(कविता) मां कितना कष्ट उठाती होगी जब गर्भ से रहती होगी मां करती होगी परहेज कितना जब गर्भ में पलता है लल्ला। क्या है उसे खाना क्या नहीं ख...
(कविता)
मां
कितना कष्ट उठाती होगी
जब गर्भ से रहती होगी मां
करती होगी परहेज कितना
जब गर्भ में पलता है लल्ला।
क्या है उसे खाना
क्या नहीं खाना
रखती है हरदम
ख्याल अपना।
असहनीय दर्द भी
कभी कमर कभी घुटने
कभी उदर पीड़ा को भी
सहती है मां।
जब होता है प्रसव तो
पीड़ा कितनी उठाती होगी मां
ये तो वही जाने
जिसने झेली होगी प्रसव पीड़ा।
बाद प्रसव के तो
मल-मूत्र में ही
लिपटी सी रहती है मां
आती है गंध कुछ
अजीब सी वहां
जहां प्रसव के बाद
होती है संग लल्ला के मां।
सोती है खुद
बिस्तर गीले में
सुलाती है सूखे में
लल्ला को मां।
तड़प उठती है
मां की ममता
जब जी तोड़ के
रोता है लल्ला।
उठाती है दौड़ के
लगाती है सीने से
काम सारे छोडकर
पिलाती है दूध
आंचल अपने में
छिपाकर मां।
हाथों को अपने बनाती है
झूला मां
हिलारती-दुलारती
गाती है लोरिया
दिल के टुकड़े को
सुलाने को मां।
ताकि निपटाले काम सारे
घर के तसल्ली से मां।
पकड़कर हाथ अपने से
सिखाती है चलना मां
सपने सैकड़ों दिल में
संजोंये रहती है मां।
(कविता)
(कर्मवीर)
कर्मवीर बन बढ़ता चल तू
लक्ष्य अपना चुन लेना तू
कठिन विपदाएं भी है आगें
पीछे कभी न हटना तू।।
जग जीवन की पीड़ा गहरी
करले दिल से सच्ची करनी
ईश्वर को सब याद है तेरी
पंहुचे इक दिन मंजिल अपनी।।
कर्मवीर बन बढ़ता चल तू
लक्ष्य अपना चुन लेना तू
कठिन विपदाएं भी है आगें
पीछे कभी न हटना तू।।
राह में तेरे विकट है मंजर
कंकड़ पत्थर झाड़-झंड़कर
हृदय हो तेरा पाक समन्दर
दूर न कोई तुझसे मंजिल।।
कर्मवीर बन बढ़ता चल तू
लक्ष्य अपना चुन लेना तू
कठिन विपदाएं भी है आगें
पीछे कभी न हटना तू।।
)
(एकता का मंत्र)
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
हम सब एक दूजे के भाई
मजहब चाहे अलग-अलग
खून तो एक है सबकाई।।
जात-पात भेदभाव का
नहीं किसी के रोग हो
सबका मालिक एक है
ऐसा सबका सोच हो।।
अनेकता में एकता का
सबमें बड़ा जोश हो
रीति-रिवाज़ वेशभूषा
चाहें सबकी अनेक हो।।
आजादी की वर्षगांठ पर
मंच हमारा एक हो
डांगोरिया एक है हम
गुलशन हमारा एक हो।।
सज्जनता
जो तुम सज्जन बनना चाहो
सबसे प्रीत करो भाई
जाति सम्प्रदाय का भेद मिटादो
घट-घट बिराजे हैं सांई।।
सद् कर्मों से ही मानव तो
बन पाता है सदाचारी
छल-कपट को मन से त्यागो
ये तो बड़े ही दुराचारी।।
जो तुम सज्जन बनना चाहो
सबसे प्रीत करो भाई
जाति सम्प्रदाय का भेद मिटादो
घट-घट बिराजे हैं सांई।।
धन यौवन के लालच में तुम
मत बनना अत्याचारी
दुर्गुण दिल से बाहर करदो
कितने ही मर गये बलकारी।।
जो तुम सज्जन बनना चाहो
सबसे प्रीत करो भाई
जाति सम्प्रदाय का भेद मिटादो
घट-घट बिराजे हैं सांई।।
अविद्या विकारो में डांगोरिया
कितने ही चले गये अभिमानी
अपना आचरण नहीं सुधारा
अन्त हो गये नरक गामी।।
जो तुम सज्जन बनना चाहो
सबसे प्रीत करो भाई
जाति सम्प्रदाय का भेद मिटादों
घट-घट बिराजे हैं सांई।।
