रामवृक्ष सिंह का आलेख - अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी सीखने के खतरे

SHARE:

आलेख अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी सीखने के खतरे डॉ. रामवृक्ष सिंह आज़ादी के समय भारत में कुल 1652 भाषाएँ थीं। विभिन्न कारणों से इन भाषाओं क...

आलेख

अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी सीखने के खतरे

डॉ. रामवृक्ष सिंह

आज़ादी के समय भारत में कुल 1652 भाषाएँ थीं। विभिन्न कारणों से इन भाषाओं की संख्या निरन्तर कम होती चली गई है और अब देश में लगभग सौ भाषाओं के अस्तित्व में रह जाने की बात की जा रही है। इनमें से 22 भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। इन 22 भाषाओं में अंग्रेजी कहीं भी नहीं है। संविधान की आठवीं अनुसूची में कहीं न होकर भी अंग्रेजी हमारे देश में आज हर जगह है। लॉर्ड मैकॉले को बधाई हो। आप अपनी कुचाल में सफल रहे, सर।

बाज़ार-आधारित मुक्त अर्थ-व्यवस्था में कोई भी पण्य, जिन्स अथवा सेवा अपनी गुणवत्ता और आर्थिक मूल्यवत्ता आदि के दम पर कायम रहती है। नैतिकता, सांस्कृतिक मूल्य, भाषा आदि के मसले भी इससे अछूते नहीं हैं। इस देश का आम नागरिक अपनी-अपनी भाषा का जानकार होते हुए भी, उससे अनभिज्ञता दर्शाने और अंग्रेजी में पूर्णतया पारंगत न होते हुए भी उससे अनुराग बढ़ाने में गुरेज़ नहीं करता, तो इसका एक कारण यह भी है कि अंग्रेजी आज बाज़ार की भाषा है। अंग्रेजी की जानकारी हो जाने पर आप कंप्यूटर अच्छे से चला सकते हैं, मोबाइल और अन्य बहुत-से यंत्रों के कुंजी-पटल को संचालित करने की योग्यता आप में आ जाती है। हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साथ यह सुविधा नहीं है। अंग्रेजी में केवल 26 अक्षर हैं, जबकि देवनागरी में उसके दुगने से भी अधिक। अंग्रेजी में मात्राएँ नहीं होतीं, इसलिए उसके संक्षेपाक्षर एवं परिवर्णी शब्द बनाना आसान है, देवनागरी में यह असंभव नहीं, किन्तु दुष्कर तो है ही। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अंग्रेजी फैशन में है। हिन्दी आउट ऑफ फैशन है। जिस संस्कृत को हम दुनिया की सबसे वैज्ञानिक एवं कंप्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा स्वीकार कर चुके हैं, उसके व्यवहर्ता आज इस देश में केवल 14000 रह गए हैं। यानी संस्कृत तो अब विलोपन के कगार पर है। बनैले जानवरों को लुप्त होने से बचाने के लिए हमारी सरकारें अपनी पूरी ताकत झोंक देती हैं। आशा है कि इस देश की मनीषा की धरोहर- संस्कृत को बचाने के लिए भी गंभीर प्रयास किए जा रहे होंगे।

फ़ैशन में होने और वर्तमान यंत्र-प्रधान वातावरण में काम करने के लिए अधिक अनुकूल होने के कारण आज देश के प्रायः सभी राज्यों और सरकारी तथा निजी, हर प्रकार की प्राथमिक शालाओं में राज्य की प्रतिनिधि भाषा के साथ-साथ, अंग्रेजी के भी शिक्षण की व्यवस्था की गई है। राज्य की प्रतिनिधि भाषा इसलिए कहा जा रहा है कि अकसर बच्चों की मातृभाषा (मातृ-बोली) अलग होती है और प्रान्त की भाषा अलग। उदाहरण के लिए मेरी मातृभाषा (या बोली) भोजपुरी है, किन्तु मेरे प्रान्त की भाषा हिन्दी है। मेरी ग्राम्या माँ मुझसे भोजपुरी में बात करती है, मैंने शुरुआती भाषा-ज्ञान माँ से पाया और वह भोजपुरी का ही था। बाद में जब मैं पढ़ने गया तो हिन्दी से परिचय हुआ। और यकीन जानिये, वह हिन्दी भी किसी अंग्रेजी से कम नहीं थी- उतनी ही अपरिचित, उतनी ही दुरूह, उतनी ही बेगानी।

