निष्ठा से करें काम वरना बिगड़ेगा बुढ़ापा - डॉ. दीपक आचार्य 9413306077 dr.deepakaacharya@gmail.com आनंद के दो पक्ष हर कहीं विद्यमान रहते ...
निष्ठा से करें काम
वरना बिगड़ेगा बुढ़ापा
- डॉ. दीपक आचार्य
9413306077
आनंद के दो पक्ष हर कहीं विद्यमान रहते हैं। एक प्रवृत्ति मार्ग का आनंद है और दूसरा निवृत्ति मार्ग है।
ब्रह्मचर्याश्रम और गृहस्थाश्रम का संबंध प्रत्यक्ष रूप से प्रवृत्ति मार्ग से है जिसमें रचनात्मक कर्मयोग माध्यम है। दूसरी ओर वानप्रस्थाश्रम अपरोक्ष प्रवृत्ति मार्ग का प्रतीक है और इसमें निवृत्ति मार्ग का भी समावेश है अर्थात यह आश्रम आधा प्रवृत्ति और आधा निवृत्ति मार्ग का संकेत देता है जबकि संन्यासाश्रम पूर्ण रूपेण निवृत्ति मार्ग को प्रकटाता है।
इस इंसान का जीवन इन आश्रमों में विभक्त नहीं रहा, अब आयु के अनुरूप सब कुछ तय होता है और निर्धारित आयु पूर्ण हो जाने के बाद इंसान प्रवृत्ति से निवृत्ति मार्ग पर आ जाता है।
कई मामलों में प्रवृत्ति मार्ग का रूपान्तरण हो जाता है और कार्य की प्रकृति बदल जाती है लेकिन प्रवृत्ति का क्रम बना रहता है।
जो लोग किसी न किसी प्रकार की सरकारी, अर्ध सरकारी और निजी सेवाओं में हैं उनका कालक्रम निर्धारित है जबकि दूसरे काम-धंधों में मानसिक और शारीरिक सामथ्र्य के अनुरूप प्रवृत्ति काल चलता है और जब मन, मस्तिष्क और शरीर थक जाया करते हैं तब अपने आप इंसान निवृत्ति मार्ग में आ जाता है।
प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों का सीधा संबंध कर्म के प्रति निष्ठा और ईमानदारी पर निर्भर हुआ करता है।
काफी लोग प्रवृत्ति मार्ग और कर्मयोग के क्षेत्रों में रहते हुए पूरी जिम्मेदारी से अपने काम पूरे करते हैं और कर्मयोग का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते हैं तथा इसी प्रवृत्ति मार्ग के माध्यम से चरम आनंदोपलब्धि प्राप्त करते रहते हैं।
खूब सारे लोग प्रवृत्ति मार्ग में कहे जरूर जाते हैं लेकिन अपने कत्र्तव्य कर्मों और निर्धारित दायित्वों के प्रति उनका कोई रुझान नहीं होता।
ये लोग जिस बात की तनख्वाह या मेहनताना लेते हैं उन कामों को भी ईमानदारी से और समय पर पूर्ण नहीं करते बल्कि दूसरे-दूसरे कामों में दिलचस्पी लेते हैं।
इन लोगों को प्रवृत्तिहीन नहीं कहा जा सकता बल्कि प्रवृत्ति का स्वार्थ के लिए भटकाव हो जाता है।
यह भटकाव जिन्दगी भर चलता रहता है जो उनके जीवन का आत्मीय सहचर बन कर मरते दम तक साथ नहीं छोड़ता।
कर्मयोग का अपना निर्धारित समय होता है जो निश्चित आयु सीमा पार करने के बाद कोई मायने नहीं रखता।
इस दृष्टि से अपने कर्मयोग को इस प्रकार का स्वरूप दिया जाना चाहिए कि रोजाना के काम रोज ही निपट जाएं और किसी भी प्रकार का कोई काम लंबित रहे ही नहीं।
पर हमारी मानसिकता के अनुरूप आजकल स्थितियां सर्वत्र अजीब हो गई हैं।
हम अपने कर्म तो ढंग से पूरे नहीं कर रहे हैं और दोष मढ़ रहे हैं दूसरों पर।
