वह सहमी सहमी सी बीएड करने के बाद बस एक ही ख्वाहिश थी कि शहर के किसी प्रतिष्ठित स्कूल में शिक्षिका हो जाऊं और अब वह इच्छा भी पूरी हो गई। इं...
वह सहमी सहमी सी
बीएड करने के बाद बस एक ही ख्वाहिश थी कि शहर के किसी प्रतिष्ठित स्कूल में शिक्षिका हो जाऊं और अब वह इच्छा भी पूरी हो गई। इंटरव्यू में मैं सलेक्ट कर ली गई थी और मुझे कल से ही स्कूल ज्वाइन करना था। दूसरे दिन मैं समय से पहले ही स्कूल पहुँच गयी और स्टाफ रूम में पहुँचने वाली पहली टीचर थी। 7.45 में मेरी पहली क्लास थी। घंटी बजते ही मैंने रजिस्टर उठाया और अपने क्लास की ओर बढ़ने लगी तभी मुझे ऐसा लगा कि मेरे कदम के साथ कदम मिलाकर कोई और चल रहा है। मैंने सिर घुमाया तो मेरी आंखें उस चेहरे पर टिक गयीं। मैं मुस्कुराई, उसने तुरंत पूछा----
“क्या आपने आज ही ज्वाइन किया है”
“ जी हाँ’— मैंने संक्षिप्त जवाब दिया।
फिर उसने पूछा---“ किस क्लास में जा रहीं हैं?”
“फाइव-ए”, और आप?
“बस आपके बगल वाली क्लास फाइव-बी” में
‘ओ हो मतलब हम दोनों की क्लास एक ही है’—मैंने कहा। क्लास खत्म होने पर हम साथ-साथ ही स्टाफ रूम तक गए।
मैंने पूछा –‘आपका नाम’?
“नूरीन”--- उसने मुस्कुराते हुए कहा। फिर उसने कहा---‘कैसा लगा मेरा नाम?’
‘बहुत- बहुत खूबसूरत’ जैसा नाम वैसा रूप।
‘अरे मैंने तो बस यूँ ही पूछा और आप लगीं तारीफ करने। उसने फिर मुस्कुराकर कहा।
सचमुच नूरीन बहुत खूबसूरत थी बिलकुल किसी मूर्ति की तरह। छोटी-छोटी काजल भरी आखें मानो कुछ कहना चाहतीं हों। गोरा रंग, मोतियों जैसे दांत नाक का लौंग उसके चेहरे को और भी खूबसूरत बना देता था। जब वह हंसती तो मानो मुरझाए फूल फिर से खिल उठे हों, मानो किसी ने तपती गर्मी में शीतल जल की बौछारें कर दी हो। बच्चे भी उसे बहुत पसंद करते। नूरीन एक अच्छी टीचर होने के साथ-साथ बच्चों में भी काफी दिलचस्पी रखती थी। छुट्टी के वक्त हम साथ-साथ ही घर गए। क्योंकि बातों-बातों में पता चला कि वह भी हमारी कॉलोनी में ही रहती है। धीरे-धीरे हम स्कूल साथ-साथ आने-जाने लगे और हम दोनों एक अच्छी सहेली बन गई। आपस में हम जी खोलकर बातें किया करते, हंसी मजाक किया करते लेकिन मैंने यह महसूस किया कि नूरीन के अन्दर कोई अज्ञात चिंता या भय समाया है जिस वजह से वह सहमी-सहमी सी रहती है। छुट्टी के वक्त वह कहती जरा जल्दी-जल्दी कदम बढाइए, मुझे घर जल्दी पहुंचना है। मेरे शौहर जावेद की भी यही टाइम है घर आने की। मैं चाहती हूँ कि उनके घर आने से पहले मैं घर पहुँच जाऊं, क्योंकि उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं कि वे घर पर रहें और मैं वहां मौजूद न होऊं। हमेशा कहते हैं कि ‘ये क्या तुमने नौकरी करने की जिद ठान रखी है,छोड़ दो यह सब’ लेकिन मैं अपने आप को खुश रखने के लिए पढ़ाती हूँ। बहुत ख्याल रखना पड़ता है जावेद का,पता नहीं किस बात पर नाराज हो जाएँ। एक दिन नूरीन ने कहा—
