उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ब्रम्हावली गाँव की माटी इठलाती है इस लाल पर। इठलाये भी क्यों न बात ही गर्व वाली और उपलब्धि भरी है। मुझे याद ...
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ब्रम्हावली गाँव की माटी इठलाती है इस लाल पर। इठलाये भी क्यों न बात ही गर्व वाली और उपलब्धि भरी है। मुझे याद है एक सौ चार साल के मुकुट बिहारी त्रिवेदी से वो यादगार मुलाक़ातें। उनकी हर मुलाक़ात को कई अखबार अपने पन्नों मे खास जगह देते थे और प्रमुखता से प्रकाशित करते थे। आज भले ही वो हमारे बीच न हों पर मुझे उनकी हर मुलाक़ात उनकी याद का बहाना लगती है और रह रह कर सताती है। भारतीय सिनेमा का एक गीत “तुम मुझे यूं भुला न पाओगे सुनोगे जब कभी गीत मेरे....” मुझे बार बार उनकी याद दिला के रुला देता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना में तैनात रहे महोली के ब्रम्हावली गाँव के मुकुट बिहारी त्रिवेदी के माध्यम से हमें उस समय की यथार्थता से रूबरू होने का मौका मिलता था।
मुकुट बिहारी ने तीन वर्ष ग्यारह माह चौदह दिन भारतीय सेना में रहकर भारत देश की सेवा की। इस महान योद्धा की ट्रेनिंग फिरोजपुर में हुई। नौकरी पाने के समय यह बत्तीस वर्ष की अवस्था के थे। इन्होने भर्ती होने के कुछ समय बाद एयर सप्लाई की ट्रेनिंग ली और फिर चकलाला (अब रावलपिंडी पाकिस्तान), चटगाँव, आठहजारी, दो हजारी, आसाम, इम्फाल आदि स्थानों पर पोस्ट किए गए। द्वतीय विश्वयुद्ध के दौरान भर्ती हुए मुकुट बिहारी त्रिवेदी ने दो वर्ष तक युद्ध किया। उनके अनुसार जापानी सैनिकों ने वर्मा के बाहर इक्याब और कलकत्ता में भीषण तबाही मचा रखी थी। कलकत्ता के लोग भीषण तबाही के कारण कलकत्ता से भागने लगे थे। भारतीय सैनिकों ने यहाँ मोर्चा संभाला नतीजन जापानियों ने यहाँ आक्रमण करना कम कर दिया। एक जापानी पकड़ा भी गया। कलकत्ता में युद्ध प्रभावित लोगों को एक मुट्ठी चना और गुण वितरित किया जाता था। कलकत्ता में जापानियों को सबक सिखाने के लिए राजपूत और गोरखा रेजीमेंट लगाई गयी थी और अंग्रेजों ने अपनी तोप खाना इनके साथ लगा रखा था। सैनिकों की आवश्यक वस्तुएँ हवाई जहाजों से पहुँचाई जाती थी। धुएँ आदि को सिग्नल के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
हवाईजहाज द्वारा सिग्नल के स्थान पर सैनिकों की आवश्यक वस्तुओं को ड्रॉप कर दिया जाता था। एक दिन जापानियों ने सिग्नल दिखाकर कई हवाई जहाजों से ड्रॉप वस्तुओं को हथिया लिया। बाद को अंग्रेजी सेना को यह पता चला कि उनके जहाजों से ड्रॉप सामान दुश्मनों के हाथ लग गया। मुकुट बिहारी हमें ऐसी कई अनछुई घटनाओं से रूबरू कराते जा रहे थे और मैं तात्कालिक स्थितियों का अनुमान लगाने के सार्थक प्रयास में जुटा था। उनकी बताई एक और घटना है। यह घटना तब की है जब वह वर्मा में थे। यहाँ एक संदिग्ध व्यक्ति को देखकर कैप्टन टिल्सन ने अपनी सेना को आगाह किया। लोगों से पूंछ तांछ की गई तो उन्होंने उसे अपना गुरु बताया। वह संदिग्ध व्यक्ति स्थानीय भाषा को अच्छी तरह से बोल सकता था। रात को उसने भारतीय सेना पर बमबारी करवा दी और स्थानीय लोगों को अपनी भूल का अहसास हुआ। पड़ोस में लगे भारतीय तोपखाने को सेना के अफसरों ने फटकार लगाई तो तोपखाने ने दुश्मन के दो विमान मार गिराने का दावा किया। कुछ दूरी पर इन ध्वस्त विमानों का मलवा प्राप्त होने पर तोपखाने की अधिकारियों ने खूब प्रशंसा की। तोपखाने ने सच में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया था।
