भगवान शिव एवं महाशिवरात्रि प्रोफेसर महावीर सरन जैन त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में भगवान महेश अर्थात् शिव संहार के देवता हैं । शिव का...
भगवान शिव एवं महाशिवरात्रि
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में भगवान महेश अर्थात् शिव संहार के देवता हैं । शिव का शाब्दिक अर्थ है 'शुभ', 'कल्याण', 'मंगल', 'श्रेयस्कर' आदि। हिन्दू धर्मावलम्बियों में वैष्णव एवं शैव सम्प्रदायों के अनुयायियों की सख्या सर्वाधिक है। शैव वह धार्मिक सम्प्रदाय है जो शिव को ही ईश्वर मानकर आराधना करता है। प्रसंगतः यह भी उल्लेखनीय है कि अधिकांश समकालीन हिन्दू धर्मावलम्बी सभी सम्प्रदायों के आराध्यों की आराधना करते हैं; शिव, राम, कृष्ण, दुर्गा आदि सभी देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। सम्प्रति, भगवान शिव को लक्ष्य कर, विवेचना की जा रही है।
नाम और महिमाः
शिव के अनेक वाचक हैं,भगवान शिव के अनेक नाम हैं :
1. रुद्र ( जो दुखों का निर्माण व नाश करता है) 2. पशुपतिनाथ ( पशु पक्षियों व जीवात्माओं के स्वामी) 3.अर्धनारीश्वर ( शिव और शक्ति का मिलन) 4. महादेव ( सभी देवों में श्रेष्ठ, महान ईश्वरीय शक्ति) 5. भोला( कोमल हृदय, दयालु एवं भक्तवत्सल) 6. लिंगम (सम्पूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक) 7.नटराज ( नृत्य के देवता) ।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम भी शिव के ही वाचक हैं तथा उनके साथ शिव के महत्व की गाथाएँ भी जुड़ी हुई हैं। ये निम्न हैं -
1.ओंकारेश्वर ( मंगलकारी) 2. केदारनाथ ( हिमालय के केदार पर्वत के स्वामी) 3. घुश्मेश्वर (सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात) 4. त्र्यम्बकेश्वर ( तीन नेत्रों वाले ईश्वर) 5. नागेश्वर ( नागों को धारण करने वाले) 6. भीमशंकर ( भीमकाय स्वरूप में प्रकट होकर त्रिपुरासुर को पराजित करने वाले शंकर) 7. महाकालेश्वर ( शिव का प्रलयकर्ता का रूप) 8. मल्लिकार्जुन स्वामी ( अर्चना में अर्पित चमेली जैसे मिल्लका पुष्पों को ग्रहण करने वाले) 9. रामलिंगेश्वर ( लंका पर चढ़ाई करने के पूर्व भगवान राम द्वारा स्थापित एवं उपासित शिवलिंग) 10. विश्वनाथ ( शिव के त्रिशूल पर स्थित काशी अथवा वाराणसी में विश्व के नाथ) 11. वैद्यनाथ ( आयुर्वेद आचार्यों के नाथ) 12. सोमनाथ ( वह स्थान जहाँ शिव को प्रसन्न करने के लिए चंद्रमा ने रोहिणी के साथ स्पर्श लिंग की पूजा की अथवा अपने मस्तिष्क पर चंद्रमा को धारण करने वाले शिव)
उनके अनेक रूपों में उमा-महेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, पशुपति, कृत्तिवासा, दक्षिणामूर्ति तथा योगीश्वर आदि अति प्रसिद्ध हैं।
अनेक ग्रंथों एवं लेखों में भगवान शिव के 1008 नामों का उनके अर्थों तथा व्याख्याओं सहित विवरण मिलता है। उपर्युक्त वर्णित नामों एवं रूपवाचकों के अतिरिक्त जो और नाम अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्ध हैं, वे अकारादि क्रम से निम्न हैं :
1. अघोरनाथ 2. आशुतोष 3. ईशान 4. उमेश 5. कामेश्वर 6. कैलाशनाथ 7. गंगाधर 8. गिरीश 9. चंद्रशेखर 10. जटाधर 11. त्रिलोचन 12. नीलकंठ 13. भूतनाथ 14. भैरव 15. महेश 16. शंकर 17. शंभु 18. शशिधर।
पुराणों में वर्णित शिवस्तुति में उनके अनेक ऐसे नाम भी मिलते हैं जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ अथवा ऋषभदेव के लिए भी प्रयुक्त होते हैं :
वृषभ, वृषभध्वज, वृषांक, दिगम्बर, दिग्वस्त्र, दिग्वास, जटी, चारुकेश, जटा-भार-भास्वर, ऊर्ध्वरेतेसु, ऊध्वेन्द्र, तपोमय, शान्त, इन्द्रियपति, अक्षोभ्य, अहिंसचैकितान, ज्ञानी-वज्रे-संहनन, पिच्छिकास्त्र।