हिन्दीतर भाषी प्रान्तों में बच्चे पहले अपनी प्रान्तीय भाषा सीखते हैं, फिर अंग्रेजी और उसके बाद यदि उनके स्कूल में प्रावधान हुआ तो हिन्दी। इन स्कूलों में हिन्दी सीखने का माध्यम बच्चों की स्व-भाषा, प्रान्तीय भाषा नहीं, बल्कि अंग्रेजी होती है। ‘हिन्दी को बुधुआ की लुगाई न बनने दें’ शीर्षक मेरे लेख पर प्रतिक्रिया करते हुए छत्तीसगढ़ से तेलुगु-भाषी (हाँ वे तेलुगु-भाषी हैं, पर छत्तीसगढ़ में रहते हैं) श्री रंगराज अयंगार ने लिखा कि हिन्दीतर भाषी रोमन में लिखित हिन्दी सीखेंगे तो उन्हें सुविधा होगी। इस प्रपत्ति में एक जोखिम अन्तर्निहित है। भारत के हिन्दीतर भाषी जन-समुदाय को रोमन के माध्यम से हिन्दी सिखाने के लिए पहली पूर्वापेक्षा यह होगी कि वे पहले अंग्रेजी सीखें और उसकी बारीकियों को भी पकड़ें। सतही ज्ञान से काम नहीं चलने वाला। a का उच्चारण अ, आ, ए, ऐ में से क्या होगा, यह वे कैसे जानेंगे? Hou का उच्चारण क्या होगा- हाउ (जैसे हाउस में) या ऑ (जैसे ऑनर में) या आ (जैसे आ’र- an hour में)? C का उच्चार क होगा (जैसे कैट में) या स (जैसे सिरील- cereal) में? d का उच्चारण द होगा या ड। अंग्रेजी के हर अक्षर के साथ यही दुविधा है। आप रोमन वर्णमाला के माध्यम से देवनागरी एवं अन्य भारतीय लिपियों के अक्षरों का अंकन कैसे करेंगे? और यह व्यायाम करने की ज़रूरत क्या है? भाषा हमारे जीवन के विभिन्न कार्य-व्यापारों के संचालन-संपादन का एक माध्यम मात्र है। क्या हम अपने देश के आम नागरिकों से यह उम्मीद करें कि वे अपना अमूल्य जीवन किसी अन्य काम में न लगाकर, बस भाषा की बारीकियाँ सीखने में ही सर्फ़ कर दें?

माननीय श्री रंगराज अयंगार से फोन पर बात करके मैंने उनसे विनम्रता पूर्वक पूछा कि श्रीमन् आपकी मातृभाषा क्या है? वे बोले –तेलुगु। इसके बाद मैंने उनसे तेलुगु में ही बात की और तेलुगु तथा हिन्दी की वर्णमाला की एकरूपता की ओर उनका ध्यान दिलाया। तेलुगु और हिन्दी के स्वर तथा व्यंजन बिलकुल एक जैसे हैं। केवल लिपि का अंतर है। अलबत्ता तेलुगु में ए और ऐ के मध्य एक और स्वर है। इस प्रकार उसकी स्वन-व्यवस्था और लिपि-वैविध्य हिन्दी-देवनागरी से भी अधिक समृद्धता लिए हुए है। इसलिए यदि किसी तेलुगु-भाषी को हिन्दी सीखनी हो तो बेहतर होगा कि वह तेलुगु से सीधे-सीधे हिन्दी सीखे, न कि पहले अंग्रेजी सीखे और फिर अंग्रेजी के माध्यम से हिन्दी। यह तो ऐसे ही हुआ कि जैसे किसी को विजयवाड़ा से चेन्नै जाना हो तो पहले वह फ्लाइट से दिल्ली आए और फिर दिल्ली से चेन्नै की फ्लाइट लेकर चेन्नै पहुँचे। क्या यह बेहतर नहीं होता कि वह विजयवाड़ा से सीधे चेन्नै ही चला जाए? यदि फ्लाइट न हो तो ट्रेन से ही सही। इसमें धन, समय, प्रयास, परिश्रम- हर संसाधन की बचत होगी। हाँ, ऐसे व्यक्ति का तो कुछ नहीं किया जा सकता, जो दुराग्रही है और दिल्ली के रास्ते ही चेन्नै जाने पर आमादा है।

वैसे भी, हिन्दी एवं हिन्दीतर भारतीय भाषाओं की वाक्य-रचना में विभिन्न व्याकरणिक अवयवों की अवस्थिति एक-जैसी होती है, जबकि अंग्रेजी वाक्य-रचना का स्वरूप बिलकुल अलग होता है। नीचे के उदाहरण में किए गए वाक्य-विश्लेषण से इस बात को समझा जा सकता है।

भाषा

कर्ता

कर्म

क्रिया

हिन्दी

मैं

कविता

लिखता हूँ।

तेलुगु

नेनु

कवित्वं

व्रासिस्तानु।

बांग्ला

आमी

कविता

निखेची।

गुजराती

हूँ

कविता

लिक्खूं सूं।

पंजाबी

मैं

कविता

लिखदां हां।

अंग्रेजी

आइ

पोएट्री/पोएम

राइट

(भारतीय भाषाओं का सापेक्षा अंग्रेजी वाक्य के पद-क्रम का व्यतिक्रम यहाँ साफ दिख रहा है।)

