खबरों का खिलाड़ी अनामिका का प्रेम रूहानी था। अविनाश साथ हो या न हो, अनामिका हमेशा महसूस करती कि अविनाश उसके साथ है। अविनाश भी अनामिका से द...
खबरों का खिलाड़ी
अनामिका का प्रेम रूहानी था। अविनाश साथ हो या न हो, अनामिका हमेशा महसूस करती कि अविनाश उसके साथ है। अविनाश भी अनामिका से दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता था। पर दोनों की अभी शादी नहीं हुई थी, सो अलग-अलग रहना ही था।
अविनाश तीन साल से एक स्थानीय अखबार का ब्यूरो चीफ बना हुआ था। कमाई-धमाई भी अच्छी खासी हो जाती थी। लिहाजा गृहस्थी की गाड़ी खिंचने को अविनाश मानसिक तौर पर तैयार हो चुका था इसलिए उसने अनामिका को एक दिन प्रोपोज कर दिया। अनामिका ने सहर्ष स्वीकार कर लिया लेकिन अपने मम्मी-डैडी से अविनाश को मिल कर बात करने को कही। अविनाश रविवार को अनामिका के घर पहुंच गया, अनामिका अपने मम्मी-डैडी को पहले से ही अविनाश के संबंध में सब कुछ बता रखी थी, सो बात शुरू करने में अविनाश को ज्यादा परेशानी नहीं हुई। घर, खानदान, नौकरी आदि पर अविनाश से पूछताछ करने के बाद अनामिका के डैडी संतुष्ट हो गए और शादी के लिए तैयार हो गए।
जल्द ही अनामिका की अविनाश के साथ शादी हो गयी। एक कमरे में रहने का अभ्यस्त अविनाश अब एक दो-कमरे का घर किराये पर ले लिया। दोनों की गृहस्थी चलने लगी। अविनाश और अनामिका हनीमून के लिए शिमला चले गए, एक महीना दोनों ने दो बदन एक जान की तरह बिताया। हनीमून से लौटने के बाद अविनाश अपनी पुरानी दिनचर्या में लौट आया। अनामिका शुरू-शुरू में तो चुप ही रही लेकिन जब अविनाश हर दूसरे-तीसरे दिन पार्टी-शार्टी करके रात देर से आता तो पीए हुए होता, आकर बिस्तर पर कपड़े-जुते पहने ही निढ़ाल हो जाता। अनामिका क्या करती झक मार कर उसके जूते खोलती, लटकते पांव को उपर पंलग पर चढ़ाती, लिहाफ ओढ़ाती और फिर बगल में लेटते हुए सोचने लगती क्या यह वही अविनाश है जो मुझसे बामुश्किल ही दूर रहता था।
सुबह अविनाश चाय का प्याला हाथों में लिए अखबार उलटतर-पलटता बीच-बीच में कनखियों से रसोई में व्यस्त अनामिका को देखता भी रहता और झेंप मिटाने की गरज से कहता, अनु तुम मेरे रात के व्यवहार पर बुरा तो नहीं मान गयी ? अनामिका कुछ देर चुप रहती फिर कहती, अविनाश तुम वही हो न ? जो शादी से पहले एक पल भी हमसे दूर नहीं रह सकते थे।
अविनाश झेंप सा जाता, हां-हां, अनु मैं वहीं हूँ। सिर्फ काम का बोझ ज्यादा होने के कारण.मैं.......
रहने दो अविनाश, अनामिका बीच में ही बोल पड़ती, अगर सिर्फ काम का ही बोझ होता तो तुम हर दो-एक दिन में रात को ड्रिंक करके नहीं आते ?
अरे, तुम तो राजेश और राकेश को जानती ही हो, अविनाश कहता, हर दो-एक दिन में साले न जाने कहां से बोतल उठा लाते हैं ? सभी न्यूज मेल करने के बाद बस खुल जाती है बोतल, वैसे में मेरे नहीं चाहने पर भी दो-एक पैग हो ही जाता है, तुम्हीं बताओ इसमें मेरा क्या कसूर है ?