डॉ. हीरालाल जैन ने शिव-रुद्र एवं जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव अथवा वृषभनाथ अथवा आदिनाथ की समानता के अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। ( देखें – रचना और पुनर्रचना, पृष्ठ 172 – 175, डॉ. भीमराव अम्बेदकर विश्वविद्यालय, आगरा, (नवम्बर, 2000))।
वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । इनकी अर्द्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है और इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं । भगवान शिव का परिवार केवल पत्नी पार्वती एवं पुत्र स्कंद एवं गणेश तक ही सीमित नहीं है; एकादश रुद्राणियाँ, चौसठ योगिनियाँ तथा भैरव आदि इनके सहचर और सहचरी हैं।
शिव के रूप :
पंचमुखी महादेव के पाँच मुखों के नाम हैं – (1) ईशान (2) तत्पुरुष (3) वामदेव (4) अघोर (5) सद्योजात।
सर्वव्यापी शिव को पृथ्वी में शर्व, जल में भव, अग्नि में पशुपति, वायु में ईशान, आकाश में भीम, सूर्य में रुद्र, सोम अर्थात् चंद्रमा में महादेव और यज्ञक्रिया में उग्र मूर्ति रूप में दिखाया जाता है। इन्हें अष्टमूर्तियाँ कहा जाता है।
शिव महायोगी हैं। निराकार रूप में इनकी पूजा लिंग के रूप में होती है । शैव मत में वे सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति हैं । शिव और शक्ति में अद्वैत है। शिव के हृदय में शक्ति का और शक्ति के हृदय में शिव का वास है। चंद्र और चाँदनी जिस तरह से अभिन्न हैं, उसी तरह से शिव-शक्ति भी अभिन्न हैं। जिस प्रकार वैष्णव पुराणों में विष्णु के दश (10) अवतारों की गाथाएँ वर्णित हैं, उसी प्रकार शैव पुराणों में शिव-शक्ति अथवा शिव-पार्वती के दश अवतारों की गाथाएँ निबद्ध हैं। इनके नाम हैं : (1) महाकाल-महाकाली (2) तारण-तारा (3) बाल-बालभुवनेशी (4) षोडश-षोडशी (5) भैरव-भैरवी (6) छिनमस्त-छिनमस्ता (7) धूमवान-धूमवती (8) बगलामुख-बगलामुखी (9) मातंग-मातंगी (10) कमल-कमला।
द्वादश ज्योतिर्लिंगः
देश में बारह ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हैं जिनके दर्शन की कामना प्रत्येक शिवभक्त को रहती है। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से 9 की स्थिति निर्विवाद है। इनके नाम हैः
1. सोमनाथ (गुजरात में वेरावल के पास)
2. महाकालेश्वर ( मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में)
3. ओंकारेश्वर ( मध्य प्रदेश में इंदौर के पास)
4. केदारनाथ (उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग नगर से 86 किलोमीटर दूर। गौरीकुण्ड से 14
किलोमीटर की पद यात्रा।)
5. विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में)
6. त्र्यम्बकेश्वर (महाराष्ट्र में नासिक जिले में गोदावरी के उद्गम-स्थल के पास)
7. रामलिंगेश्वर ( तमिलनाडु में रामेश्वरम् में)
8. घुश्मेश्वर ( महाराष्ट्र में औरंगाबाद जिले में दौलताबाद स्टेशन से 20 किलोमीटर दूर)
9. श्री सैलम-मल्लिकार्जुन मंदिर(आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में घने जंगलों के बीच)
अन्य तीन ज्योतिर्लिंगों की भौगोलिक स्थिति के बारे में निम्न दावेदार हैं और प्रत्येक स्थान के गाइड एवं पंडित-पुरोहित अपने-अपने पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत करते हैं :
10. भीमशंकर – (अ) महाराष्ट्र में पुणें के पास सह्याद्रि पर्वत पर
(आ) उत्तराखंड में काशीपुर के पास मोटेश्वर मंदिर
11. वैद्यनाथ – (अ) झारखंड के देवघर में स्थित
(आ) महाराष्ट्र के बीड़ जिले में परभणी रेलवे जंकशन के पास परली में
(इ) हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पालमपुर से लगभग 14
किलोमीटर दूर बैजनाथ मंदिर
12. नागेश्वर - (अ) गुजरात में जामनगर जिले में द्वारका के पास नागेश्वर मंदिर
(आ) उत्तराखंड में अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर
