प्रयोजनमूलक हिन्दी की संकल्पना तथा विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी की दृष्टि से हिन्दी की दशा और दिशा प्रोफेसर महावीर सरन जैन प्रयोजनमूलक ...
प्रयोजनमूलक हिन्दी की संकल्पना तथा विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी की दृष्टि से हिन्दी की दशा और दिशा
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
प्रयोजनमूलक हिन्दी की संकल्पना के प्रवर्तक
प्रयोजनमूलक हिन्दी की संकल्पना के प्रवर्तक मोटूरि सत्यनारायण हैं। जिस समय तक भारत के विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों के अन्तर्गत स्नातकोत्तर स्तर पर मुख्य रूप से हिन्दी साहित्य एवं आठ प्रश्नपत्रों में से केवल एक प्रश्नपत्र में भाषाविज्ञान के सामान्य सिद्धांतों एवं हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन अध्यापन हो रहा था, मोटूरि सत्यनारायण ने सन् 1972 ईस्वी में दूसरी बार केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के अध्यक्ष बनने के बाद, संस्थान के तत्कालीन निदेशक डॉ. व्रजेश्वर वर्मा तथा संस्थान के अध्यापकों के सामने प्रयोजनमूलक हिन्दी के अध्ययन अध्यापन पर जोर दिया। उनके कथन का सार यह था कि साहित्य एवं प्रशासन के क्षेत्रों के अलावा अन्य विभिन्न क्षेत्रों के प्रयोजनों की पूर्ति के लिए जिन भाषा रूपों का प्रयोग एवं व्यवहार होता है, उनके अध्ययन और अध्यापन की भी आवश्यकता है। जब मैं संस्थान का निदेशक था, मुझे मोटूरि सत्यनारायण से मिलने तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी के सम्बंध में उनकी संकल्पना को जानने, पहचानने एवं आत्मसात करने का अवसर मिला।
(देखें - प्रज्ञा पुरुष मोटूरि सत्य नारायण (प्रयोजन मूलक हिन्दी के विशेष संदर्भ में): स्रवंति, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा-आन्ध्र, हैदराबाद, पृ0 90-93 (2002-2003)/ प्रज्ञा पुरुष मोटूरि सत्य नारायण एवं प्रयोजनमूलक हिन्दी: विकल्प, प्रयोजनमूलक हिन्दी विशेषांक, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून, पृष्ठ 45-46 (जुलाई - सितम्बर, 2006) / . प्रयोजनमूलक हिन्दी की संकल्पना के प्रवर्तक मोटूरि सत्यनारायण (रचनाकार, 17 जुलाई, 2009)
www.rachanakar.org/2009/07/blog-post_17.html)
संस्थान के हैदराबाद केन्द्र के प्रभारी डॉ. पी0 विजय राघव रेड्डी ने नवीकरण पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में आने के लिए मुझे आमंत्रित किया। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के हैदराबाद केन्द्र ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास के सहयोग से 5 सितम्बर 1993 से 14 सितम्बर 1993 तक नवीकरण पाठ्यक्रम आयोजित किया था। मैंने उनसे मालूम किया कि पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में ऐसी क्या विशेषता है जो आप मुझे आमंत्रित कर रहे हैं। उन्होंने मुझे अवगत कराया कि पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी ने समारोह का उद्घाटन करने की स्वीकृति दे दी है। दिनांक 5 सितम्बर 1993 को दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास( चेन्नई ) के हॉल में उद्घाटन समारोह आयोजित हुआ। डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी से मिलकर मुझे नई चेतना एवं नई स्फूर्ति का अनुभव हुआ। मैं इस तथ्य से अवगत था कि हिन्दी को जो संवैधानिक महत्व मिला है उसमें आपका महत्वपूर्ण अवदान है। भारतीय संविधान सभा के सदस्य होने का गौरव आपको प्राप्त हुआ। सन् 1940 से 1942 ई0 तक भारत में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन चला। उस काल में हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना स्वाधीनता-आन्दोलन का अविभाज्य अंग था। दक्षिण में स्वाधीनता आन्दोलन एवं हिन्दी का प्रचार-प्रसार परिपूरक थे। विभिन्न राजनैतिक आन्दोलनों के समय तत्कालीन राज-सत्ता ने राजनैतिक नेताओं के साथ-साथ हिन्दी प्रचारकों को भी कैद किया। मोटूरि सत्यनारायण जी ने जेल में रहकर हिन्दी प्रचार का कार्य जारी रखा। जेल से मुक्त होने पर आपने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक योजनाएँ बनाईं। इन योजनाओं में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल योजना, दक्षिण के साहित्य की प्रकाशन योजना एवं कला भारती की योजना आदि सर्वविदित हैं। मैने अपने भाषण में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल योजना के सम्बन्ध में सभागार में उपस्थित श्रोताओं को अवगत कराया। मैंने कहा कि केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के जन्म का श्रेय मोटूरि सत्यनारायण जी को है। इस संस्था के निर्माण के पूर्व आपने महात्मागांधी की प्रेरणा एवं आर्शीवाद से स्थापित दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के माध्यम से दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के क्षेत्र में अनुपम योगदान दिया। भारत की स्वतंत्रता के बाद आप राज्य सभा के मनोनीत सदस्य बने। इस कारण मद्रास के स्थान पर देश की राजधानी उनके कार्यक्षेत्र का केन्द्र बन गई। आपने कुछ अन्य राष्ट्र सेवक हिन्दी सेवियों के सहयोग से आगरा में ‘‘अखिल भारतीय हिन्दी परिषद्’’ की स्थापना की। संविधान सभा के अध्यक्ष एवं भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद परिषद के अध्यक्ष थे। श्री रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर तथा लोकसभा के तत्कालीन स्पीकर श्री मावलंकर परिषद् के उपाध्यक्ष थे। प्रसिद्ध उद्योगपति श्री कमलनयन बजाज परिषद् के कोषाध्यक्ष थे। इसके दो सचिव थे - (1) श्री मोटूरि सत्यनारायण (2) श्री गो. पे. नेने । डॉ. मोटूरि सत्यनारायण ने हिन्दीतर राज्यों के सेवारत हिन्दी शिक्षकों को हिन्दी भाषा के सहज वातावरण में रखकर उन्हें हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य एवं हिन्दी शिक्षण का विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता का अनुभव किया। इसी उद्देश्य से परिषद् ने सन् 1952 में आगरा में हिन्दी विद्यालय की स्थापना की। सन् 1958 में इसका नाम ‘‘अखिल भारतीय हिन्दी विद्यालय, आगरा’ रखा गया। श्री मोटूरि सत्यनारायण जी ने अपने परिषद् के विद्यालय का प्रबन्ध भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय को सौंपने का निर्णय किया। मैंने श्रोताओं को अवगत कराया कि जिस संस्था (दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास) में आज कार्यक्रम हो रहा है उसके सर्वेसर्वा मोटूरि सत्यनारायण जी रहे तथा जिस संस्था (केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा) के तत्वावधान में आज कार्यक्रम हो रहा है वह संस्था मोटूरि जी की विलक्षण प्रतिभा, श्रेयस्कर दृष्टि, समन्यवादी राष्ट्रीय चेतना तथा स्पृहणीय क्रियाशीलता का प्रतिफल है। मोटूरि जी को चिन्ता थी कि हिन्दी कहीं केवल साहित्य की भाषा बनकर न रह जाए। उसे जीवन के विविध प्रकार्यों की अभिव्यक्ति में समर्थ होना चाहिए। उन्होंने कहा -
‘‘भारत एक बहुभाषी देश है। हमारे देश की प्रत्येक भाषा दूसरी भाषा जितनी ही महत्वपूर्ण है, अतएव उन्हें राष्ट्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीयता को चाहिए कि वह अपने आपको इस बहुभाषीयता के लिए तैयार करे। भाषा-आधार का नवीनीकरण करती रहे। हिन्दी को देश के लिए किए जाने वाले विशिष्ट प्रकार्यों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनना है।’’
डॉ. मोटूरि सत्यनारायण ने ‘प्रयोजन मूलक हिन्दी’ की संकल्पना को हिन्दी जगत के सामने रखा। प्रयोजनमूलक हिन्दी के लिए आपने अप्रमत्त भाव से जो कार्य किया उससे न केवल केन्द्रीय हिन्दी संस्थान को अपने शैक्षिक कार्यक्रमों में बदलाव के लिए प्रेरणा मिली अपितु बाद में विश्वविद्यालय अनुदान आयेाग को भी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। इस सम्बन्ध में आपने हिन्दी एवं जनतंत्र के अन्तरसम्बंधों को लेकर जो चिन्तन प्रस्तुत किया वह आपके गम्भीर अध्येता होने का प्रमाण है तथा भारत की समन्वयशील संस्कृति, समन्यववादी चेतना और उदार वृत्तियों का परिचायक है।
नामकरण
सन् 1972 ईस्वी के तत्काल बाद केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के अध्यापकों ने इस पर विचार किया कि अंग्रेजी के “Functional” के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाए। इसके लिए अनेक शब्दों के सुझाव आए। उनमें निम्न शब्दों का उल्लेख करना प्रासंगिक है क्योंकि इस विषय पर जिन विद्वानों ने कार्य किया है उन्होंने भी बाद में इन्हीं शब्दों के प्रयोग पर विचार किया है।
1. व्यवहारिक 2. कामकाजी 3. प्रयोजनमूलक 4. प्रयोजनी 5. प्रयोजनपरक 6. प्रायोगिक 7. प्रयोगपरक।
इनमें से प्रयोजनमूलक के अतिरिक्त व्यवहारिक एवं प्रयोगपरक शब्दों को अपनाने पर जोर रहा। संस्थान ने इन शब्दों का सर्वथा परित्याग नहीं किया। इसका प्रमाण यह है कि संस्थान ने जिन पुस्तकों का प्रकाशन किया है उनमें से दो पुस्तकों में ‘व्यवहारिक’ तथा दो पुस्तकों में ‘प्रयोग’ पद व्यवहृत हुए हैं।
उपर्युक्त शब्दों के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क वितर्क खूब हुए। मगर पलड़ा ‘प्रयोजनमूलक’ का भारी रहा। सन् 1973 में संस्थान में कार्यरत डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने ‘Functional Hindi’ के विविध पक्षों पर विद्वानों से लेख लिखवाकर पुस्तक का सम्पादन कार्य सम्पन्न किया। पुस्तक का प्रकाशन ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध आयाम’ शीर्षक से हुआ। संस्थान के तत्कालीन निदेशक डॉ. व्रजेश्वर वर्मा ने पुस्तक में ‘प्रयोजनमूलक’ शब्द की सार्थकता पर बल दिया तथा इस शब्द के प्रयोग की सार्थकता पर संदेह करनेवाले विद्वानों को अपने ढंग से उत्तर दिया। उनके शब्दों पर गौर कीजिए: “प्रयोजनमूलक हिन्दी के विपरीत अगर कोई हिन्दी है तो वह निष्प्रयोजनमूलक नहीं वरन् आनन्दमूलक हिन्दी है”। संस्थान में तथा बाद में हिन्दी जगत में ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ शब्द अधिक मान्य हो गया तथा चल निकला।
प्रशासनिक हिन्दी एवं प्रयोजनमूलक हिन्दी
डॉ. व्रजेश्वर वर्मा के तर्क से देखें तो साहित्यिक हिन्दी एवं बोलचाल की हिन्दी के अलावा प्रशासनिक हिन्दी भी प्रयोजनमूलक हिन्दी का अंग है और कुछ विद्वान ऐसा मानते भी हैं तथा ऐसा मानने में कोई सैद्धांतिक आपत्ति नहीं है। इसका कारण यह है कि प्रयोजनमूलक भाषा का विशिष्ट गुण यह है कि चूँकि यह कार्यविशेष के क्षेत्र में प्रयुक्त होती है इस कारण यह प्रयुक्तिपरक होती है। प्रयुक्तिपरक होना ही इसका विशेष लक्षण है। प्रशासनिक हिन्दी की भी अपनी प्रयुक्तियाँ होती हैं। इस कारण प्रशासनिक हिन्दी को प्रयोजनमूलक हिन्दी का अंग माना जा सकता है। हमने अपनी पुस्तक में राजभाषा हिन्दी का विवेचन अलग अध्याय में किया है। राजभाषा हिन्दी का प्रयोग संघ के प्रशासनिक कार्यों में होता है। हमने राजभाषा हिन्दी का प्रयोजनमूलक हिन्दी से अलग स्वतंत्र अध्याय में विवेचन जानबूझकर किया है। राजभाषा हिन्दी के सम्बंध में प्रचलित गलत एवं भ्रामक मान्यता का खण्डन करने के लिए यह जरूरी था। इसके अतिरिक्त हम यह भी कहना चाहते हैं कि प्रशासनिक हिन्दी एवं प्रयोजनमूलक हिन्दी में संरचनागत अन्तर हैं। प्रयोजनमूलक हिन्दी की वाक्य रचना मानक हिन्दी अथवा जनभाषा हिन्दी के अनुरूप कर्ता प्रधान है जबकि प्रशासनिक हिन्दी कर्म प्रधान भाषा है। प्रशासन में कर्ता की प्रधानता नहीं होती। कर्म की प्रधानता होती है। कहने अथवा लिखनेवाला सरकार की ओर से आदेश एवं निर्देश देता है। अन्य राज्य सरकारों, संस्थाओं, प्रतिष्ठानों आदि में प्रयुक्त प्रशासन की भाषा में भी यही होता है। इस कारण प्रशासनिक हिन्दी में ‘मैंने पद त्याग दिया’ अथवा ‘मैंने पद छोड़ दिया’ जैसी वाक्य रचना नहीं होती। प्रशासनिक हिन्दी में कर्म प्रधान रचनाएँ मिलती हैं। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं :
