एक लड़की जिसे किताबों से नफरत थी मंजूषा पावगी नव जनवाचन आंदोलन इस किताब का प्रकाशन भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने ‘सर दोराबजी टाटा ट्रस्...
एक लड़की जिसे किताबों से नफरत थी
मंजूषा पावगी
नव जनवाचन आंदोलन
इस किताब का प्रकाशन भारत ज्ञान विज्ञान समिति ने
‘सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट’ के सहयोग से किया है। इस आंदोलन का मकसद आम जनता में पठन-पाठन संस्कृति विकसित करना है।
एक लड़की जिसे किताबों से नफरत थी मंजूषा पावगी
हिंदी अनुवाद
अरविन्द गुप्ता
कॉपी संपादक
राधेश्याम मंगोलपुरी रेखांकन
(लेनी फ्रैनसन के मूल चित्रों पर आधारित) ज्योति हिरेमठ ग्राफिक्स
अभय कुमार झा कवर डिजाइन और
लेआउट
गॉडफ्रे दास
एक लड़की
जिसे किताबों से नफरत थी
एक लड़की थी जिसका नाम था मीना। अगर आप किसी
पुरानी संस्कृत की किताब में मीना के मायने खोजेंग तो आप पाएंगे कि मीना का मतलब ‘मछली’ होता है। पर मीना को इसके बारे में कुछ पता नहीं था, क्योंकि वह किताबें कभी पढ़ती ही नहीं थी। मीना को किताबें पढ़ने से नफरत थी।
"किताबें हमेशा बीच में अड़ंगा डालती हैं," वह कहती। शायद उसकी बात ठीक थी, क्योंकि उसके घर में हर जगह किताबें ही किताबें थीं। उसके घर में किताबें न केवल बुक-शेल्फ और मेजों पर थीं, बल्कि उन सभी जगहों पर भी थीं जहां उन्हें नहीं होना चाहिए।
जहां देखो वहीं किताबें। हर दराज में किताबें, हर अलमारी में किताबें। सोफे पर किताबें, सीढ़ियों पर किताबें। यहां तक कि आग जलाने वाली जगह पर भी किताबें। कुर्सियों पर किताबों के ढेर।
एक बात और परेशान करने वाली थी। मीना के माता-पिता
रोजाना और नई-नई किताबें लाते थे। वे किताबें खरीदते, दोस्तों से मांगते, लाइब्रेरी से लाते। वे हर समय- नाश्ते, दोपहर के खाने और रात के भोजन के समय भी किताबें पढ़ते। पर जब कभी भी वे मीना से पूछते कि क्या वह कोई किताब पढ़ेगी तो वह अपने पैर पटकते हुए चिल्लाती, "मुझे किताबों से नफरत है!" और जब कभी उसके माता-पिता उसे किताबें पढ़कर सुनाने की कोशिश करते तो वह दोनों हथेलियों से अपने कान बंद कर लेती और जोर से चीखती, "मुझे किताबों से नफरत है!"
शायद पूरी दुनिया में एक और ऐसा जीव था जिसे मीना से भी ज्यादा किताबों से नफरत थी, और वह थी मीना की बिल्ली- मैक्स। जब मैक्स बहुत छोटी थी तो एक दफा उसकी पूंछ पर एक भारी-भरकम एटलस गिर गई थी। इससे मैक्स की पूंछ का सिरा मुड़ गया था। उस दिन से मैक्स ने कसम खाई थी। अब वह किताबों के ढेर के ऊपर ही बैठती, नीचे कभी नहीं।
एक दिन मीना ने सुबह वॉश-बेसिन में से किताबों को बाहर निकालकर मंजन-कुल्ला किया। फिर वह किचन में जाकर अपने और मैक्स के लिए नाश्ता बनाने लगी। उसने पहले किताबों के ढेर की एक सीढ़ी बनाई और उस पर चढ़कर कॉर्नफ्लेक का डिब्बा उतारा। जब उसने फ्रिज खोला, तो उसमें पत्रिकाएं भरी थीं। उसने उन्हें हटाकर अंदर से दूध निकाला। उसने कुछ दूध अपने कटोरे में और कुछ मैक्स के कटोरे में डाला।
फिर वह चिल्लाई, "मैक्स! नाश्ता तैयार है।"
पर मैक्स नहीं आई। वह दुबारा चिल्लाई, "मैक्स! नाश्ता तैयार है।" फिर भी मैक्स नहीं आई।
