स्मृतिशेष कैलाश वाजपेयी : एक दार्शनिक-आध्यात्मिक कवि (कैलाश वाजपेयी) 11 नवंबर, 1936 को उतरप्रदेश के हरीमपुर में जन्में...
स्मृतिशेष
कैलाश वाजपेयी : एक दार्शनिक-आध्यात्मिक कवि
(कैलाश वाजपेयी)
11 नवंबर, 1936 को उतरप्रदेश के हरीमपुर में जन्में कैलाश वाजपेयी का 1 अप्रैल को दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली के मैक्स अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें उनकी बेटी अनन्या ने मुखाग्नि दी।
नेहरू युग से मोहभंग के काल में सर्वाधिक प्रभावित नई कविता के नई कवियों में प्रमुख कवि कैलाश वाजपेयी कविताओं के माघ्यम से अर्थ नहीं अर्थहीनता को समझने और रंखांकित करने का प्रयास किया। उन्होंने मानवता और मानवीयता के घटते ग्राफ को देखते हुए कहा था 'भविष्य घट रहा है'। राजधानी दिल्ली में रहते हुए उन्होंने दिल्ली पर एक चिंतनशील कविता लिखी जिसमें उन्होंने कहा कि 'दिल्ली में कई शताब्दियां लुढ़का दी गई हैं' जो काफी लोकप्रिय तो हुआ लेकिन उनकी कविता के मर्म को नहीं समझा गया।
कैलाश वाजपेयी कई मायनों में विश्वकवि थे। उन्होंने यूरोप और एशिया के कई देशों की यात्राएं कीं तथा क्यूबा, मेक्सिको, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडेन, चेकोस्लोवाकिया, अमेरिका जाकर हिन्दी में कविता पाठ किया और हिन्दी के समृद्धि के लिए लगातार प्रयासरत रहे। दिल्ली दूरदर्शन के लिए कबीर, सूरदास, हरिदास स्वामी, रामकृष्ण परमहंस, जे. कृष्णमूर्ति और गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन पर फिल्मों का निर्माण किया।
वरिष्ठ हिन्दी आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने लेख में ठीक कहा है कि 'कैलाश वाजपेयी अस्तित्ववाद से बहुत प्रभावित थे। मार्क्सवाद से बहुत सहमत नहीं होने के बावजूद पूंजीवादी सभ्यता की भोतिकता, तत्कालीकता, पैसे की अंतहीन हवस, जो मनुष्यता, मानवता और कविता की विनाशक शक्तियां हैं, के आजीवन विरोधी रहे। समकालीन वैचारिक प्रवृतियों को पढ़ने, समझने और फिर उन्हें शुद्ध भारतीय संदर्भों में सामने रखने की उनमें अदभुत क्षमता थी। कहते है कि वह सार्त्र से बहुत प्रभावित थे लेकिन मुझे लगता है कि वह सार्त्र से ज्यादा कामू से प्रभावित थे। कामू के इस सिद्धंत से कि 'सारे ऐतिहासिक उद्योग व्यर्थ हैं, हर उद्योग के अंत में आदमी को निराशा और असफलता ही हाथ लगती है। यह विफलता ही मनुष्य की नियति है।' यह सिद्धांत मानता है कि जो क्षण आप जी रहे हैं, वही सच है। इसका बहुत गहरा प्रभाव कैलाश वाजपेयी की कविता और जीवन पर रहा है, जो दिनोदिन बढ़ता ही चला गया।'
साहित्य अकादमी के अघ्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने ठीक कहा है कि 'वाजपेयी के निधन से हिन्दी कविता को गंभीर क्षति हुई है।'
कैलाश वाजपेयी का मानना था कि कविता के प्रति एक ईमानदार कवि को समर्पित भाव से कविता कर्म का निर्वाह करना चाहिए क्योंकि रचनात्मकता व्यवसाय नहीं है। किसी भी ईमानदार कवि को इस बात से गुरेज नहीं होना चाहिए कि कविता लिखने के लिए मानवीय दृष्टिकोण होना निहायत आवश्यक शर्त है। दरअसल कविता अपने स्वार्थ के त्याग से जन्म लेती है। कविता करना जिंदगी के सागर में गहरे गोता लगाने की तरह है, एक तरह से समाधीस्थ हो जाना है।