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जीवन का आधार
जीवन का है यही आधार
सादा जीवन उच्च विचार।।
काम, क्रोध और लोभ तो दुश्मन
इनसे मिले नरक का द्वार।।
जीवन का है यही आधार
सादा जीवन उच्च विचार।।
काम तो वासनाओं का भंडार
जिसमें मोहित सब संसार।।
जीवन का है यही आधार
सादा जीवन उच्च विचार।।
क्रोध है बुद्धि का सरताज
करता हानि बिना विचार।।
जीवन का है यही आधार
सादा जीवन उच्च विचार।।
लोभ न करता किसी से प्यार
अपना पराया सब बेकार।।
जीवन का है यही आधार
सादा जीवन उच्च विचार।।
डांगोरिया मत उलझो यार
यह तो सारे मन के विकार।।
जीवन का है यही आधार
सादा जीवन उच्च विचार।।
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है नाथ अब अवतार धरो
है नाथ अब अवतार धरो
पीड़ित प्रजा विषम स्थिति
सज्जन जन कल्याण करों
है नाथ अब अवतार धरो।।
तेरा जग ये तेरी प्रजा
तेरा ही गुणगान यहां
सज्जन मानव तड़प रहा है
बढ़ रही हिंसा घोर यहां।।
है नाथ अब अवतार धरो
पीड़ित प्रजा विषम स्थिति
सज्जन जन कल्याण करो
है नाथ अब अवतार धरो।।
युग-युग तुमने अवतरित होकर
हिंसा का सर्वनाश किया
अब क्यों विलम्ब करो तुम प्रभु
पाप का भार हटाओ धरा।।
है नाथ अब अवतार धरो
पीड़ित प्रजा विषम स्थिति
सज्जन जन कल्याण करो
है नाथ अब अवतार धरो।।
डांगोरिया कर जोड़ पुकारे
भक्त जनों की हरलो पीड़ा
भक्त सज्जन आस करें तेरी
धर्म स्थापित करों यहां।।
है नाथ अब अवतार धरो
पीड़ित प्रजा विषम स्थिति
सज्जन जन कल्याण करो
है नाथ अब अवतार धरो।।
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ये इतिहास भी याद करो
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
गुरू द्रोण तो घृणा कर गये
धनुष विद्या सिखाने में
एकलव्य का अंगूठा लीना
छल किया था वन में
दलित वर्ग में आज भी उनको
नही कोई सम्मान मिला।
कौरव दल में शामिल हुये तो
आखिर उनका अन्त हुआ।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
शुद्र वर्ण में जन्मी भीलनी
सत्य भक्ति मन में
झूठे बैर राम ने खाऐं
नहीं घृणा थी मन में।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
दासी पुत्र विदुर जी हो गये
हो गये द्वापर युग में
दुर्योधन के मेवा त्याग हरि
साग विदुर घर खावें जी।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
काशी नगर में राजा हरिश्चन्द्र
बढ़े हुए थे सत्यवादी
कलुआं मेहतर के रहे चाकर
मरघट की थी रखवाली।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
शुद्र वर्ण है केवट जाति
महाभारत में सत्यवती
जिसके पुत्र रिषि वेदव्यास
कौरव पांडव वंशधनी।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
शूद्र वर्ण में हुए रविदास
भक्त हुये थे शिरोमणी
रतनसिंह राजा की बेटी
मीरा हो गई थी चेली।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
नारद रिषि थे चतुर सुज्ञानी
सर्व विद्या परवीना
शूद्र धींवर से दीक्षा लेकर
तीन लोक यश कीना।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
युग-युग महिमा कहां तक वर्णु
जिसका कोई पार नही
