-- इस वक्त इस वक्त देश दौड़ रहा है विकास के पहियों पर सवार, इस वक्त बाबाओं का अनशन खेल जारी है यह जानते हु...
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इस वक्त
इस वक्त देश दौड़ रहा है
विकास के पहियों पर सवार,
इस वक्त
बाबाओं का अनशन खेल जारी है
यह जानते हुए भी कि देश में जाने कितने ही
लोग मर मिटें
होना वही है जो सरकार चाहती है।
इस वक्त
सत्ताधारी दल के नेता पर जूता उछाला जा रहा है
और नेता मुस्कुराते हुए जूते में सूंघ रहा है विपक्षी गंध।
इस वक्त
अर्धरात्रि में सोते बच्चों और महिलाओं पर
बरसाईं जा रहीं है लाठियां, क्योंकि
इसी से बचा रहना है लोकतंत्र।
इस वक्त देश का राजा ख़ामोश है
और कर रहा है बोलने के आदेश का इंतज़ार।
इस वक्त
राजधानियों में कुर्सी संभालने वाले
व्यस्त हैं अपने पूर्ववर्तियों के चिट्ठों को खोलने में।
इस वक्त
किसी शहर में आतंकी किसी महिला की कनपटी पर
बंदूक रखकर चिढ़ा रहें हैं सुरक्षा प्रबंधों को।
इस वक्त
तमाम बुद्धिजीवी व्यस्त हैं देश के हालात पर चिंतन करने में।
इस वक्त
कवि लिख रहे हैं अपने जीवन की सेंसेशनल कविता।
इस वक्त ब्रेकिंग न्यूज़ ढूंढता मीडिया
पूछ रहा है हादसे में मृत व्यक्ति से यह सवाल
कि उसे मरते वक्त कैसा महसूस हुआ?
इस वक्त मौलवी कर रहे हैं तक़रीर और
पंडित मशगूल हैं प्रवचन देने में।
इस वक्त जेलों में बन्द निर्वाचित प्रतिनिधि
कर रहे हैं जमानत की कोशिश
और उनके लिए मंत्रिमंडल में स्थान रिक्त रखा गया है।
इस वक्त युवाओं के हाथ में
रोज़गार की जगह थमाई जा रही है रंगीन झंडियां।
इस वक्त
महिलाएं गैस सिलेंडर के बढ़ते दामों की चिंता भूल
चल पड़ी है भागवत कथा सुनने।
इस वक्त
आम आदमी चांद तक पहुंचती अपनी
रोटी को देख रहा है।
इस वक्त देश बहुत जल्दी में है।
इस वक्त दुनिया का आका इबादत कर रहा है
यह मुल्क इसी तरह
हमेशा गतिमान रहे।
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सोच
हमें प्यार करने, अच्छा बोलने
के लिए वक्त कम पड़ता है
तुम नफ़रत की दीवार उठाने के लिए
वक्त कैसे निकाल लेते हो!
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पत्थर
जब वह पत्थर नहीं था तो सब कुछ था् मसलन बोलता था,
सुनता था, सोचता था, समझता, प्रतिक्रिया व्यक्त करता,
वह बच्चों से बतियाता,प्यार करता,पौधों को पानी देता,
पक्षियों की तरह उड़ने की कोशिश करता कभी-कभी,
मगर ऐसा तभी तक था जब तक वह पत्थर नहीं था!
