डीलिट रिक्वेस्ट जब से मिनी ने मुझे कंप्यूटर पर इंटरनेट खंगालना, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर फ्रेंड्स बनाना, चैट करना सीखा दिया था मुझे कभ...
डीलिट रिक्वेस्ट
जब से मिनी ने मुझे कंप्यूटर पर इंटरनेट खंगालना, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर फ्रेंड्स बनाना, चैट करना सीखा दिया था मुझे कभी अकेलेपन का एहसास नहीं होता। घर के काम काज निपटाकर कमरे के कोने में कम्पयूटर लेकर बैठ जाती। घंटों इंटरनेट खंगालती, पुराने फ्रेड्स से चैट करती, पुराने दिनों को याद करती। हम सभी फ्रेंड्स बाईस सालों बाद इस अनोखी और दिलचस्प चीज के जरिये जुड़ गये थे। समय कैसे बीत जाता हमें पता ही नहीं चलता। कई कई बार तो मेरे घर में होने का एहसास घर के छिपकिली और चूहों को भी नहीं होता, वे खाली घर समझ खूब उत्पात मचाते। बस एक ही चीज मैं नापसंद करती थी, जब मिनी और ये मिलकर मेरी सोशल साइट्स खंगालकर मुझे छेड़ते तो मुझे बहुत बुरा लगता।
ममा मैं जा रही हूँ.......बॉय..... मिनी की आवाज मेरी कानों में पड़ी।
और हाँ ममा... आज फिर से मैं कुछ देर से घर लौटूंगी....कोचिंग क्लासेस के बाद हम सभी फ्रेंड्स ‘हैंग आउट’ जायेंगे.... बॉय....
अरे मिनी ठीक है...लेकिन तुम्हारा इस तरह रोज घर इतनी रात में लौटना मुझे ठीक नहीं लगता....
ममा आप भी न......बॉय...सी यू....
मिनी बॉय कहकर चली गई।
जब से मिनी ग्यारहवीं में गई थी, घर से बाहर दोस्तों के साथ उसका समय ज्यादा बीतने लगा था। रात नौ- दस बजे तक घर लौटती, रोज दोस्तों की पार्टियाँ होतीं। आय दिन टी.वी. में अखबारों में बलात्कार की घटनाएं पढ़कर, उसका इस तरह देर रात तक बाहर रहना, तंग कपड़े पहनना मुझे काफी चिंतित और परेशान किया करती लेकिन उसे इन सब चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे समय में तो जींस और टी-शर्टस लड़कों की पोशाकें हुआ करती थी, हमारे लिए तो सलवार- कमीज और दुपट्टा ही था। शाम पांच बजे के बाद हम जरुरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलतीं और वो भी परिवार के किसी सदस्य के साथ। बस ऐसा ही था हमारा ज़माना, बुरा था या अच्छा था मैं नहीं जानती लेकिन ऐसा ही था हमारा जमाना।
मिनी के जाने के बाद मैं फिर अपना कम्पयूटर लेकर बैठ गई। इन दिनों मैं सोशल साइट्स पर एक अजीज फ्रेंड को तलाश रही थी जिसे मैंने बाईस सालों से नहीं देखा है। कहाँ है, कैसा है... लेकिन मैं उसे अपना फ्रेंड क्यों कह रही हूँ... हमारे समय में लड़के और लड़की दोस्त नहीं हुआ करते थे। हम एक-दूसरे को जानते थे, शायद पसंद भी करते थे, शाम के समय अपने –अपने घरों की छत से एक-दूसरे को देखा करते, कभी यदि वह मुझे गली में मिल जाता तो मैं तेज क़दमों से निकल जाती और फिर उसे मुड़-मुड़कर देखती रहती और वो भी मुझे देखता रहता। एक बार जब मोहल्ले की शादी में हम मिले थे उसने मेरा हाथ थाम कुछ कहना चाहा था लेकिन मैं हाथ छुड़ा भाग गई थी। हम अपनी सीमाएं जानते थे। हमारी जिन्दगी के अहम निर्णय माता-पिता ही लिया करते थे। माता- पिता का विरोध करना हम नहीं जानते थे, हमें उनपर पूरा भरोसा था। फिर मेरी शादी हो गई, मैंने अपनी एक छोटी सी दुनिया बसा ली और उसमें खुश थी। लोगों ने बताया उसकी भी शादी हो गई और वह विदेश चला गया। मैं उसका नाम लिख- लिख कर घंटो सर्च करती रहती लेकिन हर बार कई अनजान चेहरे ही स्क्रीन पर उभर आते। हर बार मायूसी ही हाथ लगती।
ममा.... मिनी ने मेरे पास आकर धीरे से कहा...
ममा... आज मैं और रोहित फिल्म देखने जायेंगे
मिनी... कभी घर में भी रहा करो...
ममा .. आज तो रोहित का बर्थ डे है ...मुझे जाना ही होगा... हम फिल्म देखेंगे फिर वो मुझे ट्रीट देगा...
क्यों तुम्हारे और फ्रेंड्स क्यों नहीं आ रहे हैं...
ममा आप भी... कितनी भोली हो... अरे रोहित मेरा बॉय फ्रेंड है तो मुझे ही फिल्म दिखायेगा न ममा... आप भी न ममा....
मिनी का इस तरह रोहित के साथ-अकेले घूमना-फिरना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता, मुझे हर वक्त मिनी की चिंता खाए जाती, कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गया तो.... लेकिन क्या करूँ आज के बच्चों पर पाबंदी भी तो नहीं लगा सकती पता नहीं कुछ कर बैठे? और फिर मना करने पर मुझे देहाती और न जाने क्या-क्या कह डालती, खैर उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मैं जानती थी कि बच्ची है, जब बातें समझेगी तब ऐसा नहीं कहेगी।
रविवार का दिन था, हम सभी घर पर ही थे। मैंने देखा मिनी लैप-टॉप पर कुछ कर रही है, ये भी कम्पयूटर पर काम कर रहे हैं तो मैंने भी सोशल साइट्स पर उसे ढूँढने के लिए कम्पयूटर ऑन किया। एक फ्रेंड रिक्वेस्ट था, मैंने उसपर क्लिक किया, उस चेहरे को देखकर मेरी धड़कन तेज हो गई... यह वही था... पूरे बाईस सालों के लम्बे अरसे के बाद उसे देख रही थी.. इन बाईस सालों के लम्बे समय ने उसके चेहरे पर अपनी लकीरें खींच दी थीं... लेकिन वही आँखें...वही मुस्कुराहट... दो टीन-एज बच्चों का पिता बन गया था वह ... मैं उसे तस्वीर में निहार रही थी... क्या करूँ फ्रेंड रिक्वेस्ट कन्फर्म करूँ या..... फिर यदि उसने कुछ लिख दिया तो.... और मिनी और इन्होंने देख लिया तो.... कैसे नजरें मिलाऊँगी इनसे? कैसे समझाउंगी कि हमारे बीच तो कुछ थी ही नहीं। तभी इनकी आवाज सुन मैं चौंक पड़ी।
अरे चाय-वाय मिलेगी.... आज मैं भी घर पर ही हूँ....कहकर ये मेरी तरफ आ रहे थे, इनको अपनी तरफ आता देख मैंने डिलीट रिक्वेस्ट क्लिक कर दिया।
गीता दुबे
जमशेदपुर, झारखण्ड
दो पीढ़ियों के मानसिक अंतराल को दर्शाती कहानी |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओम प्रकाश जी
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