डांगोरिया हरि अनन्त है लीला
मेरी कोई औकात नही।।
ये इतिहास भी याद करों
घृणा का परित्याग करों
घट-घट एक सांई बिराजे
सबका ही सम्मान करों।।
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जागो अब देश की नारी
जागो अब देश की नारी
यह अभियान चलाना है।
भ्रष्टाचार मिटाकर अब तो
स्वच्छ राज अब लाना है।।
सरकारी सेवा में पति तो
उनको यह समझाना है।
वेतन के अलावा पैसा लायें
उसको तुम्हें ठुकराना है।।
अगर है व्यापारी पति तो
सच्चा व्यापार चलाना है।
मिलावट खोरी नहीं करोगे
यह जनहित में फरमाना है।।
हर नारी यदि ठान ले मन में
यह संदेश हमारा है।
शोषण मुक्त होवेगा भारत
निश्चित सफलता पाना है।।
समस्त संस्थाओं की नारियों से
यह आह्वान हमारा है।
संघठित हो प्रचार करों तुम
जड़ से इसे मिटाना है।।
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जागो-जागो देश के युवा
जागो-जागो देश के युवा यह आह्वान हमारा है
मतदान अवश्य करना यह अधिकार तुम्हारा है।।
लोकतन्त्र के महायज्ञ में अपना कर्तव्य निभाना है
तब ही तन्त्र मजबूत बनेगा यह अनुरोध हमारा है।।
जागो-जागो देश के युवा यह आह्वान हमारा है
मतदान अवश्य करना यह अधिकार तुम्हारा है।।
जैसे पक्षी उड़े गगन में पंख दो ही से वह उड़ता है
वैसे ही अधिकार-कर्तव्य लोकतन्त्र का गहना है।।
जागो-जागो देश के युवा यह आह्वान हमारा है
मतदान अवश्य करना यह अधिकार तुम्हारा है।।
डांगोरिया जन सोच समझकर मत प्रयोग तो करना है
लोकतन्त्र के महायज्ञ में सबको आहुति देना है।।
जागो-जागो देश के युवा यह आह्वान हमारा है
मतदान अवश्य करना यह अधिकार तुम्हारा है।।
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यातायात
अब तो सड़क पर बेधड़क चलते हैं कई लोग
वाहनों को तेज गति से दौड़ाते हैं लोग।।
करते नहीं है परवाह खुद अपनी कुछ लोग
औरों की क्या करेंगे यह तेज चलने वाले लोग।।
बाजारों में अब तो गिनती के चलते हैं पैदल लोग
बेवजह यह पैदल ही कुचले जाते हैं लोग।।
सफर मोटर साईकिलों से करते हैं बहुत लोग
दौ से चार बैठाकर सफर करते हैं लोग।।
नियमों कायदों का ध्यान क्यों रखते नहीं लोग
बिना हेलमेट के ही वाहन चलाते हैं लोग।।
कार चालक भी अब तो हो गये हैं बेखोफ
कार भरने के बाद भी लटकते हुये जाते हैं लोग।।
डांगोरिया आगे निकलने की जिद करते हैं चालक लोग
रस्ते में बेहूदा बात पर ही झगड़ते हैं लोग।।
यातायात नियमों का पालन क्यों करते नहीं लोग
अपनी लापरवाही से चालान अदा करते हैं लोग।।
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यह अभियान चलाना है
यह अभियान चलाना है
सबको जाग्रत करना है
खंडित होती धरा सम्पदा
इसकी रक्षा करना है।। यह अभियान .......................
पत्थर बजरी अवैध खनन का
माफियों के गैर नियम का
उजड़ते जंगल पहाड़ वनों का
सबको बीड़ा उठाना है।। (1)
यह अभियान .......................
मानव वृक्षों को काट रहा है
घने जंगलों को उजाड़ रहा है
पर्वतों को भी तोड़ रहा है
पठारी भूमि खोद रहा है
अब पाबन्द इसपे लगाना है।। (2)
यह अभियान .......................
