आज रीता के घर पर ‘किटी-पार्टी’ है। सुबह से ही वह इसकी तैयारी में लगी है, मन ही मन स्नैक्स के मेनू बना रही है। गाजर का हलवा, गुलाब जामुन.......
आज रीता के घर पर ‘किटी-पार्टी’ है। सुबह से ही वह इसकी तैयारी में लगी है, मन ही मन स्नैक्स के मेनू बना रही है। गाजर का हलवा, गुलाब जामुन..... दो स्वीट्स हो गए और मठरी, ढोकला,वेज मोमो ये नमकीन हो गए और शांति गर्म-गर्म पनीर पकौड़े सर्व कर देगी और कुछ फिंगर चिप्स ----- मेनू की प्लानिंग करते- करते उसने शांति को आवाज लगाई---- शांति.... ओ शांति......
‘जी मेमसाहब जी’... कहती हुई शांति वहां आ खड़ी हुई।
‘देख शांति आज ड्राइंग रूम की जरा अच्छी तरह से सफाई करना, कारपेट ब्रश से झाड देना और हाँ शो- केस में रखी सारी चीजों की डस्टिंग जरा सावधानी से और अच्छी तरह होनी चाहिए, चीजें बिल्कुल नई लगनी चाहिए।’
‘जी मेमसाहब जी’.......शांति ने सर हिलाते हुए कहा.
शाम चार बजे रीता तैयार होकर किटी- मेम्बरों के आने का इन्तजार करने लगी। कामिनी, दक्षा, मीना आ गई थीं लेकिन अभी नौ लोग आने बाकी थे। तभी नीता हांफती हुई पहुंची और आते ही कहने लगी—‘ पता है कितनी दूर से पैदल चल कर आ रही हूँ, ये मेन गेट के पास ही पंडाल किसने बना दिया है? अरे लोग आएंगे-जायेंगे कैसे? इस पर दक्षा ने कहा— तुझे दिखा न होगा वहीँ बगल में छोटा सा रास्ता उन्होंने छोड़ रखा है आने- जाने के लिए, मैं तो उधर से ही आ गई।
हाँ हाँ मैं भी उसी रास्ते से आई—मीना ने कहा। कामिनी ने भी हामी भरते हुए कहा मैं भी उसी रास्ते से ही आई हूँ।
नहीं, यार मैं तो घूम कर वो पीछे वाले रास्ते से आई हूँ--- नीता ने फिर हांफते हुए कहा। इस पर सभी हंस पड़ीं। फिर नीता ने रीता से पूछा--- तो किसकी शादी हो रही है,इतने बड़े पंडाल में?
नहीं पता मुझे, अभी कुछ ही दिन हुए ये लोग यहाँ शिफ्ट हुए हैं, शायद बंगाली हैं! रीता ने जवाब में कहा। इसपर नीता ने चुटकी लेते हुए कहा--- क्यों तेरी खबरिया ने नहीं बताया? किसकी शादी है? तब तक शांति पानी लेकर वहां आ पहुंची और धीरे से बोली—‘वो शादी के पचास साल हो गये हैं न इसीलिए पार्टी हो रही है।’सुनते ही सब फिर से हंस पड़ीं और नीता ने कहा –अब मिली सही जानकारी हमें।
शांति रीता के यहाँ पिछले पांच सालों से नौकरानी का काम कर रही थी। इन पांच सालों में शान्ति घरेलू कामों के अलावा घर के प्रत्येक सदस्यों के स्वाभाव उनके पसंद- नापसंद को अच्छी तरह समझने लगी थी। घरवालों के लिए शांन्ति एक आदत बन चुकी थी। इसके साथ-साथ बाहर की दुनिया की सारी ख़बरें आते वक्त शान्ति अपने साथ लेती आती और रीता को बताती--- किसकी बहू पेट से है, किसकी बेटी किस लड़के के साथ फ़्लैट के टेरेस पे मिलती है, किसने फ़्लैट खाली कर दी, किस फ़्लैट में नये लोग शिफ्ट हुए---- सारी ख़बरें आते ही रीता को बताती और रीता भी चुटकियाँ लेकर सुनती। शाम को जब रीता के पति वापस घर आते तो यह जानते हुए भी कि उसके पति सिर्फ टी. वी. पे समाचार देख रहे हैं उसकी बातों पर यूँ ही सर हिला रहें हैं रीता सभी ख़बरों में कुछ अपनी तरफ से जोड़कर उसे पति को सुनाती। जब कभी रीता टी.वी. देखती रहती और शांति भी दरवाजे के पास छुपकर टी.वी.देखने लगती तो रीता तुरत रिमोट उठा टी.वी. बंद कर देती और डाटते हुए शान्ति से कहती कि तू भी मेरी तरह टी.वी. देखने लगेगी तो काम कौन करेगा? मैं?
