मध्यान्ह भोजन की थाली ! दोस्तों अभी हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आगामी वर्ष की शिक्षा नीति का खाका तैयार करने संबंधी खबरें जोर शोर से ...
मध्यान्ह भोजन की थाली !
दोस्तों अभी हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आगामी वर्ष की शिक्षा नीति का खाका तैयार करने संबंधी खबरें जोर शोर से सोशल मीडिया एवं प्रिन्ट मीडिया पर छाईं रहीं, शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर परिणामों की चाह में सरकार नित नये फार्मूलों पर विचार कर रही है, जिनकी तारीफ करनी ही होगी। सोशल मीडिया एवं प्रिन्ट मीडिया की खबरों से शिक्षा महकमे में सनाका खिंच ही गया, और शिक्षाविदों ने लगे हाथ मध्यप्रदेश सरकार को कोसना भी चालू कर दिया । बहरहाल शिक्षा के क्षेत्र में शासन और सरकार द्वारा किए जा रहे अभिनव सुधार के प्रयासों में कहीं ना कहीं जनकल्याणकारी सोच निहित है। जिसके परिणाम दूरगामी जरूर हो सकते हैं, पर इस व्यवस्था ने उन शिक्षाविदों के कान खड़े कर दिये हैं, जो हप्ते में एक दिन स्कूल की चौखट पर पैर रखने जाते हैं। और स्कूल से वापस आसपास की गप्पें मारकर चले आते हैं।
मध्यप्रदेश के 21 हजार सरकारी स्कूलों का संचालन निजी हाथों में सौंपने की योजना के पीछे शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के अलावा सरकार और शासन की और कोई सोच निहित नहीं है। जिस प्रकार वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था का हाल बेहाल हुआ है, उससे सभी भली भांति परिचित हैं। यदि नहीं तो पास के सरकारी स्कूल की तस्वीर को एक बार झांक के जरूर देख लीजिए सच्चाई आपके सामने होगी। पर सवाल इस बात का है कि आखिर सरकार के द्वारा शिक्षा व्यवस्था के निजीकरण करने की नौबत क्यों आई ? क्या प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत वर्तमान में खस्ताहाल हो चुकी है? या फिर निजीकरण के पीछे राजनीति का वो अखाड़ा छुपा हुआ है जो आज तो नहीं दिख रहा है पर शिक्षा व्यवस्था का निजीकरण होते ही दिखने लगेगा। सरकारी स्कूलों के निजीकरण के पीछे राजनीतिक धन्नासेठों का स्वार्थ निहित हो या निस्वार्थ की भावना ये तो योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद जब योजना धरातल पर आयेगी तबी हम और आप इससे रूबरू हो पायेंगे। पर शिक्षा नीति का जो खाका आगामी शिक्षा सत्र के लिए तैयार किया जा रहा है वो निश्चित रूप से शिक्षाविदों की भावनाओं को आहत करता है।
एक तरफ भारत सरकार ने शिक्षा के लोकव्यापीकरण हेतु शालाओं में दर्ज बच्चों की संख्या में वृद्धि एवं उनकी उपस्थिति में निरन्तरता तथा शालाओं में पढ़ने वाले बच्चों को पोषण आहार उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके पोषण स्तर में सुधार किए जाने हेतु साथ ही ग्रामीण अंचल की गरीब महिलाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सभी शासकीय एवं अनुदान प्राप्त शालाओं में मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम वर्ष 1995 में शुरू किया जिसमें भारत सरकार एवं राज्य सरकार के संयुक्त संसाधनों से सभी शासकीय एवं अनुदान प्राप्त शालाओं में पढ़ने वाले बच्चों को कच्चा खाद्यान्न वितरित किया जा रहा था। परन्तु स्कूलों में कच्चे खाद्यान्न वितरण योजना में हुई धांधली के बाद ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर स्कूलों में वर्ष 2001 से पका हुआ भोजन का वितरित किया जाने लगा। पर सरकार की इस योजना पर भी ग्रहण लगना शुरू हो चुका है।
मध्यान्ह भोजन लागू होने की तिथि से भले ही देश एवं प्रदेश के सरकारी स्कूलों में दर्ज बच्चों की संख्या में बढोत्तरी के आंकडे या फिर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों में पोषण स्तर सुधार तथा ग्रामीण गरीब महिलाओं को स्वरोजगार प्राप्ती के आंकडे सरकार ने इकठ्ठा कर लिए हों पर धरातल की सच्चाई कुछ और ही है। शिक्षाविदों की मानें तो वे दवी जुबान यह कहने में नहीं हिचकते कि जिस दिन से देश के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन शुरू हुआ है उस दिन से शिक्षा का स्तर और गिरा है, देश और प्रदेश के सरकारी स्कूलों की धरातल पर तस्वीर देखी जाये तो सच्चाई सामने होती है। पर इस सच्चाई पर सरकारों के सरकारी आंकडों की बाजीगरी भारी पढ़ती दिखाई देती है।