(इ) महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में औंधा नागनाथ मंदिर
पंच तत्त्वों में व्यक्तः
भगवान शिव सर्वव्यापक हैं। दक्षिण भारत में भगवान शिव की सर्वव्यापकता को व्यक्त करने के लिए उन्हें जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश – इन पाँचों तत्त्वों में व्यक्त किया गया है। इस दृष्टि से तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली में जल या नीर(जंबूकेश्वरार या जम्बूकेश्वर), तिरुअन्नामलै में अग्नि (अन्नामलियार या अरुणाचलेश्वर), कांचिपुरम में पृथ्वी (एकंबरेश्वर), चिदंबरम् में आकाश (नटराज), तथा आंध्र प्रदेश में तिरुपति से 36 किलोमीटर की दूरी पर श्री कालहस्ति में वायु (श्री कालहस्तीश्वर स्वामी) के शिव मंदिर प्रसिद्ध हैं।
महाशिवरात्रिः
महाशिवरात्रि शिवत्व का जन्म दिवस है। मान्यता है कि भगवान शिव इस दिन ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व महाकाल शिव की आराधना का महापर्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पारणा करने पर उपासक को समस्त तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त होता है। शिवरात्रि का उपवास नहीं करने पर वह जन्म-मरण के चक्र में घूमता रहता है। शिवरात्रि का व्रत करने वाले इस लोक के समस्त भोगों को भोगकर अंत में शिवलोक में जाते हैं। शिवरात्रि की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में करनी चाहिए। शिव को बिल्वपत्र, धतूरे के पुष्प तथा प्रसाद में भांग अति प्रिय हैं। लौकिक दृष्टि से दूध,दही,घी,शकर,शहद -, इन पाँच अमृतों (पंचामृत) का पूजन में उपयोग करने का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र शिव आराधना का महामंत्र है। शिव रात्रि वह समय है जो पारलौकिक, मानसिक एवं भौतिक तीनों प्रकार की व्यथाओं, संतापों, पाशों से मुक्त कर देता है। शिव की रात शरीर, मन और वाणी को विश्राम प्रदान करती है। शरीर, मन और आत्मा को ऐसी शान्ति प्रदान करती है जिससे शिव तत्व की प्राप्ति सम्भव हो पाती है। शिव और शक्ति का मिलन गतिशील ऊर्जा का अन्तर्ज्ञात से एकात्म होना है। लौकिक जगत में लिंग का सामान्य अर्थ चिह्न होता है जिससे पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग की पहचान होती है। शिव लिंग लौकिक के परे है। इस कारण एक लिंगी है। आत्मा है। शिव संहारक हैं। वे पापों के संहारक हैं। लय की निर्मति के लिए प्रलय करते हैं। अवरोधक गलित एवं पलित तत्वों का विनाश कर नव जीवन प्रदान करते हैं।
शिव रात्रि की सार्थकता रात भर बलात् जागना नहीं हैं; जोर जोर से चीख चीख कर भजन गाना नहीं है। यह जागृति का पर्व है। यह आत्म स्वरूप को जानने की रात्रि है। यह स्वयं के भीतर जाकर अथवा अंतश्चेतना की गहराइयों में उतरकर आत्म साक्षात्कार करना है। काल के इस क्षण की सार्थकता शिव सायुज्य प्राप्त करने में है; शिवमय हो जाने में है। शक्ति माया नहीं है, मिथ्या नहीं है, प्रपंच नहीं है। इसके विपरीत शक्ति सत्य है। जीव और जगत भी सत्य है। सभी तत्वतः सत्य हैं। सभी शिवमय हैं। शिव और शक्ति भाषा के धरातल पर भेदक हैं; भिन्न हैं। तत्वतः एक के ही दो रूप हैं। अभिन्न हैं। विश्वदृष्टि से देखने पर, सृष्टि और संहार की दृष्टि से देखने पर, उन्मेष और निमेष को लक्ष्य करके देखने पर, शिव और शक्ति पृथक प्रतीत होते हैं। चिदंश शिव भाव और आनन्दांश शक्ति भाव तत्वतः परस्पर मिले हुए हैं; अभिन्न हैं।(आदिनाथं महासिद्धं शक्तियुक्तं जगद् गुरुम्।)।
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवानिवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
123, हरि एन्कलेव, बुलन्दशहर – 203001
mahavirsaranjain@gmail.com
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