विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी खा लसा कॉलेज फार विमन, अमृतसर में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सौजन्य से '2 ...
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी
खालसा कॉलेज फार विमन, अमृतसर में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सौजन्य से '2 1 वीं शती के प्रवेश द्वार का हिन्दी साहित्य' विषय पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन मार्च 20 - 21 को किया गया । जिसमें 4० के लगभग विद्वानों ने 21 वीं शती के हिन्दी साहित्य (कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक, लघुकथा) 21 वीं शती के प्रमुख विमर्श (नारी विमर्श, दलित विमर्श, प्रवासी विमर्श) 21 वीं शती का हिन्दी साहित्य और मीडिया (टी वी सीरियल, पत्र-पत्रिकाए ब्लॉग) 21 वीं शती के हिन्दी साहित्य में वर्णित समस्याएं एवं उपलब्धियां पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये और 15० के लगभग प्रतिभागियों ने विचार चर्चा की ।
प्राचार्या डॉ ० सुखबीर कौर. संयोजिका डॉ ० चंचल वाला. बीज भाषण वक्ता डॉ ० मधु स्व-धु मुख्यातिथि डॉ ० रामसजन पाण्डेय. अध्यक्ष डॉ ० नीलम सराफ. सम्मानीय अतिथि सुधा जितेन्द्र 1
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में सर्वप्रथम कॉलेज प्राचार्या डॉ ० सुखबीर कौर ने इस अछूते और अस्पृश्य विषय पर विचार प्रकट करने के लिए आये विद्वानों का संगोष्ठी भवन में स्वागत किया और प्रतिभागियों एवं श्रोतागण को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप का यह सौभाग्य है कि हिन्दी जगत के आसन्न डेढ़ दशक यात्रा आपके समक्ष प्रस्तुत की जा रही है ।
बीज भाषण वक्ता प्रसिद्ध लेखिका एवं आलोचक डॉ ० मधु स्व-धु पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग गुरु नानक देव विश्वविद्यालय ने अपने वक्तव्य में 21 वीं शती की प्रमुख देन के सन्दर्भ में भूमण्डलीकरण, बाजारवाद, नारी सशक्तिकरण, प्रवासी जीवन, दलित चेतना आदि का उल्लेख करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी, अर्न्तजाल तथा भाषा और लिपि की देन और हिस्सेदारी को स्पष्ट किया । उन्होंने बताया कि 21 वीं शती ने ही हमें दुनिया मेरे कदमो में या कर लो दुनिया मुट्ठी में का नारा दिया है । 21 वीं शती साहित्यकार के समक्ष नये रास्ते, नये तेवर, नई चुनौतियां लेकर खड़ी है । आज के स्मार्ट मोबाइल ने, ग्तल ने, टी वी चैनलों ने, विज्ञापन की दुनिया ने और ढेरों वैबसाइट्स, ब्लॉग और चैटिंग ने, विकिपीडिया और फेसबुक ने हिन्दी भाषा और लिपि के वर्चस्व को उद्धोष स्वर मे स्वीकार लिया है । इसके अतिरिक्त उन्होंने 21 वीं शती के इस डेढ शतक में आये नवीन साहित्य की चर्चा की । उद्घाटन सत्र के मुख्यातिथि डॉ ० रामसजन पाण्डेय प्रो. एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, महाऋषि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक ने 21 वीं शती की मुख्य देन आम आदमी के अन्दर साहित्यकार के दबे पड़े स्वर को माना और कहा कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में अर्न्तजाल ने, मीडिया ने आज के आम आदमी की भावनाओं को साहित्यिक जामा पहनाने में मदद की है ।
बीज भाषण वक्ता डॉ ० मधु संधु
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता डॉ ० नीलम सराफ प्रो. हिन्दी विभाग, डीन अकैडैमिक अफ्रीयर्न, जम्यू विश्वविद्यालय, जष्णु ने की । उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में साहित्य और जीवन से अनेकानेक सन्दर्भ प्रस्तुत करते हुए स्त्री विमर्श पर अपने विचार प्रस्तुत किये ।
