ललिता भाटिया होली है होली है। विकास का चयन आई ए एस में हुआ है तब से उस का गांव आना कम हो गया है । इस साल वो होली के अवसर पर घर आया तो उसे...
ललिता भाटिया
होली है
होली है। विकास का चयन आई ए एस में हुआ है तब से उस का गांव आना कम हो गया है । इस साल वो होली के अवसर पर घर आया तो उसे अपने और गांव वालों के बीच एक अदृश्य दीवार खिंची लगी जो भी मिलता बस अभिवादन कर के आगे बढ़ जाता कहीं प्यार की गर्माहट नहीं थी । विकास ने जब इस दीवार को लांघने की कोशिश की तो उस के पद का अहम आड़े आ गया । होली से एक दिन पहले माँ से मावे की गुझिया बनवाई । होली के दिन सुबह से ही थाल में गुलाल सजा दोस्तों का इंतज़ार करता रहा । गली से आती होली है की आवाज़ मन में झुरझुरी पैदा कर रही थी । पर अंदर आने की कोशिश किसी ने भी नहीं की । कमरे की खिड़की से वो आते जाते लोगो के रंग बिरंगे चेहरे देख रहा था ।
बेटा १२ बज गए हैं, लगता है अब कोई नहीं आएगा तुम नहा धो कर नाश्ता कर लो सुबह से भूखे बैठे हो । माँ के जाते ही विकास ने दोनों हाथों में गुलाल भर कर अपने मुँह सिर पर मलते हुए चिल्लाया होली है होली है। उस के बाद पता नहीं कितनी देर तक वो गुलाल उड़ाता रहा।
पानी की बूँद
रविवार यानि कि छुट्टी का दिन बच्चे और पति घर ही थे । आज तो लंच सब इकट्ठे ही करेंगे । रोज़ तो कोई ऑफिस में तो कोई कॉलेज में और कोई स्कूल में खाता है और ग्रहणी अकेली बैठ कर सुबह का बनाया खाना दोपहर को खाती ।
आज वो सुबह से ही रसोई में लगी हुई हे । पति की पसंद के दही बड़े ,बच्चों की पसंद के राजमा चावल बनाए साथ में खट्टी मीठी चटनी और सलाद तैयार कर के टेबल सजा दी ।
आ जाओ सब खाना तैयार है ,कहते उस ने पानी का जग टेबल पर रक्खा तो वो कुछ छलक गया पर वो अपनी धुन में लगी रही और इस तरफ उस का ध्यान ही नहीं गया \
सब खाने की टेबल पर आ गए ।
ये क्या तुम्हें इतना भी शऊर नहीं देखो प्लेट गीली ही रक्खी है पतिदेव गुस्से में बोले।
ओह वो अभी पानी का जग रक्खा था तो पर इस से ज्यादा वो बोल नहीं पाई । पति से इतनी ज़िल्लत पा कर अब खाने का मन नहीं था पर जैसे तैसे खाना गटका । प्लेट पर गिरी पानी की बूंदे गृहणी की आँखों में आ गई थी । छलकना चाह कर भी नहीं छलकाए अपने साथ सब का मूड क्यों खराब किया जाये । वो गुबार निकालने रसोई में आ गई ।
मोहम्मद इस्माईल खान
...... उत्पीड़न !
एक राज्य में एक बड़ा जंगल था। उसमें बहुत सी हिरनियाँ और शेर रहते थे। हिरनियाँ अपने इलाके में और शेर अपने इलाके में रह कर अपनी आजीविका कमाते थे। कभी कभार कोई हिरनी भटक कर शेर के इलाके में चली जाती तो शेर उसका उत्पीड़न कर देता। फिर जमाना बदला। हिरनियाँ होशियार होने लगी। हम अलग ही क्यों रहें! जंगल सारा राजा के अधिकार में है और हम भी उसकी प्रजा हैं। हमारा भी बराबर का हक है। हम अपनी आजीविका कहीं भी कमा सकते हैं! उन्होंने राजा से, कहीं भी अपनी आजीविका कमाने का अधिकार माँगा। राजा ने उन्हें अधिकार दे दिया। शेर, राजा के इस आदेश से मन ही मन खुश हुए। क्योंकि राजा उन्हीं की बिरादरी का था।
