समय को अदद संख्याओं की तरह
सिर्फ दिनों, महीनों, सालों, घंटों
या मिनटों में ही
तकसीम नहीं किया जा सकता
न ही इसके बेहतर प्रबंधन का मतलब है
नौ से पांच के दफ्तर में
ज्यादा से ज्यादा
कामकाजी बैठकें निपटा लेना
या तय लक्ष्य से
पच्चीस फीसदी ज्यादा काम कर लेना
तुम होकर सोचने पर लगता है
समय को तकसीम करने का
एक बेहतर तरीका है
उसे कागजों में न उतरने वाली
शब्दों में न ढलने वाली
और होंठों से सुरों में न फूटने वाली
कविताओं में ढाल देना
फिर चाहे
इनका नाम कुछ भी रखा जाय
तुम होकर सोचने पर
समय को कई इकाइयों में
तकसीम करने का
एक तरीका
आदमकद आईने के सामने
आंचल संवारते हुए
एक ऐसी गुनगुनाहट में डूब जाना भी है
जिसका शब्दकोशों में
कोई मतलब नहीं होता
तुम होकर सोचते हुए
समय के बेहतर उपयोग का मतलब है
पसंदीदा लिपिस्टक के होंठों में सजाने को
दुनिया के सबसे बारीक
कौशल में तब्दील कर देना
जब मैं तुम होकर सोचता हूं
तो समय के बेहतर प्रबंधन का मतलब होता है
दाल बीनकर
मसाला पीसकर
पहले से ही रख लेना
और डाइनिंग टेबल में पड़े अखबार को
चुपके से स्टडी टेबल में रख आना
ताकि जब शाम की चाय
साथ साथ पी जाय
तो रसोई की चिंता
उन अनमोल क्षणों को
जीने में खलल न डाले
और जब काढ़े जाएं तारीफ के कसीदे
तो पाकिस्तान के हालात
और शेयर बाजार का हाल
कंजूसी न होने दे
------------------.
20
तुम्हारे बिना एक दिन
कई सच इतने बड़े होते हैं
कि मुहावरों की मुट्ठी में भी नहीं अंटते
उपमाओं की गिरफ्त से छिटक जाते हैं
इसलिए अगर मैं कहूं
तुम्हारे बिना एक दिन
कई प्रकाशवर्षों से भी बड़ा लगा
तो इसे झूठ मत समझना
चाहत की अनंतता के सामने
ब्रह्मांड बहुत छोटा है
अगर मैं कहूं तुम्हारे बिना
मेरा एक दिन
पहाड़ जैसा गुजरा
तो मान लेना
कि यह पूरे सच का
महज 1/1,00,000वां हिस्सा भर है
पूरा सच तो मैं ही जानता हूं
कि कैसे गुजरा
तुम्हारे बिना पूरा एक दिन
शायद इसलिए मैं उन लोगों से
कतई सहमत नहीं
जो भावनाओं का
तर्जुमा करने का दावा करते हैं
मेरा दावा है
स्टीरियोफोनिक तकनीक का
कोई भी चमत्कार
मेरी फुसफुसाहटों को नहीं सुन सकता
सुन भी लिया
तो समझ नहीं सकता
जिसका तुम पलक झपकते जवाब दे देती हो
समझदारी कुछ भी दावा करे
लेकिन कोई भी समझदारी
चौंकने की आदत को
हमेशा हमेशा के लिए
खत्म नहीं कर सकती
इसीलिए लाख समझदार होने के बावजूद
मैं कान में पड़ने वाली
हर आवाज पर चौंका
चाहे वह आवाज
कूड़े वाले की रही हो या कबाड़ी वाले की
मैंने ऐसी तमाम आवाजों को
तुम्हारी हाय! गुडमार्निंग ही सुना
यह जानते हुए भी
कि जहां मैं हूं
वहां तुम नहीं आओगी
और जहां तुम हो
वहां मैं नहीं पहुंच सकता
फिर भी मैं तुम्हें हर आवाज में
ढूंढ़ता रहा
हर साये में तलाशता रहा
तुम्हारे बिना
बड़ी बदहवासी में गुजरा
पूरा एक दिन
लोग कह सकते हैं
समय के कलेंडर में
आखिर क्या कीमत है एक दिन की
मैं कहूंगा समझा जाए तो बहुत कुछ
न समझा जाए
तो कुछ भी नहीं
एक दिन में
तख्त उलट जाते हैं
एक दिन में
आप हमेशा के लिए किसी के हो जाते हैं
एक दिन में
देश आजाद हो जाते हैं
और कौमें गुलाम हो जाती हैं
न जाने कैसे कैसे ख्यालों में गुजरा
तुम्हारे बिना मेरा एक दिन...
