चिड़ियां उड़ गयी फुर्र 'अटकन चटकन रही चटाकन कौआ लाटा बनकर काटा, सुरूरूरू पानी आया चिडियां उड गयी फुर्र।' फुर्र कहते ही निधी अपने दोन...
चिड़ियां उड़ गयी फुर्र
'अटकन चटकन रही चटाकन कौआ लाटा बनकर काटा, सुरूरूरू पानी आया चिडियां उड गयी फुर्र।' फुर्र कहते ही निधी अपने दोनों हाथ सिर पर उठाकर जोर से किलकारियां मारकर हंसने लगती और ताली बजाती।
हँसते हुए निधी के दोनो गालों में गढढे पड़ते। सुनहरे काले घुंघराले बाल गोरा गुलाबी रंग बड़ी बड़ी काली, भावनाओं से भरी आखें मुलायम गदगदे नन्हे नन्हे हाथ पांव रंग तो निधी ने अपनी मां का पाया था, वरना उसके पापा तो रंग में ठीक ही हैं इतने गोरे नहीं हैं। हाँ निधी की मां अर्थात उनकी बहू बहुत सुन्दर और गोरी है।
अटकन चटकन निधी का सबसे प्रिय खेल है। सारा दिन निर्मला अर्थात अपनी दादी के साथ यही खेलना चाहती है। और फुर्र कहते ही जहां निधी खिलखिला कर हंसने लगती है वही निर्मला का दिल बैठ जाता है। पाहुनी बनकर चार दिनों के लिए आयी है कुछ ही समय में यह नन्ही सोन चिरैया सचमुच में ही अपने मम्मी पापा के साथ फुर्र से उड़ जाएगी।
निधी हंस रही थी। उसके मुख में दुग्ध धवल नन्हे प्यारे दन्तुल दिख रहे थे। चार ऊपर चार नीचे। निर्मला ने उसे गोद में उठाकर सीने से लगा लिया। छाती में इतना स्नेह तो अपने पेट जायो के लिए भी नहीं महसूस किया उन्होनें कभी जितना इस नन्ही परी के लिए होता है । तभी तो कहते है असल से सूद अधिक प्यारा होता है।
'' चलो जीजी खाना लग गया है'' मधुलिका ने आवाज लगायी तो उनकी तंद्रा भंग हुई।
निधी को गोद में लेकर वो उठ गयी। उनका बेटा अमोल पहले से ही उपस्थित था। बहु निष्ठा खाना परोस रही थी।
'' आर्इ्रये मां।'' अमोल ने एक कुर्सी सरका दी। सब बैठकर खाना खाने लगे। बीच बीच में डेढ वर्षीय निधी की करतूतों पर हंसी का और चलता रहता। मधुलिका भी कम मजाकिया थोड़े ही थी। वह भी ऐसी ऐसी फुलझडियां छोड़ती कि सब हंस हंस कर दोहरे हो जाते। तभी तो अमोल इस बार आठ दिनों की छुट्टी लेकर आया तो मधुलिका मौसी को भी मनुहार करके यहीं बुलवा लिया। उनके साथ हंसी खुशी में दिन कहां बीत जाता है पता ही नहीं चलता।
दोपहर के खाने के बाद सब अपने कमरों में आराम करने चले गये। निधी सो गयी, जल्दी ही मधुलिका की भी आंख लगने लगी। मगर निर्मला की आंखों में नींद नही थी। उसके तो दिल दिमाग में उथल पुथल मची थी। अमोल उनकी सबसे छोटी सन्तान है। बड़ी दो बेटियां उम्र में अमोल से बहुत बड़ी हैं और वर्षों पहले अपने पति और बच्चों के साथ अमेरिका में सेटिल हो चुकी हैं। जब तक अमोल के पिता जीवित थे तब तक वे निर्मला साल दो साल में दो चार महीनों के लिए बेटियों के पास अमेरिका हो आते थे, पर उनके जाने के बाद तो निर्मला ने अपने इसी मकान और उनकी यादों में अपने आप को कैद कर लिया। यहां वह दुल्हन बनकर आयी थी। बच्चे हुए, उनकी शादियां हुई और उनके बच्चे हुए। सुबह से लेकर रात तक पति बच्चों की यादें चल चित्र की भाँति आंखों के सामने घूमती रहती हैं। हर चीज से अतीत की एक ना एक याद झांकती रहती है। इस पलंग पर अमोल के पिता लेटकर उपन्यास पढ़ते थे, इस अल्मारी में बेटियों के कपड़े रखे रहते थे। कुछ तो अभी भी हैं। यहां बैढ़कर अमोल पढ़ता था। स्कूल से लौटते ही मां मां चिल्लाते और अपना बस्ता फेंकते बच्चे आज भी दिखते हैं। उनके बचपन और निर्मला की जवानी के संस्करण मानो अब भी उस घर में पुरानी बातों को दोहराते हुए घूम रहे हैं।