जापानी सैनिक गैस का प्रयोग भी युद्ध में करते थे जो कि अंधा बना देती थी। गैस से बचाने के लिए आँखों पर विशेष सुरक्षा वाली वस्तु बांध ली जाती थी। एक बार तो युद्ध के दौरान इनकी पूरी बटालियन में सिर्फ तीन लोगों को छोड़कर बाकी सब शहीद हो गए। गलती से भारतीय सेना ने इस महान योद्धा को शहीद मान कर इनके घर वर्दी भेज दी। पूरे गाँव में हाहाकार मच गया। इनकी पत्नी चम्पा कली ने श्रंगार उतारने से माना कर दिया और दुखी होकर एक वर्ष तक घर में लगे तुलसी के पौधे की कठोरता से पूजा की वह जीने भर को खाती और फिर पूजा में लीन हो जाती एक साल बाद उनको बाहर से किसी ने पुकारा जब जाकर देखा तो कई ग्रामीणों के साथ उनका पति दुश्मनों के दाँत खट्टे करके वापस आ गया था। जब इस योद्धा को घटना का पता चला तो वह अपनी पत्नी के विश्वास को देखकर खुद के आँसू रोक न पाये। युद्ध समाप्त हो चुका था एक सैनिक का भी और एक सती स्त्री का भी। चम्पा कली और मुकुट बिहारी ने एक दूसरे का साथ बहुत दिनों तक निभाया। चम्पा कली ने 2006 में 95 वर्ष की अवस्था में इहलोक त्याग कर दिया जबकि मुकुट बिहारी ने 2014 में।
मुकुट बिहारी त्रिवेदी ने बताया कि जब खाने का समय होता था या सोने का दुश्मन तब अधिक सक्रिय होता था। एक दिन यह और इनके दो साथी बहुत देर से गाड़ियों और मशीनों को बनाते रहे। दोपहर का समय होने वाला था भोजन को फौज तैयार थी। ये और इनके दो साथी गंदे होने के कारण पड़ोस में बने तालाब में नहाने चले गए जैसे ही डुबकी लगाकर ऊपर आए इन्हें एक हवाई जहाज बम बॉडी करते देखा इन्होंने दोनों साथियों से पानी के अंदर हो जाने का इसारा किया और भाग कर बटालियन की ओर गए चारों ओर शहीद सैनिक थे कोई जीवित न था विमान बम बॉडी करके चक्कर लगता चला गया। इन तीनों सिपाहियों के कपड़े तक जल चुके थे। ये तीनों सिपाही अगली रेजीमेंट तक पैदल चल दिये रास्ते में एक ट्रक मिली जिसके चालक ने जब इन्हें भारतीय सिपाही जाना तो तुरंत इन्हें इनके
गंतव्य तक पहुंचाया। उसी हादसे में शायद इनकी वर्दी भी इनके घर पहुंचा दी गयी होगी। इन्हें कुछ दिनों के लिए दूसरी रेजीमेंट मे कर दिया गया।
उस समय यह बताते हैं भारत देश कई समस्याओं से एक साथ जूझ रहा था। युद्ध के कारण गरीबी तो फैली ही थी युद्ध के बाद भी कालरा, और प्लेग जैसी कई महामारियाँ फैलती रहीं। इनके अनुसार जापान पर जब एटम बम डाला गया तब जाकर कहीं युद्ध बंद हो सका नहीं तो उसके सैनिक जहां तहां दो या तीन की संख्या में जाकर हमला करते थे। ऐसा करने से वह पकड़े भी जाते थे तो एक या दो ही। जापानी सेना बहुत दिन तक लड़ती रही। इस महान योद्धा को सोल्जर बोर्ड में कई बार सम्मानित किया गया। इन्हें भारत सरकार से पेंसन भी प्राप्त होती रही। धन्य है भारतीय सेना और इसका गौरवमयी इतिहास और धन्य है मुकुट बिहारी जैसे महान योद्धा। इस महान योद्धा से मुलाकात की इच्छा बिलकुल वैसे ही तीव्र है जैसी प्रथम मुलाकात के लिए थी पर अब सिर्फ यह एक दिवा स्वप्न भर है।
रामजी मिश्र 'मित्र' (स्वतंत्र पत्रकार एवं आर टी आई कार्यकर्ता) ग्राम व पोस्ट- ब्रम्हावली ब्लाक-महोली जिला-सीतापुर पिन-261141 संपर्क सूत्र-09454540794
योग्यता- हिंदी में एम् ए, बी एड,उर्दू में अदीब व माहिर, आई टी।
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