प्रदेश के स्कूलों के निजीकरण की खबरों से भले ही शिक्षाविदों की नींद उड़ा दी हो पर यही शिक्षाविद् सरकार को जी भर के कोष रहें है। और कोषने का करण भी स्वभाविक ही जान पढ़ता है, क्यों कि भले ही भारत सरकार ने स्कूलों में राज्य सरकार के संयुक्त संसाधनों से मध्यान्ह भोजन शुरू कर दिया है, और इसके परिणाम भी कागजों में सार्थक दिखाई देते हों पर इसकी हकीकत की कहानी प्रदेश का हर स्कूल वंया करता है, सरकार की मंशानुरूप निश्चित रूप से स्कूलों में दर्ज बच्चों की संख्या में बढोत्तरी हुई होगी और ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार के साधन भी उपलब्ध हो गये होंगें पर देश और प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा को वो माखौल उड़ाया जा रहा है जिसकी तस्वीर हाथ में कापी ओर पेन की जगह कटोरी और थाली दिखाई देती है। भले ही डाट फटकार के बच्चों को मध्यान्ह मिलने के समय से अवगत करा दिया जाता हो पर उनके मन और मस्तिष्क पर वहीं तस्वीर दिखाई देती कि कितने समय मध्यान्ह भोजन की थाली, भोजन से भरी होगी।
इस बीच विद्यार्थीयों के विद्या अध्ययन में अगर कोई अवरोध खडा होता है तो वो मध्यान्ह भोजन ही होता है। जिसे शिक्षाविदों के द्वारा अनदेखा इसलिए किया जाता है कि वे शिक्षाविद् सरकार और शासन के ही अंग होते हैं। बहरहाल सरकार ने प्रदेश के सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में सौंपने के पीछे सरकार की मंशा चाहे कुछ भी हो पर जब तक देश और प्रदेश के सरकारी स्कूलों से बच्चों के हाथ से थाली ओर कटेारी को नहीं छीना जावेगा तब तक देश की सरकारी शिक्षा इसी तरह नित नये प्रयोगों को जन्म देती रहेगी। यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था मासूम बच्चों के हाथों में थाली ओर कटोरी एवं उसमें रखे खाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इस व्यवस्था से जुडें उन लोगों का ध्यान भी 100 ग्राम चावल और 100 ग्राम दाल को बचाने में रखा रहता है, और टूट जाती हैं मासूम बच्चों और उनके माता-पिता की आकांक्षाऐं जो हर रात सोते समय अपने बच्चों के भविष्य के लिए देखी जाती हैं।
सरकारी आंकडों की माने तो मिड-डे मील योजना दुनिया की सबसे बड़ी योजना है, जिसके अंतर्गत देश के 13 लाख सरकारी स्कूलों में 12 करौड़ बच्चों को दोपहर का पोष्टिक भोजन पकाकर खिलाया जाता है, पर इस योजना की भयंकर लापरवाही के कारण देश के सरकारी स्कूलों में प्रतिवर्ष हजारों बच्चे जहरीले खाना का शिकार हो जाते हैं। जिसका कारण साफ है कि उन शिक्षा माफियाओं का ध्यान भी उसी 100 ग्राम दाल और 100 ग्राम चावल को बचाने के में लगा रहता है। और इस बीच दम तोड़ देती हैं सरकार की वे योजनाऐं जो धरातल में सुधार के सपने संजोए रहती हैं। हालांकि सरकार और शिक्षाविद् यह भली भांति जानते हैं कि देश और प्रदेश में संचालित मध्यान्ह भोजन व्यवस्था ने शिक्षा व्यवस्था को चौपट करके रख दिया है फिर भी राजनीति के वो चेहरे कभी आवाज इसलिए नहीं उठाते क्यों कि उनके पीछे का दरवाजा इसी मध्यान्ह भोजन के गौदाम की ओर खुलता है।
शिक्षाविदों की माने तो सरकार के द्वारा निजीकरण का खाका तैयार करने पीछे सरकार की नाकामी भी हो सकती है, जो इस शिक्षातंत्र पर अपने नित नये प्रयोगों की मुहर लगाकर वाहवाही लूटना चाह रही है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार की संभावनाओं के बीच सरकार शिक्षाविदों की नाराजगी का शिकार तो हो ही रही है। बल्कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था में सुधार के सुर भी उठने लगे हैं। शिक्षाविदों की माने तो प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सुधार, सरकार के निजीकरण की योजना से नहीं होने वाला है, बल्कि प्रदेश के स्कूलों में मध्यान्ह भोजन योजना में सुधार कर मध्यान्ह भोजन की राशि स्कूली बच्चों के सीधे खाते में डाल दी जावे, जिससे शिक्षाविदों का ध्यान भी मूल रूप से इस व्यवस्था से हट जाय और मध्यान्ह भोजन में कमीशनखोरी का खेल भी खत्म हो जाय। ऐसे ही कई तरह के सुधारों की सरगर्मिया अब तेज हो चुकी हैं अब देखना होगा कि सरकार और शिक्षाविदों की इस लडाई में जीत किसकी होगी।
कुमार अनिल पारा,
09425885039
kumar anil paara ka shiksha par aalekh baut sargarbhit or vicharniya hai dhanyabaad
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद,
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