आँखों की कोर से एक आंसू बाहर आने को छटपटाने लगा, कभी-कभी तो ये यादें इतनी प्रबल और पूरी सच्चाई से दिमाग में घुमड़ने लगती है कि क्षण भर को मनुष्य भूल ही जाता हे कि यह सब अतीत की परछाइयां हैं। वर्तमान में घटित होने वाला सच नहीं है। और इस सच से सामने होते ही निर्मला के हृदय में एक मरोड़ सी उठ जाती है।
एक एक कर सब विदा हो गये इस घर से। अमोल को भी नौकरी मिली इन्दौर में। बहुत कोशिश की उसने भोपाल में नौकरी की लेकिन नहीं मिली। निर्मला कुछ दिन उसके पास रहती फिर इस अतीत की यादें और इस घर का मोह उसे वापस खींच लाता। अब निधी आ गयी। मां की खुशी के लिए अमोल गाहे बगाहे भोपाल भागा आता है। निधी भी दादी से इसलिए बहुत हिली हुई है। इसलिए जब भी वापस जाने का समय आता है निधी निर्मला से लिपट कर रोने लगती है। '' दादी नई ''। उसे बोलते तो नहीं आता पर उसके मन के भाव स्पष्ट रूप से यही प्रकट करते हैं कि दादी को छोड़कर नहीं जाना। तब निधी का रोना देखकर अमोल ओर निष्ठा की भी आंखें भीग जाती। और नियति यह सुख भी उनसे छीन रही है। अमोल को बैंगलौर की एक बड़ी कम्पनी से नौकरी का प्रस्ताव आया है। तनख्वाह भी यहां से चार पांच गुनी है। वह और निष्ठा अत्यन्त उत्साहित हैं। बात भी सही है। इतनी कम उम्र में सफलता के इतने ऊँचे पायदान में पहुंच गया है। मगर अब बैंगलौर से बार बार भोपाल आना सम्भव नहीं हो पाएगा। अब यह सोन चिरैया ना जाने कितने महीनों बाद आ पाएगी। यही सोच कर निर्मला का हृदय फटा जा रहा है। अमोल और निष्ठा तब से निर्मला की मनुहार कर रहे हैं।
'' हम आपको साथ लिए बिना नहीं जा पाएंगे मां। इंदौर से तो हर शनिवार रविवार आ जाते थे मगर बैंगलौर से महीनों आना नहीं हो पाएगा। वहां आपकी चिन्ता लगी रहेगी। आप साथ चलिए। निष्ठा ने आग्रह से कहा।
लेकिन निर्मला की आत्मा तो इस घर में बसती है। वह बेजान शरीर बैंगलोर ले जाकर क्या करेगी जब कि प्राण तो यही रह जाएंगे। उसने मना कर दिया। कितना मनुहार किया अमोल ने उससे पर वह नहीं मानी। अमोल और निष्ठा दोनो सिर झुका कर चुप हो गये। घर में एक बेवजह की उदासी पसर गयी।
अमोल और निष्ठा यूं तो ऊपर से सामान्य बने रहने का पूरा प्रयत्न करते पर उनके चेहरों से पता चल ही जाता था कि वे दिल ही दिल में घुट रहे हैं। निर्मला उठकर खिड़की के पास खड़ी हो गयी। पिछले चार दिनों से लगातार बारिश हो रही थी। हमेशा आंगन में चहकने और फूदकने वाली चिड़ियाएं और तितलियॉ ना जाने कहां पत्तों की आड़ में जा छुपी थी। सारी प्रकृति कैसे नीरस सी और मेह के बोझ से थकी हुई लग रही थी।
'' क्या सोच रही हो दीदी?'' कंधे पर मधुलिका का स्पर्श और उसकी आवाज सुनकर निर्मला चौंक गयी। उसे ध्यान ही ना रहा कि बाहर बरसते मेह के साथ ना जाने कब से उसकी खुद की भी आँखें बरस रही थी जल्दी से अपनी आँखें पोंछते हुए उसने जवाब दिया '' कुछ नहीं रे कुछ भी तो नहीं।''