कैलाश वाजपेयी का मानना था कि कविता वदलाव का वाहक है लेकिन अपने कविता संग्रह 'हवा में हस्ताक्षर' के लिए साहित्य अकादमी सम्मान लेते वक्त उन्होंने कहा था कि कविता से कोई परिवर्तन संभव नहीं इसलिए मैं इस नतीजे पर पहुंचा हँ कि कविता हवा में हस्ताक्षर की तरह है। अफसोस की बात यह है कि कैलाश वाजपेयी की कविताओं के मर्म को बिना समझे ही हाशिए पर धकेल दिया गया जबकि यूरोप, अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के कई देशों में उनकी कविताओं का विदेशी भाषाओं में तर्जुमा हुआ और उन्हें काफी पढ़ा और सराहा गया। उनकी कविताओं में जहां भारतीय दर्शन और धार्मिक साधना देखने को मिलता है वहीं पूंजीवादी सभ्यता के आत्मघाती और मानव विरोधी रूप के साथ भारतीय संस्कृति का भारतीय रूप भी बहुत सहजता और सरलता से देखा जा सकता है।
कैलाश वाजपेयी की कविताएं, निबंध, प्रबंध काव्य, शोधग्रंथ, नाटक आदि की 34 पुस्तके अब तक प्रकाशित है, जिसमें उनकी कविता संग्रहों यथा, संक्रांत, देहांत से हटकर, तीसरा अंधेरा, महास्वप्न का मघ्यान्तर, सूफीनामा, भविष्य घट रहा है, हवा में हस्ताक्षर, शब्द संसार, अनहट, रूसी भाषा में कविता संकलन 'मास्को में दिल्ली के दिन, अंग्रेजी और स्पहानी भाषाओं में 'दर्शन-द साइंस ऑफ मंत्रास, अंग्रेजी भाषा में 'एक्स्ट्रा कॉम्बिनेशंस' निबंध संग्रह 'समाज, दर्शन और आदमी', प्रबंध काव्य 'पृथ्वी का कृष्णपक्ष', रूसी, जर्मनी स्पहानी, डेनिश, स्वीडिश और ग्रीक आदि भाषाओं में कविताएं अनुदित एवं प्रकाशित, नाटक 'युवा सन्यासी विवेकानंद', संपादित कविता संकलन 'मोती सूखे समुद्र का' शोधग्रंथ 'आधुनिक हिन्दी कविता में शिल्प' आदि शामिल है।
कैलाश वाजपेयी को वर्ष 1995 में हिन्दी अकादमी सम्मान, वर्ष 2000 में एसएस मिलेनियम अवार्ड, वर्ष 2002 में व्यास सम्मान, वर्ष 2005 में 'हयूमन केयर ट्रस्ट अवार्ड तथा वर्ष 2008 में अक्षरम का विश्व हिन्दी साहित्य शिखर सम्मान प्रदान किया गया था।
डॉ. कैलाश वाजपेयी का पार्थिव शरीर भले ही हमलोगों के बीच नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा उनकी उपस्थिति दर्ज कराती रहेंगी। उनकी स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि।
राजीव आनंद
प्रोफेसी कॉलोनी, न्यू बरगंडा
गिरिडीह-815301, झारखंड
संपर्क-9474765417
कैलाश वाजपेयी : एक दार्शनिक-आध्यात्मिक कवि
(कैलाश वाजपेयी)
11 नवंबर, 1936 को उतरप्रदेश के हरीमपुर में जन्में कैलाश वाजपेयी का 1 अप्रैल को दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली के मैक्स अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें उनकी बेटी अनन्या ने मुखाग्नि दी।
नेहरू युग से मोहभंग के काल में सर्वाधिक प्रभावित नई कविता के नई कवियों में प्रमुख कवि कैलाश वाजपेयी कविताओं के माघ्यम से अर्थ नहीं अर्थहीनता को समझने और रंखांकित करने का प्रयास किया। उन्होंने मानवता और मानवीयता के घटते ग्राफ को देखते हुए कहा था 'भविष्य घट रहा है'। राजधानी दिल्ली में रहते हुए उन्होंने दिल्ली पर एक चिंतनशील कविता लिखी जिसमें उन्होंने कहा कि 'दिल्ली में कई शताब्दियां लुढ़का दी गई हैं' जो काफी लोकप्रिय तो हुआ लेकिन उनकी कविता के मर्म को नहीं समझा गया।
कैलाश वाजपेयी कई मायनों में विश्वकवि थे। उन्होंने यूरोप और एशिया के कई देशों की यात्राएं कीं तथा क्यूबा, मेक्सिको, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडेन, चेकोस्लोवाकिया, अमेरिका जाकर हिन्दी में कविता पाठ किया और हिन्दी के समृद्धि के लिए लगातार प्रयासरत रहे। दिल्ली दूरदर्शन के लिए कबीर, सूरदास, हरिदास स्वामी, रामकृष्ण परमहंस, जे. कृष्णमूर्ति और गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन पर फिल्मों का निर्माण किया।