21
प्यार और इंतजार से चलती है दुनिया
मैंने सोचा दुनिया ताकत से चलती है
लेकिन मान लेता इससे पहले ही
सामने आ खड़ा हुआ इतिहास
जो ताकतवर लोगों के
भयानक हश्रों से भरा था
मैंने खारिज किया
अब मैंने सोचा दुनिया शायद
दौलत से चलती है
लेकिन मान लेता इसके पहले ही
सामने आ खड़ा हुआ बाजार
जो इस हकीकत से दो चार था
कि दौलत से
न तो एक पल की अतिरिक्त जिन्दगी
खरीदी जा सकती है
न ही सुकून
मैंने दौलत को भी खारिज किया
फिर मैंने एक-एक करके
बहुत सी चीजों के बारे में सोचा
कि दुनिया शायद उनसे चलती होगी
मगर अफसोस
कि सबको एक-एक करके
खारिज करना पड़ा
क्योंकि दुनिया उनमें से किसी से
नहीं चल रही थी
मैं परेशान होकर सो गया
सुबह मेरी आंख
चिड़ियों के शोर और सूरज की आंच से खुली
मैंने खिड़की से बाहर
दौड़ते-भागते लोगों की रेलमपेल देखी
जो रोज ही देखता था
लेकिन आज एक और चीज देखी
जो शायद आज के पहले
कभी नहीं देखी थी
मैंने इन दौड़ते-भागते
लोगों के चेहरों के 'इनसेट' में
एक साझा तस्वीर देखी
लाखों लाख चेहरे
मगर एक ही तस्वीर
जिसमें मासूम बच्चे
हाथ हिलाते हुए
अपनी तोतली जुबान में कह रहे थे
मम्मी/पापा जल्दी आना
यह तस्वीर
देखते ही मैं समझ गया
कि दुनिया किससे चलती है
जी, हां सही समझा
दुनिया
प्यार और इंतजार से ही चलती है
------------------.
22
तुम उदास मत होना
तुम उदास मत होना
मैं जल्द ही फिर लिखूंगा
प्रेम कवितायें
अब तो मेरे पास
कहने के लिए भी बहुत कुछ है
अब मुझे
अपना प्रेम जताने के लिए
किसी टेनीसन, किसी इलियट की
पंक्तियां भी नहीं चुरानी पड़ेंगी
हां, तुलसी और गालिब के बारे में
मैं कुछ नहीं कहता
क्योंकि
हाल ही में रक्तदान के लिए हुई
खून की जांच से पता चला है
कि खून सिर्फ पानी, प्लाज्मा
और कुछ अलग अलग कणिकाओं का
समूह भर नहीं होता
खून में
हवा, मिटटी, पानी, मौसम, जुबान, सपने
और पुरखे भी घुले होते हैं
बूंद बूंद में
हर बुलबुले में ...
