अप्रैल फूल कार्ड / प्रमोद यादव जब भी एक अप्रैल आता है तो सबसे पहले बचपन के दोस्त बब्बू का ख्याल आता है..हर मूर्ख दिवस पर इस मूर्ख को जरू...
अप्रैल फूल कार्ड /
प्रमोद यादव
जब भी एक अप्रैल आता है तो सबसे पहले बचपन के दोस्त बब्बू का ख्याल आता है..हर मूर्ख दिवस पर इस मूर्ख को जरूर याद करता हूँ..याद क्या करता हूँ बरबस ही उसकी याद आ जाती है...भगवान् जाने पश्चिम के किस मूर्ख ने पहली अप्रैल को “ मूर्ख-दिवस” मनाने का ऐलान या आग़ाज किया..और कैसे इन देशों के लोग इस दिवस को मूर्ख बनने-बनाने मान भी गए..इन देशों का बड़ा चोचला रहता है..अरे ये भी कोई बात हुई कि एक अप्रैल को ही मूर्ख बनेंगे-बनायेंगे..हमारे यहाँ देखो..लोग बारहों महीने बनते - बनाते रहते है..फिर भी किसी को कोई टेंशन नहीं, सब हंसते-हंसाते खुशहाल रहते हैं.. जिसे जो जब जहाँ मिला बना दिया.. टोपी पहना दिया..अब एकाध टोपी के लिए कोई एक अप्रैल का क्यूँ इन्तजार करे ? इसलिए हमने कोई एक डेट नियत नहीं किया..हम पूरे साल मूर्ख-दिवस मनाते हैं.. पर चूंकि पश्चिम की नक़ल करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है..इसलिए एक अप्रैल को न चाहते हुए भी हम उनसे कुछ ज्यादा ही स्मार्ट दिखने की कोशिश में पगलाए रहते हैं..प्रयत्न करते हैं कि “फूल” न बनें ..बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को “फूल” बनाये..अब बड़े-बूढ़े उम्रदराज लोग क्या किसी को बेवकूफ बनायेंगे वे बेचारे तो जमाने भर से बने बैठे रहते हैं..और बच्चे तो बच्चे ही होते हैं..बड़े ही डेमफुल तो भला दूसरों को क्या बनाएं फ़ूल ? बस इस “ आल फूल्स डे “ में जलवा केवल जवां लड़के-लड़कियों का रहता है..ये ही ज्यादा सक्रिय होते हैं मूर्खों के इस त्यौहार में..पश्चिम वालों से भी बेहतर मनाने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही धमाल कर डालते हैं..ऐसा ही एक धमाल आज से बारह-तेरह साल पहले किया था बब्बू ने.....लेकिन यह धमाल बाद में उसके लिए फायदेमंद साबित हुआ..
तब हम नए-नए ही कालेज पहुंचे थे और वहां की आजादी देख पगला गए थे..ऊपर से और पागल करने के लिए तरह-तरह की गोरी-काली-सांवली तितलियाँ थी जो पढ़ती कम और कालेज के कैम्पस में मंडराती ज्यादा थीं.. रोज एक से एक फैशन से सजी-धजी सुन्दर ( और उटपटांग ) लडकियां दिखती.. लगता कि कालेज नहीं किसी फैशन-शो में आ गए..किसे देखें और किसे न देखें,समझ ही नहीं आता.. हम भौंचक रह जाते..आखिर में तय हुआ कि इधर-उधर देखने से आँखों का खराब होना निश्चित अतः अपने सेक्शन की लड़कियों पर ही ध्यान केन्द्रित रखें क्योंकि यही लड़कियां थी जो स्कूल के जमाने से साथ पढ़ती आ रही थी..और इन्हीं से “ हेलो-हाय “ करना स्वास्थय के लिए बेहतर लगा.. सेक्शन में केवल यही छः लडकियां थी और हम तीस लड़के..इन तीसों में एक अकेले मैं ही तीसमारखां टाईप था..तितलियों के मामले में सब मुझे डाक्टर समझते..पर ऐसा कुछ न था..मैं केवल “रायचंद” ही था..दोस्तों को संकट की घडी में फ़ोकट में राय देकर उनका मार्गदर्शन करता..
