जंतर-मंतर...छू मंतर../ प्रमोद यादव जब छः-सात साल का था तो पापा अक्सर जादू दिखाया करते..अपनी कोई चीज घडी, अंगूठी या सिक्का हथेली पर रखते फिर...
जंतर-मंतर...छू मंतर../ प्रमोद यादव
जब छः-सात साल का था तो पापा अक्सर जादू दिखाया करते..अपनी कोई चीज घडी, अंगूठी या सिक्का हथेली पर रखते फिर मुट्ठी बाँध “ छू काली मंतर..जंतर-मंतर छू मंतर “ का जादूगरों की तरह नाटकीय आलाप करते और दोनों हाथों को हवा में ऊपर नीचे लहरा वो चीज सफाई के साथ अपने बगल में दबा लेते फिर खाली मुट्ठियों को सामने कर धीरे-धीरे खोलते..और कहते- ‘ लो..सिक्का गायब..’ मैं आश्चर्यचकित देखता रह जाता..पापा पूछते - ‘ जादू से वापस लाऊं ? मैं हाँ में सिर हिलाता..पापा पुनः वही प्रक्रिया अपनाते और “ जंतर-मंतर..छूमंतर “ कहते मुट्ठी खोल सिक्का वापस दिखाते...कई बार जादू दिखाने के बाद मुझे वे जादू का ट्रिक समझाते.. मैं नक़ल कर चीजें गायब करने की कोशिश करता पर बच्चा था.. बगल में चीजें ठीक से टिका नहीं पाता .और बार-बार वो फिसल कर गिर जाता.. जादू फेल हो जाता पर “जंतर-मंतर..छू मंतर “ का जाप मैं एकदम सटीक करता..
आज कई दशकों के बाद फिर जंतर-मंतर में छू मंतर का खेल देख पापा की याद आ गई..जितने मुँह उतनी बातें...जितने चैनल उतनी बातें..पर एक बात सब में सच कि शहजादे हुये छू मंतर...मुझे तो खबर लगते ही लगा कि कहीं पार्टी वालों ने ही उन्हें “बगल” में तो नहीं दबा रखा ? बच्चा जब बोर होता है तभी माँ-बाप जादू दिखा बच्चे का मनोरंजन करते हैं..कहीं ये सब पार्टी के मनोरंजन के लिए तो नहीं ? वैसे भी इन दिनों पार्टी चारों खाने चित्त है..पार्टी का कोई पार्ट ठीक नहीं..न किडनी..ना हार्ट..ना ब्रेन..सब चोक.. ऐसे में तो पार्टी का मनोरंजन बनता ही है..मुझे तो उम्मीद है कि मैडम आज-कल में उसे बगल से निकाल “छू काली कलकत्ते वाली “ का आलाप कर फिर से पार्टी वालों को पेश कर देगी.. ये तो जादू का शाश्वत नियम है.. चैनल वाले बेकार का चिल्ल-पों कर रहे..........................................................................................
गायब होना..लापता होना..छूमंतर हो जाना.. प्रकृति का नियम है..पानी के दो बूंद फर्श पर टपका दीजिये..थोड़ी देर बाद वो गायब मिलेगा..वैज्ञानिक लाख कहे कि पानी का एच-२ और ओ-२ में विघटन हुआ और पानी भाप बन उड़ गया..पर कितनों को यह पता है कि पानी की बूंद अब भी है लेकिन हवा में है..अपना कीमती मोबाईल बस की सीट पर छोड़ दीजिये..मिनटों में वो छू मंतर ..लाख ढूँढिये..नहीं मिलेगा..पर किसी के हाथों में है..ये तो तय है..बाजार से कभी एकाएक चीनी गायब हो जाती है तो कभी प्याज आलू..इसका मतलब भी वही होता है..व्यापारियों के गोदाम में सजे होते है सब..गायब कुछ भी नहीं होता..ये तो हुई चीजों के लापता होने की कहानी..पर जब कोई बच्चा गायब होता है तो उसके कारण अलग होते हैं..मसलन कोई माँ-बाप के मार से लापता हो जाता है तो कोई परिक्सा में फेल होने के कारण..कोई सौतेली माँ के उत्पीडन से लापता होता है तो कोई सौतेले बाप के जुल्म से..कभी-कभी बच्चे अन्य कारणों से भी लापता हो जाते हैं जैसे बलि देने..बंधुआ मजदुर बनाने..भीख मंगवाने..आदि..आदि.. बड़े-बूढ़े कभी लापता नहीं होते...वे बेचारे तो घर में होते हुए भी लापता जैसे होते हैं और भला क्या लापता होंगे ?...जवान लोंगों के लापता होने के कई कारण होते है... मुहब्बत..गबन..हेराफेरी..दुश्मनी .. दुर्घटनायें और राजनीति..