23
कोरा कागज
तुमने कहा मेरी हंसी बहुत सुंदर है
मैं हंसता हूं
तो लगता है जैसे थाल में सजे मोती बिखर रहे हों
मैं हंसता हूं
तो लगता है जैसे सितारे झिलमिला रहे हों
मैं हंसता हूं
तो लगता है जैसे झरने गुनगुना रहे हों
ये सब सुनकर मैं अचकचा गया
कुछ सूझ ही नहीं रहा था, कहूं क्या
यह जुबान छीन लेने वाली तारीफ थी
मेरा पोर पोर भीग गया
गला रुंध गया
तुम्हारी तारीफ के नशे में निहाल हो गया
हालांकि मैं जानता था
ये झूठ है
मेरी हंसी खूबसूरत नहीं है
लेकिन तुमने तारीफ की
तो भला सच्चाई की परवाह कौन करता?
सच्चाई को मैंने एक बुरे सपने की माफिक
दिमाग से दफा कर दिया
तुम्हारी तारीफ की यह कौंध
दिल के कोरे कागज में
हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गयी
मैं गुमान से भर गया
मैं आसमान में तैरने लगा
मैं जमीन में चलना भूल गया
हालांकि दिमाग के किसी कोने में
दुबका खड़ा सच
अब भी मुझे इशारे कर रहा था
...और मेरी नासमझी पर कंधे उचका रहा था
जैसे हर तरीके से समझा रहा हो
कि मेरी हंसी जादुई नहीं है
मगर बेचारे सच की तब
सुनने वाला कौन था ?
मगर आज जब झगड़े में तुमने कहा
खुद को देखा है कभी कैसे लगते हो ?
तो मैं सन्न रह गया
उस समय सच मुस्कुरा रहा था
मेरी परवाह किये बिना
पूरी निर्लज्जता से...
समझ नहीं आ रहा था खीझूं
खुद पर तरस खाऊं
या सच पर गुस्सा होऊं
मैं सिर्फ झेंप रहा था
फुर्र हो गयी थी तमाम बेफिक्री
कामना कर रहा था उन पलों में सीता की तरह
काश ! धरती फट जाती....
मैं जानता हूं तुमने ये गुस्से में कहा है
सफाई न भी दो तो भी सच यही है
मगर इसे गुस्से में कहा है
तो तारीफ भी तो प्यार में ही की थी
अगर ये सच नहीं है
तो वो भी तो सच नहीं था
दरअसल समस्या सच या झूठ कि है ही नहीं
समस्या है कोरे कागज की
दिल का ये कोरा कागज
सिर्फ एक बार और आखिरी बार ही
कोरा रहता है
एक बार इस पर कुछ दर्ज हो जाये
तो फिर वही दर्ज रहता है
सालों साल जीवन भर
इसे खुरचने या मिटाने का कोई हुनर नहीं है
कोई रबर नहीं है
खुर्चो तो खुरदुरा हो जाता है
रगड़ो तो काला पड़ जाता है
कोरे कागज में जो दर्ज हो जाए
उसे मिटाने या छुपाने का
कोई जतन नहीं है
इसलिए बस एक गुजारिश है
अगर मुझसे प्यार करती हो
और मैं जानता हूं करती हो
तो बस इतना करना
कभी सॉरी मत कहना
यह नाराजगी का अपमान होगा
मैं दो दो अपमान नहीं झेल सकता
बड़ी मुश्किलों से
सच से नजरें मिलाना सीख रहा हूं
------------------.
24
तुम्हारी छुअन
पता है
कल मेरी कमीज की उलझी हुई कालर को
सतर करते हुए
तुमने जो टांक दी थी
अपनी अंगुलियों की एक छुअन
वह पूरे दिन मेरे साथ रही
हमने आपस में खूब बातें की
मौसम की
कुदरत की
जमाने की
...और हां तुम्हारी भी
लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊंगा
हम दोनों के बीच एक करार हुआ है
जो मेरे भी फायदे में है
क्योंकि मुझे तुम्हारी और छुअनों का
बेसब्री से इंतजार है
अगर मैंने करार तोड़ दिया
तो मुझे तुम्हारी अगली छुअनें कुछ नहीं बतायेंगी
फिर मैं किसके साथ आसमान में उड़ूंगा
हवाओं में महकूंगा
कैनवास में बिखरूंगा
और नाक से नाक भिड़ाकर
मुठभेड़ करूंगा
मैं यह करार तोड़कर अपनी दुनिया नहीं उजाड़ूंगा
पता है तुम्हारी छुअनों से ही मैंने जाना
धरती वाकई गोल है
हर अपनत्व में एक मां होती है
और हर नजाकत में एक प्रेमिका
तुम्हारी छुअनों से ही मैंने जाना
लोहा, लोहा होता है
वह नया या पुराना नहीं होता
उसे जब भी आंच दिखाओगे
वह गर्म होगा
वह लाल होगा
और गर्म लोहे को तुम
किसी भी सांचे में ढाल सकती हो
तुम्हारी छुअनों से ही मैंने जाना...