''न बताओ दीदी पर में क्या समझती नहीं हूं।''
मधुलिका ने उसे कुर्सी पर बैठा दिया और खुद भी पास में ही बैठ गयी।
'' अब किस्मत को देखो ना इतना सा भी सुख बर्दाश्त नहीं हुआ। निधी का मुख देखकर कुछ खुशी मिल जाती थी वो भी भगवान अब छीन रहा है।'' निर्मला भरे गले से बोली।
'' पता नहीं दोष किस्मत का है या तुम्हारी सोच का दीदी।'' मधुलिका का स्वर अचानक कुछ तीखा सा हो गया। '' क्या मतलब''? उसके स्वर की तिक्तता से निर्मला अचानक चौक गयी।
'' मतलब यह कि दोष किस्मत का नहीं है वह तो अपनी ओर से अच्छा ही कर रही है। दोष तुम्हारी सोच तुम्हारी बैमानी जिद का है। इसके लिए भगवान को क्यों कोस रही हो। उसने तो दोनों हाथों से सुख भर कर तुम्हारी झोली में डाला है तुम्हारा ही आंचल फटा है तो वो क्या करे? मधु का स्वर अब भी वैसा ही था।
''तुम कहना क्या चाहती हो मैं कुछ समझी नहीं।'' निर्मला असमन्जस्य में भर कर बोली।
'' देखो दीदी 'अब के बार मधुलिका कुछ नरम व समझाइश भरे स्वर में बोली'' अमोल को इतनी बड़ी कम्पनी से जो प्रस्ताव मिला है वह रोज रोज नही मिलता और हर किसी को भी नहीं मिलता। यह उसकी योग्यता ही है कि इतनी बड़ी नामचीन कम्पनी जहां लोग सपने में भी नही पहुँच पाते, वहां से उसे खुद बुलावा आया है। लेकिन सिर्फ तुम्हारी वजह से वह इस अवसर से क्या जीवन में आने वाले हर अवसर से वंचित होता रहेगा।''
'' अरे लेकिन मैने उसे कब रोका है ? निर्मला बुरी तरह चौक कर बोली।
तुमने मुंह से तो मना नहीं किया लेकिन तुम्हारी साथ ना जाने वाली जिद ने उसके पैरों में बेड़ियां डाल दी है अब उसका मन भी नहीं मान रहा कि तुम्हें अकेला छोड़कर जाने में। '' निर्मला की हथेली पर प्यार से हाथ रखकर मधुलिका बोली'' तुम उसके साथ बैंगलौर क्यों नहीं जाती दीदी।
एक मोह भरी दृष्टि कमरों व दीवारों की छत पर डालकर निर्मला कुछ कहने जा ही रही थी मधुलिका ने उसे रोक दिया-
'' बस बस तुम्हारी दृष्टि ने सब कुछ कह दिया है। लेकिन अपनी इस परम्परागत और घिसी पिटी सोच से बाहर आओ। मनुष्य अतीत में ही अटक कर रह जाय तो जी नहीं सकता। समय नित्य परिवर्तन शील है यह किसी के लिए रूकता नहीं है हमें ही इसी के साथ चलना पड़ता है। तुम्हारे बच्चों का जीवन अतीत बन चुका है, निधी का बचपन ही अब वर्तमान का सच है। अतीत की यादों में ही अटकी रहोगी तो वर्तमान के हर सुख से वंचित रह जाओगी।''
'' पर-----।'' निर्मला कुछ कहना चाह रही थी लेकिन मधु ने उसे बीच में ही रोक दिया-
''कोई पर वर नहीं, सच तो यह है कि माता पिता स्वयं तो सामंजस्य स्थापित कर नहीं पाते और दोष किस्मत को या बच्चों को देते है। बच्चे भी माता पिता को छोड़ देते है में मना नहीं करती लेकिन ज्यादातर मामलों में गलती बुजुर्गों की भी होती है। पुरानी निर्जीव चीजों से मोह की खातिर वे एडजस्टमेन्ट करने को तैयार नहीं होते और अकेले रह जाने पर बच्चों को दोष देते है कि वे पूछते नहीं। आजकल समाज में सब दूर इस तरह के किस्से आम हो गये हैं कि बच्चों ने मां बाप को भुला दिया है या छोड़कर चले गये हैं। कल को अमोल अगर चला गया तो सब उसी बेचारे को कोसेंगे, पर कोई मां बाप की गलती नहीं देखता।
बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हम बच्चों को पढ़ाते लिखाते हैं, उन्हे सफलता की सबसे ऊँचे पायदान पर देखने और विकास की दौड़ में सबसे आगे रहने की महत्वाकांक्षा भी हमी उन्ही पर थोपते हैं ओर जब वे विकास की मार्ग पर आगे बढ़ने लगते हैं तब हम ही उनकी राह में बाधा बनकर खड़े हो जाते हैं।''
'' मैं कहां किसी की राह में बाधा बन रही हूं, वो जहां चाहे चला जाये।'' निर्मला सुबकते हुए बोली।
'' नहीं दीदी वो दोनों तुम्हें छोड़कर जाना नहीं चाहते। कल ही अमोल और निष्ठा ने तय किया है कि वे कम्पनी का प्रस्ताव ठुकरा देंगे। जबकि अमोल जानता है वह अपने सौभाग्य और प्रगति को लात मार रहा है। फिर भी उसने तुम्हें चुना। सच दीदी लाखों में एक बेटा बहू मिले हैं तुम्हें। अतीत की जंजीरों से अपने आप को मुक्त करो। अमोल तो सुपुत्र हे उसने साबित कर दिया अब यह तुम्हारे हाथ है कि तुम सुमाता बनती हो या कुमाता। थोडा़ तो सामंजस्य तुम भी दिखाओ रिश्ते में।'' एक गहरी सांस लेकर मधुलिका चली गयी।
उस रात आसमान पूरे जोरों से बरस रहा था और अन्दर निर्मला की आंखों से नींद तो कोसों दूर थी। अब भी मन में असमंजस की स्थिति थी। इतने वर्षों से गृहस्थी साम्राज्य की रानी वह थी अब किसी दूसरे की गृहस्थी में --- छि--छि !मन के एक कोने में धिक्कार उठी। अब भी वही भय, वही संशय, वही कुंठा मन में व्याप्त है? दूसरे की क्यों निष्ठा भी तो अपनी ही है उसका साम्राज्य चलाने के लिए मंत्री रूप में उसकी सलाह कार बनकर तो रह सकती है। निर्मला के होठों पर एक निर्मल मुस्कान आ गयी।
सुबह तो आसमान एकदम साफ था। प्यारी गुनगुनी धूप खिली थी। आंगन में गौरेया फुदक रही थी, फूलों पर तितलियां मंडरा रही थी। संशय के बादल छंट गये थे। निष्ठा नाश्ता लगा रही थी।
'' तुम बैंगलौर कब जा रहे हो बेटा? मेरा भी टिकट तुम लोगों के साथ ही करवा लेना।'' निर्मला ने अमोल से कहा तो वह उसके दोनों हाथ थाम कर खुशी से बोला-
'' सच मां तुम साथ चलोगी ना?''
'' हां बेटा चलूंगी।''
निष्ठा के चेहरे पर भी चमकदार धूप खिल उठी। मधुलिका उत्साह से बोली
'' घर की चिन्ता मत करना दीदी। मैं तुम्हारी यादों को ज्यों का त्यों संभालकर रखूंगी।''
तभी ठुनक ठुनक कर निधी आयी और निर्मला की गोद में बैठकर बोली
'' ताती, तिया उल---फुल।''
'' नहीं मेरी सोन चिरैया।'' निधी को अपने सीने से लगाते हुए निर्मला ने कहा'' चिड़िया अब अपने घोंसले में हमेशा अपनी दादी के साथ रहेगी।''
'' तिया-ताती।'' निधी ताली बजाकर बोली तो सब हंसने लगे।
उत्कृष्ट …। माँ आखिर माँ होती है , वो अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए अपने भूत - वर्तमान - भविष्य तीनों कालों का उत्सर्ग कर सकती है। माँ का प्रेम कालजयी होता है क्योंकि वो तीनों काल की बाधाओं से मुक्त होता है ; और जो तीनों काल की बाधाओं से मुक्त है , वही शाश्वत सत्य है।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंनिधि और सामंजस्य
बधाई
कंडवाल मोहन मदन