कल महीने की पहली तारीख है। शांति को पगार मिलेगी। उसने मन ही मन सोच रखा है कि इस बार वह अपनी मेमसाहब से अपनी पगार बढ़ाने की बात कहेगी। रोज की तरह शाम के काम ख़त्म कर शांति जाने लगी तो रीता उसे महीने के 1100 रुपये देने लगी। शांति ने पैसे लेते हुए कहा—
‘मेमसाहब जी आप तो जानती हैं कि महंगाई कितनी बढ़ गई है, सब कुछ के दाम बढ़ गये हैं, चावल, आटा, सब्जी सभी कुछ महंगे हो गये हैं। 1100 रूपये में कुछ नहीं होता अगले महीने से कुछ पगार बढ़ा दीजिये। इस पर रीता ने कहा—
‘क्या काम करती हो बता, इतने कम काम के 1100 रुपये कम नहीं हैं।’ शान्ति ने फिर कहा---‘ मेमसाहब जी जरा आप खुद सोचिए पांच सालों में कितनी महंगाई बढ़ी है.... कुछ तो बढ़ा दीजिये।’
रीता ने जवाब में कहा – ‘अच्छा जा सौ रुपये बढ़ा देती हूँ।’
शांति ने फिर दीन भाव से कहा
‘सौ रुपये से क्या होगा मेमसाहब जी’ कुछ और----
इस बार रीता ने खीजते हुए कहा—‘ सभी तो कह रहे हैं बढ़ाने के लिए--- धोबी, गाड़ी धोने वाला और महंगाई कोई तुम्हारे लिए ही थोड़े ही न बढ़ी है हमारे लिए भी बढ़ी है,हम किस से कहेंगे तनख्वाह बढ़ाने के लिए! बोलो। कुछ देर दोनों चुप रहीं, फिर शांति ने भर्राई आवाज में कहा---
‘मेमसाहब जी इन पैसों में हमारा गुजारा नहीं हो पाता.... आप लोग तो बड़े आदमी हो, आपलोगों को कहाँ तकलीफ होती है.’....
‘अच्छा ये रोने-धोने की जरुरत नहीं है, 100 रूपए और बढ़ा देती हूँ। रीता ने बेमन से फिर कहा।
अगले दिन से अब रीता शांति के हरेक काम में खोट निकालने लगी थी। ‘देख शांति तूने यहाँ पोंछा ठीक से नहीं मारा है।’.... ‘जरा बेसिन अच्छी तरह धो दे, दाग गये नहीं हैं।’जहाँ पगार बढ़ाने के बाद से शान्ति और मन लगाकर काम करने लगी थी, वहीँ पैसे बढ़ाने के बाद से रीता अशांत हो चुकी थी। हद उस दिन हो गई जब रीता ने बाथरूम में कपड़ों की ढेर लगा दी और शांति को उसे धोने में पूरे दो घंटे लग गये बल्कि रीता के पति ने टोका भी था.... ‘ये क्या रीता, तुम शांति से कपड़े क्यूँ धुलवा रही हो, मशीन खराब हो गई है क्या?’ इस पर रीता ने तुनककर कहा.... ‘मशीन में कपड़े खराब हो जाते हैं इसलिए धुलवा रही हूँ।’
अब पहले की तरह शांति आकर बाहर की ख़बरें रीता को नहीं सुनाया करती,रीता भी अब उससे बस काम की ही बातें करती। अब दोनों मन ही मन एक दूसरे को नापसंद करने लगीं थीं। 200 रूपए के इजाफा से रीता और शांति के बीच एक दूरी आ गई थी।
आज सुबह से ही कोहरा छाया हुआ था और शाम होते- होते बारिश भी होने लगी। शाम के पांच बजे तक शान्ति ने भी अपने काम निपटा लिए थे और अब घर जाने को थी। बारिश की वजह से वह कुछ देर रुक गई, लेकिन बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। शांति ने बड़े ही कातर स्वर में रीता के पास जाकर कहा---‘मेमसाहब जी छाता है तो दीजिये, कल उसे लेती आऊंगी। रीता मन ही मन कहने लगी.. छाता मांग रही है फिर घर में जाकर रख देगी और कहेगी, भूल गई छाता लाना। रोज महारानी को याद दिलाना होगा कि छाता लेती आना। इसके मन बढ़ते ही जा रहे हैं..... पहले पगार बढ़वाया, अब छाता मांग रही है,जरा सा भींग ही जाएगी तो क्या हो जायेगा। रीता ने कहा....