------------------.
25
मैं दिहाड़ी में ढोल बजाता हूं नगाड़ा नहीं
क्या हुआ जो चुपके से
सदी गुजर गई
क्या हुआ जो निगाहों की
चटख धूप ढल गई
क्या हुआ जो नजरें बड़े को
छोटा देखने लगीं
साफ को धुंधला देखने लगीं
मेरी पुतलियों में ठिठका ख्वाब
तो अब भी उतना ही जवान है
जितना समन्दर की लहरों का हौंसला
जो आज भी वैसा ही है, जैसा कल था
मेरी पलकों में ठहरा ख्वाब, अब भी
उतना ही सुर्ख है
जितना सुर्ख मैंने
पहली बार तुम्हारा चेहरा देखा था
अपने यह कहने पर
कि मुझे तुमसे कुछ कहना है
पहली बार इन मामूली शब्दों से मैंने
कनपटियों को लहू-लुहान होते देखा था
मेरी पलकों में कैद वह सुर्खरु एहसास
अब भी ज्यों का त्यों है
बसंत के वज्रनाद की प्रतीक्षा में यह मासूम
न दुबला हुआ है
न धुंधला हुआ है
फिर तुम्हीं बताओ
क्या मैं महज वृद्धावस्था पेंशन के लिए
अपने इस गुनगुने सपने को
अपनी पुतलियों से नीचे पटक दूं
मैंने इस ख्वाब को पूरी उम्र जीया है
इसकी सांसों से अपनी सांसें और इसके एहसास से
अपनी जुबान पायी है
क्या फिर भी मैं
इसे अपनी पुतलियों में फंसा किरका कहूं
ताकि सरकारी डॉक्टर के पास
मेरे मोतियाबिंद का आपरेशन करने के लिए
कोई बहाना न रहे
नहीं
मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा
जिसे मैंने ताउम्र अपनी आंखों में चमकते देखा है
मजिस्ट्रेट के सामने
उसे अपनी आंखों का धोखा नहीं कहूंगा
कुछ भी हो जाए
जिस तासीर को ताउम्र मैंने अपने खून में मचलते पाया है
उसे बेचैनी ही कहूंगा
फिर चाहे चरित्र प्रमाण पत्र बने या न बने
मैं मानता हूं
मेरे बारे में तुम्हारी यह जानकारी दुरुस्त है
कि मैं दिहाड़ी पर ढोल बजाता हूं
मगर इसका मतलब यह नहीं है
कि मैं दिहाड़ी पर नगाड़ा भी बजा सकता हूं
शायद तुम्हें पता नहीं
नगाड़ा बजाने के लिए
कलाइयों की कलाबाजी भर ही नहीं
मजबूत दिल और बेचैन जिगर भी चाहिए
जिसकी कीमत
कोई दिहाड़ी देने वाला नहीं दे सकता
इसलिए
मैं ढोल दूसरों के लिए
और नगाड़ा अपने लिए बजाता हूं
------------------.