शहजादे मौजूदा राजनीति से लापता हुए हैं और उसके राजनीतिक कारण जो बताये जा रहे वो जम नहीं रहा..पार्टीवाले कह रहे- ‘चिंतन मनन करने एकांतवास में गए’ मीडिया कह रहा –बैंकाक गए तो कोई बता रहा - जर्मनी.. लाओस गये...एक कार्यकर्ता का दावा - देवभूमि उत्तराखंड गए..बाकायदा सबूत के तौर पर उसने शहजादे की तस्वीर भी पोस्ट की..पर उसी पार्टी के बड़े आका कह रहे- “ गलत जवाब “ वे कहीं नहीं गए..यहीं चिंतन-मनन कर रहे..अरे जब नौ महीने नहीं किया तो जीरो मिलने पर क्या चिंतन–मनन ? चिंतन के लायक कोई नंबर भी तो मिले ?जब सब कुछ जीरो बटा पराठा है तो चिंतन की जगह संन्यास की बात कहे तो कुछ बात भी बने..खैर.इसी बहाने वे कम से कम वे खबरों में तो हैं वर्ना सत्तारूढ़ पार्टी ने तो सारे किरकीरियों को चैनलों से विदा कर ही दिया है,,ना ही कहीं काले धन वाले बाबाजी दिखते हैं न ही मैडम..न क्रेन वाली बाई न ही पितृपुरुष ..
शहजादे गायब क्या हुए सबको बोलने का मौका मिल गया है ..सत्ता वाले कह रहे..शर्मनाक..कम से कम बजट सत्र में तो होते.. डिबेट में तो हिस्सा लेते..जबकि वे भली-भाँती जानते हैं होते तो भी क्या भाड झोंक लेते..कार्यकर्ता कह रहे- कम से कम जंतर-मंतर में ही होते...यूँ छू मंतर होकर नाक तो न कटवाते...समर्थक आपस में पूछ रहे- कहाँ है कठोर..देख तेरे चाहने वाले दर-दर भटक रहे.. सब लोकेशन ढूँढ़ रहे..सबको मालूम है कि वे छुट्टी पर गए हैं..मम्मी को अप्लिकेशन दे गए हैं..पर किसी की जुर्रत नहीं कि उनसे पूछ लें..कैसी छुट्टी कहाँ की छुट्टी ? ठीक है ..मम्मी से रूठकर (लड़कर) गए है...वे बार-बार कहते रहे- तू कितनी भोली है.. क्यों बूढ़े-खूसटों की टोली में उलझी है..इसे छोड़ और मेरी मान..पर माँ तो माँ होती है..बच्चे की बात बचकाना ही समझती है..उसकी नहीं मानी तो वे नाराज हो चले गए- दुनिया वालों से दूर..जलने वालों से दूर..अब कहाँ गए ये तो उन्हें ही पता है..पर इस बात का सबको पता है कि जहाँ भी होंगे चिंतन-मनन के तौर पर ये जरुर गुनगुना रहे होंगे- कभी खुद पे..कभी हालात पे रोना आया..बार-बार खुद को समझा भी रहे होंगे – दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है..आखिर इस हार का सबब क्या है ?
आम लोगों का लापता होना निहायत ही दुखभरी बात होती है पर कोई ख़ास लापता हो तो इसमें दुःख-सुख दोनों परिलक्छित होते है..जैसे शहजादे के छूमंतर हो जाने से पार्टी का एक धड झूम-झूम गा रहा-‘ जाना है तो जाओ मनाएंगे नहीं..नखरे किसी के उठाएंगे नहीं.. ‘ वहीं एक गुट गा रहा- ‘ आ लौट के आजा मेरे मीत..तुझे मेरे गीत ( वोट ) बुलाते हैं.. ‘ माँ बेचारी पर क्या बीत रही होगी ये तो माँ ही जानती है..वो दिल से गा रही होगी – ‘ ओ ..मेरे लाल आ जा..’ माँ ने तो अपनी ओर से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी उसे देने में..जब-जब जो-जो माँगा दिया..जैसे-जैसे उसे प्रमोशन दिया वैसे वैसे पार्टी का डिमोशन हुआ.. होनी को भला कौन टाल सका है ? अब उसे आखिरी प्रमोशन देने की तैयारी है..पार्टी के टोटली डूब मरने की बारी है..वैसे डूब तो कबसे गए है पर शुतुरमुर्ग की तरह जमीन में मुंह गडाए हैं..
मुझे उनके लापता होने का तनिक भी दुःख नहीं.. क्योकि यह एक अस्थाई क्रिया है..जल्द से जल्द मिल जायेंगे.. जानता हूँ, जहाँ भी होंगे पुराने दिनों को याद कर गुनगुना रहे होंगे- जाने कहाँ गए वो दिन...पर वे हौसला रखे- उनके भी अच्छे दिन जरुर आयेंगे..जैसे “इनके” आये..भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं है..
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प्रमोद यादव
गया नगर, दुर्ग , छत्तीसगढ़
बेटा! तुम जहां कहीं हो जल्द वापस आ जाओ अगला इलेक्शन हारने पर पार्टी तुमसे कुछ नहीं कहेगी
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