प्राकृतिक सौन्दर्य नर बिगाड़ रहा है
श्रृंगारित आभा उजाड़ रहा है
अपने स्वार्थ के वश क्यों मूर्ख
भविष्य का सिर फोड़ रहा है
अब सौगन्ध सभी को खाना है।। (3)
यह अभियान .......................
डांगोरिया यह गजब हो रहा है
खनिज सम्पदाओं का हनन हो रहा है
मानव संसाधनों का विदोहन हो रहा है
प्रशासन क्यों अनजान हो रहा है
अब जन चेतना जगाना है।। (4)
यह अभियान चलाना है
सबको जाग्रत करना है
खंडित होती धरा सम्पदा
इसकी रक्षा करना है।।
यह अभियान ......................
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वृक्ष जहान
जाग-जाग अरे ओ इन्सान।
मत काटे रे वृक्ष जहान।।
क्यों करता रे इनपे वार।
ये तो औषधियों का है भंडार।।
जाग-जाग अरे ओ इन्सान।
मत काटे रे वृक्ष जहान।।
वृक्षों से जंगल और बरसे सावन।
जीव जगत लगे अति मन भावन।।
जाग-जाग अरे ओ इन्सान।
मत काटे रे वृक्ष जहान।।
पशु पक्षी और मानव जनका।
करते हित ये हर जीवन का।।
जाग-जाग अरे ओ इन्सान।
मत काटे रे वृक्ष जहान।।
वृक्ष काटे क्यों बने नादान।
इनसे वसुन्धरा शोभायमान।।
जाग-जाग अरे ओ इन्सान।
मत काटे रे वृक्ष जहान।।
आबाद है इनसे भारत महान।
अर्थ व्यवस्था बढ़े चौगान।।
जाग-जाग अरे ओ इन्सान।
मत काटे रे वृक्ष जहान।।
करले प्रतिज्ञा अब अरे इन्सान।
करेगा रक्षा वृक्ष तमाम।।
जाग-जाग अरे ओ इन्सान।
मत काटे रे वृक्ष जहान।।
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मालिक व मजदूर
मालिक कैसे बना है मालिक
यह मजदूर की ही तो बदौलत है
अगर ना होता मजदूर तो
मालिक कहा से बनता
यह उसी की अभिव्यक्ति है।
बदौलत है मजदूर की जिसने
अपना पसीना बहाया है
और बहाता आ रहा है
सर्दी में गर्मी में
बरसात में भी वह
पसीने में नहाया है।
डांट को फटकार को भी वह
सहता हुआ आया है
धंधा बिजनेस वालों का
बिजनेस चलाया है
धनवान बनाया है।
आलीशान इमारतों में
मालिक को सुलाया है
महंगी-महंगी गाड़ियों में
मालिक को घुमाया है
खान-पान रहन-सहन के
स्तर को बढ़ाया है।
जय हो उस मजदूर की जो
झोंपड़ी में रहता आया है
जिसने कमाई सिर्फ
दो वक्त की रोटी
वह भी उसको समय पर
नसीब नहीं होती।
निपटा न दे जब तक काम
मालिक का तब तक वह
भूख को भी दबा लेता है।
चाय पानी से कचोरी एक खाकर
और पी लेता है बीड़ी
ऐसे दे लेता है अपने
मन को तसल्ली।
क्योंकि वह जानता है कि
मेरे अभाव में काम ठप्प है
मीलों-कारखानों में उसने ही
उत्पादन को बढ़ाया है
खेतों में भी उसने ही
हल को चलाया है।
रिक्शे को ठेले को भी
उसने ही दौड़ाया है
रिक्शे में इंसानों को
ठेले में सामानों को
उसने ही गंतव्य तक पहुंचाया है।
रेत ईंट पत्थरों को भी
वही ढोता आया है
सड़को व पुलो को भी
ऊंची-नीची इमारतो को भी
उसने ही बनाया है।
बहुत किये निर्माण उसने