तो किस्सा यूं है कि उन्हीं दिनों मार्च महीने के अंतिम दिनों एक शाम को बब्बू आया और कालेज के लैला-मजनुओं की बातें करने लगा.. उनकी गिनती करने लगा..उसकी बातों में एक अफ़सोस टपकता दिखा कि सबकी जोडियाँ बन रही केवल वही चूक रहा.. बातचीत के आखिर में वह अप्रैल-फ़ूल के बाबत चर्चा करने लगा कि इस साल किसे और कैसे बनाएं अप्रैल फ़ूल ? तब बात ही बात में मैंने कहा कि देखो-कालेज में आये छः महीने हो गए और तुम्हें अब तक एक अदद लड़की को प्रपोज नहीं कर पाने का अपार दुःख है..पर ऐसे काम के लिए हिम्मत चाहिए यार.. तुम तो कालेज आकर भी स्कूल की तरह लड़कियों से डरते हो तो ऐसे में उन्नति कैसे करोगे ? लडकियां तो कभी कहेगी नहीं कि आय लव यू..ये काम तो मर्दों को ही करना है..तो थोडा मर्द बनो और बक डालो दिल की बात..अब एक अप्रैल से बढ़िया दिन कोई होता नहीं लड़कियों को प्रपोज करने का...चलो एक अप्रैल को किसी एक को प्रपोज कर ही डालो..कोई मान जाए तो ठीक वरना कह दो-अप्रैल फ़ूल बनाया...
मेरी बातें उसे जंच गई..उसने पूछा किसको करूं ? मैं खूब हंसा..फिर पूछा कि तुम्हें अच्छी कौन लगती है तो उसने कहा – “छहों की छहों अच्छी लगती हैं..” मैंने आदेश दिया- “ सबको लिख डालो एक-एक पत्र..कोई न कोई तो मान ही जायेगी.. “ उसने बचकाना सवाल किया-“ अगर सभी मान गई तो ?” मैंने मजाक से जवाब दिया – “तो समझ ले कि तेरा जीते-जागते पोस्टमार्टम हो गया.. “ वह समझा नहीं और आगे की कार्यवाही की बात करने लगा..कहने लगा- “ आप ही सबको लेटर लिख दो..मुझे तो आता नहीं..“ मैंने कहा-“यार..छः-छः ख़त कहाँ लिखता रहूँगा,केवल एक लिख देता हूँ तुम जेराक्स करके सबको दे देना.. “ वह मान गया..एक अप्रैल की सुबह सात बजे ही घर आ धमका..मैंने एक रेडीमेड लेटर उसे थमा दिया और ताकीद किया कि ओरिजनल मत देना..सबको कापी ही देना ताकि मुसीबत से बचा जा सके..वह लेटर लिए तुरंत चला गया और आनन्-फानन में कापी करा छहों को डेलिवर भी कर आया..वह बहुत खुश भी था और बहुत डरा हुआ भी..खुश इसलिए कि कोई न कोई तो मानेगी ही..और डर इस बात का कि कोई उसे तिल का ताड़ बना सरेआम इज्जत न उतार दे..पर अप्रैल फ़ूल जैसे हथियार को याद कर आश्वस्त था कि मैनेज हो जाएगा..ऐसी नौबत नहीं आएगी..