तीन-चार दशकों का जो भी समय मिला है उसमें पूरी निष्ठा, वफादारी, स्वामीभक्ति और ईमानदारी से रचनात्मक काम करें, अपनी ड्यूटी पूरी करें और हमारे जिम्मे के कामों को लगन व गुणवत्ता के साथ पूर्ण करें।
हममें से काफी लोग जहाँ हैं वहाँ सिवाय चाट-पकौड़ियों, समोसे-कचोरियों, चाय-काफी की चुस्कियों और दूसरे लोगों के बारे में चर्चाओं में भी समय गँवा दिया करते हैं।
यों तो कोई सा काम हमारे माथे आ पड़े, हम कहते हैं टाईम नहीं है, लेकिन फिजूल की चर्चाओं और निन्दात्मक भ्रमण यात्राओं और साथी-संगियों के साथ गप्पबाजी करते हुए इधर-उधर भटकने का पूरा समय हमारे पास है।
हम टाईमपास ऎसे हो गए हैं कि कैसे समय निकल जाता है पता ही नहीं लगता। बाद में जब हिसाब लगाते हैं तब पछतावा और दुःख दोनों से रूबरू होना ही पड़ता है।
जो लोग अपने कत्र्तव्य कर्म यानि ड्यूटी के प्रति वफादार नहीं होते, ड्यूटी को भार समझते हैं, कामों को टालने और नहीं करने की बहानेबाजी में माहिर हैं उनके जीवन का पूरा प्रवृत्ति काल यों ही बिना किसी उपलब्धियों के गुजर जाता है।
ऎसे निकम्मे, नालायक और कामचोर लोग भले ही इस बात से खुश रहें कि कुछ करना नहीं पड़ता, बैठे-बैठे पैसा मिल रहा है लेकिन असलियत यह है कि ऎसे लोग अपनी आधी आयु पूरी करने के बाद जब निवृत्ति मार्ग की ओर प्रवेश करते हैं तब उनका सोचा हुआ वह सब कुछ ध्वस्त हो जाता है जिसके जरिये ये निवृत्ति मार्ग में अर्थात रिटायर होने के बाद आनंद प्राप्ति के सपने बुनते रहे हैं।
अपने फर्ज से जी चुराने वाले कामचोर लोगों का मन-मस्तिष्क और शरीर अपेक्षाकृत जल्दी थक जाता है।
एक तो इनके निकम्मेपन की वजह से लोगों की बददुआओं का बहुत बड़ा जखीरा ये जमा कर लिया करते हैं, दूसरा निकम्मेपन की आदत इस अवस्था में आकर परिपक्वता प्राप्त कर लेती है।
ऎसे लोगों के लिए किसी भी सेवा या काम-धंधे से निवृत्त होने के बाद का समय बड़ा ही दुःखदायी होता है।
एक तो निकम्मापन इतनी आयु पार करते-करते चरम पर आ जाता है, पराश्रित और परजीवी रहने की आदत मिट नहीं पाती। इसके साथ ही पुरुषार्थ बिना की जमा पूंजी इनके किसी काम नहीं आती।
इस परम और शाश्वत सत्य को पूरी ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए कि आदमी की पूरी जिन्दगी में चाहे जितना पैसा क्यों न कमा ले, वही पैसा अपने काम आता है जो मेहनत और ईमानदारी से कमाया हुआ होता है।
पुरुषार्थहीनता के चलते जमा की गई हराम की कमायी और परायों के माल का कोई अंश हमारे किसी काम नहीं आता। इस धन को चोरी की श्रेणी में माना गया है।
यही कारण है कि नालायकों, निकम्मों, कामचोरों और बिना काम किए पैसा पा लेने वालों का बुढ़ा़पा खराब होता है और ऎसे लोगों का उत्तरार्ध बिगड़ता ही बिगड़ता है।
इसलिए कर्मयोग के प्रति ईमानदार रहें और निष्ठा से काम करें ताकि अपने जीवन का उत्तरार्ध सुखी और सुकूनदायी हो सके।
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