1.(अमुक) को पद छोड़ना पड़ा।
2. नियमों का पालन करना चाहिए।
3. सत्र शुरु हो चुका है।
4. स्वीकृति प्रदान की जाती है।
5. (अमुक) की खरीद की जानी है।
6. (अमुक) अधिनियम संशोधित किया गया।
7. पत्र स्पष्ट अक्षरों में लिखा जाना चाहिए।
8. आँकड़े सही पाए गए।
राजभाषा हिन्दी का विवेचन इन कारणों से हमने अपनी पुस्तक में अलग अध्याय में किया है। प्रयोजनमूलक हिन्दी की विवेचना करते समय इसी कारण प्रशासनिक हिन्दी के सम्बंध में विचार नहीं किया जाएगा। इस पुस्तक के संदर्भ में, प्रशासन के क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य विशिष्ट प्रयोजनों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त हिन्दी ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ है। इसका प्रयोग कार्य विशेष के लिए होता है इस कारण यह प्रयुक्तिपरक होती है। हमारे जीवन में अन्य जितने विविध प्रयोजन हैं, उद्देश्य हैं अथवा सरोकार हैं उनको अभिव्यक्त करनेवाली प्रयोजनमूलक हिन्दी के भी उतने ही भेद हैं, उतने ही प्रयुक्तिपरक रूप हैं। इनकी गणना सम्भव नहीं है।
जनभाषा हिन्दी तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी का अन्तर तथा ‘प्रयुक्ति’ (रजिस्टर)
हम फिर दोहराना चाहते हैं कि बोलचाल की जनभाषा हिन्दी तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी का मुख्य अन्तर प्रयुक्ति का है। जनभाषा की अपनी कोई विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली नहीं होती। किसी कार्य क्षेत्र में प्रयुक्त होनेवाली विशिष्ट शब्दावली ही ‘प्रयुक्ति’ है जिसके लिए अंग्रेजी में “Register” शब्द का प्रयोग होता है। पारिभाषिक दृष्टि से अंग्रेजी में यह शब्द समाजभाषावैज्ञानिकों द्वारा प्रयुक्त हुआ है जिसका पारिभाषिक अर्थ है –“एक रजिस्टर एक विशेष उद्देश्य के लिए या किसी विशेष सामाजिक सेटिंग में इस्तेमाल भाषा की एक किस्म है”। इसका अर्थ यही है कि विशेष कार्य क्षेत्र में जब हम अपनी भाषा का इस्तेमाल करते है तो उसकी विशिष्ट किस्म हो जाती है। यह विशिष्ट किस्म उस कार्य क्षेत्र की विशिष्ट शब्दावली, वाक्यांशो और मुहावरों के कारण बनती है। जितने कार्य क्षेत्र होंगे उनकी उतनी ही प्रयुक्तियाँ होंगी। समाजभाषावैज्ञानिक सामाजिक संदर्भों के अनुरूप भाषा प्रयोगो के बदलाव को भी ‘रजिस्टर’ के नाम से पुकारते हैं मगर हमने हिन्दी के संदर्भ में प्रयुक्ति को विशेष कार्य क्षेत्रों के विशेष उद्देश्यों अथवा प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल के लिए प्रयुक्त किया है। सामाजिक संदर्भों के अनुरूप जब हम अपनी भाषा में बदलाव करते हैं उस बदलाव को हमने भाषा की सामाजिक शैलियाँ माना है; भाषा की प्रयुक्तियाँ नहीं। हमारे विवेचन के हिसाब से विशेष कार्य क्षेत्र के अनुकूल भाषा का रूप रजिस्टर है, प्रयुक्ति है तथा सामाजिक संदर्भों के अनुरूप भाषिक बदलाव (उदाहरण के लिए औपचारिक भाषा शैली एवं अनौपचारिक भाषा शैली) सामाजिक शैलियाँ हैं। इसकी सैद्धांतिक विवेचना हमने अपनी ‘भाषा एवं भाषाविज्ञान’ शीर्षक पुस्तक में की है। व्यक्ति के कार्य क्षेत्र अनगिनत हैं। इसी के अनुरूप भाषा की प्रयुक्तियाँ भी अनगिनत हैं। कहावत है - ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’। इसी प्रकार कार्य क्षेत्र अनगिनत तथा भाषा की प्रयुक्तियाँ भी अनगिनत। प्रत्येक कार्य क्षेत्र में कुछ विशिष्ट शब्दों का चलन हो जाता है। जब पहली बार कोई व्यक्ति किसी अपरिचित कार्य क्षेत्र में जाता है तो वहाँ कुछ नए शब्दों को सुनता है। एक दो दिन में वह उस कार्य क्षेत्र के उन विशिष्ट शब्दों के प्रयोग का आदी हो जाता है।
साहित्यिक हिन्दी एवं प्रयोजनमूलक हिन्दी का अन्तर
साहित्यिक भाषा और प्रयोजनमूलक भाषा का अन्तर यह है कि साहित्य में लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ की प्रधानता होती है, विचलन या विपथन होता है जबकि प्रयोजनमूलक भाषा में वाच्यार्थ होता है। प्रत्येक प्रयुक्ति का अपना निश्चित अर्थ होता है। इस कारण व्यक्त शब्द का अर्थ एकार्थक होता है। प्रयुक्ति इसी कारण रूढ़ हो जाती है। उस कार्य क्षेत्र में कार्य करने वाला उस प्रयुक्ति के विशिष्ट किन्तु रूढ़ अर्थ से सहज ही परिचित हो जाता है, उसके प्रयोग का अभ्यस्त हो जाता है। प्रयुक्ति एक शब्द की भी हो सकती है एकाधिक शब्दों से बने वाक्यांश की भी हो सकती है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी एवं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रशिक्षण का प्रमुख केन्द्र रहा है। जब जिस राज्य अथवा केन्द्र से जिस कार्य क्षेत्र के व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने की माँग आई, संस्थान ने उस माँग के अनुरूप पाठ्य सामग्री का निर्माण करके अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया। उदाहरण के लिए संस्थान ने सन् 1993-94 में, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की माँग पर उनके सेवारत अधिकारियों को दूरस्थ शिक्षा माध्यम से हिन्दी सीखने की सामग्री का निर्माण किया। वैज्ञानिक क्षेत्र