राजेश कुमार की कविताएं- 1-कविता :- !! कलियुग नहीं यह अंधायुग !! एक रथ के दो पहिये जब टूट जाते हैं पहिये चलते हो भले पर रथ नहीं चलते। एकता ...
राजेश कुमार की कविताएं-
1-कविता :-
!! कलियुग नहीं यह अंधायुग !!
एक रथ के दो पहिये
जब टूट जाते हैं
पहिये चलते हो भले
पर रथ नहीं चलते।
एकता शक्ति है-
और फूट है बिखराव
जो लाख कोशिशों के बाद भी
नहीं बन सकता ब्रह्मास्त्र।
एक मुट्ठी रेत से-
घरोंदे बन सकते हैं
नहीं बन सकता महल।
एक टिमटिमाती जुगनूं, अमावश की रात में
आकर कहा, मैं सूरज हूं।
सबों ने मान लिया, कुछ करने को ठान लिया
तभी अचानक हो गयी प्रकाश।
तमस मिट गया, तब देखा सबो ने-
अपने- अपने विकृत चेहरे।
अंधेपन में अंधेरा, जो आनन्द बना था
वही प्रकाश में, बन गया संताप।
कलियुग नहीं इस अंधे युग में-
सभी हो गये थे अंधे।
चेतना लुप्त थी, विवेक मारा गया था।
मन का काला कृष्ण उलझा था कूटनीति में।
कट मर रहे थे अन्दर का अपनत्व
और प्रभु-
देख रहे थे स्वप्न,
स्वार्थ की निद्रा में।
गद्दार युयुत्सु -
द्वापर में ही नहीं , कलयुग में भी है
जो सब कुछ छोड सकता है, अपने स्वार्थ के लिये।
जो सब कुछ छोड सकता है, अपने स्वार्थ के लिये।।
2-कविताः-
!! परिस्थितियां !!
होली के त्यौहार में,
रंग और गुलाल के बढ़ते दामों को देखकर
भर लिया हमने पिचकारी में
रंग नहीं खून।
त्योहारों पर आजकल
मिलते हैं गले, लोग
इंसानों के नहीं हथियारों के।
रंग इतने खेले जाते हैं
कश्मीर और पंजाब में
औरतों के साथ -कि
मांगें सूनी और दुपट्टे सफेद हो जाते हैं।
टूट कर बिखर जाती है, चूडियां,
नोंक -झोंक में नहीं, देवर भाभी के-
अत्याचार से, उग्रवादियों के।
कितनी ही स्त्रियां, हर रात टटोलती है
अपने बिस्तर।
पर सिवाय तकिये के, नहीं मिलता कुछ।
गिले हो जाते हैं , गिलाफ!
बंध जाती है, हिचकियां
बंद कर देती है लाल दुपट्टे और चूड़ियां- पिटारे में।
खेलते हैं बच्चे, डिबियों से सिन्दूर के।
फिर भूली नहीं दिनचर्या,
देखती है राह,
लौटता पर कोई नहीं।
पावों में ढोल की थाप गुदगुदी करती हैं,
भांगडे नाचती है, अतीत के ख्यालों में।
उठाती है आज भी दुपट्टा अपने चेहरे से-
पति के लिये नहीं, मजदूरी करने के लिये।
सुनती है रोज कानों में, प्यार के मीठे बोल नहीं-
अडोसी -पडोसी के ताने -उलाहनें।
बंधती है आज भी , बाहूपाश में
प्रियतम के नहीं , परिस्थियों के।
देखती है रोज, कनखियों से-
भूत को भूल ,बर्तमान को नहीं, भविष्य को।
3 -कविता :
!! मौत !!
मरने से काहे को डरना है,
सबको एक दिन तो मरना है,
जो मौत को गले लगाते हैं -
सुख चैन वही तो पाते हैं।
जब मौत मुझको आयेगी,
गम, दुःख सब मिट जायेगी,
बेकारी दूर भगायेगी,
फिर जख्म न मिलने पायेगी।
फिर काहे को रोना है,
ममता को क्यों समोना है,
मौत से खौफ क्यों करना है-
सबको एक दिन तो मरना है।
4- कविताः-
!! स्वार्थ !!
उगोगे तो लोग डूबो देंगे
रूकोगे तो छोड़ के चल देंगे
स्वार्थ के हमसफर सारे-
सध गयी तो मुंह फेर कर चल देंगे।
विश्वास न कर इन पर, ये तूझे-
गर्त में फिर से डूबो देंगे।
तुम इन्हें अपना समझोगे-
ये रोज तुम्हें एक गजल देंगे।
फिर जानकर :अभागाः तुम्हें-
उगने की प्रेरणा देंगे,
उस प्रेरणा को साकार करना -
अपने भीतर ही खुशी का इजहार करना।
5-कविताः-
!! '' खत '' !!
भूल जायें आप
पर मैं न भूलूंगा
आप दें न दे
पर मैं अक्सर खत दूंगा।
जबाब आयेगी, तो-
सुकून मिलेगी।
न आयी तो, दिल को-
तसल्ली दे लूंगा।
राहगीरों की तरह , आप
राह मोड़ लें,
पर मैं मंजिल पहुंच ही
चैन लूंगा।
आप दें न दें
पर मैं अक्सर खत दूंगा।
रिश्ते बने हैं तो
निभाता रहुंगा
सारे जख्मों को सीने से
लगाता रहूंगा, क्योंकि-
रिश्तों के टूटने का दर्द
आप क्या जाने ?
वो लम्हा कभी आपने
जी भर नहीं देखा।
6- हास्य व्यंग कविता :-
!! '' देशी शिक्षा अंग्रेजी '' !!
