नाथद्वारा (राजस्थान) में श्रीनाथजी के दिव्य दर्शन झीलों की नगरी के नाम से जगप्रसिद्ध नगर उदयपुर से महज 58 किमी की दूरी पर स्थित नाथों के ...
नाथद्वारा (राजस्थान) में श्रीनाथजी के दिव्य दर्शन
झीलों की नगरी के नाम से जगप्रसिद्ध नगर उदयपुर से महज 58 किमी की दूरी पर स्थित नाथों के नाथ श्रीनाथजी का भव्य मन्दिर अवस्थित है जिसे बस द्वारा एक घण्टा बाईस मिनट की यात्रा करते हुए पहुँचा जा सकता है. 17वीं शताब्दी में बनास नदी के भव्य तट पर इस मन्दिर को श्रीभगवान का प्रवेश-द्वार भी कहा जाता है. उत्सवप्रिय प्रभु श्रीनाथजी नाथद्वारा में साक्षात विराजमान होकर भक्तों एवं गोस्वामी बालकों द्वारा नित्य सेवित है.. गर्गसंहिता में संग्रहित एक कथा के आधार पर श्रीनारदजी राजा बहुलाश्व को बतलाते हैं कि गिरिराजजी की गुफ़ा के मध्यभाग में श्रीहरि का स्वतःसिद्ध रूप प्रकट होगा. भगवान भारत के चार कोनों में क्रमशः जगन्नाथ, श्रीरंगनाथ, श्री द्वारकानाथ, और श्रीबदरीनाथजी के नाम से पसिद्ध हैं. नरेश्वर ! भारत के मध्यभाग में में भी वे गोवर्धननाथजी के नाम से विद्यमान हैं. इन सबका दर्शन करने से नर नारायण हो जाता है. नारदजी ने राजा बहुलाश्व को यह भी बतलाया कि जो विद्वत पुरुष इस भूतल पर चारों नाथों के यात्रा करके मध्यवर्ती देवदमन श्रीगोवर्धननाथजी के दर्शन नहीं करता, उसे यात्रा का फ़ल नहीं मिलता. जो गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथजी के दर्शन कर लेता है, उसे पृथ्वी पर चारों नाथों की यात्रा का फ़ल सहज में ही प्राप्त हो जाता है.
जनश्रुति के आधार पर सन 1410 में गोवर्धन पर्वत पर श्रीभगवानजी का बांया हाथ प्रकट हुआ, जो ऊपर उठा हुआ था, यह इस बात का प्रतीक था कि उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठा रखा है. फ़िर उनका मुख प्रकट हुआ. वल्लभाचार्यजी का जन्म 1479 को हुआ. इनके जन्म के पश्चात ही श्रीनाथजी की शेष आकृति प्रकट हुई. इस दिव्य-आकृति के साथ ही दो गायें,एक सर्प,एक सिंह,दो मोर भी प्रकट हुए. इन आकृतियों में एक तोते की भी आकृति थी,जो श्रीजी के मस्तक पर विराजमान था. यह वह समय था जब भारतवर्ष पर पूजा-पाठ विरोधी, मूर्ति-भंजक, कट्टरपंथी औरंगजेब शासन कर रहा था. उसकी सेना जिस ओर जाती मन्दिरों का विध्वंस करती और मूर्तियों को भग्न करती-फ़िरती. वैष्णव संप्रदाय के लोगों में इस बात को लेकर भय पैदा हो गया था कि किसी भी समय औरंगजेब की सेना का रुख इस ओर होगा और वे इस दिव्य श्री का विग्रह भंग कर देंगे. अतः वे इस बात को लेकर चिंतित थे कि श्रीजी को एक ऎसे स्थान पर ले जाकर स्थापित कर दें, जहाँ वे सुरक्षित रह सकें. भगवान श्रीकृष्णचंदजी ने सपने में दर्शन देते हुए बतलाया कि उनके श्रीविग्रह को बैलगाडी पर मेवाड की ओर रुख करें. उन्होंने यह भी बतलाया कि बैलगाडी जहाँ अपने आप रुक जाएगी, वहीं उन्हें स्थापित कर दिया जाए. इस तरह का संकेत प्रप्त होते ही श्रीविग्रह को एक बैलगाडी पर रखते हुए उसे पत्तों से ढंक दिया गया. ऎसी भी जनश्रुति है कि नटवरनागर ने अपनी भक्त मीराबाई को स्वंय चलकर मेवाड आने का वादा किया था. घसियार होते हुए गाडी आगे बढ रही थी कि अचानक बनास नदी पार करते हुए बैलगाडी कीचड में धंस गयी. काफ़ी प्रयास करने के बावजूद गाडी उस दलदल से नहीं निकल पायी. श्रीजी का आदेश भी था कि गाडी जहाँ से आगे न बढ पाये, उस स्थान पर उन्हें स्थापित कर दिया जाये. श्रीजी के आदेशानुसार मेवाड के तत्कालीन राजा राणा राजसिंहजी ने अपने महल में उन्हें स्थापित किया.
श्रीनाथद्वारा में श्रीजी की आठों पहर पूजा-अर्चना की जाती है,जिसमें मंगला, श्रृंगार,राजभोग, उत्थान,भोग,आरती और शयन आरती की जाती है.लाखों की संख्या में वैष्णव भक्त नित्य प्रति आकर आपके दिव्य दर्शन कर अपने आपको अहोभागी मानते हैं.