की हिन्दी, तकनीकी विषयों की हिन्दी, व्यापार-वाणिज्य की हिन्दी, पत्रकारिता की हिन्दी, बैंकों की हिन्दी आदि प्रयोजनमूलक हिन्दी के भेदों को जानने तथा उनका विश्लेषण करने के लिए संस्थान ने प्रयोजनमूलक हिन्दी का अनुसंधानमूलक सर्वेक्षण किया तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी के विकास की योजनाओं को वैज्ञानिक आधार दिया। संस्थान प्रयोजनमूलक अध्ययन अध्यापन की दृष्टि से हिन्दी पाठ्यक्रमों / पाठ्यचर्याओं का संसाधन, पुनर्गठन एवं आधुनिकीकरण करता रहता है। प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्षेत्र में संस्थान की विशेषज्ञता को ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सन् 1998-99 में, संस्थान को स्नातक स्तर के प्रयोजनमूलक हिन्दी पाठ्यक्रम के पुनर्गठन एवं संशोधन का कार्य सौंपा जिसे संस्थान ने पूरा किया तथा पाठ्यक्रम को अद्यतन रूप प्रदान किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने प्रयोजनमूलक हिन्दी के शिक्षण को उच्च शिक्षा में आवश्यक विकल्प के रूप में स्वीकार कर लिया है और अब देश के दिल्ली, पुणें, हैदराबाद, लखनऊ आदि कई विश्वविद्यालयों में व्यवसायोन्मुख तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी के पाठ्यक्रम चल रहे हैं।
प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख भेद एवं उपभेद:
प्रयोजनमूलक हिन्दी के भेदों की गणना सम्भव नहीं है। अध्ययन के लिए किसी विवेच्य के भेद प्रभेद करने होते हैं। इस दृष्टि से प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख भेदों तथा भेदों के प्रभेदों को आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। यह वर्गीकरण केवल व्यवहारिक दृष्टि से ही है। एक भेद के अन्तर्गत परिगणित उपभेदों में से कुछ को द्सरे भेद का उपभेद भी माना जा सकता है। उदाहरण के लिए हम एक भेद व्यवसायों की व्यवसायिक हिन्दी के नाम से कर रहे हैं। इस पर तर्क वितर्क सम्भव है। अन्य भेदों के कार्य क्षेत्रों को भी विशेष व्यवसाय मानते हुए वर्गीकरण पर प्रश्नवाचक चिन्ह लागाए जा सकते हैं। इसी कारण हम फिर दोहरा रहे हैं कि यह वर्गीकरण अन्तिम नहीं है। व्यवहार, परम्परा, सुविधा आदि कारणों से यह वर्गीकरण किया जा रहा है।
विज्ञान, तकनीक एवं प्रौद्योगिकी के कार्य क्षेत्रों की हिन्दी | 1.वैज्ञानिक हिन्दी 2.तकनीकी हिन्दी 3. प्रौद्योगिकी संस्थानों की हिन्दी एवं उन संस्थानों के विषयों का हिन्दी के माध्यम से शिक्षण प्रशिक्षण 4. हिन्दी भाषा के विविध कार्य व्यापारों के निष्पादन के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग |
जनसंचार के माध्यमों की हिन्दी (प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की हिन्दी)
| 1. समाचार पत्रों की हिन्दी 2. पत्रिकाओं की हिन्दी 3. पत्रकारिता की हिन्दी 4. रेडियो की हिन्दी 5. टी. वी. पर प्रसारित विविध कार्यक्रमों की हिन्दी 6. फिल्मों के संवादों की हिन्दी 7. फिल्मों के गानों की हिन्दी 8. विज्ञापनों की हिन्दी 9. कम्प्यूटर की सोशल साइटों एवं ईमेलों आदि की हिन्दी
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वाणिज्य, व्यापार एवं औद्योगिकी के उपक्रमों के कार्य क्षेत्रो की हिन्दी | 1.मंडी की हिन्दी 2.दलालों की हिन्दी 3.शेयर मार्किट की हिन्दी 4. बैंकों की हिन्दी 5. अन्य औद्योगिक उपक्रमों (यथा- बीमा, रेल, हवाई जहाज, होटल, पर्यटन से सम्बंधित अन्य उपक्रमों) के कार्य क्षेत्रों की हिन्दी |
विधि एवं न्यायालयों के कार्य क्षेत्रों की हिन्दी | 1. विधि विधान के कार्य क्षेत्र की हिन्दी 2. न्यायालयों के कार्य क्षेत्र की हिन्दी |
अन्य विभिन्न व्यवसायों के कार्य क्षेत्रों की हिन्दी | उपर्युक्त वर्णित कार्य क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य व्यवसायों के कार्य क्षेत्रों की व्यवसायिक हिन्दी |
जो विद्वान प्रशासन के कार्य क्षेत्र की हिन्दी को प्रयोजनमूलक हिन्दी के अन्तर्गत रखने के पक्षधर हों उनके लिए ‘प्रशासनिक हिन्दी’ |
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हिन्दी में इन कार्य क्षेत्रों की प्रयोजनमूलक हिन्दी के विकास की असीम सम्भावनाएँ हैं। इस दृष्टि से विचार भी हुआ है। अलग अलग विषय पर शोध कार्य हुए हैं। सबका लेखा जोखा एक अध्याय में सम्भव नहीं है। हम इनमें से केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास एवं हिन्दी विषय पर कुछ संकेत करेंगे।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास एवं हिन्दी
अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दबाव के कारण आज प्रौद्योगिकी की आवश्यकता पहले से और अधिक बढ़ गई है। प्रौद्योगिकीय गतिविधियों को बनाए रखने के लिए, लोकतंत्रात्मक दर्शन एवं मूल्यों के अनुरूप सामान्य नागरिक एवं शासनतंत्र के बीच सार्थक संवाद के लिए ई-गवर्नेंस के प्रसार तथा सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के समाधान के लिए भारतीय जन मानस में वैज्ञानिक चेतना एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग का विकास अनिवार्य है। देश की सम्पर्क भाषा हिन्दी में वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय ज्ञान के सतत विकास और प्रसार के लिए हिन्दी में वैज्ञानिक लेखन एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिए वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकविदों एवं हिन्दी भाषा के विशेषज्ञों को मिलकर निरन्तर कार्य करना होगा।
हिन्दी में विज्ञान सम्बन्धी साहित्य का लेखन-कार्य