"कहां मर गई मैक्स?" मीना सोचने लगी। उसने नहाने के टब के पीछा खोजा और फिर वाशिंग मशीन के पीछे ढूंढ़ा। उसने मैक्स को सीढ़ियों के नीचे और घड़ी के ऊपर खोजा। उसे हर जगह किताबें तो मिलीं, पर मैक्स गायब थी।
फिर उसे दूर से ‘मियाऊं!’ की आवाज सुनाई पड़ी। मीना दौड़ती हुई डायनिंग रूम में गई और वहां किताबों के सबसे ऊंचे
टीले पर उसे मैक्स फंसी दिखाई पड़ी। इस ढेर में वह सब किताबें थीं जिन्हें मीना के माता-पिता ने बड़े लाड़-प्यार से उसके लिए
खासतौर पर खरीदा था। परंतु मीना ने उन्हें कभी खोला तक नहीं था। सबसे नीचे दबी थीं- बिना शब्दों वाली चित्रकथाएं, जिन्हें उसके बचपन में खरीदा गया था। बीच में वर्णमाला सीखने और शिशु-गीतों की किताबें थीं। पुस्तकों के टीले के सबसे ऊपर परियों और रोमांचक घटनाओं की कहानियां थीं। सभी पुस्तकों पर धूल जमी थी।
"मैक्स घबराओ नहीं," मीना ने बिल्ली को दिलासा दिलाते हुए कहा, "मैं तुम्हें वहां से छुड़ा लूंगी!" फिर मीना उन पुस्तकों के टीले पर चढ़ने लगी। क्योंकि नीचे मोटी और जिल्द वाली किताबें थीं, इसलिए उनपर चढ़ना आसान था। मीना को यह सीढ़ियां चढ़ने जैसा लगा। परंतु जब कविताओं की एक पेपर-बैक पुस्तक पर पैर रखा तो अचानक उसका पैर फिसल गया। वह अपना संतुलन खो बैठी और तेजी से नीचे की ओर फिसली।
धड़ाम! एक जोरदार धमाका हुआ। सारी किताबें इधर-उधर उड़ने लगीं। पहली बार किताबों की जिल्द खुली और उनके पन्ने पलटने लगे। जैसे ही किताबें गिरीं, एक अजीब-सी बात होने लगी। किताबों में से लोग और जानवर निकलने लगे और जमीन पर गिरने लगे। वे एक-दूसरे पर गिरने लगे और इससे पुस्तकें और कुर्सियां भी इधर-उधर लुढ़कने लगीं।
उनमें राजकुमार और राजकुमारियां थीं, परियां और मेंढ़क थे। फिर कहीं से एक भेड़िया और तीन सुअर भी आ टपके। हम्टी-डम्टी उड़ता हुआ मुंह के बल गिरा और उसके दो टुकड़े हो गए। उसके पीछे एक बूढ़ी औरत और बैंगनी रंग का जिराफ भी आया। इस बारात में हाथी, बादशाह, बौने, रंग-बिरंगे पक्षी और अलग-अलग प्रजातियों के बंदर भी शामिल थे।
पर सबसे ज्यादा भीड़ खरगोशों की थी। वे इधर- उधर कूद रहे थे- जंगली खरगोश, सफेद खरगोश और ऊंची टोप पहने खरगोश।
मीना उन सबके बीचों बीच बैठी थी। उसे हिलते डुलते हुए भी डर लग रहा था। "मुझे तो लगता था कि किताबों में सिर्फ शब्द ही होते हैं, खरगोश नहीं!" उसने कहा। और तभी कहीं से छह खरगोश उसकी ओर कूदते हुए आए।
अब तो डायनिंग रूम पहचान पाना भी मुश्किल था। सारे हाथी खाने की मेज पर एक पांव पर नाच रहे थे और अपनी सूंड़ पर प्लेटें संतुलित करने की कोशिश कर रहे थे। बंदरों ने सारे पर्दे फाड़ डाले थे। वे कपड़े की पट्टियों से सिर पर पगड़ियां बांध रहे थे और सारे खरगोश मेज के पैर चबाने की कोशिश में लगे थे।
"यह सब बंद करो!" मीना चिल्लाई। "वापस जाओ!" परंतु कमरे में इतना शोर-शराबा मचा था कि किसी को मीना की बात सुनाई ही नहीं पड़ी। फिर मीना ने पास के खरगोश की गरदन पकड़कर उसे एक सचित्र कहानी की किताब में ठूंसने की कोशिश की। इससे खरगोश इतना डर गया कि वह वहां से दुम दबाकर भागा। मीना ने जब दूसरी किताब खोली तो उसमें से चार बत्तखें उड़ती हुई बाहर निकलीं। मीना डर गई और उसने झट से किताब बंद कर दी।
