दीपक आचार्य का आलेख - भिखारियों के ही अवतार हैं कामचोर और हरामखोर

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भिखारियों के ही अवतार हैं कामचोर और हरामखोर - डॉ. दीपक आचार्य 9413306077 dr.deepakaacharya@gmail.com इस  देश में भिखारियों की को...

भिखारियों के ही अवतार हैं

कामचोर और हरामखोर

- डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

इस  देश में भिखारियों की कोई कमी नहीं रही। जहाँ देखो वहाँ भिखारियों ही भिखारियों को माँगते हुए आसानी से देखा जा सकता है।

आमतौर पर हम सभी लोग भिखारियों को ही दोष देते हैं कि इन लोगों ने देश की इज्जत मिट्टी में मिला रखी है, इनकी वजह से हम दुनिया भर में बदनाम हैं और भारत की साख पर बट्टा लग रहा है।

इतना सब कुछ कहते-सुनते हुए हम लज्जा से भरे हुए होने के बावजूद भिखारियों की उस किस्म को हमेशा नज़रअंदाज कर जाते हैं जो कि किसी भी दृष्टि से भिखारियों से कम नहीं है।

जितनी संख्या में भिखारियों का अस्तित्व है उससे कहीं अधिक विस्फोटक संख्या में हमारे यहाँ कामचोर और हरामखोर लोग हैं। इन लोगों को भिखारियों का एपीएल संस्करण कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

जिस देश में परिश्रम और पुरुषार्थ का डंका बजता था और मेहनतकश लोगों के कारण सोने की चिड़िया और विश्व गुरु की उपाधि प्राप्त थी उसी देश में अब मेहनत से लोग जी चुराने लगे हैं और पुरुषार्थहीनता का माहौल देखा जाने लगा है।

पैसा, भोग और संसाधनों का लाभ हर कोई प्राप्त करना चाहता है, ऎषणाओं की पूर्ति हर कोई चाहता है लेकिन बिना किसी परिश्रम के या पराये पैसों के बल पर।

ईमानदारी के साथ मेहनत, कर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण की भावनाओं का जबर्दस्त ह्रास होता चला जा रहा है और इसका सीधा असर देश के हर क्षेत्र में दिख रहा है जहाँ तरक्की की अपेक्षित ऊँचाइयां तक प्राप्त नहीं हो सकी हैं। 

हर क्षेत्र में कामचोरी, हरामखोरी और पुरुषार्थहीनता देखी जाने लगी है।  भिखारियों और कामचोरों का गंभीरता के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो हम पाएंगे कि सिर्फ उन्नीस-बीस का ही फर्क है।

इस लिहाज से वर्तमान के कामचोरों को भिखारियों का पुनर्जन्म कहा जाए तो ज्यादा सटीक बैठता है। दोनों की सम्पूर्ण जीवन पद्धति का अध्ययन किया जाए तो खूब सारी समानताएँ देखने को मिल ही जाती हैं।

इस दृष्टि से आज के कामचोर किसी भी मामले में भिखारियों से कम नहीं हैं। अन्तर है तो सिर्फ इसका कि भिखारी अपने आपको गर्व से भिखारी कहता है और भिखारी मनवाते हुए उसे अधिक प्राप्ति की आशा बँधती है। वह अपने आपको पूरी जिन्दगी भिखारी के रूप में दिखता भी है और इसका बहुविध प्राकट्य करता हुआ सारे फायदे भी प्राप्त करता रहता है जबकि पुरुषार्थहीन और कामचोर लोग भिखारियों के सारे गुणावगुणों के होने के बावजूद अपने आपको भिखारी नहीं मानते और भिखारी होते हुए भी इसे स्वीकार करने में इन्हें शर्म आती है।

इस एकमेव अंतर के सिवा भिखारियों और कामचोरों में कहीं कोई अन्तर नहीं है। हराम का खाना-पीना और जमा करना, दूसरों को गुमराह करना दोनों की प्रकृति का मूल विषय है और इसी के सहारे इनकी पूरी जिन्दगी की गाड़ी चलती रहती है।

भिखारी सीधे तौर पर भीख मांग कर घर-परिवार चलाता है लेकिन कामचोर और हरामखोर किसी न किसी बाड़े में प्रतिष्ठित होने के बावजूद असंतोषी स्वभाव के कारण पराये धन और दूसरों के माल पर मौज उड़ाने के गोरखधंधे में रमे रहते हैं। 