हिन्दी में विज्ञान सम्बन्धी साहित्य का लेखन-कार्य भारतेन्दु काल से प्रारम्भ हो गया था। 19वीं शताब्दी से इस दिशा में यत्र तत्र हुए प्रयास बिखरे हुए मिलते हैं। स्कूल बुक सोसायटी, आगरा (सन् 1847), साइंटिफिक सोसायटी, अलीगढ़ (सन् 1862), काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी (सन् 1898), गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार (सन् 1900) विज्ञान परिषद, इलाहाबाद (सन् 1913), वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली मण्डल (सन् 1950), वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (सन् 1961) आदि ने वैज्ञानिक साहित्य के निर्माण में उल्लेखनीय कार्य किया है । यह जरूर है कि इस वैज्ञानिक-लेखन की भाषिक स्थिति के सम्बन्ध में अपेक्षित विचार सम्भव नहीं हो सका। हिन्दी में जो पुस्तकें वैज्ञानिक विषयों पर उच्चतर माध्यमिक एवं इन्टरमीडिएट कक्षा के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं उनकी संख्या बहुत अधिक है । उनकी भाषा-शैली भी अपेक्षाकृत सहज एवं बोधगम्य है । किन्तु जिन ग्रन्थों का निर्माण ‘‘मानक ग्रन्थ अनुवाद योजना’’ के अंतर्गत किया गया उनकी भाषा-शैली में अपेक्षाकृत अस्पष्टता एवं अस्वाभाविकता है तथा अंग्रेजी के वाक्य-विन्यासों की छाया दिखाई देती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास एवं हिन्दी
अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दबाव के कारण आज प्रौद्योगिकी की आवश्यकता पहले से और अधिक बढ़ गई है। प्रौद्योगिकीय गतिविधियों को बनाए रखने के लिए, लोकतंत्रात्मक दर्शन एवं मूल्यों के अनुरूप सामान्य नागरिक एवं शासनतंत्र के बीच सार्थक संवाद के लिए गवर्नेंस के प्रसार तथा सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के समाधान के लिए भारतीय जन मानस में वैज्ञानिक चेतना एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग का विकास अनिवार्य है। देश की सम्पर्क भाषा हिन्दी में वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय ज्ञान के सतत विकास और प्रसार के लिए हिन्दी में वैज्ञानिक लेखन एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिए वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकविदों एवं हिन्दी भाषा के विशेषज्ञों को मिलकर निरन्तर कार्य करना होगा।
हिन्दी में विज्ञान सम्बन्धी साहित्य का लेखन-कार्य भारतेन्दु काल से प्रारम्भ हो गया था। 19वीं शताब्दी से इस दिशा में यत्र तत्र हुए प्रयास बिखरे हुए मिलते हैं। स्कूल बुक सोसायटी, आगरा (सन् 1847), साइंटिफिक सोसायटी, अलीगढ़ (सन् 1862), काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी (सन् 1898), गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार (सन् 1900) विज्ञान परिषद, इलाहाबाद (सन् 1913), वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली मण्डल (सन् 1950), वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (सन् 1961) आदि ने वैज्ञानिक साहित्य के निर्माण में उल्लेखनीय कार्य किया है । यह जरूर है कि इस वैज्ञानिक-लेखन की भाषिक स्थिति के सम्बन्ध में अपेक्षित विचार सम्भव नहीं हो सका। हिन्दी में जो पुस्तकें वैज्ञानिक विषयों पर उच्चतर माध्यमिक एवं इन्टरमीडिएट कक्षा के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं उनकी संख्या बहुत अधिक है । उनकी भाषा-शैली भी अपेक्षाकृत सहज एवं बोधगम्य है । किन्तु जिन ग्रन्थों का निर्माण ‘‘मानक ग्रन्थ अनुवाद योजना’’ के अंतर्गत किया गया उनकी भाषा-शैली में अपेक्षाकृत अस्पष्टता एवं अस्वाभाविकता है तथा अंग्रेजी के वाक्य-विन्यासों की छाया दिखाई देती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के अनुरूप हिन्दी भाषा के विकास में नए आयाम जोड़ने की आवश्यकता असंदिग्ध है। यह निम्न उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जरूरी हैः
1. सुगम एवं बोधगम्य तकनीकी लेखन की शैली का तीव्र गति से अधिकाधिक विकास होना।
2. जन-सामान्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को सुबोध और सम्प्रेषणीय बनाना।
3. जन-सामान्य में जिज्ञासा, तार्किकता एवं विवेकशीलता की प्रवृत्तियों का स्वाभाविक रूप से विकास करना।
4. उनमें विश्लेषणात्मक चिंतन शक्ति का विकास ।
5. उनमें प्रकृति की प्रक्रियाओं के बोध की दृष्टि उत्पन्न करना।
6. हिन्दी के वैज्ञानिक लेखन को बच्चों और किशोरों के लिए आकर्षक एवं बोधगम्य बनाना।
7. वयस्कों को उस लेखन का ज्ञान सहज ढंग से उपलब्ध कराना।
विद्वानों को वैज्ञानिक लेखन की विषय-वस्तु और उसके प्रस्तुतीकरण, सरलीकरण, मानकीकरण, शैलीकरण आदि पर विचार-विमर्श करना चाहिए। इस सम्बंध में एक स्पष्ट नीति एवं योजना बनाने की आवश्यकता है। इस दृष्टि से मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि हिन्दी के वैज्ञानिक लेखन के प्रसार के लिए भाषा के मानकीकरण की अपेक्षा भाषा के आधुनिकीकरण पर अधिक बल देने की आवश्यकता है।
सूचना प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में हिन्दी की स्थिति पर भी विचार अपेक्षित है। आने वाले समय में वही भाषायें विकसित हो सकेंगी तथा ज़िन्दा रह पायेंगी जिनमें इन्टरनेट पर सूचनायें उपलब्ध होंगी। भाषा वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक भाषाओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आएगी।
(Harrison, K. David. (2007) When Languages Die: The Extinction of the World’s Languages and the Erosion of Human Knowledge. New York and London: Oxford University Press.)
अनुमान है कि वे भाषाएँ ही टिक पायेंगी जिनका व्यवहार अपेक्षाकृत व्यापक क्षेत्र में होगा तथा जो भाषिक प्रौद्योगिकी की दृष्टि से इतनी विकसित हो जायेंगी जिससे इन्टरनेट पर काम करने वाले उपयोगकर्ताओं के लिए उन भाषाओं में उनके प्रयोजन की सामग्री सुलभ होगी।
