कविता जीवन के अकुण्ठ सौन्दर्य की दृष्टि होती है। कविता की सृष्टि जरामरणजं भयम् से मुक्ति का उद्घोष करते हुए सत्पथ पर चलने की प्रेरणा देती है...
कविता जीवन के अकुण्ठ सौन्दर्य की दृष्टि होती है। कविता की सृष्टि जरामरणजं भयम् से मुक्ति का उद्घोष करते हुए सत्पथ पर चलने की प्रेरणा देती है। राष्ट्रकवि डां.बृजेश सिंह और महाराणा प्रताप काव्यात्मक साहित्य इसका प्रमाण है। इसी सत्यता और राष्ट्रकवि डां.बृजेश सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रभावित होकर जितेन्द्रकुमार सिंह‘संजय' ने राष्ट्रकवि डां.बृजेश सिंह और महाराणा प्रताप साहित्य को पुस्तक के रूप में पाठकों को उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। इस पुस्तक को शोधग्रंथ कहा जा सकता है। इस ३३५ पृष्ठीय पुस्तक भारतीय कवि परम्परा में राष्ट्रकवि की अवधारण और डां.बृजेश सिंह,बिसेन राजवंश की साहित्य- संगीतकला एवं राजनीति -साधना और राष्ट्रकवि डां.बृजेश सिंह,मुक्तककाव्य-परम्परा और मुक्ताकार डां.बृजेश सिंह,महाकवि डां.बृजेश सिंह कृत आहुति महाकाव्य का काव्य शास्त्रीय अनुशीलन,महानायकों की परम्परा में महाराणप्रता का उदात्त चरित और इतिहासकार डां.बृजेश सिंह का प्रदेय और महाराप्रताप-साहित्य की परम्परा में डां.बृजेश सिंह का अवदान कुल छः सोपान है। प्रथम सोपान में लेखक की तुलनात्मक दृष्टि से डां.बृजेश सिंह की काव्य लेखन परम्परा राष्ट्रकवि बंकिमचन्द्र चटर्जी,रवीन्द्रनाथ टैगोर,मैथिलीशरण गुप्त,माखनलाल चतुर्वेदी एवं अन्य राष्ट्रकवियों के समक्ष लगती है। भारतीय संदर्भ में राष्ट्रकवि की अवधारणा आधुनिक है। आजादी की लड़ाई और राष्ट्रकवि की अवधारण का इतिहास भारतीय संदर्भ में एक ही सिक्के के दो पहलू है। वस्तुतः परराष्ट्र की दास्ता ही सही अर्थों में राष्ट्रबोध कराती है। डां.बृजेश सिंह हिन्दी संस्कृत,भोजपुरी और छत्तीसगढ़ी भाषा के ज्ञाता हैं और पुस्तक के लेखक डां जितेन्द्रकुमारसिंह‘संजय'भाषाविद्।वर्तमान में हिन्दी साहित्य के लिये डां.बृजेश सिंह और आहुति महाकाव्य आवश्यक विषयवस्तु बन गया है।
द्वितीय सोपान में लेखक ने बिसेन राजवंश की वंशावली,साहित्य संगीत कला और राजनीति साधना का उल्लेख किया है जो शोध का विषय है । यह पुस्तक भी शोधार्थियों के लिये शोध का विषय बनने योग्य है। महाकाव्य लेखन की दृष्टि से भारत में महाकाव्य अर्थात प्रबन्धकाव्य की प्रशस्त परम्परा रही है। सम्भवतः जितने महाकाव्य भारत में लिखे गये है दुनिया के अन्य देशों में नही लिखे गये है। आचार्य भामह ने मुक्तककाव्य को अनिबद्धकाव्य अर्थात गाथा या श्लोक कहा है। इस पुस्तक में डां.बृजेश सिंह को मुक्तक की दोनों परम्पराओं का संवाहक कहा गया है। पहली परम्परा प्रबन्धकाव्य के मध्य में रहते हुए भी अर्थ की दृष्टि से निराकांक्षा होना और दूसरी पम्परा पूर्वापर निपपेक्ष एवं प्रबन्ध से इतर है। डां.बृजेश सिंह का मुक्तक देखिये-
तेरी यादों के बिना मैं यहां रह नहीं सकता।
कोई रूसवा करे तुझको मैं सह नहीं सकता।
जमाना कहता तेरा प्यार मृग मरीचिका
लोग कहते रहें मगर मैं कह नही सकता।
पुस्तक का नाम | राष्ट्रकवि डां.बृजेश सिंह और महाराणा प्रताप साहित्य |
लेखक | जितेन्द्रकुमारसिंह संजय |
प्रकाशक | प्रभाश्री विश्वभारती प्रकाशन,इलाहाबाद |
मूल्य | २५०/- |
पृष्ठ | ३३५ |
समीक्षक | डां.नन्दलाल भारती |