ये सब तो 'पीने वाले को पीने का बहाना चाहिए' वाली दलीलें हैं, अनामिका बड़ी गंभीरता से अविनाश को कहती।
बहस के पचड़े में पड़ना अविनाश अपनी सेहत के लिए ठीक नहीं समझता इसलिए वह जल्दी-जल्दी बची चाय को एक ही सांस में गटक कर गुसलखाने को दौड़ पड़ता और थोड़ी ही देर में नहा-धोकर डायनिंग टेबल पर आ धमकता, अनामिका की लायी हुई डायनिंग टेबल उसे बहुत पंसद थी, नाश्ता आने तक वह मुंह से सीटी बजाकर कोई चलताउ गाना की धनु बजाता रहता और डायनिंग टेबल को तबले की तरह पिटता रहता और नाश्ता आते ही उस पर टूट पड़ता। नाश्ता करने के बाद अविनाश अपने घर के ही बाहरी कमरे में बैठता और दो-चार जगहों पर फोन करता, कुछ जरूरी लेखों को अपने लैपटॉप पर प्रुफ-ब्रुफ करता, उसे अपने अखबार के मेल पर डालता, तब तक अनामिका अपने सारे काम-काज निपटा कर अविनाश के पास आ बैठती। अविनाश को बेबाकी के साथ फोन पर बात करने या फिर लैपटॉप पर काम करने में अनामिका की उपस्थिति खटकती क्योंकि वह अनामिका के उपस्थिति में अपना ध्यान कामों में केन्द्रीत नहीं कर पाता।
अरे अनु, तुमने पूजा-पाठ नहीं किया अभी तक, अविनाश पूछता।
पूजा-पाठ मैं कर चुकी, अनामिका दो टूक जवाब देती और उठ कर जाने लगती, उसे समझते देर नहीं लगती कि अविनाश को उसकी उपस्थिति खल रही है।
दोपहर के खाने का वक्त हो जाता, अविनाश और अनामिका खाना साथ ही खाते और फिर अविनाश दफ्तर की ओर रवाना हो जाता। यही दिनचर्या थी अविनाश और अनामिका की।
आज अविनाश फिर पी कर आया था लेकिन आकर बिस्तर पर निढ़ाल नहीं हुआ बल्कि आकर सोफे पर बैठ गया। अनामिका उसे पीए हुए देखकर कुछ कहती कि अविनाश ने कहा, अब ये गुस्सा-उस्सा थूको, यहां हमारे बगल में आकर चुपचाप बैठ जाओ। अनामिका बगल में जाकर चुपचाप बैठ गयी। अविनाश ने कहा, एक कप चाय बना लाओ और हमारे जूते खोलो।
अनामिका सन्न रह गयी और सोचने लगी, यह अचानक अविनाश को क्या हो गया है जो ऐसा बर्ताव हमारे साथ कर रहा है लेकिन अनामिका ने कुछ नहीं कहा चुपचाप उठ कर चाय बनाने चली गयी। पीने के बाद अविनाश चाय क्या पीता, वो तो रखी-रखी ठंढी हो गयी, अविनाश सोफे पर ही लुढ़क गया। अनामिका ने वही किया, जूते खोली, पांव को सोफे पर लंबा कर दिया और गिलाफ उढ़ा दिया और अपने कमरे में आकर बहुत देर तक रोती रही, न जाने कब उसकी आंखें लग गयी, आंख खुली तो सुबह हो चुकी थी।
अविनाश की नींद खुली तो उसने खुद को सोफे पर पाया, उसे गुस्सा आ गया, वह उठा और सीधा रसोई की ओर गया जहां अनामिका चाय बनाने की तैयारी कर रही थी। अविनाश ने सीधा अनामिका पर तोहमत लगाते हुए कहा, तुमने मुझे सोफे पर ही छोड़ दिया और खुद बिस्तर पर पसर गयी।
अनामिका को भी गुस्सा आ गया, उसने कहा, अविनाश तुमने घर को यातना-घर बना दिया है।
तो क्या हमने तुम्हें प्यार नहीं किया, तुम्हें सारी सुविधाएं नहीं दी, तुम्हारे ऊपर कीमती गहने और कपड़े निछाावर नहीं किए ? अविनाश एक ही सांस में बोलता गया।
हां-हां, ठीक है कि ये सब तुमने मेरे लिए किया पर तुमने तो मुझे सिर्फ इस्तेमाल ही किया है, अनामिका चाय का प्याला टेबल पर रखती हुई बोली। तुम्हें एक नौकरानी की जरूरत थी जो तुम्हारा चूल्हा-चौका करे, घर की देखभाल करे और तुम्हारी सेवा करे, अनामिका तैश में बोलती चली गयी।
अरे संबंध का अर्थ ही यही होता है, अविनाश ने तर्क दिए। हम एक-दूसरे का भावनात्मक और भौतिक इस्तेमाल करते ही हैं। इसमें तुम नौकरानी कैसे हो गयी ? अविनाश ने प्रश्न दागे। मैं जो गधे की तरह दिन रात लगा रहता हूँ, खून-पसीना एक करता हूँ, आने वाले दिनों के लिए इंतजाम करता हूँ, तुम्हारे लिए अपनी जिंदगी हलकान कर रहा हूँ और तुम ? तुम कहती हो कि मुझे नौकरानी की जरूरत थी।
अनामिका इसका जवाब देती, उससे पहले ही अविनाश गुसलखाने की ओर चल दिया, लौटकर नाश्ता किया और जल्द ही घर से निकल पड़ा।
अनामिका अविनाश के जाने के बाद बड़ी शिद्दत से सोचने लगी थी कि अगर पुरुष का प्यार पाना हो तो शादी नहीं करनी चाहिए। शादी के पहले कैसे काम छोड़-छाड़ कर अविनाश उसके पीछे-पीछे घूमा करता था, एक पल भी मुझसे दूर नहीं रह सकता था लेकिन आज शादी के अभी साल भर भी नहीं हुए है और अभी से ही अविनाश विरक्त की तरह व्यवहार कर रहा है। पत्नी बनने के बाद अनामिका को अविनाश पर आर्थिक और सामाजिक रूप से निर्भर होना, उसे स्त्री होने की व्यर्थता और खोखलेपन का एहसास करा रही थी, वहीं संबंधों के झूठे पड़ते जाने का दंश भी वो झेल रही थी।
अनामिका ने भी फैसला कर लिया था कि अब वह घर बैठ कर अपनी जिंदगी नहीं बिताएगी। अनामिका महिलाओं के उत्थान और जागरण के लिए काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था 'महिला चेतना मंच' ज्वाइन कर लिया था।
अविनाश जैसे खबरों के खिलाड़ी के लिए पीना एक निहायत जरूरी शर्त थी लिहाजा अविनाश का पीना जारी था और अनामिका दूसरे के घरों को सुधारने निकल पड़ी थी। किसी ने ठीक ही कहा है कि जब लोग दुखी होते है तो नैतिक हो जाते है।
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंडा
गिरिडीह-815301 झारखंड
वर्तमान समय की हकीकत की पृष्ठभूमि पर कहानी का बहुत सुंदर ताना बाना बुना है ..... हार्दिक बधाई ...
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