प्रथम अकादमिक सत्र की अध्यक्षता डॉ ० सुधा जितेन्द्र प्रो. एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर ने की । उन्होंने अध्यक्षीय भाषण में बताया कि 21 वीं शती का हिन्दी साहित्य अलग- अलग विधाओं में पूरे विश्व में फैल कर इस देश के मूल्यों से सब को परिचित करा रहा है और भारत और भारतीयों के लिए विशेष सामान बटोर रहा है । इस सत्र में 9 प्रपत्र पड़े गये । दलित विमर्श के सन्दर्भ में आर. आर. बावा डी ए वी कॉलेज, बटाला से आई डॉ ० कल्पना ने मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास ' अल्मा कबूतरी' की सइवस्तार चर्चा की । बी डी आर्य कॉलेज, जालन्धर की डॉ ० मीनू नंदा, कॉलेज ऐजुकेशन, अमृतसर से डॉ ० इन्दू सुधीर और जनता कॉलेज खालसा ऑफ करतारपुर से डॉ ० अनीता ने ब्लॉग का इतिहास और विकास स्पष्ट करते हुए ब्लॉग जगत के अनेकानेक पक्ष खोले । 21 वीं शती में प्रकाशित संस्मरणों की चर्चा करते डॉ ० शैलजा सैली प्रवक्ता हिन्दी विभाग आर .आर. बावा डी ए वी कॉलेज ने हिन्दी के वरिष्ठ तथा चर्चित कथाकार सैली बलजीत और स्वदेश दीपक की रचनाओं का उल्लेख किया । 21 वीं शती पर्यावरण सजगता की शती है । और साहित्यकार प्रदूषण के प्रकोप को लगातार चित्रित कर रहा है । डॉ ० नवज्योत भनोट प्रवक्ता डॉ ० बी .आर. अम्बेदकर राजकीय महाविद्यालय गंगानगर ने अपने प्रपत्र 21 वीं शती की हिन्दी कविता में पारिस्थितिक चेतना में 21 वीं के काव्य के सन्दर्भ में साहित्यकार की पर्यावरण सजगता को स्वर दिया । डॉ ० बौस्की प्रवक्ता हिन्दी विभाग, हिन्दू कन्या महाविद्यालय ने '2 1 वीं शती के वैश्विक परिवेश में हिन्दी उपन्यास' शीर्षक शोध पत्र में संजीव, धर्मपाल साहिल, मधु कांकरिया, काशी नाथ सिंह, राजेन्द्र अवस्थी, ज्ञान प्रकाश विवेक के सयः प्रकाशित उपन्यासों की विभिन्न विमर्शो के सन्दर्भ में चर्चा करते हुए किन्नर विमर्श का उल्लेख किया । डॉ ० अतुला भास्कर हिन्दी विभागाध्यक्ष शहजादा नंद कॉलेज, अमृतसर ने अपने शोध पत्र '2 1 वीं शती के साहित्यिक मूल्य: हिन्दी कविता का परिदृश्य' में मूल्य चेतना पर बल दिया ।
। संगोष्ठी कक्ष में श्रोता गण
प्रथम दिवस के द्वितीय अकादमिक सत्र की अध्यक्षता डॉ ० विनोदकुमार तनेजा पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग गुरु नानक देव विश्वविद्यालय ने की । उन्होंने अपने वक्तव्य में ध्ययुगीन मूल्य चेतना के 2 वीं शती में पुन: सृजन की बात कही । भूमण्डलीकरण की बात करते हुए बाजारवाद और संस्कृति पर बात की । इस सत्र में विभिन्न विमर्शों की चर्चा की गई । डॉ ० सुनील प्रवक्ता हिन्दी विभाग गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर ने दलित विमर्श के सन्दर्भ में चिन्तन यात्रा प्रस्तुत की तो डॉ ० प्रीति अरोड़ा, प्रवक्ता हिन्दी विभाग, कमला नेहरू कॉलेज फॉर विमेन, फगवाडा ने नारी विमर्श के विविध आयामों का पटाक्षेप किया । डॉ ० ज्योती गोगिया हिन्दी विभागाध्यक्ष हंसराज महिला महाविद्यालय जालंधर ने प्रवासी जीवन के संदर्भ में फीजी के हिन्दी साहित्य के स्वरूप पर प्रकाश डाला । डॉ ० अंजना कुमारी हिन्दी विभागाध्यक्ष ए पी जे कॉलेज ऑफ फाइन आट्स, जालंधर ने सुनीता जैन के काव्य संग्रह खाली घर' के आधार पर रिसते रिश्तों की अकुलाहट को अभिव्यक्ति दी । गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर के हिन्दी विभाग से डॉ ० सुनीता शर्मा ने 21 वीं शती में हिन्दी कविता में आये पर्यावरण के प्रति सजगता और संवेदना, संचेतना और जाग्रति को अपने शब्दों में अभिव्यक्त किया । इसी विभाग से डॉ ० सपना ने 1913 में प्रकाशित उपन्यास न्डाय चलते हुए' के सन्दर्भ में प्रवासी जीवन की विभिन्न ज्वलंत समस्याओं को परिलक्षित किया । स्वप्न और मोहभंग की मर्मस्पर्शी स्थितियों की ओर इंगित किया । अमृतसर के बी वी के डी ए वी कॉलेज से आई डॉ ० शैली जग्गी प्रवक्ता हिन्दी विभाग ने अपने प्रपत्र में सर्वप्रथम समाचार पत्रों से विलुप्त हो रहे साहित्यिक पृष्ठों की चिन्ता व्यक्त करने के पश्चात् प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के अवमूल्यन का जिक्र किया और 21 वीं शती के साहित्यकारों को जीवन के साकारात्मक पक्षों की ओर आने का आमंत्रण दिया ।
