चन्द्रकुमार जैन का चिंतन - मन है अर्जुन और विवेक चेतना श्री कृष्ण

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मन है अर्जुन और विवेक चेतना श्री कृष्ण डॉ.चन्द्रकुमार जैन  पानी का अपना कोई आकार नहीं होता। उसे जिस पात्र में भी डालते हैं, वह उसी का आकार...

मन है अर्जुन और विवेक चेतना श्री कृष्ण

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डॉ.चन्द्रकुमार जैन 

पानी का अपना कोई आकार नहीं होता। उसे जिस पात्र में भी डालते हैं, वह उसी का आकार ले लेता है। इसी तरह चित्त का भी अपना कोई आकार नहीं होता। उसको जिस ख्याल में आप रखेंगे, उसी के मुताबिक हो जाएगा। चिंतन का अर्थ होता है, मन का किसी एक विचार में बार-बार रमण करना। जैसे धन के विषय में चित्त जब बार-बार चिंतन करता है, तो लोभ पैदा होता है, अपने संबंधियों का चिंतन करने से मोह पैदा होता है, बीमारी के विषय में चिंतन करने से बीमारी बढ़ती है और स्वास्थ्य के विषय में चिंतन करने से स्वास्थ्य बेहतर होता है। ठीक इसी तरह परमात्मा के विषय में बार-बार चिंतन करने से चित्त में परमात्मभाव पैदा होता है, जो मुक्ति की ओर ले जाने मददगार है।

जब आपके बाल उलझते हैं,तो आप कंघी लेकर बड़े प्यार से उनको सुलझा लेते हैं। जब पतंग की डोर उलझ जाती है, तो बच्चे बड़े धीरज से डोर का एक सिरा पकड़ कर उसको धीरे-धीरे सुलझा लेते हैं। उलझी हुई चीज को प्यार और धीरज से सुलझाना पड़ता है। ठीक इसी तरह मन की उलझन के साथ भी ऐसा ही करना चाहिए। जब मन में कई बुरे ख्याल इकट्ठा हो जाते हैं, तब वह उलझ जाता है। बुरे ख्याल नकारात्मकता पैदा करते हैं और नकारात्मकता उलझन बढ़ाती है। मन कभी अच्छे ख्यालो से नहीं उलझता। अच्छे विचार मन को सुलझाने के लिए होते हैं। 

उलझन अक्सर तब होती है, जब निश्चित काम वक्त पर ना हो, एक साथ अनेक कार्यों में चित्त बंटा हुआ हो। किसी बात को लेकर डर हो, मन की बात पूरी ना हो रही हो, अहंकार को ठेस लगी हो, नुकसान हो गया हो वगैरह-वगैरह। इन हालातों से मन बुरे ख्यालों से उलझ जाता है। लेकिन, स्मरण रहे कि मन को सुलझाना हो, तो उलझन को समझना सीखिए। इसके लिए उलझे हुए एक-एक ख्याल को प्रेम और धीरज से सुलझाने की कोशिश करनी होगी। अपने अधूरे काम को पूरा करते जाइए। जो हो गया है, उसके बारे में सोचकर परेशान मत होइए। आपको सृजन की नई शक्ति मिलेगी और मन की उलझी हुई डोर सुलझती जाएगी।

यह तो आपके ऊपर है कि आप अपने मन में कौन-सी बात संजोते हैं। मन की सफाई हमें वैसे ही करनी चाहिए जैसे घर की सफाई की जाती है। जैसे घर को सजाने में ध्यान देते हैं, मन को सजाने में भी दें। अक्सर घर तो सजे रहते हैं, लेकिन मन की खबर न लेने से कारण मन बुरे विचारों और नकारात्मकता से भरा जाता है। अपने मन को घर का स्टोर या कूड़ेदान न बनने दें। उसे ज्ञान-ध्यान और जीवन निर्माण लगाएं। इससे मन में ताजा और सकारात्मक विचारों के लिए जगह बनेगी। जब भी कोई नकारात्मक विचार आए, उसे मन में घर न करने दें, क्योंकि वह एक बुरा विचार पूरे मन पर हावी होकर आपको दुखी कर देगा।