"इससे काम नहीं बनेगा," मीना ने कहा। "मुझे तो यह भी नहीं पता कि कौन-सा जानवर किस किताब में जाएगा।" फिर उसने एक मिनट के लिए सोचा। "अब मुझे समझ में आया," उसने कहा, "मैं हर जानवर से जाकर पूछूंगी कि वह किस किताब में रहता है।"
मीना ने एक ऐसे जीव से पूछताछ शुरू की जिसे उसने पहले कभी देखा ही नहीं था। "तुम कौन हो?" मीना ने पूछा। "अंग्रेजी का पहला अक्षर ‘ए’ आडवार्क!" उस जानवर ने थोड़ा नाराजगी के साथ कहा, और फिर वह पैर पटकता हुआ वर्णमाला वाली किताब में चला गया।
मीना को एक भेड़िया दिखा जो डायनिंग टेबिल के नीचे बैठा सिसक रहा था। पूछने पर भेड़िये ने कहा, "मैं अब कहां जाऊं? मुझे याद ही नहीं कि मैं किस किताब में से निकला था- रेड राईडिंग हुड या फिर तीन छोटे सुअर वाली पुस्तक में से?" यह कहकर भेड़िये ने मेजपोश पर अपनी नाक पोंछी। पर मीना उस भेड़िये की कोई मदद नहीं कर पाई, क्योंकि मीना ने कभी कहानियां पढ़ी ही नहीं थीं।
तभी मीना के दिमाग में एक बात आई। उसने पास रखी एक किताब उठाई और उसे जोर से पढ़ने लगी। "बहुत पुरानी बात है,"
...
मीना ने पढ़ना शुरू किया, "किसी दूर-दराज के देश में "
धीरे-धीरे सारे जानवरों ने कूदना, नाचना, शोर-गुल मचाना बंद कर दिया। वे सब मीना के पास आकर कहानी सुनने लगे। जल्द ही सारे जानवर मीना के पास एक गोले में बैठ गए। अब मीना कहानी पढ़ रही थी और वे कहानी सुन रहे थे।
जब मीना दूसरे पन्ने पर पहुंची तब गोले में बैठे सुअर तपाक से कूदकर बोले, "यह तो हमारी कहानी है!" वे चिल्लाए, "यह तो हमारा पन्ना है! यह तो हमारी किताब है!" फिर वे गोले में से सीधे मीना की गोद में कूदे और किताब में गायब हो गए। मीना ने झट से किताब बंद कर दी। उसे डर था कि कहीं सुअर वापस न निकल आएं।
फिर उसने दूसरी किताब उठाइर्। धीरे- धीरे करके मीना ने अपनी सारी किताबें पढ़ डाली। और धीरे-धीरे सारे जानवर अपनी सही पुस्तकों में वापस चले गए।
अंत में कमरे में नीली जैकट वाला केवल एक खरगोश ही बाकी बचा। अब मीना ने पीटर खरगोश वाली किताब उठाई। "कितना अच्छा हो अगर यह खरगोश मेरे पास रह जाए।" बाकी सारे जानवरों के जाने के बाद मीना थोड़ा अकेलापन महसूस कर रही थी।
वह छोटा-सा खरगोश मीना के सामने डरा-सहमा खड़ा था। भय से उसके पैर कांप रहे थे। वह भी अन्य जानवरों की तरह ही अपने घर वापस जाना चाहता था। फिर मीना ने आखिरी किताब को उठाकर खोला। किताब खुलते ही खरगोश ने छलांग लगाई और पलक झपकते ही पुस्तक में गायब हो गया।
अब घर में शांति थी। मैक्स कुछ किताबों पर बैठी जीभ से अपना चेहरा चाट रही थी। मीना ने दुख-भरी आवाज में कहा, "अब मुझे उन खरगोशों को दुबारा देखने का कभी मौका नहीं मिलगे ा।"
पर तभी उसे ध्यान आया कि वे सारी किताबें तो अभी भी उसके पास थीं। फिर वह मुस्कुराने लगी।
उस शाम जब मीना के माता-पिता वापस आए
तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने देखा कि सारे पर्दे फटे थे और बहुत सारे कप-प्याले टूटे थे। उन्होंने देखा कि मेज के पैर भी कुतरे हुए थे। परंतु उन्हें सबसे बड़ा आश्चर्य यह देखकर हुआ कि मीना सारी किताबों के बीचोंबीच बैठी थी। और वह सच में एक किताब पढ़ रही थी।
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(अनुमति से साभार प्रकाशित)
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