व्यंग्य कम्पनी से तरक्की मैंने अब एक कम्पनी खोल ली है। इसमें बिजली के बिल बनवाने का काम होता है। इस कार्य में मुझे दिन दूनी, रात चौगु...
व्यंग्य
कम्पनी से तरक्की
मैंने अब एक कम्पनी खोल ली है। इसमें बिजली के बिल बनवाने का काम होता है। इस कार्य में मुझे दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की मिल रही है। मेरी तरक्की से बहुत लोग जल रहे हैं, पर मुझे क्या ? जलने वाले जला करें। जल-जल कर मरा करें। मेरे ससुर एम0डी0 हैं और उनकी वर्तमान सरकार पर अच्छी-खासी पकड़ है। जब तक मेरे ससुर एम0डी0 हैं, तब तक मुझे चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है। मेरा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। मेरे ससुर ने ही फटाक से टेण्डर पास कराया था। टेण्डर के लिए कोई कम्पनी होनी चाहिए। किन्तु मेरे पास कम्पनी नहीं थी। सो मेरे नाम पर ही कम्पनी का नाम एन0आर0एम0 इन्फ्राटेक रख दिया, जिसका नाम नापुसंक राम मोहन इन्फ्राटेक है।
मैंने इसमें अपने चार पार्टनर भी बना लिए हैं। यह चारों खूनी, बदमाश, कत्ली एवं हत्यारें हैं। इन्होंने अपनी गुण्डाई के बल पर कर्मचारियों पर पूरा आतंक फैला रखा है। माफियागीरी, दादागीरी में हम लोग पहले से नम्बर वन हैं। किसी में मजाल नहीं कि कोई चूँ भी कर दे। और जो चूँ-चाँ करने की हिमाकत करता है। उसे चूहे की तरह पूँछ पकड़कर बाहर निकाल दिया जाता है। सुपरवाइजर, सीनियर-सुपरवाइजर, प्रबंधक, एकाउण्टटेण्ट, आपरेटर सब भीगी बिल्ली बने रहते हैं। आफिस में दो-चार मस्त-मस्त आइटमें भी रखीं हैं। दिल बहलाने के काम आती हैं। मनमाफिक यूज कर लेता हूँ, जब कहता हूँ, तब हाजिर हो जाती हैं। नौकरी सबको प्यारी होती है। इसलिए मनमाना काम कराता हूँ।
आफिस और आफिसियल लोगों का यूज पर्सनल कार्यों के लिए भी करता हूँ। गुलामों की एक नई दुनिया बना दी है मैंने। न पी0एफ0 काटता हूँ और न एस0आई0। जबकि नियमतः यह है कि अगर दस कर्मचारी भी कम्पनी में काम करते हैं तो पी0एफ0, एस0आई0 कटना चाहिए। पर मैं क्यों काटूँ ? सैंया भए कोतवाल, हमें डर काहे का। सरकार अपनी है। एम0डी0 ससुर है। गुण्डों की बारात मेरे पास है। आखिर बोलेगा कौन ? रीडिंग करने वाले कर्मचारी बोलेंगे क्या ? उनकी गर्दनें तो हमारे खूँखार सुपरवाइजरों के पैरों तले पहले से ही दबी है। जब चाहेंगे, तब टेटुआ दबाकर टें कर देंगे।
तनख्वाह भी अधिक देने की जरूरत नहीं पड़ी। क्योंकि बिजली विभाग भ्रष्ट विभाग है। अतः कुछ लोग फ्री में भी काम करने को तैयार रहते हैं। क्योंकि ऊपरी कमाई ही असली मलाई है। रीडिंग ऊपर-नीचे करके कमाई कर लेते हैं। लोड-पोड के कारण भी काम लेते हैं। तनख्वाह समय से दो या दो। कोई बोलता नहीं है और जो बोलता है, उसकी हजामत मेरे खूँखार चमचे बनाते हैं। धमकाते हैं, लतियाते हैं, कट्टा-गोली, बन्दूक दिखाते हैं, और अन्त में जरूरत पड़ने पर चलाते हैं।