संविधान की आठवीं अनुसूची में परिगणित कतिपय भाषाओं से लिए गए उक्त उदाहरणों से स्वतः स्पष्ट है कि अपनी-अपनी प्रान्तीय भाषाओं से हिन्दी सीखना हम हिन्दुस्तानियों के लिए बहुत आसान रहेगा, बनिस्बत इसके कि हम पहले अंग्रेजी सीखें और उसके बाद तीसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी के माध्यम से हिन्दी सीखें।

गोरखपुर के आदरणीय शिक्षक (अवकाश-प्राप्त) श्री शेषनाथ प्रसाद ने मेरा ज्ञान-वर्द्धन करते हुए, मेरे उपर्युक्त लेख पर प्रतिक्रिया दी है, जिसमें उन्होंने बताया है कि श्री सुनीति कुमार चाटुर्ज्या ने बहुत पहले रोमन में हिन्दी लिखने की हिमायत की थी। परम आदरणीय मास्टरजी के प्रति प्रणाम निवेदित करते हुए मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि हिन्दी साहित्य का समर्पित विद्यार्थी होने के नाते डॉ. चाटुर्ज्या की पुस्तक ‘भारतीय आर्य-भाषा और हिन्दी’ पढ़ने का सौभाग्य मुझे भी मिला है और मैंने जान-बूझकर अपने संदर्भाधीन आलेख में डॉ. चाटुर्ज्या की स्थापनाओं का उल्लेख नहीं किया है। गुरुजी, यदि पढ़ा-लिखा नहीं होता तो मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.ए. हिन्दी ऑनर्स, एम.ए. हिन्दी और तदुपरान्त एम.फिल. में टॉप नहीं कर पाता। बिना पढ़े-लिखे मुझे भारतीय स्टेट बैंक में महाप्रबन्धक (राजभाषा) का पद नहीं मिल गया होता। तथापि मेरी ज्ञान-पिपासा सर्व-ग्रासी है, ठीक वैसे ही जैसे श्री प्रभाकर श्रोत्रिय के शब्दों में ‘कबीर की आध्यात्मिक क्षुधा सर्वग्रासी है’। मैं परम आदरणीय श्री शेषनाथ प्रसाद जी से इस विषय में और अधिक ज्ञान पाने की आकांक्षा रखता हूँ। उन्होंने ‘हिमांशु’ शब्द की जो व्युत्पत्ति बताई, वह यदि श्री रंगराज अयंगार जैसे प्रबुद्ध हिन्दी-सेवी को ज्ञात नहीं थी, तो श्री अयंगार उन्हें अलग से धन्यवाद ज्ञापित कर सकते हैं।

अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाएं सीखने में बहुत-से खतरे भी निहित है। सबसे बड़ा खतरा तो संज्ञा पदों के सही उच्चारण का है। अंग्रेजी में जाने के बाद भारतीय शब्दों की क्या स्थिति हुई, इसे देखना हो तो बॉम्बे (मुम्बई), कैलकटा (कोलकाता), हायड्राबैड (हैदराबाद), लकनाउ (लखनऊ), कॉनपोर (कानपुर), डेली (देहली- दिल्ली), बैंगलोर (बेंगलूरु), वाइजाग (विशाखपट्टणम) आदि को लें। अंग्रेजी और रोमन की कृपा से हमारे हजारों नाम विरूपित हो चुके हैं। राम बन गए रामा, कृष्ण हो गए कृष्णा। राधा भी एक दिन रैदा बन जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं। आपको मालूम होना चाहिए कि तेलुगु में अंकित ‘गीता’ रोमन में Githa हो जाती है और वहाँ से हिन्दी में पहुँचती है तो स्वभावतः ‘गीथा’ बन जाती है। गुंटूर की एक कॉलोनी का नाम है –कन्नावारि तोटा, रोमन में लिखा गया Kannavari Thota, हमने उसे लिखा ‘कन्नावारी ठोटा’। संस्कृत में अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा के प्रति सचेत रहनेवाले समुदायों के लिए ये बातें बहुत मायने रखती हैं, किन्तु जिस समाज ने अपने जातीय गौरव और राष्ट्र-प्रेम को ही तिलांजलि दे दी हो उसके लिए इन बातों का कोई मोल नहीं। अपनी-अपनी भाषाएं त्यागकर अंग्रेजी के लिए पलक-पाँवड़े बिछाने वाले हिन्दुस्तानी इस बात को शायद नहीं समझ पाएँगे।