पुस्तक में सन्दानितक ,कलापक, कुलक, पर्याय प्रबन्ध, कोष, प्रघट्टक एवं विकर्णक की जानकारी दी गयी है,जो सचमुच इस पुस्तक को शोधग्रन्थ निरूपित करता है। चतुर्थ सोपान में डां.बृजेश सिंह कृत आहुति महाकाव्य का काव्यशास्त्रीय अनुशीलन पर दृष्टिपात किया गया है। इस सोपान में छन्द, रस, दोहा, पंचमार, श्लोक, घनाक्षरी, चवपैया आदि पर विशेष जानकारी दी गयी है जो डां.बृजेश सिंह को छन्दाचार्य, काव्याचार्य निरूपित करता है। सार में का जा सकता है कि रससिद्ध कवीश्वरों में डां.बृजेश सिंह प्रथम पंक्ति का छन्दाचार्य कहा जा सकता है। पंचम सोपान अर्थात महानायकों की परम्परा में महाराणप्रता का उदात्त चरित और इतिहासकार डां.बृजेश सिंह का प्रदेय-जैसाकि डां बृजेशसिंह छन्दाचार्य और राष्ट्रवादी चिन्तक है,इनके साहित्य का मूल उद्देश्य भारतीय अस्मिता की रक्षा है।डां बुजेश सिंह को राष्ट्र की अस्मिात की रक्षा मेवाड़ दर्शन से प्राप्त हुई है। महाराण प्रताप का उदात्त चरित डां बृजेशसिंह को भारतीय दृष्टि सम्पन्न इतिहासकार बनाता है। डां.बृजेशसिंह ने महाराणाप्रताप के उज्जल चरित की परिकल्पना इस प्रकार किया है।
राम ने लिया था अवतार इसी भारत में,
रण में टिकेगा कौन अर्जन के सामने ।
सामने सुदर्णन के आयेगी न को शक्ति
हल से सृजन-हल रचा बलधाम ने।
धाम ने दिया है दिव्य गौरवी परम्परा को,
बुद्ध महावीर को डिगाया नहीं काम ने।
काम ने रचे हैं, छन्द छविमान आहुति के
राणा का चरित्र गढ़ा खुद प्रभु राम ने ।
महाराणा प्रताप की संघर्ष कथा उन्हें राष्ट्रनायक बनाती है। महाकाव्यीय परम्परा के मानकों के अनुरूप महाराणा प्रताप राष्टभक्त एवं नायक है। यकीनन महाराणा प्रताप अपने धैर्य,शौर्य,त्याग-बलिदान के कारण भारतीय समाज के बीज लोकदेवता की तरह पूज्य है।तभी तो महाराणाप्रताप के बारे में कहा गया है,
शूरता में, वीरता में,धीरत गंम्भीरता में,
कौन कलिकाल में,प्रताप के समान है।
षष्ठ सोपान-महाराणप्रता साहित्य की परम्परा में राष्ट्रकवि बृजेश सिंह के अवदान पर केन्दित है। इस सोपान में महाराणप्रता के जीवन की प्रमुख घटनाओं का एवं महाराणा प्रता विषयक प्रकाशित साहित्य का जिक्र किया गया है। डां.बृजेशसिंह कृत आहुति महाकाव्य से आठ घना छनद प्रस्तुत है। ये छनद ने केवल महाराणाप्रता के अलौकि कतृत्व को बल्कि प्रभास्वर क्षमता एवं अकुण्ठ को रेखांकित करते है। उदाहरणार्थ-
हाथ लिये भाल निज एकलिंग के दीवान,
मातृभूमि है निहाल पायी ऐसे लाल को।
झुकने दिया नहीं प्रताप ने कभी अजस्त्र
भारतीय भूमि के पुनीत दिव्य भाल को।
भेजा यमलोक द्वार मच गया हाहाकार,
अरिदल कांपा देख रूप वकिराल को।
चण्डिका भवानी रक्त मांगती सयानी भव्य
आहुति प्रताप ने दी शम्भु महाकाल को।
पुस्तक में छःसोपानों में संयोजित महाराणाप्रताप विषयक लेखन कार्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि डां.बृजेश सिंह ने भारतीय साहित्य में महाराणा प्रताप काव्य परम्परा को प्रतिष्ठित किया है। यकीनन कहा जा सकता है कि महाराणाप्रता साहित्य की परम्परा में डां.बृजेश सिंह अवदान चिरस्मरणीय रहेगा। यह पुस्तक कवि/साहित्यकारों,पाठकों के लिये ही नहीं इतिहासकारों और शोधार्थियों के लिये के लिये उपयोगी है। यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक,पठनीय और संग्रहणीय है। राष्ट्रकवि डां.बृजेश सिंह और महाराणा प्रताप साहित्य के रचयिता जितेन्द्रकुमारसिंह संजय अपने मन्तव्य में सफल है।वे इस पुस्तक लेखन के लिये बधाई के पात्र है। भारतीय साहित्य में राष्ट्रकवि डां.बृजेश सिंह और इनके द्वारा लिखित ऐतिहासिक महाराणा प्रताप साहित्य का स्वागत होना ही चाहिये।
डां.नन्दलाल भारती
एम.ए. ।समाजशास्त्र। एल.एल.बी. । आनर्स ।
पी.जी.डिप्लोमा-एच.आर.डी. ;च्ळक् पद भ्त्क्द्ध
विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर सम्मानोपाधि
आजाद दीप, १५-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म.प्र।-४५२०१०,
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