‘नहीं शान्ति छाता तो नहीं है’
शान्ति ने कुछ भी नहीं कहा और जाने लगी। जाते समय शान्ति की साड़ी का पल्लू रीता जो कि सोफे पर बैठी हुई थी को सहलाते हुए निकल गई। रीता ने अपनी नजरें घुमा कर शांति को देखा तो देखती ही रह गई........ अरे ये तो मेरी साड़ी है, यह तो मैंने इसे दो साल पहले दी थी, इस साड़ी में सिर्फ दो ही प्लेटें होतीं थीं, इसे पहनने में बहुत दिक्कत होती थी लेकिन शांति में तो यह साड़ी काफी बड़ी लग रही है और वह शांति को देखने लगी..... कैसी दिखती थी शांति... चार नहीं नहीं साढ़े चार फुट की विधवा, पचास से पचपन के बीच उम्र होगी या हो सकता है उससे कुछ कम की भी हो लेकिन दिखने पर तो उतनी की ही लगती थी। काला थका गोल चेहरा जिस पर कोई भाव नहीं, किसी तरह बदन पर लिपटी साड़ी। पूरे शरीर पर एक पाव मांस भी अतिरिक्त नहीं थे उसके, कैसे करती है इतने काम! क्या खाती है... वही जो मैं इसे बचे- खुचे खाने देती हूँ.... बस....ये अचानक रीता को क्या हो गया.... पांच सालों में आज वह शान्ति को देख रही थी। वह उठी, उसने अपनी स्विफ्ट की चाबी ली, अपनी गाड़ी निकाली और चल पड़ी शांति के घर की ओर। उसने देखा रास्ते में पड़े प्लास्टिक के थैले को टोपी बना शान्ति ने अपना सर ढक लिया है और उस बारिश में भी आहिस्ता-आहिस्ता अपने कदम घर की ओर बढ़ाये जा रही है । रीता ने अपनी गाड़ी शांति के आगे जाकर रोक दी और गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए बोली.... ‘शांति चल बैठ’। आज रीता की आवाज में एक अपनापन दिख रहा था। शांति धीरे से बोली--- ‘क्यों मेमसाहब जी कोई मेहमान आये है?’
‘अरे नहीं शान्ति, चल आज तुझे घर छोड़ देती हूँ।’ शान्ति खुश हुई लेकिन अपनी ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाई, चुपचाप जाकर गाड़ी में बैठ गई। रीता जब शान्ति को घर छोड़ चलने लगी तो उसने शान्ति से कहा.... ‘अच्छा सुन शांति कल से दो दिन काम पे मत आना’।
‘क्यों मेमसाहब जी’... शांति ने पूछा
‘ बस यूँ ही... आराम करना।’ और दोनों एक- दूसरे को देख हंस पड़ीं।
गीता दुबे, जमशेदपुर
अचानक रीता के मिजाज का बदलाव, पाँच साल में पहली बार शाँति को देखना और जो छाता दे न सकी, उसका स्विफ्ट में शाँति को घर छोड़कर आना - कहानी के प्रवाह को झकझोरता एक जबरन का मोड़ लगा. कहानी थोड़ी और प्रवाहमयी होती और भी तो अच्छा होता. सुझाव यदि दुखी करता हो क्षमा करें.
जवाब देंहटाएंआपके सुझाव का मैं अभिनन्दन करती हूँ रंगराज जी, टिप्पणी के लिए धन्यवाद
हटाएंसुन्दर कहानी। बधाई स्वीकार करें। कभी कभी एक छोटी सी चीज़ भी हमे सोचने पर मजबूर कर देती है। इस कहानी में एक साड़ी ने वो भूमिका निभाई। अगर शान्ति ने वो साड़ी न पहनी होती तो रीता उसे कभी देख ही नहीं पाती और उसके आँखों में पूर्वाग्रह का पर्दा (कि वो शांति को उचित मेहनताना देती है) पड़ा ही रहता।
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद विकास जी
हटाएंगीता जी ,
जवाब देंहटाएंआभाऱ की आपने गलत नहीं समझा.
अयंगर.