फिर भी वह हमेशा
मजदूर ही कहलाया है।
मजदूर ही कहलाया है।
मजदूर ही कहलाया है।
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मैं हूं एक पुष्प
मैं हूं एक पुष्प
सुनो मेरी दांस्ता
खिला था मैं एकचमन में
पाला था एक बागवान ने मुझे
अपने श्रम से बड़े ही परिश्रम से
किया था मेरी पौध को बड़ा उसने।
फिर मेरे-
योवनावस्था मे आने के बाद
खिलता हुआ मेरे हो जाने के बाद
सबकी तारीफ़ों के बाद
कर दिया मुझे उसने
दूसरों के हाथ।
मैं मन्दिरों-मस्जिदों
गुरूद्वारों-चर्चों में चढ़ा
नवयोवना का गजरा बना
लोगो के गले का हार बना
दुल्हा-दुल्हन का श्रृंगार बना
मुहब्बत करने वालो का पैगाम बना
इतना काम आने के बाद
फिर मेरे-
कुम्हलाऐं जाने के बाद
बदसूरत मेरे हो जाने के बाद
खुशबु मेरी उड़ जाने के बाद
मुझे नकारा समझा गया
सड़कों पर फेंका गया
पैरों तले कुचला गया
कचरे में डाला गया
इतनी दुर्दशा के बाद तो
मैं खाद्य में तब्दील हो गया
फिर भी मैं-
खेतों में डलकर भूमि को उपजाऊं
बनाता रहा- बनाता रहा- बनाता रहा।
विरह वेदना श्रृंगार रस
उमड़-घुमड़कर बदरा छावें।
सावन घटा घनघोर गरजावे।।
चम-चम चम-चम बिजली चमके।
झरमर-झरमर मेघा बरसे।।
नाचे मोर पपीहा बोले।
नव-यौवना का मनवा डोले।।
मन्द पवन शीतल पुरवाई।
फड़के यौवन ले अंगडाई।।
कोयल ज्यों मल्हार सुणावें।
पिया-मिलन की याद सतावें।।
पिया गये परदेश हमारे।
मेवा मिष्ठान मोहे ना भावे।।
सगरो सणगार यो फीको लागे।
पिया घर होवें तो नीको लागे।।
माथे की चुन्दड़ी उड़-उड़ जावे।
हार नौलखो रोल मचावें।।
भाल की बिन्दिया हो गई मैली।
पायल छत्तीसो राग सुणावें।।
ज्यों-ज्यों मेघा झरमर बरसें।
नेणा नीर म्हारें सागर झलके।।
द्वार खड़ी मैं पंथ निहारूं।
राह थक-थक नेणा हारें।
डांगोरिया यह विरह की आंधी
बिना नीर ज्यों मछली तड़पे।।
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परिचय:
नाम : रामनिवास डांगोरिया(वाल्मीकि)
पिता का नाम : स्व. श्री दरियावराम (वाल्मीकि)
जाति : मेहतर (वाल्मीकि)
जन्मतिथि : 30.06.1971
जन्म स्थान : बारां जिला बारां
वैवाहिक स्थिति : विवाहित
लिंग : पुरूष
भाषा : हिन्दी, हाड़ौती
राष्ट्रीयता : भारतीय
वर्ग : एस.सी.
धर्म : हिन्दू
स्थाई पता : शिवाजी नगर, मारवाड़ा बस्ती, बारां
तहसील बारां, जिला बारां (राज.)
पिन - 325205
शैक्षणिक योग्यता : मैट्रिक पास
सदस्य : अखिल भारतीय साहित्य परिषद,
राजस्थान (इकाई) बारां
लेखन : कविता, गजल एवं लेख
सम्प्रति : जिला स्तरीय समाचार पत्रों में कविताएं प्रकाशित
रामनिवास डांगोरिया (साहित्यकार)
साहित्य परिषद बारां (राजस्थान)
माँ कविता मे बहुत सुन्दर वर्णन है ।
जवाब देंहटाएंAAPKO BHUT BHUT DANYWAD (THANKS)
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