अंग्रेज जा चुके हैं
पर अंग्रेजी पढा गये
रटा रटा कर हमसे
मातृभाषा छुड़ा गये।
युग परिवर्तन के चक्कर मे
आज हम सुध खो रहे हैं।
शिशु मंदिर के स्थान पर, नित्य-
पब्लिक स्कूल खोल रहे है।
स्तर चाहे नीचा हो, पर-
नाम -हेवेन, गार्डेन, पब्लिक, सेन्चुरी
लेकर काम ट्यूटरो से
क्या देना उनको मजदूरी।
त्याग कर आशा वेतन का
आते ट्यूटर करने काम
पढाते तब हैं बच्चों को
:सीटीः माने बाजा :रैटः माने दाम।
रफ्तार अगर ऐसी रही, तो
देश तरक्की कर जायेगा
शिक्षा जगत में भारत का नाम
अव्वल दर्जे में गिनायेगा।
7-कविता :-
!! अरमानों का चिराग !!
मैं अजब बाती था,
एक चिराग का
जलना चाहता था,
पर मजबूर था।
चिराग दूर थी बाती से,
सूख सा गया था बाती,
रीत की बंधन,
जमाने की जलन,
व्याप्त थी, साथ में-
समाज की कुढ़न।
इन बंधनों को ,
क्या तोड पाता मैं ?
इच्छा तेज थी -
अवश्य जल जाता मैं।
पर विवश था सोचकर,
क्या चिराग साथ दे पायेगी ?
या, वक्त से पूर्व ही -
साथ छोड जायेगी।
वक्त ने हकीकत बतला ही दी,
चिराग ने दूसरी बाती थाम ही ली,
वादाओं से विमुख हो,
वफाओं का साथ छोड
जा पहुंची है दूर,
कर मेरी अरमानों को -
: चकानाचूर :।
8-कविता :-
!! सफर !!
जानकर कांटों को
सफर तय करती है।
न चाह कर भी
दामन थाम लेती है।
ठेस लगती है , छलनी होती है
पर पतित बन, फिर सफर करती है।
बनकर कहर जब-
टूटती है राह।
अश्कों से नैन
तर हो जाती है।
अतीत की याद तब -
वर्तमान में आती है,
अश्क ही अश्क पा
और अश्क बहाती है।
विवादों के घेरे में,
फंस कर तिलमिलाती है।
थक-हार कर तब-
वापस लौट आती है।
ठेस लगती है, छलनी होती है।
पर पतित बन,
फिर सफर तय करती है।
9-कविता :-
!! हस्ताक्षर !!
शहद युक्त कटोरे में,
जब कोई मक्खी -
गिर जाती है।
फडफडाना छोड,
शिथिल पड जाती है।
मुंह बिचकाकर घृणा से -
लोग बाहर फैंक देते हैं।
मैं स्वयं -
उस मक्खी के समान,
शहद भरे कटोरे में,
जा गिरा हूं।
तिस्कृत होता हूं,
घृणित दूष्टि से -
देखा भी जाता हूं।
पर शहद के कटोरे से,
फेंका नहीं जाता हूं।
क्योंकि- मेरी धमनियां-
रक्तों से लैश है ।
उसमें स्वांस भी -
अभी शेष है।
काश!
मैं अधमरा न हो,
पूरा मर जाता ।
फड़फडाना छोड़
शिथिल पड जाता।
घृणा और तिरस्कार से
विमुख तो रहता।
देख कर मुझको, मुंह -
किसी का तो न बिचकता।
या खुदा, तू मुझे-
अधमरा न छोड़,
पूरा मार दे।
जिल्लत की जिन्दगी से -
मुझको उबार दे।
मेरी इस आरजू को ,
तू पूरा कर दे ।
मेरी इस आरजू पर तू-
अपनी : हस्ताक्षर : दे।
10-कविता :-
!! नजरिया !!
समाज मे रहता जो प्राणी,
वो सामाजिक कहलाता है।
तर्क करने की शिक्षा दे जो,
वो लॉजिक कहलाता है।
विज्ञान की बातें बतलाता जो,
वो वैज्ञानिक कहलाता है।
नये दौर के साथ चले जो,
वो आधुनिक कहलाता है।
ताजा -ताजा समाचार ही -
दूर-दर्शन पर आता है।
दूसरों पर सम्मोहित होना ही -
आकर्षण कहलाता है।
सिगरेट जो हरदम पीता,
वो स्मोकर कहलाता है।
सर्कस में जो हरदम हंसाता,
वो जोकर कहलाता है।
न्याय सबों की करता है जो,
वही न्यायाधीश कहलाता है।
दूसरों को जलाये खुद जलकर, जो
वही माचिस कहलाता है।
हानि लाभ न सोचे जो ,
वही सच्चा यार कहलाता है।
नजर -नजर से मिले नजर तो,
वहीं प्यार हो जाता है।
11-कविता :-
!! सपने साकार करना !!
उगोगे तो लोग डूबो देंगे,
रूकोगे तो छोड़ के चल देंगे
स्वार्थी हम सफर सारे, मुंह मोड लेंगे।
विश्वास न कर ये गर्त में डुबो देंगे।
अटल, अब उस प्रेरणा को साकार करना
दपर्ण बन, गम और खुशी दोनो का इजहार करना।
सम्पर्क सूत्र :- राजेश कुमार, पत्रकार, राजेन्द्र नगर, बरवाडीह, गिरिडीह 815301(झारखंड)
मो0- 9308097830 / 9431366404
ईमेल - patrakarrajesh@gmail.com
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