“आप प्लीस जरा इस वीक का ‘लेसन-प्लान’ मेरे लिए भी बना दीजियेगा। मेरी ननद दुबई से आ रही है, मुझे बिल्कुल वक्त नहीं मिल पाएगा। मैं बहुत व्यस्त हो जाउंगी। वे लोग खाने-पीने के काफी शौकीन हैं। उनके बच्चे अलग फरमाइश करते हैं। फिर उन्हें घुमाना भी तो है। उनके आने पर मुझे सारा दिन किचन में ही रहना पड़ता है। किसी तरह स्कूल आ पाउंगी।”कुछ रूककर फिर उसने कहा--- सोचती हूँ स्कूल की ये नौकरी छोड़ दूँ, मेरी चार ननदें हैं, हमेशा कोई न कोई ननद आती ही रहती है। आखिर जावेद उनके सबसे छोटे और इकलौते भाई हैं। सबकी खातिरदारी मुझे करनी ही होगी। स्कूल की वजह से खातिरदारी में कुछ कमी आ जाती है, मैं उनपर उतना वक्त नहीं दे पाती हूँ। जावेद तो बहनों से काफी बातें करते हैं। मेरा बेटा शाहिद भी उनके आने पर काफी खुश रहता है, दिन-भर उनके बच्चों के साथ खेलता रहता है।
एक ही क्लास की टीचर होने के कारण मुझे नूरीन के ‘लेसन प्लान’ बनाने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई। धीरे-धीरे हमेशा मैं ही उसके लेसन प्लान बनाने लगी। उसके भी रिपोर्ट कार्ड वगैरह मैं ही तैयार कर देती, वह सिर्फ हस्ताक्षर कर दिया करती। ननद के चले जाने के बाद जब वह स्कूल आई तो काफी थकी सी लग रही थी। छुट्टी के वक्त वह मेरे साथ नहीं आई थी बल्कि जावेद उसे लेने आए। उसने मुझे जावेद से मिलवाया। जावेद को देखकर मैं सोचने लगी, यही जावेद हैं....जिसके लिए नूरीन इतनी परेशान रहती है। कोयले का रंग, छोटा कद और सामने की एक दांत टूट जाने की वजह से वह और भी वीभत्स लग रहा था। मैंने मन ही मन कहा ...कैसे रहती हो नूरीन तुम इसके साथ। हाँ यह बात अलग थी कि बात-चीत से वह काफी सधा हुआ इंसान लगा। जावेद से मिलने के बाद मुझसे रहा नहीं गया क्योंकि मैं इतना जानती थी कि जावेद काफी कम पढ़े लिखे भी हैं। मैंने नूरीन से पूछा ---‘क्या शादी आपकी मर्जी से हुई थी?’इसपर नूरीन ने तपाक से जवाब दिया....’अरे शौहर जैसे भी हों आखिर हमारे शौहर हैं, हमारी सारी खुशियाँ उन्हीं से तो है।’ फिर उसने कहा कि दरअसल जावेद मेरे बड़े जीजा के खाला के बेटे हैं उन्होंने मुझे दीदी की शादी में देखा और जिद कर बैठे कि जब शादी करूँगा तो नूरीन से ही करूँगा। मेरे अब्बू ने जब यह सुना तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने तुरंत हाँ कर दी। कहने लगे इतने बड़े लोग हमारे यहाँ रिश्ता करना चाह रहे हैं यह क्या कम बड़ी बात है? अब्बू खुश भी क्यों न हों, हम सात बहनें हैं। मुझ से बड़ी तीन बहनों की शादी में कितनी मुश्किलें हुईं थीं मैं अच्छी तरह जानती हूँ। मैं चौथे नंबर की थी, यदि मेरे लिए इतने बड़े घर से रिश्ता आया था तो इनकार करना बहुत बड़ी भूल हो जाती। मैं भी काफी खुश थी जावेद से अपनी रिश्ते की बात सुनकर। अरे जावेद पुश्तैनी रईस हैं, एक आदमी पर दो नौकर हैं इनके घर में। इस शहर में उनके दो पेट्रोल पम्प, दो सिनेमाघर और एक तीन सितारा होटल है। बहुत बड़े लोग हैं ये। अचानक नूरीन ने फिर बात बदली और कहने लगी----‘आज तो करवा चौथ है,आपने व्रत नहीं रखा?’