वह पत्थर कब हुआ उसे याद नहीं
उसे बस इतना याद है कि वह धीरे-धीरे
बोलना,सुनना,समझना सभी भूलता जा रहा था,
प्यार करने की इच्छा नहीं होती
प्रतिक्रिया व्यक्त करने में कतराता
बच्चों पेड़-पौधों का उसे ख्याल नहीं रहता,
उड़ने के बारे में वह सोच भी नहीं पाता,
शायद तब वह अपने आप को तटस्थ कहलाना
पसंद करने लगा था।
इसी बीच वह हां में हां मिलाने लगा
विरोध करने की न तो उसमें इच्छा शक्ति नहीं थी
ना ही ऐसा करना चाहता था,
वह सबके साथ था
सबके लिए और किसी के लिए भी नहीं।
अब वह स्पंदनहीन हो चुका है।
अब वह अपनी दिशा तय नहीं कर सकता
उसे जाना होता है उसी दिशा में
जिसमें उसे धकेला जाए
उसका इस्तेमाल कर लोग पा लेते है अपना लक्ष्य
अब वह पत्थर हो चुका है।
पत्थर होकर भी वह सोच सकता तो यही सोचता
मैं पत्थर क्यों हुआ।
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तुम नहीं बदल पा रहे हो अब तक
चीजें बदलती हैं
ठीक वैसे ही जैसे बदलते हैं मौसम,
सब कुछ सदा एक सा नहीं रहता,
बदलते वक्त के अनुसार ढलता है हर कोई
यही बेहतर होता है
इसी से आती हैं ताजगी
आते हैं नए विचार
पैदा होती है नई संभावनाएं।
चीजें अचानक नहीं बदलती
वे स्थापित चीजों का अपमान सहने के बाद
रचती हैं अपना नया संसार।
चीजें बदलती हैं ठीक उसी तरह
जैसे बदल रही है दुनिया
अब दुनिया की सबसे ऊंची इमारत दुबई में बन चुकी है,
संसार का सबसे अमीर आदमी कोई मैक्सिकन है,
सबसे बड़ा कार्पोरेशन चीनी है तो दुनिया का सबसे बड़ा
हवाई जहाज रूस और यूक्रेन में बना है,
विश्व की अग्रणी रिफायनरी भारत में तो
विशालतम उद्योग चीन में है
लंदन बन रहा हैं वित्तीय केंद्र और संयुक्त अरब अमीरात
सर्वाधिक अमीर निवेश कोष बन चुका है।
इतना ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी फेरिस व्हील सिंगापुर में है,
नम्बर एक का कैसिनो लॉस वेगास में नहीं मकाउ में हैं
हॉलीवुड को हर लिहाज से बालीवुड पीछे छोड़ चुका हैं
यानी बदलती दुनिया में बदल रहा है सब कुछ।
हो सकता है करोड़ों भूखे-नंगे और अभावग्रस्त लोगों के रहते
बदलाव का सह पैमाना तुम्हें अजीब लगे
मग़र हर परिवर्तन देता है हर बुरी व्यवस्था को चुनौती,
अफसोस। एक तुम ही हो जो खुद को नहीं बदल पा रहे हो अब तक,
अपनी रिसती ताकत को चाहे महसूस ना करो मग़र तुम्हारा क्रूर और
अमानवीय चेहरा कब का तुम्हें बौना साबित कर चुका हैं।
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तुम भी ?