सच है कि हमारा मन जाकर बार-बार अटक जाता है, मन को कुछ खोने का डर और मिलने की आस लगी रहती है, जो हमें सुखी-दुखी, मान-अपमान, लाभ-हानि, जय-पराजय देती है, वही हमारी माया है। कहा गया है कि जब तक मन माया के जाल में फंसा रहता है, मुक्ति मुमकिन नहीं। माया से ऊपर उठना मुक्ति है। संसार जितना दिखाई देता है, वह और कुछ नहीं, बल्कि माया का जाल है। इसीलिए कहा गया है मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है। आप अगर चाहें तो मन को मना सकते हैं और नहीं तो आप मन की मनमानी को रोक नहीं पाएंगे। 

बात ऎसी है कि महाभारत का युद्ध कहीं बाहर नहीं, हमारे मन में ही चलता है। मन में अच्छे और बुरे विचारों की लड़ाई ही महाभारत है। यहां हमारा मन अर्जुन है और विवेक रूपी चेतना कृष्ण।

युद्ध के दौरान जब अर्जुन ने अपने सभी सगे-संबंधियों, गुरुओं आदि को सामने देखते हैं, तो उनके मन में मोह पैदा हो जाता है। उन्हें लगता है कि ये सब तो मेरे अपने है, मैं इनको कैसे मार सकता हूं! इससे तो अच्छा है कि मैं युद्ध ही न करूं। ऐसी बातें सोच कर दुखी अर्जुन भगवान कृष्ण की शरण में बैठ गए। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। कहा - अर्जुन, जड़ मत बनो। यह तुम्हारे चरित्र के अनुरूप नहीं है। हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़े हो जाओ।

कई बार व्यक्ति को किसी काम को करने से उसका दुर्बल मन डराता है। इस वजह से वह आगे नहीं बढ़ पाता। लेकिन याद रखना चाहिए कि जीवन में तरक्की दुर्बलता से नहीं, बल्कि मजबूत इरादों से मिलती है। दिनचर्या के हर काम को युद्ध की तरह समझना चाहिए और उसको उत्साह के साथ पूरा करना चाहिए। मन को कभी कमजोर नहीं पड़ने देना चाहिए। मन डराएगा, लेकिन हमें डरना नहीं है। जीवन आगे बढ़ने के लिए है, डर कर या निराश होकर बैठ जाने के लिए नहीं। जीवन में हार के साथ जीत, नुकसान के साथ फायदा और सुख के साथ दुख ऐसे जुड़े हैं, जैसे सिक्के के दो पहलू।

इंसान होने का हक़ अदा करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हमें जो भी, जैसा भी मिला है उसे लेकर खुश रहें। लेकिन खुशी के लिए केवल सोचने भर से काम नहीं चलता। उसके लिए मन को समझने और उसको अपने काबू में करने की जरूरत है। कभी खुशी का माहौल भी होगा तो भी मन कुछ समय के लिए खुश करके, फिर से परेशान कर देगा। मन को खुश रखना हमारी कोशिश पर निर्भर है। खुशी की हर कोशिश को अंजाम देना ज़िंदगी की सबसे बड़ी कामयाबी है।

याद रखिए -

सफर ही हद है वहां तक कि कुछ निशान रहे

चले चलो कि जहाँ तक ये आसमान रहे।

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दुर्गा चौक,दिग्विजय पथ 

राजनांदगांव,छत्तीसगढ़ 

मो.9301054300 

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रचनाकार: चन्द्रकुमार जैन का चिंतन - मन है अर्जुन और विवेक चेतना श्री कृष्ण
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