‘नहीं मैं अपने पति की काफी इज्जत करती हूँ, उनका ख्याल रखती हूँ और वे एक सच्चे इंसान हैं ऐसा मेरा विश्वास है और मेरी नजर में यही पूजा है। करवा चौथ पर मेरा विश्वास नहीं है इसलिए मैं यह व्रत नहीं रखती।’--- मैंने उसे समझाते हुए कहा।
नूरीन में मैंने एक बात देखी कि उसे अपने धर्म पर काफी विश्वास था और हमारे धर्म के प्रति भी उसके मन में अपार श्रद्धा थी। शायद इसलिए वह इंसान की कद्र करती थी,चाहे वह नौकरानी हो, दूध वाला हो या फिर उसका पडोसी।
एक दिन फिर नूरीन ने स्कूल जाते वक्त मुझसे कहा---‘ कल से मैं एक महीने के लिए फिर से बहुत ज्यादा व्यस्त हो जाउंगी। इस बार मेरी सबसे बड़ी दिल्ली वाली ननद आ रहीं हैं। हज पर जा रहीं हैं इसलिए अम्मी और हम सबसे मिलने आ रही हैं। उनसे मुझे बहुत डर लगता है। स्वभाव की तो बहुत अच्छी हैं लेकिन मैं उन्हें खुश नहीं कर पाती हूँ। और जब वो, जावेद और मेरी सास मिलकर फुसफुसाने लगते हैं तो पता नहीं क्यों मैं बहुत डर जाती हूँ। अरे पता नहीं ये कब मुझसे नाखुश हो जाएँ और जावेद की दूसरी शादी कर उनके लिए दूसरी बीवी ले आयें। हमारे यहाँ तो पहली बीवी के रहते शौहर दूसरी शादी कर ही सकता है। आपके यहाँ ऐसा नहीं है, औरतें असुरक्षित नहीं हैं।’
‘ नहीं ऐसी बात नहीं है, हमारे यहाँ भी औरतों पर तरह-तरह के जुल्म होते हैं। दहेज के लिए बहुएं जलाई जातीं हैं, मेरे एक रिश्तेदार हैं, खाने-पीने के शौकीन हैं। घर का खाना उन्हें अच्छा नहीं लगता, रोज बाहर खाकर ही घर आते हैं लेकिन यदि उनकी बीवी सप्ताह में तीन दिन उपवास न करे तो उसे यह कहकर पीटते हैं कि औरतों के व्रत-त्योहार करने से घर में सुख-शान्ति बनी रहती है। क्या यह जुल्म नहीं है-- मैंने उसकी बात काटते हुए कही। ’फिर मैंने कहा—अपने पर हो रहे जुल्मों, अत्याचारों का कारण औरत खुद है। यदि कोई उसपर जुल्म करता है तो वह उसे अच्छी तरह सहना भी जानती है।
बड़ी ननद तुबा के आने के पांच दिनों बाद ही नूरीन ने स्कूल से छुट्टी ले ली। ननद के चले जाने के बाद वह फिर से स्कूल आने लगी लेकिन उसकी तबियत हमेशा खराब रहने लगी थी। उसे देखने पर ऐसा लगता था मानो वह मेरे साथ होकर भी मेरे साथ नहीं है, हमेशा खोई-खोई सी रहती। पढ़ाने में उसका मन अब नहीं लगता था। एक दिन सुबह-सुबह वह मेरे घर आई और मुझे एक लिफाफा देते हुए कहा---
‘यह मेरा इस्तीफ पत्र है, प्लीज इसे प्रिंसीपल को दे दीजियेगा। मैंने चकित होकर कहा---‘यह क्या कर रहीं हैं नूरीन,ऐसा मत कीजिये। आप एक अच्छी टीचर हैं, बच्चे आपको पसंद करते हैं, उनको आपकी जरुरत है। आजकल अच्छे टीचर मिलते कहाँ हैं। मेरी बात मानिए आप इसे वापस ले लीजिये।’
नूरीन ने कहा---‘नहीं मेरे लिए यही ठीक है मैं स्कूल और परिवार साथ लेकर नहीं चल सकती। बहुत थक गई हूँ मैं।’
मैंने लिफाफा ले लिया। अब नूरीन से मेरा मिलना-जुलना काफी कम हो गया। उसके यहाँ हमेशा मेहमान आते- जाते रहते इसलिए उसके घर जाना मुझे ठीक नहीं लगता। वह भी मेहमानों की खातिरदारी में लगी रहती। हमारी बातें कभी-कभी फोन पर हो जाया करतीं। धीरे- धीरे वह भी कम हो गया। एक दिन शाम के वक्त वह मेरे घर आई, उसके हाथ में एक कार्ड था। वह बहुत उदास लग रही थी, मानो उसे कोई गहरा ठेस लगा हो जैसे उसे इस संसार में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई हो। उसने कार्ड मुझे देते हुए कहा----‘पार्टी में जरुर आइयेगा। शौहर और बच्चों को भी साथ लाइयेगा।’
‘किसकी पार्टी है’--- मैंने उत्सुकतावश पूछा।
उसने कहा----‘ जावेद ने दूसरी शादी की है न! इसी खुशी में उन्होंने पार्टी रखी है।’
यह सुनते ही मेरे हाथों से कार्ड छूट गई। मैंने कुछ जवाब नहीं दिया, स्तब्ध होकर उसे देखती रह गई।
गीता दुबे, जमशेदपुर
झारखण्ड
नारी की सामाजिक स्थिति चाहे किसी भी समुदाय से क्यों न हो को दर्शाती मार्मिक कहानी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कहानी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सविता जी
हटाएंटिप्पणी के लिए अनेकों धन्यवाद ओम प्रकाश जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सविता जी
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