वरिष्ठ हिन्दी आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने लेख में ठीक कहा है कि 'कैलाश वाजपेयी अस्तित्ववाद से बहुत प्रभावित थे। मार्क्सवाद से बहुत सहमत नहीं होने के बावजूद पूंजीवादी सभ्यता की भोतिकता, तत्कालीकता, पैसे की अंतहीन हवस, जो मनुष्यता, मानवता और कविता की विनाशक शक्तियां हैं, के आजीवन विरोधी रहे। समकालीन वैचारिक प्रवृतियों को पढ़ने, समझने और फिर उन्हें शुद्ध भारतीय संदर्भों में सामने रखने की उनमें अदभुत क्षमता थी। कहते है कि वह सार्त्र से बहुत प्रभावित थे लेकिन मुझे लगता है कि वह सार्त्र से ज्यादा कामू से प्रभावित थे। कामू के इस सिद्धंत से कि 'सारे ऐतिहासिक उद्योग व्यर्थ हैं, हर उद्योग के अंत में आदमी को निराशा और असफलता ही हाथ लगती है। यह विफलता ही मनुष्य की नियति है।' यह सिद्धांत मानता है कि जो क्षण आप जी रहे हैं, वही सच है। इसका बहुत गहरा प्रभाव कैलाश वाजपेयी की कविता और जीवन पर रहा है, जो दिनोदिन बढ़ता ही चला गया।'
साहित्य अकादमी के अघ्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने ठीक कहा है कि 'वाजपेयी के निधन से हिन्दी कविता को गंभीर क्षति हुई है।'
कैलाश वाजपेयी का मानना था कि कविता के प्रति एक ईमानदार कवि को समर्पित भाव से कविता कर्म का निर्वाह करना चाहिए क्योंकि रचनात्मकता व्यवसाय नहीं है। किसी भी ईमानदार कवि को इस बात से गुरेज नहीं होना चाहिए कि कविता लिखने के लिए मानवीय दृष्टिकोण होना निहायत आवश्यक शर्त है। दरअसल कविता अपने स्वार्थ के त्याग से जन्म लेती है। कविता करना जिंदगी के सागर में गहरे गोता लगाने की तरह है, एक तरह से समाधीस्थ हो जाना है।
कैलाश वाजपेयी का मानना था कि कविता वदलाव का वाहक है लेकिन अपने कविता संग्रह 'हवा में हस्ताक्षर' के लिए साहित्य अकादमी सम्मान लेते वक्त उन्होंने कहा था कि कविता से कोई परिवर्तन संभव नहीं इसलिए मैं इस नतीजे पर पहुंचा हँ कि कविता हवा में हस्ताक्षर की तरह है। अफसोस की बात यह है कि कैलाश वाजपेयी की कविताओं के मर्म को बिना समझे ही हाशिए पर धकेल दिया गया जबकि यूरोप, अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के कई देशों में उनकी कविताओं का विदेशी भाषाओं में तर्जुमा हुआ और उन्हें काफी पढ़ा और सराहा गया। उनकी कविताओं में जहां भारतीय दर्शन और धार्मिक साधना देखने को मिलता है वहीं पूंजीवादी सभ्यता के आत्मघाती और मानव विरोधी रूप के साथ भारतीय संस्कृति का भारतीय रूप भी बहुत सहजता और सरलता से देखा जा सकता है।
कैलाश वाजपेयी की कविताएं, निबंध, प्रबंध काव्य, शोधग्रंथ, नाटक आदि की 34 पुस्तके अब तक प्रकाशित है, जिसमें उनकी कविता संग्रहों यथा, संक्रांत, देहांत से हटकर, तीसरा अंधेरा, महास्वप्न का मघ्यान्तर, सूफीनामा, भविष्य घट रहा है, हवा में हस्ताक्षर, शब्द संसार, अनहट, रूसी भाषा में कविता संकलन 'मास्को में दिल्ली के दिन, अंग्रेजी और स्पहानी भाषाओं में 'दर्शन-द साइंस ऑफ मंत्रास, अंग्रेजी भाषा में 'एक्स्ट्रा कॉम्बिनेशंस' निबंध संग्रह 'समाज, दर्शन और आदमी', प्रबंध काव्य 'पृथ्वी का कृष्णपक्ष', रूसी, जर्मनी स्पहानी, डेनिश, स्वीडिश और ग्रीक आदि भाषाओं में कविताएं अनुदित एवं प्रकाशित, नाटक 'युवा सन्यासी विवेकानंद', संपादित कविता संकलन 'मोती सूखे समुद्र का' शोधग्रंथ 'आधुनिक हिन्दी कविता में शिल्प' आदि शामिल है।
कैलाश वाजपेयी को वर्ष 1995 में हिन्दी अकादमी सम्मान, वर्ष 2000 में एसएस मिलेनियम अवार्ड, वर्ष 2002 में व्यास सम्मान, वर्ष 2005 में 'हयूमन केयर ट्रस्ट अवार्ड तथा वर्ष 2008 में अक्षरम का विश्व हिन्दी साहित्य शिखर सम्मान प्रदान किया गया था।
डॉ. कैलाश वाजपेयी का पार्थिव शरीर भले ही हमलोगों के बीच नहीं है लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा उनकी उपस्थिति दर्ज कराती रहेंगी। उनकी स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि।
राजीव आनंद
प्रोफेसी कॉलोनी, न्यू बरगंडा
गिरिडीह-815301, झारखंड
संपर्क-9474765417
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