21 मार्च द्वितीय दिवस और संगोष्ठी के तृतीय अकादमिक सत्र की अध्यक्षता गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर से हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सुधा जितेन्द्र ने की । उन्होंने अध्यक्षीय भाषण में स्पष्ट किया कि जिस साहित्य को, जिस हिन्दी साहित्य की भाषा और लिपि को वैश्विकरण ने खदेलने का यत्न किया था वह पुन: प्रतिष्ठित हो रहा है और साहित्य की सारी विधाएं इसे साकार कर रही है । इस सत्र में 8 प्रपत्र पढ़े गये । मैत्रेयी पुष्पा के 'कस्तुरी कुंडल बसै' गुडिया भीतर गुडिया' शरण कुमार लिम्बाले का झुण्ड' जयंती का खाना बदोश ख्वाहिशें' मधु कांकरिया का पत्ता खोर' सलाम आखिरी' किरण वालिया का खामोशियां बोलती हैं' पर प्रतिभागियों ने चर्चा परिचर्चा की ।
संगोष्ठी के चतुर्थ अकादमिक सत्र की अध्यक्षता गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर के हिन्दी विभागाध्यक्ष के पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष डॉ ० मधु संधु ने की । उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में 21 वीं शती में जन्म ले रही नवीन साहित्यिक विधाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि बीसवीं शती में जो अर्न्तजाल रोमन लिपि के आगे सिर झुकाये था । 21 वीं शती तक आते- आते नागरी लिपि के वर्चस्व को स्वीकारने लगा । इस सत्र में 7 प्रपत्र पढे गये । 21 वीं शती की हिन्दी कविता, उपन्यास, कहानी पर प्रतिभागियों ने प्रपत्र पढे और दलित विमर्श, प्रवासी जीवन के अतिरिक्त मीडिया और ब्लॉग जगत इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी के विश्वव्यापी परिदृश्य की क्रांतिकारी भूमिका का अंकन किया ।
समापन भाषण में डॉ ० मधु संधु ने निष्कर्षात्मक अभिमत देते कहा कि आज देवनागरी लिपि रोमनी लिपि के वर्चस्व को तोड़ रही है । हिन्दी में इंटरनेट और मीडिया पर ढेरों किताबें उपलब्ध है । 21 वीं शती में मीडिया की उपलब्धि ने आम आदमी को भी साहित्यकार बना दिया है । वक्त बदल रहा है । उपलब्धियां भी नई है और चिन्ताएं भी नवीन है और साहित्यकारों ने समय के स्वर को अपनी कविता, गीत गजल, उपन्यास, कहानी लघुकथा में स्वर दिया है । कुछ नई विधाएं कुनमुनाती दिखाई दे रही है लेकिन उनका भविष्य समय ही तय करेगा ।
संगोष्ठी के पाँचों सत्रों का मंच संचालन खालसा कॉलेज फॉर विमन की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ ० चंचल वाला ने किया । इन्होंने संगोष्ठी में वक्तव्य देने वाले 4० विद्वानों की साहित्यिक प्रतिभा से श्रोताओं को परिचित करवाया और उन्हें पुष्पगुच्छों से सम्मानित कराया । प्राचार्या डॉ ० सुखबीर कौर माहल की कार्यक्रम में उपस्थिति आद्यान्त बनी रही । संगोष्ठी कॉलेज के बौद्धिक स्तर कार्यविधि, अनुशासन का सशक्त प्रमाण रही । द्वि- दिवसीय इस संगोष्ठी के सभी प्रपत्र नितान्त मौलिक थे । समाचार पत्रों में संगोष्ठी काफी चर्चित रही । पत्र-पत्रिकाओं में संगोठी की रिपोर्ट प्रकाशित हुई ।
डॉ ० चंचल बाला अस्सिटैंट प्रोफेसर
हिन्दी विभाग खालसा कॉलेज फॉर विमन, अमृतसर
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