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान एवं हिन्दी सूचना एवं प्रौद्योगिकी
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने सन् 1990 ईस्वी के बाद से हिन्दी सूचना एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने की दिशा में कारगर कदम उठाने शुरु किए। सन् 1992 में, संकाय संवर्धन कार्यक्रम के अन्तर्गत भाषा प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम और कम्प्यूटर परिचय की कार्यशाला आयोजित हुई। विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी भाषा का कम्प्यूटर साधित अध्ययन एवं शिक्षण परियोजना का कार्य सम्पन्न हुआ। संस्थान ने सन् 2000 में, हिन्दी विश्वकोश की समस्त सामग्री को 6 खण्डों में तैयार करके उसे इन्टरनेट पर डालने की योजना बनाई तथा इसके जीरो वर्जन का विमोचन इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी ने किया। सन् 1991 में, भारत सरकार के तत्कालीन ‘सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ की 'भारतीय भाषाओं में प्रौद्योगिकी विकास' सम्बंधित योजना के अन्तर्गत ‘हिन्दी कॉर्पोरा’ परियोजना का काम आरम्भ हुआ। इस परियोजना के अन्तर्गत विविध विषयों के 3 करोड़ से अधिक शब्दों का संग्रह कर लिया गया है। इसकी टैगिंग के नियमों का निर्धारण सन् 2000 ईस्वी तक हो गया था। समस्त शब्दों की टैगिंग होने से कम्प्यूटर पर हिन्दी में और अधिक सुविधाएँ सुलभ हो जाएँगी।
टैगिंग से मतलब शब्द के केवल अधिकतर समझे जानेवाले वाग् भाग (Part of speech) के निर्धारण से ही नहीं है अपितु भाषा में उसके समस्त प्रयोगो एवं संदर्भित अर्थों के आधार पर उसके समस्त वाग् भागों (संज्ञा , क्रिया , विशेषण , पूर्वसर्ग , सर्वनाम , क्रिया विशेषण , अव्यय, संयोजन , विस्मयादिबोधक) तथा समस्त व्याकरणिक कोटियों (वचन, लिंग, पुरुष, कारक आदि) को स्पष्ट करना है, उसके सहप्रयोगों को स्पष्ट करना है। यदि उसके प्रयोग में संदिग्धार्थकता की सम्भावनाएँ हैं तो उन्हें भी बताना है। उदाहरण के लिए सामान्यतः ‘पत्थर’ शब्द संज्ञा समझा जाता है मगर इसका प्रयोग संज्ञा, क्रिया, विशेषण, अव्यय के रूप में भी होता है। निम्न वाक्यों से यह स्पष्ट हो जाएगा।
1. यह पत्थर बड़ा चमकीलाहै।
2. वह तो बिलकुल ही पथरा गया है।
3. पत्थर दिल नहीं पसीजते।
4. तुम मेरा काम क्या पत्थर करोगे।
इसके अलावा टैगिंग में विवेच्य भाषा में प्रयुक्त उस शब्द के संदर्भित अर्थ प्रयोगो का आवृतिपरक अथवा सांख्यिकीय तकनीक से अध्ययन किया जाता है। मशीनी अनुवाद की सटीकता के लिए गतिशील प्रोग्रामिंग एल्गोरिदम का विकास जरूरी है। कम्प्यूटरीकृत भाषा विश्लेषण के लिए टैगिंग की वह तकनीक अधिक सटीक हो सकती है जहाँ शब्द की टैगिंग न केवल उसके समस्त वाग्भागों की पूरी पूरी जानकारी प्रदान करे, प्रयोगों की आवृति का साख्यिकीय तकनीक से अध्ययन सम्पन्न करे अपितु वाक्य विन्यास और अर्थ विज्ञान के सिद्धांतों के परिप्रेक्ष्य में उसके समस्त प्रयोगो को स्पष्ट करे।
फॉण्ट
यह संतोष का विषय है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने अब धीरे धीरे हिन्दी में अपनी जगह बनानी शुरु कर दी है। आज से एक दशक पहले तक फॉंण्ट की बहुत बड़ी समस्या थी। मुझे याद आ रहा है, मैंने एक लेख कृतिदेव फॉंण्ट में टाइप कराकर एक साइट पर प्रकाशन के लिए भेजा था। जब लेख पढ़ने को मिला तो लेख में जिन शब्दों में ‘श’ वर्ण था उसके स्थान पर ‘ष’ वर्ण छप गया तथा जिन शब्दों में ‘ष’ वर्ण था उसके स्थान पर ‘श’ छप गया। ‘भाषा’ का रूप ‘भाशा’ हो गया। देवनागरी यूनिकोड के कारण अब स्थिति बदल गई है। हिन्दी में देवनागरी में टाइपिंग के लिए अनेक प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। मंगल, रघु, संस्कृत 2003, अपराजिता आदि में से किसी फॉण्ट में टाइप किया जा सकता है। जो हिन्दी टाइपिंग नहीं जानते वे क्विलपैड, गूगल इण्डिक लिप्यन्तरण आदि में से किसी साइट पर जाकर रोमन लिपि में टाइप कर सकते हैं। रोमन वर्ण देवनारी वर्ण में बदल जाएगा अर्थात लिप्यन्तरित(transliterate) हो जाएगा।
ऑपरेटिंग सिस्टम में हिन्दी
विण्डोज के संस्करणों में हिन्दी में काम करने के लिए दो तरीके हैं। कुछ विण्डोज में उसके कंट्रोल पैनल में जाकर हिन्दी समर्थन सक्षम करना होता है जबकि कुछ विण्डोज में हिन्दी भाषा का पैक पहले से इंस्टॉल्ड होता है अर्थात वे हिन्दी के लिए स्वतः समर्थन सक्षम होते हैं। उदाहरण के लिए माइक्रोसॉफ्ट विण्डोज के विण्डोज ऍक्सपी, विण्डोज 2003 में कंट्रोल पैनल में जाकर हिन्दी समर्थन सक्षम करना होता है (इनमें कंट्रोल पैनल में जाकर रीजनल लैंग्वेज ऑप्शन्स में यूनिकोड को एक्टिवेट किया जाता है। हिन्दी (देवनागरी इंस्क्रिप्ट) का चयन करने के बाद कम्प्यूटर पर हिन्दी में वैसे ही काम किया जा सकता है जैसे रोमन लिपि से होता है। विण्डोज विस्ता, विण्डोज 7 में भारतीय भाषाओं के लिए स्वतः समर्थन सक्षम व्यवस्था है। भारतीय भाषाओं को ध्यान में रखकर सी-डेक ने बॉस लिनक्स निर्मित किया है। लिनक्स के सभी नए संस्करणों का ऑपरेटिंग सिस्टम हिन्दी भाषा में काम करने के लिए स्वतः समर्थन सक्षम है।
फॉंण्ट परिवर्तक एवं लिप्यन्तरण
मेरे बहुत से लेख कृतिदेव फॉंण्ट में हैं। अब इस फॉंण्ट की सामग्री को फॉंण्ट परिवर्तक साइट पर जाकर यूनिकोड में बदलना आसान हो गया है। फॉण्ट परिवर्तक की कई साइटें हैं जिन पर जाकर पुराने फॉण्टों में टाइप की हुई पाठ सामग्री को यूनिकोड में बदला जा सकता है। लिप्यन्तरण के औजारों से किसी एक भारतीय भाषा की लिपि में टाइप सामग्री को किसी अन्य भारतीय भाषा की लिपि में ऑनलाइन बदलकर पढ़ा जा सकता है।