अपनी प्रतिबद्धता के दावे करते
नहीं अघाते तुम,
उस दिन खड़े थे एक याचक की मुद्रा में
याचना भी तुम कर रहे था उस सत्ताधीश से
जो हर वक्त आता है तुम्हारी आलोचनाओं में
जिसने तहस-नहस किया है उस विचार को
जिसकी स्थापना के दावे और विश्वास
व्यक्त करते रहे हो तुम हर वक्त
जब तुम याचक बनकर खड़े थे
तब सत्ताधीश मुस्कुरा रहा था
उसे गर्व हो रहा था तुम्हें
इस अवस्था में देखकर
शायद तुम भी हो रहे थे प्रसन्न
कि सत्ताधीश गौर कर रहा है
तुम्हारी प्रार्थना पर।
अब सत्ताधीश मान गया है
और उसका हाथ भी है तुम्हारी पीठ पर
मैं सोचता हूं
तुम अपनी प्रतिबद्धता को खूंटी पर टांग दो
और धारण कर लो उसका चोला
मजबूत विचारों की रक्षा
तुम्हारे बस की बात नहीं।
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अगर पिता होते
पिता अगर आज होते
तो पूरे पचहत्तर बरस के होते
पिता के होने और न होने के बीच है अगर।
अगर पिता होते तो
होता पूरा परिवार
होती तमाम खुशियां,
होते वे सारे सुहाने पल जो
हो सकते हैं सिर्फ
पिता के होने पर ही।
पिता थे तो घर में था एक विश्वास,
आधी रात को पिता के
गूंजते खर्राटों से घरवाले तो क्या
पड़ोसी भी हो जाते थे परेशान,
रोज़ कहते, मन्ना दादा कम लिया करो खर्राटे,
और पिता हर बार की तरह कहते-
मैं कहां लेता हूं खर्राटें।
सच भी है पिता को कहां
अहसास हो पाता था खर्राटे का।
ठीक वैसे ही जैसे
पिता नहीं जान पाते थे
कि उनका होना कितना
ज़रूरी है हमारी कायनात के लिए,
कि उनके होने से ही
आंगन में फुदकती है चिड़ियां,
कि उनके हाथों से ही खाती है
गाय रोटी,
कि उनकी पूजा से खुश
होते है भगवान,
कि उनके चढाए जल से ही तृप्त
होता है पीपल,
कि उनकी हाथों में बंधी घड़ी से
चलता है घर का वक्त,
कि उनकी खरखराहट से
सावधान हो जाते हैं सब,
कि उनकी साइकिल पर बैठ
हमने देखी है दुनियादारी
कि उनके मौन से सीखे हैं हम
जीवन की शब्दावली,
कि उनकी एक मुस्कान
कितनी कीमती थी हमारे लिए।
आज पिता नहीं हैं
पर मौजूद हैं हवा की तरह,
खुश्बू के जरिये।
अगर पिता होते तो
ये हवा और खुश्बू कितनी हसीन होती।
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संक्षिप्त परिचय
नाम - आशीष दशोत्तर
जन्म - 05 अक्टूबर 1972
षिक्षा - 1. एम.एस.सी. (भौतिक शास्त्र)
2. एम.ए. (हिन्दी)
3. एम.एल.बी.
4. बी.एड
5. बी.जे.एम.सी.
6. स्नातकोत्तर में हिन्दी पत्रकारिता पर विशेष अध्ययन।
प्रकाशन - 1 मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा काव्य संग्रह-खुशियां कैद नहीं
होती-का प्रकाशन ।
2 ग़ज़ल संग्रह ‘लकीरें‘,
3 भगतसिंह की पत्रकारिता पर केंद्रित पुस्तक-समर में शब्द-प्रकाशित
4 नवसाक्षर लेखन के तहत पांच कहानी पुस्तकें प्रकाशित आठ वृत्तचित्रों में संवाद लेखन एवं पार्श्व स्वर।
पुरस्कार - 1. साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा युवा लेखन के तहत पुरस्कार।
2. साहित्य अमृत द्वारा युवा व्यंग्य लेखन पुरस्कार।
3. म.प्र. शासन द्वारा आयोजित अस्पृष्यता निवारणार्थ गीत लेखन स्पर्धा में पुरस्कृत।
4. साहित्य गौरव पुरस्कार।
5, किताबघर प्रकाशन के आर्य स्मृति सम्मान के तहत
कहानी, संकलन हेतु चयनित एवं प्रकाशित।
6. साक्षरता मित्र राज्य स्तरीय सम्मान
सम्प्रति - आठ वर्षों तक पत्रकारिता के उपरान्त अब शासकीय सेवा में।
संपर्क - आशीष दशोत्तर
१२/२ कोमल नगर बरवड़ रोड
रतलाम-457001
ashish.dashottar@yahoo.com
आपकी कवितायेँ और इन के सन्दर्भ अलग हैं . पढ़ने में मज़ा आया. धन्यवाद !
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