बहरहाल, उपर्युक्त उदाहरणों से यह तो सिद्ध होता ही है कि यदि हिन्दीतर भाषियों को हिन्दी सीखनी है और इसके विलोमतः यदि हिन्दी-भाषियों को अन्य भारतीय भाषाओं का ज्ञान अर्जित करना है तो उन्हें सीधा रास्ता अख्तियार करना चाहिए, यानी एक भारतीय भाषा के माध्यम से ही दूसरी भारतीय भाषा सीखनी चाहिए और अंग्रेजी को उठाकर एक और रख देना चाहिए, क्योंकि उसकी वर्णमाला में इतनी सामर्थ्य नहीं कि वह हमारी भाषाओं की वर्णमाला का स्थान ले सके, न ही उसका वाक्य-विन्यास हमारी भाषाओं के वाक्य-विन्यास से मेल खाता है।

---0--

COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. सम्मान्य बंधु,
    मेरी टिप्पणी ने आपको क्षुब्ध कर दिया. इसके लिए मुझे खेद है.
    मेरी मंशा इतनी ही थी कि मैं उस प्रश्न को लेकर बीते समय में विद्वानों में धारासार बहसें हो चुकी हैंं.
    अगर आपकी गरिमा को ठेस न लगे तो आप अपने इस वाक्य पर पुनर्विचार कर लें-- "मेरी ज्ञान पिपासा सर्वग्रासी है". पिपासा 'सर्वग्रासी' अथवe 'सर्वग्राही'.

    जवाब देंहटाएं
  2. डॉ. साहब,
    आप यह मत सोचिए कि कोई हिंदी सीखने के लिए पहले अंग्रेजी सीखता है. लेकिन जान लीजिए कि दक्षिण भारतीयों की पकड़ अंग्रेजी में बेहतर होती ही है, वह वहाँ की दूसरी भाषा सम है. इसीलिए वे जानी पहचानी भाषा के सहारे हिंदी में प्रवेश करते हैं, जो उन्हें आसान लगता है. जहाँ तक मेरा मानना है कि किसी भी रास्ते आए, पर यदि कोई हिंदी के पास आता है तो हिंदी द्वारा ( हिंदी भाषियों द्वारा) स्वागत होना चाहिए. वह नहीं ही आता तो...??? आने पर स्वागत हो तो शायद वह आगे भी बढ़े. मुझे किसी भी रास्ते हिंदी के द्वारे आने पर आपत्ति नहीं है. खुशी है कि हिंदी के प्रति उसका रुझान हुआ या बढा.

    अयंगर.
    laxmirangam.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  3. श्री अयंगर जी,
    सिंह जी के पिछले लेख की टिप्पणी में मैंने आपका समाधान कर दिया था पर आपको समझ में नहीं आया. उसी स्थल पर मैंने फिर से उसे विस्तार से व्याकरण का नियम देकर समझा दिया है. यहाँ भी दे देरहा हूँ-
    हिमांशु को हिमांशु की तरह ही लिखा जाएगा पञ्चाङ्ग की तरह नहीं.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शेषनाथ जी ,
      सादर धन्यवाद व विनीत,
      कृपया लिंक देखें.
      http://www.hindikunj.com/2015/02/language-script.html
      पुनराभिवादन,,
      अयंगर.

      हटाएं
  4. आभार।
    कोई भी व्यक्ति हिन्दी इसलिए नहीं सीखता कि उसे हिन्दी को उपकृत करना है। अपने-अपने निजी हित के लिए हम भाषाएं ही नहीं अन्य ढेरों कौशल सीखते हैं। जिसे जैसी सीखनी हो, सीखे।
    आप दोनों को बहुत-बहुत धन्यवाद। इस प्रकरण का पटाक्षेप करते हैं। सादर,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. डॉ. साहब,
      कृपया लिंक देखें.
      http://www.hindikunj.com/2015/02/language-script.html
      आपकी बात सही है कि हर इंसान अपने मतलब से ही कुछ भी सीखता है.
      सादर,

      अयंगर.

      हटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामवृक्ष सिंह का आलेख - अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी सीखने के खतरे
रामवृक्ष सिंह का आलेख - अंग्रेजी माध्यम से हिन्दी सीखने के खतरे
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8IjWa5w_f7mRDSQacy2BDmqnrxW7MRdzIy1I5ZQlzwwPzQbvW5_1yjsZoSuEisIFo0SuKUO_mQ_trTIK57GRBU1-1u1ZvsYQGfWZaVcv0aXNQCjSDe1nD40znCp6WrCmzSxtz/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8IjWa5w_f7mRDSQacy2BDmqnrxW7MRdzIy1I5ZQlzwwPzQbvW5_1yjsZoSuEisIFo0SuKUO_mQ_trTIK57GRBU1-1u1ZvsYQGfWZaVcv0aXNQCjSDe1nD40znCp6WrCmzSxtz/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/02/blog-post_42.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/02/blog-post_42.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content