दूसरे दिन दोपहर बब्बू आया तो बहुत ही उदास और पिटा हुआ सा दिखा..पूछा तो बताया कि तीनों लड़कियों के भाईयों ने आकर उसकी धुनाई कर दी..वे तो पुलिस में देने उतारू थे पर हाथ जोड़ उनसे माफ़ी मांगी तब छुट्टी मिली..मैंने कहा कि तुमने अप्रैल फ़ूल वाली बात कही कि नहीं कही तो उसने बताया कि लडकियां मिलती तो कहता ..उनके भाईयों को कहा तो कहने लगे- चल बेटा..अब हम तुझे बताते हैं कि अप्रैल फ़ूल कैसे बनाते हैं....और वे सीधे हाथ घुमाने लगे..बब्बू बड़ा दुखी था कि क्या से क्या हो गया..अब ये भी डर समां गया कि शेष तीन प्रपोजलों का क्या होगा ? डर के मारे वह शहर से बाहर जाने की सोचने लगा..उसे काफी समझाया कि “बड़े धोके हैं इस राह में”..साहस के साथ सामना करो..सफलता जरुर मिलेगी..आज नहीं तो कल..
वह चला गया..तीन दिनों तक नहीं आया तो चिंता हुई कि कहीं भाग तो नहीं गया ? उसके घर जाने को निकल ही रहा था कि सामने से वह आता दिख गया..बड़ा ही खुश नजर आ रहा था..आते ही बाहों में भर लिया..मैं समझ नहीं पाया कि क्या हुआ..फिर उसने बताया कि खुशखबरी ये है कि बाकी की तीन कन्याओं का पासिटिव जवाब आ गया..जेब से ख़त निकाल वह दिखाने लगा..मैं हतप्रभ रह गया..तीनों ही ख़त जेराक्स कापी में एक जैसे थे.. मैंने तुरंत ताड़ लिया कि पासा उल्टा पड गया.. अप्रैल फ़ूल बब्बू नहीं वो तीनों बना रही..मैंने उसे इस खतरे से आगाह किया तो वह पूछने लगा कि अब क्या करूं? मैंने कहा कि अब छाया,माया,रेखा में से किसी एक को खत लिखकर प्रपोज करो..देखते हैं- क्या कहती है ?
उसने वैसा ही किया..छाया को प्रपोज कर दिया..उसने तुरंत ही जवाब भेजा कि ये रांग नंबर है..मैं तो किसी और को चाहती हूँ..हाँ..माया तुम्हें पसंद करती है..अलबत्ता ये खत तुम्हें उसे लिखनी चाहिए..तब उसने माया को ख़त लिखा..उसने भी तत्परता दिखाते अविलम्ब जवाब लिखा कि छाया से गलती हो गई..उसे नहीं मालुम ..तुम्हें पसंद तो करती हूँ पर उस तरह नहीं जिस तरह कि “उसे” पसंद करती हूँ..दरअसल रेखा शायद तुम्हें पसंद करती है..तभी तो तुम्हारी तारीफ़ करती रहती है.. उसे ख़त लिखो और मुझे क्षमा करो.. उसने तत्परता के साथ रेखा को लिखा.. तब जवाब में उसने लिखा -“ बुद्धू कहीं के..कहाँ तुम छाया-माया की बातों में आ गए..मैं इन चक्करों में नहीं पड़ती..मेरी तो परसों ही सगाई है..अच्छा होगा कि घर आकर उस दिन मेरे बाबूजी का थोडा हाथ बंटा दो..आभारी रहूँगी..तो आ रहे हो न ? “
आखिरी ख़त पढ़कर वह आखिरी सांस लेने जैसी स्थिति में आ गया..काटो तो खून नहीं..मैं भी आहत हुआ कि अब क्या किया जाए ? इतना लम्बा अप्रैल फूल न कभी देखा न कभी सुना.. पूरे पंद्रह दिन निकल गए इस लेने-देने की प्रक्रिया में..उसने हताशा में कालेज छोड़ अपने बड़े भाई के पास चेन्नई चला गया और वहीं पढने लगा..फिर मुलाक़ात कम होने लगी और पत्राचार भी नहीं के बराबर..चार वर्ष बाद अचानक उसका एक पत्र मिला कि एक अप्रैल को उसकी शादी है..