एक बार कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। अपनी माँगे रखने लगे। पर मैंने चार दिन में ही हड़ताल रुकवा दी। दो-चार को गायब करवाया, डराया, धमकाया। थाने में रुपये देकर उल्टा हड़तालियों के खिलाफ एफ0आई0आर0 लिखवाया। हड़ताल समाप्त हो गयी। डर बड़ी चीज है भाई। अब तो मेरी कम्पनी के सारे कर्मचारी गूँगे, बहरे हो गए हैं। किसी में हिम्मत नहीं कि मेरे किसी गलत काम को गलत कह सकें।
अभी कुछ समय पहले एक कर्मचारी ने अपने साथी की तरफ से दो बातें बोल दी। वह गर्मी दिखाने लगा। मेरी आइटम से बदजुबानी कर दी। फिर क्या था ? मेरे खूनी, कत्ली, चमचों ने उसे डराया, धमकाया, कट्टा दिखाया। फिर भी वह नहीं डरा तो धकिया कर बेइज्जती के साथ आफिस से बाहर भगाया। उसे काम से भी निकाला। उसने बाद में माफी माँगी। पर उसे रखा नहीं। पहले आश्वासन दिया कि रखा जाएगा, बाद में लात मार दी। लेकिन वह भी दबंग था। उसने मेरे एक चमचे को धोबी की तरह पटक-पटक कर मारा। मेरा सुपरवाइजर उसका कुछ नहीं कर पाया। उसकी हालत देखकर तो मुझे भी डर लगने लगा है। इसलिए मैं किसी को खुद कुछ नहीं कहता हूँ। अपने चमचों से ही नए-नए ऊल-जुलूल नियम बनवाकर सब पर काबू रखता हूँ। एक दिन नागा करने पर तीन दिन का पैसा काट लेता हूँ। इसी के पैसे से अब मैं अपना बिजनेस बढ़ा रहा हूँ। कुछ ट्रकें चलवा रहा हूँ। कुछ कॉलेज खुलवाकर नाम कमा रहा हूँ।
इस तरह कम्पनी के पैसे को अन्य कार्यों में लगाकर आमदनी बढ़ा रहा हूँ। अंग्रेजों के बाद मैं पहली बार गुलामी का नया दौर ला रहा हूँ। गुलामों की फौज तैयार करके अपने आतंक का परचम लहरा रहा हूँ। यह कम्पनी मुझे बहुत रास आ रही है और मैं अपने आतंक को परदे के पीछे से फैला रहा हूँ। 'श्री मसरत आलम' भी रिहा हो गए है। मैंने अब उन्हें अपनी गैंग में शामिल कर लिया है। मैंने अँगूठा टेक होकर भी आज इतनी तरक्की कर ली है कि मुझे खुद पर नाज हो रहा है। किसी ने सच ही कहा है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
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जीवन-वृत्त
नाम : राम नरेश 'उज्ज्वल'
पिता का नाम : श्री राम नरायन
विधा : कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ
रचनाओं का प्रकाशन
प्रकाशित पुस्तके : 1-'चोट्टा'(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0
द्वारा पुरस्कृत)
2-'अपाहिज़'(भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत)
3-'घुँघरू बोला'(राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
4-'लम्बरदार'
5-'ठिगनू की मूँछ'
6- 'बिरजू की मुस्कान'
7-'बिश्वास के बंधन'
8- 'जनसंख्या एवं पर्यावरण'
सम्प्रति : 'पैदावार' मासिक में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत
सम्पर्क : उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई अड्डा, लखनऊ-226009
मोबाइल : 09616586495
ई-मेल : ujjwal226009@gmail.com
गजब का व्यंग है.
जवाब देंहटाएंएकदम ठर्रा
बेहतरीन व्यंग्य। 'कोशिशे करने वालों की कभी हार नहीं होती हैं' को पढ़कर तो सचमुच हँसी छूट गयी। सही कहते हैं नजरिया ही सब कुछ होता है।
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