हर समस्या की जड़ है हराम का पैसा - डॉ. दीपक आचार्य 9413306077 dr.deepakaacharya@gmail.com इंसान जीवन में आनंद की प्राप्ति के लिए सारे ज...
हर समस्या की जड़ है
हराम का पैसा
- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
इंसान जीवन में आनंद की प्राप्ति के लिए सारे जतन करता है। खूब सारा पैसा जमा कर लेता है, काफी संख्या और मात्रा में जमीन-जायदाद का स्वामी बन जाता है, भोग-विलासिता के तमाम संसाधनों का उपभोग करता रहता है, भरे-पूरे परिवार के साथ रहता है, लोकप्रियता और प्रतिष्ठा भी खूब प्राप्त कर लेता है।
इन सभी के बावजूद इंसान खुश नहीं है बल्कि दिन-रात उसे कोई न कोई चिन्ता घेरे रहती है।
इस उद्विग्नता और अशांति का कारण क्या है? यह कोई समझने का प्रयास नहीं करता।
बड़े-बड़े उच्च पदासीन और प्रतिष्ठित लोग भीतर से कभी खुश नहीं रह पाते।
सब कुछ वैभव होने के बावजूद हमेशा संतोषहीन, हैरान-परेशान और उद्विग्न ही दिखाई देते हैं। न नींद आती है न कोई चैन। हर क्षण किसी न किसी चिन्ता में डूबे रहते हैं।
और यह सारी अशांति उनके चेहरों, हाव-भाव और कार्य व्यवहार में साफ-साफ परिलक्षित भी होती है लेकिन औरों को दिखाने के फेर में हमेशा कृत्रिम मुस्कान और ओढ़ी हुई मस्ती का भार लेकर घूमते रहते हैं ताकि जमाने की नज़रों में अच्छे ही अच्छे दिखते रहें। कोई शक न करे।
लोग अपनी समस्याओं के लिए भगवान, ग्रह-नक्षत्रों, पितरों और दूसरों को दोष देते हैं और हर संकट, पीड़ा, बीमारी या समस्या के लिए औरों को कोसते रहते हैं। कभी भाग्य को कोसते हैं, कभी ग्रहों को, और कभी अपने कुटुम्बियों, माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चों या आस-पास के लोगों को।
कोई अपनी गलतियों, पापों और अपराधों की बात नहीं करता। यह भी नहीं स्वीकारता कि जो कुछ हो रहा है उसमें भाग्य या ग्रह-नक्षत्रों, पितरों अथवा दूसरों का कोई हाथ नहीं है बल्कि जो कुछ भुगत रहा है उसके लिए खुद वही जिम्मेदार है और इस जिम्मेदारी से वह मरते दम तक बरी नहीं हो सकता।
यह इंसान की सबसे बड़ी फितरत है कि वह शाश्वत सत्य या अपनी गलतियों को कभी नहीं स्वीकारता बल्कि उसे हमेशा दूसरों में ही दोष दिखते हैं।
और इसी वजह से इंसान आत्मतत्व और सत्य से जितना दूर रहता है उतना प्रकृति भी उसे अपने से दूर रख देती है और यही वह अवस्था है जब इंसान अपने केन्द्र से भटक कर इतना दूर छिटक जाता है जहाँ उसे यथार्थ से रूबरू कराने वाला कोई नहीं होता। उसकी स्थिति त्रिशंकु जैसी हो जाती है, न घर का, न घाट का वाली।
इंसान जिन तत्वों से बना है उन तत्वों की आपूर्ति करने वाले कारक शुद्ध, सात्ति्वक और मौलिकता लिए हुए हों तभी इंसान शुद्ध-बुद्ध और स्वस्थ-मस्त रह सकता है।
इनमें किसी भी स्तर पर जरा सी भी मिलावट आ जाने पर इंसान का मन-मस्तिष्क और शरीर प्रदूषित होगा ही। और यही प्रदूषण आगे चलकर ज्यादा हो जाने पर मानसिक और शारीरिक व्याधियों का जनक हो जाता है जिसके बाद इंसान को स्वस्थ कहा जाना संभव नहीं हो पाता है।
इस दृष्टि से देखा जाए तो इंसान को उन्हीं वस्तुओं व विचारों को ग्रहण करना चाहिए जो इंसानी प्रकृति के अनुकूल हों।
विजातीय द्रव्यों का संग्रहण और उपयोग शरीर के तत्वों को प्रभावित करता है और पंच तत्वों में मिलावट का दौर शुरू हो जाता है जिसकी वजह से आदमी सब कुछ होते हुए भी अपने आपको कंगाल और ठगा सा महसूस करने लगता है।