एक सयानी हिरनी ने कहा- ईश्वर ने स्वभाव और शरीर से हमें शेर के मुकाबले में कमज़ोर बनाया है, विपत्ति आने पर हम अपनी रक्षा कैसे करेंगे? विपत्ति आने पर हम अपनी आवाज़ बुलन्द करेंगे-कुछ प्रगतिशील हिरनियों ने कहा। सयानी हिरनी ने कहा-यह रक्षा कहाँ हुई! शिकार हुई हिरनी तो सदा के लिये पीड़ित हो जायेगी, उसका जीवन भर का दुख कौन बाटेगा। फिर आप आवाज बुलन्द करते रहिये। हम कुछ नहीं कर पायेगें क्योंकि ईश्वर ने हमें मन,स्वभाव, और शरीर से ऐसा ही बनाया है कि हम किसी का उत्पीड़न कर ही नहीं सकते। जब कि शेर मौका देख कर हमारा .......उत्पीड़न कभी भी कर सकता है। लेकिन हिरनियाँ न मानी। उन्होंने शेर के साथ मिल कर अपनी आजीविका कमाने का फैसला कर लिया। शेर मन ही मन खुश हुए। उन्होंने भी हिरनियों की आवाज़ में आवाज़ मिला कर उनके साथ आजीविका कमाने के प्रस्ताव का समर्थन किया। जब हिरनियाँ शेरों के साथ आजीविका कमाने आने लगीं तो शेर, हष्टपुष्ट शरीर वाली, सुन्दर मासूम चेहरे वाली, कजरारी आँखों वाली हिरनियों को ही अपने साथ काम करने देते। ताकि कभी इनके शिकार का मौका आए तो आत्मा तो तृप्त हो।
समय बीता तो हिरनियाँ शेरों के साथ मिल कर दिन रात अपनी आजीविका कमाने में व्यस्त हो गयीं। लेकिन शेरों का मन मैला था और ईश्वर ने शेरों के मुकाबले में हिरनियों, को कमजोर ही बनाया था। इसमें कोई क्या कर सकता था। अतः हिरनियाँ हमेशा डरी सहमी ही रहती। वह अकेले में असहज ही रहती। कभी शेर उन्हें देर रात तक काम करने को कहता तो वे मना कर देती। उन्हें शेर से अनजाना भय सताता रहता। इसमें हिरनियों का कोई दोष नहीं, ईश्वर ने उन्हें बनाया ही ऐसा। प्रकृति के विरुद्ध जा कर भी कोई जीत सका है भला। पता लगा आदिकाल से शेर हिरनियों का शिकार करता रहा है, और इसे आज तक कोई रोक नहीं पाया। इसी तरह जब कुछ हिरनियाँ शेरों के हाथों ....... उत्पीड़न का शिकार हो गयीं तो हिरनियों ने न्याय के लिये आवाज उठाई। मालूम हुआ कि न्याय करने वाला पहले ही एक हिरनी का शिकार कर चुका है।
हिरनियाँ अलख जगाने वालों के पास गयीं, वे भी पहले ही कई हिरनियों का गोश्त नोच कर खा चुके थे। फिर हिरनियाँ ईश्वर से डराने वालों के पास गयीं ये ऊँचे सिहाँसनों पर बैठ कर कमज़ोरों की रक्षा करने का प्रवचन दिया करते थे। पता लगा एक नहीं कई सुन्दर कमज़ोर हिरनियों का ...... उत्पीड़न कर लेने के जुर्म में परिवार समेत जेल में है। हार कर हिरनियाँ सयानी हिरनी के पास गयीं। सयानी हिरनी ने कहा- यह ईश्वर का बनाया नियम है इससे आगे जा कर कोई सफल नहीं हो सकता। अब हमें चाहिये कि हमारे आजीविका कमाने के संस्थान अलग हों। हमें ऐसे स्कूल, अस्पताल, फेक्टरियाँ, शॉपिगं माल और कई दूसरे आजीविका कमाने के संस्थान ऐसे चाहिये, जो शेरों की काम करने की जगह से अलग हों, जहाँ हिरनियों का ही साम्राज्य हो ताकि हिरनियाँ सुरक्षित रह सकें। और निश्चिन्त हो कर काम कर सके।
मोहम्मद इस्माईल खान
एफ-1 दिव्या होम्स् सी-4/30 सिविल लाईन श्यामला हिल्स्
भोपाल 462002
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देवेन्द्र सुथार
हमदर्दी
अल-सुबह अपने एक परिजन को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन जाना पडा। रेलवे स्टेशन के बाहर एक गरीब ठंड से ठिठुर रहा था। उसकी दुर्दशा देख मानवता जगी और मेरा कम्बल मैनेँ उसे औढा दिया। कुछ दिनोँ के बाद फिर से रेलवे स्टेशन की शक्ल देखनी पडी तो पाया कि वह गरीब फिर नंगे बदन था। मैने
पूछां कि मैनेँ आपको कम्बल तो दी थी। उसने दूसरे गरीब की ओर इशारा कर कहा-साहब! यह मुझसे भी ज्यादा गरीब हैँ।
-देवेन्द्र सुथार,बागरा,जालौर
(राज.)।
ई-मेल=
devendrasuthar196@gmail.com
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