यों देखा जाए तो आजकल कामचोरी लोगों का अधिकार हो गया है। जहाँ कहीं छूट मिली, कोई सुविधा प्राप्त हुई नहीं कि कामचोरी शुरू। जो लोग अपने निर्धारित कत्र्तव्य कर्मों की अनदेखी करते हैं, टाईम से आने-जाने और पूरे समय रुकने में जिन्हें मौत आती है, स्वच्छन्दता और स्वेच्छाचारिता जिन लोगों का गुणधर्म हो गया हो, कामों को टालते हों, हराम की कमाई की आदत पड़ गई हो, वे सारे के सारे लोग भिखारियों की तरह भटकते रहते हैं, पराये धन और सम्पत्ति पर मौज उड़ाते रहते हैं और ड्यूटी टाईम में गुलछर्रे उड़ाते रहते हैं।

इन लोगों को इस बात की भी परवाह नहीं होती कि जो कुछ प्राप्त हो रहे हैं वह नौकरी या काम-धंधे की बदौलत ही। इसके बावजूद अपनी रोजी-रोटी के प्रति निष्ठावान, समर्पित और ईमानदार नहीं होकर भिखारियों की तरह नए-नए डेरों, तरह-तरह के स्वाद और भोगवादी विलासिता भरी चकाचौंध के आकर्षण में भटकते रहते हैं। इन कामचोरों और हरामखोरों की हरेक आदत, सोच, व्यवहार, स्वभाव और कार्यशैली भिखारियों से पूरी तरह मिलती-जुलती है। 

इनमें से कई कामचोर खाली दिमाग शैतान का घर होते हैं जिनके खुराफाती दिमाग की हरकतों से सज्जनों का बहुत बड़ा कुनबा त्रस्त रहता आया है।

इसका सीधा नुकसान उनके कत्र्तव्य स्थलों पर पड़ता है जहां कार्यक्षमता घटती है, दूसरे काम करने वालों को यह मलाल रहता है कि नालायकी, कामचोरी और हरामखोरी करने वाले लोग मनमर्जी से गायब रहते हैं और पूरी तनख्वाह पाते हुए मजे ले रहे हैं। इससे रोजमर्रा के काम पूरे नहीं हो पाते हैं।

यह साफ तौर पर समाज और देश के साथ धोखाधड़ी है। ये कामचोर ही हैं जिनकी वजह से देश का उद्धार नहीं हो पा रहा है और पैसा नालायकों और मुफतखोरों के पास जा रहा है।

हमारे संपर्क में भी ऎसे कामचोर अक्सर आते रहते हैं जिनके बारे में लोग कहते हुए सुने जाते हैं कि ये लोग किसी काम के नहीं, पैसा पूरा ले रहे हैं, ड्यूटी से गायब रहते हैं और कोई काम-धाम नहीं करते।

इन लोगों के प्रति दया दिखाना स्पष्ट तौर पर सामाजिक अपराध है।  दया को कमजोरी मानकर ये लोग दीठ बने रहकर मौज-मस्ती में रमे रहते हैं। दूसरी ओर नए क्षमतावान और कर्मयोगी मुख्य धारा में आ पाने से वंचित हैं।

लगता यों है जैसे कि हम किसी मजबूरी में इन नाकारा और नालायक हाथियों को पाल रहे हैं और एक बहुत बड़ा वो वर्ग वंचित है जो शिक्षित और समर्थ होते हुए समाज और देश की सेवा के आयामों से जुड़ नहीं पा रहा है।

कामचोरों और हरामखोरों की ही क्रूरतापूर्वक छँटनी कर दी जाए तो देश की काफी बेकारी और बेरोजगारी खत्म हो जाए और नया खून आने पर प्रगति को सौ-सौ पंख ही लग जाएं।

समय आ गया है जब समाज और देश के हित में सोचा जाए, इन कामचोरों और हरामखोरों के प्रति मानवीय संवेदना, दया और करुणा भावों को तिलांजलि देकर क्रूरता का बर्ताव हो,  इन्हें भीख देना बंद किया जाए ताकि समाज और देश  में श्रमेव जयते का स्वस्थ माहौल बन सके। आज देश को इसी की जरूरत है।

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