अतः जरुर आये..पर तब मैं नौकरी में था और किसी अर्जेंट मीटिंग के कारण नहीं जा सका..सोचता रहा कि कहीं अप्रैल फ़ूल तो नहीं बना रहा ? साल भर बाद एक दिन चेन्नई के दौरे पर था तो उसके घर जाना हुआ ..दरवाजा खुलते ही मैं चकरा गया..दरवाजे पर कांजीवरम साडी में लिपटी रेखा खड़ी थी..बब्बू ने मिलते ही गले लगा लिया फिर मेरी आशंकाओं का निवारण करते बताया कि रेखा और उसकी शादी महज एक इत्तफाक है..मेरे भैया ने इन्हें पसंद किया और मुझे देख आने को कहा तो मैंने साफ़ कह दिया कि उनकी पसंद मेरी पसंद..मुझे न देखने जाना.. न ये जानना कि कौन है,कैसी है....और ठीक यही किस्सा रेखा के साथ भी हुआ..हमने तो एक दूजे को सुहागरात में ही देखा..और देखते ही खिलखिलाकर हंस पड़े.. रात भर पुरानी बातों को याद कर हंसते रहे..इन्होंने तो उन दिनों अप्रैल फ़ूल बनाते ये भी कह दिया था कि दो दिन बाद सगाई है.. छाया-माया से भी ज्यादा निराश इसी ने किया था ..
मैंने कहां- “ यार..मुझे तो ये लगा था कि तुम कहीं अप्रैल फ़ूल तो नहीं बना रहे..ये एक अप्रैल को शादी की बात कैसे सूझी ?” तब उसने बताया कि ये भी इत्तफाकन ही हुआ..यही शुभदिन था शादी का.. न इसके पीछे कोई अच्छा डेट था न ही इसके बाद..जब रेखा से पूछा कि उसे सुहागरात में बब्बू को देख कैसे लगा तो शर्माते हुए बोली- “अच्छा लगा..बहुत अच्छा लगा ..लगा कि जिंदगी अब सार्थक हो गई..पुराने दोस्त अगर रिश्तेदारी में आ जाये..वो भी रिश्तेदारी अगर पति के रूप में हो तो बात ही क्या ? मैं तो निहाल ही हो गई इन्हें देखकर..मैंने इन्हें अपनी सगाई की झूठी बात कह अप्रैल फ़ूल बनाया था..अब इन्होने तो शादी ही इसी दिन की है..लगता है अब गिन-गिन कर बदला लेंगे..”
उन दोनों से मिल मैं निहाल हो गया..हम पुराने दिनों को याद कर पूरी रात खूब हँसे और छाया-माया से मिलने का प्लान बनाते रहे..रेखा ने बताया कि छाया मुंबई के किसी कालेज में लेक्चरार है और अब तक उसने भी मेरी तरह शादी नहीं की...रेखा कहने लगी कि मैं उससे विवाह कर लूँ..मैंने कहा कि जिस छाया को आपके बुद्धू ने प्रपोज किया उससे मैं कैसे विवाह कर सकता हूँ ? तो वह जोरों से हंसी और बोली- “ एक अप्रैल बिलकुल ही करीब है भई ..हर हाल में अब आपको विवाह-सूत्र में बंधना है.. हम लड़कीवालों की ओर से ये रिश्ता पक्का..आपको कुछ कहना हो तो कहो..” इसके पहले कि मैं कुछ बोलता, बब्बू ने कहा..- ‘ हमारी ओर से भी पक्का..चलो.. एक बार फिर “अप्रैल फूल “ का ( शादी का ) कार्ड छपवायें..’
वो दिन थे और आज का ये दिन है..छाया मेरी हमसफ़र है.. हर एक अप्रैल को हम सब एक-दूसरे की बेवकूफियों को याद कर नए सिरे से तरो-ताजा हो लेते हैं..
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प्रमोद यादव
गया नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
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