यों तो नाथद्वरा में श्रीनाथजी के मन्दिर में नित्य मनोरथ एवं उत्सव होते हैं,तथापि उनमें से कुछ उत्सवों के बारे में संक्षिप्त में जानकारी लेते चलें.
जन्माष्टमी----यों तो जन्माष्टमी का पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में हर्षोल्लास के मनाया जाता हैं.किंतु नाथद्वारा में बडॆ भारी आनन्द से यह उत्सव मनाया जाता है. इस दिन देश-विदेश से अनेक वैष्णभक्तों का यहाँ आगमन होता है. प्रातःकाल मंगला-दर्शन में प्रभु का पंचामृत होता है,बाद में श्रृंगार होता है. रात्रि में जागरणदर्शन होते हैं एवं मध्यरात्रि में जन्म का महोत्सव होता है. महाभोग में श्रीप्रभु को छप्पन भोग लगाया जाता है. जन्माष्टमी के दूसरे दिन पलना के दर्शन होते हैं. सोने के पलने में ठाकुरजी को झुलाया जाता है. भक्तगण ग्वाल-बाल के रूप में बनकर दूध, दही आदि अर्पणकरते हैं. अपार जनसमूह इस उत्सव का दर्शन कर कृतकृत्य होते हैं. इसी तरह राधाष्टमी ,नवरात्र०-उत्सव ,दशहरा, शरदपूर्णिमा, दीपावली ,मकरासंक्रान्ति, वसन्तपंचमी पर अनेकानेक उत्सव आयोजित किए जाते हैं. दीपावली में एकादशी से ही तिलकायत के श्रृंगार आरम्भ हो जाते हैं. धनतेरस को जरी के वस्त्रों द्वारा भारी श्रृंगार एवं रूपचौदस को ठाकुरजी का अभ्यंग होता है. राजभोग में सोने-चाँदी का बंगला होता है. दीपावली के दिन सफ़ेद जरी के वस्त्र एवं बहुत भारी श्रृंगार होता है. आज ही के दिन गोशाला से गायें नाथद्वारा में प्रवेश करती हैं. सायं “कान्ह जगाई” होती है एवं रतनचौक में नवनीत प्रभु विराजते हैं.
अन्नकूट नाथद्वारा का सबसे बडा उत्सव है. दोपहर में गोवर्धन-पूजा होती है. सायं अन्नकूट में देढ सौ मन चाँवल का ढेर लगाकर अन्नकूट(शिखर) बनाया जाता है. अनेकानेक प्रकार की सामग्री भोग में आती है. कार्तिक की शुक्ल द्वितीया , गोपाष्टमी पर विशेष श्रृंगार होता है. पौष कृष्णनवमी को श्रीगुसाईंजी का उत्सव मनाया जाता है. इस दिन जलेबी विशेष रुप से बनाई जाती है. इसे जलेबी-उत्सव भी कहते हैं. फ़ाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्रीनाथजी नाथद्वारा में पाट पर विराजते हैं. इसी माह की पूर्णिमा को खूब गुलाल उडाई जाती है. चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को डॊलोत्सव का आयोजन होता है. तथा प्रतिपदा के दिन भगवान के पंचाग सुनाई जाती है. तृतीया को गणगौर का उत्सव तीन दिन चलता है. चैत्र शुक्ल नवमी को रामजन्मोत्सव मनाया जाता है. बैसाख कृश्ण एकादशी को श्रीमहाप्रभुजी का उत्सव होता है. आज ही के दिन महाप्रभुका प्राक्टय चम्पारण्य में हुआ था. वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन सन्ध्या आरती में शालग्रामजी को पंचामृत से स्नान कराया जाता है. ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को श्रीजी में नावका मनोरथ होता है. ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को ठाकुरजी को अभिषक करा कर सवा लाख आमों का भोग लगाया जाता है. आषाढ शुक्ल द्वित्तीया को रथयात्रा का आयोजन होता है. इस दिन भी सवा लाख आमका भोग लगाया जाता है. श्रवाणमास में पूरे माह मन्दिर में हिंडोला होते हैं. नित्य नूतन श्रृंगार होते हैं. विशेषकर हरियाली अमावस, ठकुराइन तीज, पवित्रा एकादशी एवं राखी का भारी उत्सव होता है. इस दिन श्रीजी को राखी बांधी जाती है. पुरुषोत्तममास में पूरे महिने तिथि के अनुसार साल भर सभी त्योहार बडी धूमधाम से मनाए जाते हैं.
सच है. जहाँ गिरिवरधारी, नटराज स्वयं उपस्थित हों, वहाँ उत्सवों के भव्यतम आयोजन न हो, ऎसा भला कभी हो सकता है. मैं स्वयं तो इन तमाम तरह के उत्सवों में भले ही शामिल नहीं हो पाया, लेकिन पाटोत्सव के समय मुझे श्रीजी के दर्शनों का पुण्यलाभ जरुर मिला है. माह फ़रवरी २०१२ में साहित्य-मण्डल् प्रेक्षागार में आयोजित कार्यक्रम में अन्य साहित्यिक मित्रों के साथ”हिन्दी भाषा भूषण” सम्मान से सम्मानीत किया गया था. तिबारा वहाँ जाना तो नहीं हो पाया,लेकिन मन-पाखी जब-तब श्रीचरणॊं के दर्शनार्थ जा पहुँचता है. उनके दिव्य दर्शन प्राप्त कर मन में परम सन्तोष की प्राप्ति मिलती है.
गोवर्धन यादव
103 कावेरी नगर ,छिन्दवाडा,म.प्र. ४८०००१
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