26
विरासत
माँ
मैं अब बड़ा हो गया हूँ
धीरे-धीरे ही सही
जमने लगा है मेरा कारोबार भी
अब गोते नहीं खाता
गच्चे नहीं खाता
बेंच लेता हूँ काफी कुछ
न बिकने लायक भी
मगर इतना कारोबारी नहीं हुआ
कि बेंच देता
तुम्हारे वो मटमैले अक्षर
जो वर्णमाला के होते हुए भी
व्याकरण के चश्मे से
जरा भी कुलीन नहीं दिखते
मगर जिन्हें पकड़-पकड़कर
तुम रच लेती हो
अपने मंगलगीत
अपनी प्रार्थनाएं
अपनी परी कथाएं
अपने नियम
अपनी मौजूदगी
जिन्हें जोड़-जोड़कर
तुम देती हो अशीशें
बुदबुदाती हो रहस्यगान
बुनती हो भ्रम, कारगर मंत्रों का
जिनके करामाती मेल-मिलाप से
कभी-कभार
चढ़ा लेती हो अपनी त्योरियां
सहमा देती हो दिग-दिगंत
तुम्हारे वो तमाम अक्षय-अक्षर
जिन्हें सहेज-सहेजकर
तुम मुस्कुराती हो अद्वैत सी
जिनसे दिखते हुए विरक्त
तुम रचती हो विराग
जिनसे मिलते हुए गले
तुम गढ़ती हो एक द्वंद
माँ
सुरक्षित हैं मेरे पास
तुम्हारे ये अक्षर
बनकर विरासत की थाती
मैंने सहेजकर रखा है इन्हें
जैसे बिना लिखे सहेजे हैं तुमने
पीढ़ी दर पीढ़ी
मंगलगीत, परीकथाएं
बिना यह जाने
कि उनका रचयिता कौन है ?
बिना इस बहस में पड़े
कि उनका आशय क्या है ?
बिना यह देखे
कि उनका नतीजा क्या है ?
माँ
दिल्ली और मुंबई के
बड़े-बड़े बाजारों में
जहां हर चीज के ग्राहक हैं
मैंने कभी नहीं बेचे तुम्हारे
ये मटमैले अक्षर
जिनको मिला-मिलाकर
अब भी तुम बनाती हो
अपना बबलू
सफर की जरूरतों ने हालांकि
बोझ बहुत बढ़ाया
शिष्टता के दबाव ने हालांकि
बहुत परीक्षा ली
फैशन की तेज रफ्तारी ने हालांकि
खूब आग्रह किया
मगर मजबूती से पकड़े रखा मैंने
तुम्हारे अक्षरों की यह पोटली
किसी मुस्कुराते हुए कृष्ण को भी मैंने
नहीं छीनने दिया
स्नेह की जबरई में ये पोटली
ठुकरा दिया है मैंने दो-दो लोक
क्योंकि मुझे मालूम है
मेरे पास मौजूद तुम्हारे
मटमैले अक्षरों की यह पोटली
किसी गरीब सुदामा की
तांदुल पोटली नहीं है
द्वारिकाधीश के महलों दुमहलों से
कहीं कीमती है
------------------.
27
काश तुम देखते...
काश ! तुम होते और देखते
कि किस तरह ढह गयीं
वो इमारतें
जिनके पास था हिसाब पल-पल का
दुनिया की चल और अचल
गतिविधियों का
जिनके पास था पूर्व आंकलन
उत्तरी गोलार्ध से
दक्षिणी गोलार्ध तक की
बदलती हुई जलवायु का
काश ! तुम देख पाते
कि कैसे क्षरित हो गए वो ताजमहल
प्रदूषण से
जिन्हें शहंशाहों ने
अपनी कब्रों के लिए बनवाया था
मौत से पहले
मगर तुम्हारे चुम्बन का देवत्व
अब भी मेरे होठों पर
ज्यों का त्यों है
28
साझी पहचान
नारीवादियो मुझे माफ करना
मैं
'अपनी पहचान, अलहदा पहचान' के दर्शन को
नकारता हूं
इसके लंबे इतिहास
और गहरे सामाजिक प्रभावों के बावजूद
मैं अलहदा नहीं
साझी पहचान का हिमायती हूं
और दावे से कह सकता हूं
जिसने भी इसके पक्ष में तुम्हारे कान भरे हैं
उसे विलयन और संलयन के
रसायनबोध का जरा भी इल्म नहीं है
वरना
वह पानी को पानी रहने देता
उस पर हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की
दोहरी पहचान का बोझ न लादता
मैं, मैं हूं
तुम, तुम हो
हमारी इस भौतिक प्रापर्टी को
भला कौन नकारेगा ?