शब्दकोश
अब हिन्दी में प्रत्येक प्रकार के शब्दकोश उपलब्ध हैं। हिन्दी शब्द तंत्र, शब्दमाला, विक्षनरी, ई-महाशब्दकोश, वर्धा हिन्दी शब्दकोश के अलावा हिन्दी विश्वकोश, हिन्दी यूनिकोड पाठ संग्रह, अरविंद समान्तर कोश आदि हैं।‘प्रबोधमहाशब्दकोश‘ के बाद नया महाशब्दकोश विकसित करने का काम प्रगति पर है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने श्री अरविन्द कुमार और उनकी पत्नी श्रीमती कुसुम कुमार से ’संस्थान अरविंद लेक्सीकॉन‘ बनवाया है जिसमें नौ लाख से अधिक अभिव्यक्तियाँ हैं।
वर्तनी की जाँच (स्पैल चैकर), ईमेल, मोबाइल, चेट, सर्च इंजन
वर्तनी की जाँच (स्पैल चैकर) के लिए ‘कुशल हिन्दी वर्तनी जाँचक’, ‘सक्षम हिन्दी वर्तनी परीश्रक’ तथा ‘ओपन सोर्स यूनिकोड वर्तनी परीक्षक तथा शोधक’ हैं। ईमेल, मोबाइल, चेट, सर्च इंजन आदि पर हिन्दी उपलब्ध है। ईमेल के लिए जीमेल मे हिन्दी की सुविधा सबसे अधिक हैं। निर्देश भी हिन्दी में हैं। चेट के लिए गूगल टॉक एवं याहू मैसेंजर में हिन्दी सुविधा है।
सी-डेक एवं राजभाषा के लिए सुविधाएँ
हम पूर्व में, एक अलग लेख में, पुणें की सी-डेक के द्वारा राजभाषा विभाग के लिए प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की परीक्षाओं के लिए कम्प्यूटर की सहायता से मल्टी मीडिया पद्धति से प्रशिक्षण सामग्री के निर्माण के सम्बंध में उल्लेख कर चुके हैं।प्रशिक्षण सामग्री का नाम लीला हिन्दी प्रबोध, लीला हिन्दी प्रवीण, लीला हिन्दी प्राज्ञ है। यह सामग्री भारत सरकार के राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर सर्व साधारण के उपयोग के लिए उपलब्ध है। इस संस्था ने अन्य काम भी किए हैं। इसके द्वारा निर्मित 'मंत्र' सॉफ़्टवेयर में अनुवाद की सुविधा है। हिंदी पाठ की किसी भी फाइल को 'प्रवाचक' हरीश भिमानी की आवाज़ मे पढ़कर सुना देता है। ‘श्रुतलेखन’ आपकी आवाज में बोले हुए पाठ को देवनागरी में रूपांतरित कर देता है। इस प्रकार राजभाषा हिन्दी के लिए अब पाठ से वाक (टैक्स्ट टू स्पीच) तथा वाक से पाठ (स्पीच टू टैक्स्ट) दोनों सुविधाएँ मौजूद हैं। श्रुतलेखन-राजभाषा तथा वाचान्तर-राजभाषा सॉफ्टवेयर बन गए हैं।
मशीनी अनुवाद, ओसीआर, हिन्दी भाषा शिक्षण, देवनागरी शिक्षण
मशीनी अनुवाद की सुविधा गूगल, बैबीलॉन, विकिभाषा पर उपलब्ध है। हम पहले उल्लेख कर चुके हैं कि सी-डेक ने भारत सरकार के कार्यालयों में राजभाषा के प्रयोग के लिए अंग्रेजी पाठ का हिन्दी में अनुवाद के लिए मशीनी अनुवाद की व्यवस्था कर दी है। इसके लिए ‘मंत्र-राजभाषा’ सॉफ़्टवेयर निर्मित हो गया है।
मशीनी अनुवाद को सक्षम बनाने के लिए यह जरूरी है कि इन्टरनेट पर प्रत्येक विषय की सामग्री उपलब्ध हो। मशीनी अनुवाद सूचना निष्कर्षण ( Information Extraction) पद्धति पर आधारित होता है अर्थात मशीन किसी भाषा में जो डॉटा उपलब्ध होता है उसे याद कर लेती है और उस स्मृति क्षमता के आधार पर अनुवाद करती है। उसे जिस भाषा की जितनी अधिक सामग्री मिलती जाती है वह उस भाषा में अनुवाद करने के अपने मॉडल को उसी अनुपात में बदलती जाती है। सीखने एवं याद करने की प्रक्रिया सतत जारी रहती है। इस कारण जिस भाषा की जितनी सामग्री इन्टरनेट पर उपलब्ध होगी, उस भाषा का मशीनी अनुवाद उतना ही प्रभावी और सक्षम होगा।
देवनागरी वर्ण चिन्हक ( OCR) बन गया है। हिन्दी के पाठ में शब्दों की आवृति के लिए पहले शोधक वर्षों मेहनत करके हजारों लाखों चिटें बनाने का श्रम करते थे। अब सॉफ्टवेयर इस काम को बहुत कम समय में सहज सम्पन्न कर देता है। हिन्दी भाषा सीखने के लिए ‘हिन्दी गुरु’ है तथा देवनागरी लिपि सीखने के लिए ‘अच्छा’ है। देवनागरी में लिखे शब्दों अथवा शब्द समूहों को देवनागरी वर्ण-क्रम के अनुसार व्यवस्थित करने का ऑनलाइन प्रोग्राम मौजूद है। पाठ को तरह तरह से संसाधित करने के ऑनलाइन प्रोग्राम भी मौजूद हैं।
शब्द संसाधन एवं डाटाबेस प्रबंधन
देवनागरी में लिखे शब्दों अथवा शब्द समूहों को देवनागरी वर्ण-क्रम के अनुसार व्यवस्थित करने के ऑनलाइन प्रोग्राम मौजूद है। पाठ को तरह तरह से संसाधित करने के ऑनलाइन प्रोग्राम भी मौजूद हैं।
प्रकाशन, वेबसाइट, ज्ञानकोष
डीटीपी प्रकाशन के लिए माइक्रोसॉफ्ट पब्लिशर अच्छा है। प्रकाशन सॉफ्टवेयर पैकेज उपलब्ध हैं। हिन्दी में वेबसाइट बनाना आसान हो गया है। वेबदुनिया, जागरण, प्रभासाक्षी और बीबीसी हिंदी के दैनिक पाठकों की संख्या बीस लाख से अधिक हो गई है। श्री आदित्य चौधरी ने विकीपीडिया की तरह ’भारतकोष‘ नामक पॉर्टल बनाया है। इसमें इतिहास, भूगोल, विज्ञान, धर्म, दर्शन, संस्कृति, पर्यटन, साहित्य, कला, राजनीति, जीवनी, उद्योग, व्यापार और खेल आदि विषयों पर पर्याप्त सामग्री है। जो काम महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को करना चाहिए था उसे भारतकोश की टीम कर रही है।
सूचना प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में हिन्दी की प्रगति एवं विकास