हमारे जीवन की तकरीबन सभी प्रकार की समस्याओं का मूल कारण यही है। इस स्थिति पर गंभीरता से सोचने तथा चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है।
सारा वैभव अपने आस-पास बिखरा होने के बावजूद जिन लोगों को नींद नहीं आ रही हो, शरीर भारी-भारी रहता हो, शत्रु पीछे पड़े हुए हों, बीमारियाँ घर कर गई हों, मानसिक उन्माद और अशांति महसूस हो रही हो, कहीं किसी न किसी प्रकार की अदृश्य कमी या अभाव का अहसास हो रहा हो, प्रसन्नता गायब हो गई हो, उदासीनता और मलीनता छाने लगी हो, आए दिन कलह का माहौल हो, मौज-मस्ती और आनंद छीन गया हो तथा जीवन समस्याओं से घिर गया हो, तब दिल से स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि जो कुछ हम कर रहे हैं वह गलत रास्ते से आ रहा है, जो जमा हो रहा है वह हराम का है, बिना मेहनत या ब्लेकमेलिंग का है, जो संसाधन जमा हैं वे अपने पैसों के नहीं हैं।
यहाँ तक कि रोजाना का जो कुछ अन्न-जल ग्रहण कर रहे हैं वह भी हमारी कमाई का न होकर हराम के पैसों का है, जहाँ हम जो-जो भोग पा रहे हैं वह सब कुछ अवैध व छीना हुआ है और यही कारण है कि सात्ति्वकता का प्रभाव समाप्त होकर आसुरी भावनाओं का संचरण तीव्र होता जा रहा है।
इस स्थिति में हमें अपने आपको संभालने की आवश्यकता है। सब कुछ छोड़-छुड़ा कर पुरुषार्थ को अपनाएं, हराम का खान-पान और व्यवहार भोग आदि छोड़ें, अपनी मेेहनत की कमायी का दाना-पानी लें। तभी पंच तत्वों का शुद्धिकरण होकर मन-मस्तिष्क और शरीर फिर ढर्रे पर आ सकते हैं।
इसके साथ ही अपनी संचित जमा पूंजी में से जरूरतमन्दों को दान-पुण्य करना आरंभ कर दें। ज्यों-ज्यों बिना मेहनत की हराम की अथवा भ्रष्टाचार-रिश्वत की कमाई बाहर निकलने लगेगी, हमारा और घर-परिवार का शुद्धिकरण अभियान आरंभ हो जाएगा।
ज्यों-ज्यों हराम की कमाई बाहर निकलेगी, त्यों-त्यों अपना शरीर ठीक होता चला जाएगा, मन के विकार दूर होंगे, दिमाग में से खुराफाती कमाई का भूत बाहर निकलने लगेगा और सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान धीरे-धीरे होने लगेगा।
जितनी अलक्ष्मी बाहर निकलेगी, उतनी सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होगा, बीमारियों का शमन होगा, शांति और संतोष प्राप्त होगा तथा जीवन का आनंद दुबारा से अपने करीब आने लगेगा।
इसलिए जो लोग समस्याओं, विषमताओं, अशांति, उद्विग्नताओं, पीड़ाओं, दुःखों और बीमारियों आदि दैहिक दैविक एवं भौतिक संतापों से मुक्ति पाना चाहते हैं वे अपने शुद्धिकरण के लिए प्रयास करें।
इसके लिए दो समानान्तर मार्ग हैं। एक तो यह कि शुचिता लाने और पवित्र कर्म करने का दृढ़ संकल्प लें और दूसरा यह कि अपने जीवन में कमायी गई हराम की कमाई को धीरे-धीरे जरूरतमन्दों, समुदाय और क्षेत्र के लिए दान करना आरंभ करें और पूरी उदारता के साथ धन-सम्पत्ति को अपने जीवन से बाहर करें।
हराम का पैसा जब तक इंसान के पास रहता है वह अशांति ही देता है और उसके जीवन के आनंद छीन जाता है चाहे वह कितना ही बड़े से बड़ा आदमी क्यों न हो।
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paisa mehnat kamana galat nahi hai par sarkar ki tax neetio se pareshani badh rahi hai
जवाब देंहटाएंrishvat or bhartachar kai kaarn aadhunik samaj hai