मगर सच यह भी है
कि मैं तुम्हारी अनकही
उपकथाओं का शंकुल हूं
तुम मेरा आख्यान
हम दोनों
मिलकर ही उपन्यास बनते हैं
न मेरे बिना तुम कहानी हो
न तुम्हारे बिना मैं आख्यान
मानो या न मानो
मेरी अनुपस्थिति में
तुम महज घटना हो
परिघटना नहीं
तुम्हारी गैर मौजूदगी में, मैं
महज परिणाम हूं
एहसास नहीं परिणाम से एहसास तक
हर घटना की परिघटना
हम
सिर्फ साझे होने पर ही हैं
अलग अलग होने पर नहीं
तुम कहती हो मैं एक किनारा हूं
मैं भी कहता हूं
मैं भी एक किनारा हूं
और नदी
हम दोनो से होकर बहती है
जरा बताओ मुझे
नदी के किनारों की भी कोई अलग से
पहचान होती है?
नदी और उसके किनारे
दो हैं ही नहीं
किनारा तो मल्लाहों की
सहूलियत का संबोधन है
पता नहीं तुमने महसूस किया या नहीं
मैं बुना हुआ नहीं
अन्तर्व्याप्त सन्नाटा हूं
मुझसे ही तुम्हारी
मुखरता ध्वनित होती है
किसी के बहकावे में आकर
तुम मुझे
अपने दोहरे इन्वर्टेडकामा में होने की
कुलीनता न दिखाओ
मैं बिसर्ग बिन्दुओं के भरोसे
नश्वरता से अमरता तक पसरा
तुम्हारा ही आख्यान हूं
मैं मानता हूं
तुम बहुत गहरी नशीली धुन हो
तुममें डूबकर कोई बाहर नहीं निकल पाता
लेकिन तुम्हें शायद पता नहीं
मैं कौन हूं
मैं ललित सुरों से संगति करता
लंबा मौन अलाप हूं
मेरे अंतराल को
मेरा विलोपन न समझो
मेरा यही अंतराल
तुम्हें नशीली धुन बनाता है
तुम्हें बेचैन गूंज में ढालता है
हमारी तुम्हारी
भला कहां दो पहचानें हैं
तुम धूप हो
मैं ऊष्मा हूं
तुम हवा हो
मैं सुगंध हूं
क्या धूप से कोई
उसकी तासीर अलग कर सकता है?
फिर ऊष्मा को
अपनी अलग से पहचान की क्यों जरूरत हो?
भले प्रयोगशालाओं में
हवा से बिलगा दी जाती हो सुगंध
लेकिन प्रकृति में तो
सुगंधित हवा ही होती है
न कि हवा में सुगंध
...और लगता नहीं कि मुझे
यह कहने की जरूरत है
कि प्रकृति पूर्ण है
प्रयोगशाला नहीं
बहुत हो गए तर्क वितर्क और कुतर्क
अब तुम मुझे
अपनी पहचान में समा जाने दो
और मेरी पहचान में तुम
तिरोहित हो जाओ
तुम्हारे बिना मैं
बिना तारीख का कलेंडर हूं
मेरे बिना तुम
कालातीत इतिहास हो
आओ मिलकर वर्णमाला से निकाल दें
'मैं' और 'तुम'
और सृजित करें
पहचान की एक साझी वर्णमाला
पहचान का एक
साझा शब्द विन्यास
------------------.
29
मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊंगा....