सूचना प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में हिन्दी की प्रगति एवं विकास के लिए मैं एक बात की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। व्यापार, तकनीकी और चिकित्सा आदि क्षेत्रों की अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने माल की बिक्री के लिए सम्बंधित सॉफ्टवेयर ग्रीक, अरबी, चीनी सहित संसार की लगभग 30 से अधिक भाषाओं में बनाती हैं मगर वे हिन्दी भाषा का पैक नहीं बनाती। उनके प्रबंधक इसका कारण यह बताते हैं कि हम यह अनुभव करते हैं कि हमारी कम्पनी को हिन्दी के लिए भाषा पैक की जरूरत नहीं है। हमारे प्रतिनिधि भारतीय ग्राहकों से अंग्रेजी में आराम से बात कर लेते हैं अथवा हमारे भारतीय ग्राहक अंग्रेजी में ही बात करना पसंद करते हैं। यह स्थिति कुछ उसी प्रकार की है जैसी मैं तब अनुभव करता था जब मैं रोमानिया के बुकारेस्त विश्वविद्यालय में हिन्दी का विजिटिंग प्रोफेसर था। मेरी कक्षा के हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थी बड़े चाव से भारतीय राजदूतावास जाते थे मगर वहाँ उनको हिन्दी नहीं अपितु अंग्रेजी सुनने को मिलती थी। हमने अंग्रेजी को इतना ओढ़ लिया है जिसके कारण न केवल हिन्दी का अपितु समस्त भारतीय भाषाओं का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है। जो कम्पनी ग्रीक एवं अरबी में सॉफ्टवेयर बना रही हैं वे हिन्दी में सॉफ्टवेयर केवल इस कारण नहीं बनाती क्योंकि उसके प्रबंधकों को पता है कि भारतीय उच्च वर्ग अंग्रेजी मोह से ग्रसित है। इसके कारण भारतीय भाषाओं में जो सॉफ्टवेयर स्वाभाविक ढंग से सहज बन जाते, वे नहीं बन रहे हैं। भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी पिछड़ रही है। इस मानसिकता में जिस गति से बदलाव आएगा उसी गति से हमारी भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी का भी विकास होगा। हम हिन्दी के संदर्भ में, इस बात को दोहराना चाहते हैं कि हिन्दी में काम करने वालों को अधिक से अधिक सामग्री इन्टरनेट पर डालनी चाहिए। हमने मशीनी अनुवाद के संदर्भ में, यह निवेदित किया था कि मशीनी अनुवाद को सक्षम बनाने के लिए यह जरूरी है कि इन्टरनेट पर हिन्दी में प्रत्येक विषय की सामग्री उपलब्ध हो। यह हिन्दी की भाषिक प्रौद्योगिकी के विकास के व्यापक संदर्भ में भी उतनी ही सत्य है। जब प्रयोक्ता को हिन्दी में डॉटा उपलब्ध होगा तो उसकी अंग्रेजी के प्रति निर्भरता में कमी आएगी तथा अंग्रेजी के प्रति हमारे उच्च वर्ग की अंध भक्ति में भी कमी आएगी।
वर्तमान की स्थिति भले ही उत्साहवर्धक न हो किन्तु हिन्दी प्रौद्योगिकी का भविष्य निराशाजनक नहीं है। हिन्दी की प्रगति एवं विकास को अब कोई ताकत रोक नहीं पाएगी। वर्तमान में, कम्प्यूटरों के कीबोर्ड रोमन वर्णों में हैं तथा उनका विकास अंग्रजी भाषा को ध्यान में रखकर किया गया है। आम आदमी को इसी कारण कम्प्यूटर पर अंग्रेजी अथवा रोमन लिपि में काम करने में सुविधा का अनुभव होता है। निकट भविष्य में कम्प्यूटर संसार की लगभग तीस चालीस भाषाओं के लिखित पाठ को भाषा में बोलकर सुना देगा तथा उन भाषाओं के प्रयोक्ता की भाषा को सुनकर उसे लिखित पाठ में बदल देगा। ऐसी स्थिति में, कम्प्यूटर पर काम करने में भाषा की कोई बाधा नहीं रह जाएगी। एक भाषा के पाठ को मशीनी अनुवाद से दूसरी भाषा में भी बदला जा सकेगा, उन भाषाओं में परस्पर वाक से पाठ तथा पाठ से वाक में अंतरण बहुत सहज हो जाएगा। भाषा विशेष के ज्ञान का रुतबा समाप्त हो जाएगा।
इस दिशा में प्रक्रिया को तेज बनाने के लिए यह उचित होगा कि भारतीय सॉफ्टवेयरों का निर्माण करने वाले उपक्रम तथा संगठन गूगल जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ मिलकर काम करें। भारतीय जनमानस में जागरूकता की रफ्तार को बढ़ाने की भी जरूरत हैं। कितने आम भारतीय हैं जिन्हें सी-डेक जैसे संगठनों तथा उनके द्वारा निर्मित सॉफ्टवेयरों का ज्ञान है। कितने हिन्दी प्रेमी हैं जो हिन्दी प्रौद्योगिकी के सॉफ्टवेयरों से अनजान हैं। उनको यह ज्ञान भी नहीं है कि यूनिकोड में हिन्दी में काम करना कितना आसान और सुगम है।
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प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
123, हरि एन्कलेव, बुलन्द शहर
प्रयोजनमूलक हिन्दी का मतलब अपनी हिन्दी भाषा को भी कमाई-धमाई के योग्य बनाना। हिन्दी भाषा को प्रयोग एवं प्रयुक्तियों की दृष्टि से इस कदर कुशलतापूर्वक मांजना की देश-काल-परिवेश के सभी उन्नत काम इसमें सुगमतापूर्वक किए जा सके और उन्हें उचित ज्ञान और मार्गदर्शन द्वारा इस कदर अभिव्यक्ति-सक्षम बनाया जा सके कि वह आई.ए.रिचर्डस से भी दोस्ती गांठ ले, तो नोम-चाॅमस्की के साथ भी हंस-बोल बतिया ले। सर्वाधिक महत्तवपूर्ण यह कि जो अपनी दुनिया(हिन्दीपट्टी) के लोगों को अपनी भाषा में बोलने-समझने-जानने के कारण तौहीनी या शर्म से बचा लें; वह चेतन-शक्ति प्रयोजनमूलक हिन्दी है। इस बारे में महावीर सरन जैन जी ने विस्तारपूर्वक पूर्ण मनोयोग से लिखा है। वे मेरी व्यक्तिगत पीड़ा भी जानते हैं।
जवाब देंहटाएंसन् 2012 में बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने मुझे साक्षात्कार में इसलिए नहीं बुलाया कि मैंने प्रयोजनमूलक हिन्दी में परास्नातक सर्वोच्च अंक के साथ उत्तीर्ण किया है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा मैंने ‘जनसंचार एवं पत्रकारिता’ विषय से उत्तीर्ण की है। दुर्भाग्य यह कि अकादमिक खूसट हम विद्यार्थियों को कोई मौका ही देना नहीं चाहते। वे डरते हैं कि इससे उनकी यह कहने की ताकत, बल और त्वरा कम पड़ जाएगी कि हिन्दी एक पिछड़ी हुई भाषा है जिसमें सृजनात्मक ज्ञान और नवोन्मेष संभव नहीं है। यदि आप को काई शक-सुबहा हो, तो ऐसे ज़हीनदार लोगों का नाम बता दूं।
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राजीव रंजन प्रसाद; वरिष्ठ शोध अध्येता(जनसंचार एवं पत्रकारिता); प्रयोजनमूलक हिन्दी; काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-221005
प्रयोजनमूलक हिंदी को अंग्रेजी से टक्कर लेनी चाहि चाहिए। रचनात्मक और सृजनात्मक क्षेत्रों में जैसी अंग्रेजी अपनी धाक जमा चुकी है उससे बेहतर कार्य हिंदी को करना चाहिए इसके लिए हमें हिंदी के प्रयोजनमूलक स्वरूप को और समृद्ध करना चाहिए
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