तुम भले हंसो
मगर मैं कहते हुए गंभीर हूं
कि मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊंगा
न सिर्फ जिंदगी के अलबम का एक मास्टर प्रिंट
न सिर्फ उस खंडहर वाली भूलभुलैया का रहस्य
जिसके सुरमई अंधेरों में हम असमय जवान हुए थे
मैं और भी बहुत कुछ लेकर जाऊंगा
मैं लेकर जाऊंगा एक धुन
जो ताउम्र मेरे कानों में बजती रही
मगर पूरी तरह से कभी समझ नहीं आयी
समझने की कोशिश में हमेशा
कभी राग छूट जाता, कभी लय टूट जाती
मैं इसे किसी से साझा भी नहीं कर सका
सबके पास अपनी अपनी धुनें थीं
और सब मुब्तिला थे उनके अधूरेपन की कसक में
धुंधला था संगीत और अजनबी थी उसकी लिपि
मैं इसे लिखकर भी नहीं छोड़ सका
ये मेरे साथ ही चली जायेगी
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा
वो कई स्वाद
जो पता नहीं अभाव के थे या अपनत्व के
घर छोड़ने या छूट जाने के बाद
मैं इन्हें हर जगह तलाशता रहा
नामों में, भीड़ में, भूगोल में, इतिहास में
ताकि हुमक कर दुनिया को बता सकता
हां, ये बिलकुल वैसे ही हैं
कच्चे, बाकठ, कसैले
मगर ढूंढता ही रहा उम्र भर
कहीं नहीं मिला इनके जैसा कोई और स्वाद
अब तो मुझे भी भ्रम है
ये स्मृति में बचे हैं या इच्छाओं में
अब ये मेरे साथ ही चले जायेंगे
मैं अपने साथ थोड़ा नहीं
बहुत कुछ लेकर जाऊंगा
वो हिम्मतें
जो मेरे सिवा सबके लिए हास्यास्पद थीं
वो तरकीबें
जो खालिस मेरी अपनी थीं
जिन्हें कोई प्रबंधन संस्थान नहीं सिखाता
जिन्दगी का ऊबड़ खाबड़ ही सिखाता है
वो मेरी मौलिक कल्पनाएं
जिन तक दुनिया के किसी भी
व्यवस्थित ज्ञान के जरिये पहुंचना तय नहीं
सिर्फ मन के बिगड़ैल घोड़े ही
इस दुनिया का पता जानते हैं
मैं साथ लेकर जाऊंगा
अपने सपनों की एक भरी पूरी तिलस्मी दुनिया
क्योंकि मैं इनका बायोलॉजिकल पासवर्ड हूं
मेरा तोड़ बड़े से बड़े हैकर के भी पास नहीं है
कोई कितना ही दावा कर ले
कि वो मेरे सपनों को जानता है
मगर मैं जानता हूं कोई नहीं जानता
मेरे सपनें बस मेरे हैं
अधेड़, अनगढ़ और अधूरे...
और हां, उनके बारे में तो कोई कुछ
सोच भी नहीं सकता जिनका अपने ही हाथों से
मैंने गला घोंटा है
तुम शोक मनाना
क्योंकि मेरे जैसा फिर कोई दूसरा नहीं होगा
दूसरा, दूसरा ही होगा
तुम सचमुच मेरे जाने का शोक मनाना
क्योंकि मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा
एक मुकम्मिल दुनिया
आवाजें, तरंगे, बारिश और आग
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा
एक तजुर्बा, जो सीखा नहीं जा सकता
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा
एक आदमी जितनी खाली जगह
जिसकी भरपाई नहीं हो सकती
मैं अपने साथ लेकर जाऊंगा
अपनी आदिम इच्छाएं
जो इतनी ठोस नहीं थीं
कि उनकी प्रतिकृतियां गढ़ी जा सकतीं
और इतनी नियमबद्ध नहीं थीं
कि कोई नैनो टेक्नोलॉजी
उनकी नकल कर सकती
मैं वो सब अपने साथ लेकर जाऊंगा
जिनसे खड़ी ढलान पर
नंगी जड़ों वाला कोई पेड़
जी जाता है पैंतालीस बसंत
------------------.
COMMENTS