24 जनवरी सरस्वती जयंती पर विशेष य़ा देवी सर्वभूतेषू विद्यारुपेण संस्थिता* नमः तस्यै नमः तस्यै नमो नमाः भारतीय संस्कृति में व्रत, पर्व एव...
24 जनवरी सरस्वती जयंती पर विशेष
य़ा देवी सर्वभूतेषू विद्यारुपेण संस्थिता* नमः तस्यै नमः तस्यै नमो नमाः
भारतीय संस्कृति में व्रत, पर्व एवं उत्सवों का विशेष महत्व है. यहाँ कोई भी ऎसा दिन नहीं होता, जिस दिन कोई-न-कोई व्रत, पर्व या उत्सव न मनाया जाता हो. माघ माह की शुक्ल पंचमी को मनाये जाने वाले महासरस्वती महोत्सव का महत्व अनुपम है. भगवती सरस्वती विद्या, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी है तथा सर्वदा शास्त्र-ज्ञान देने वाली है. भगवती शारदा का मूलस्थान अमृतमय प्रकाशपुंज है. वे अपने उपासकों के लिए निरन्तर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत धारा प्रवाहित करती हैं. उनका विग्रह शुद्ध ज्ञानमय, आनन्दमय है. उनका तेज अपरिमेय एवं दिव्य है. वे ही शब्दब्रह्म के रूप में प्रस्तुत होती हैं. सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पाँच भागों में विभक्त कर लिया था. वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा, और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से उत्पन्न हुईं थीं. उस समय श्रीकृष्णजी के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ.
भगवती सरस्वती सत्त्वगुण संपन्ना हैं. इनके अनेक नाम है जिसमें वाक, वाणी, गीः, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, धीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध है. ब्राहमणग्रंथ के अनुसार वाग्देवी ब्रह्मस्वरुपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं. ये ही विद्या, बुद्धि और सरस्वती हैं. “श्रीमद्देवीभागवत” और “श्रीदुर्गासप्तशती” में भी आद्याशक्ति द्वारा अपने-आपको तीन भागों में विभक्त करने की कथा प्राप्त होती है. आद्याशक्ति के ये तीनों रूप महाकाली, महालक्षमी, और महासरस्वती के नाम से जगविख्यात हैं. ब्रह्मवैवर्तपुराण प्रकृति खण्ड ४/३४ के अनुसार माघमास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को अमित तेजस्वनी और अनन्त गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना निर्धारित की गई है. इस दिन अर्चना-पूजा तथा व्रतोत्सव के द्वारा इनके सांनिध्यप्राप्ति की साधना की जाती है. वसन्तपंचमी को माँ सरस्वती का आविर्भाव-दिवस माना जाता है. इनकी पूजा-अर्चना के साथ ही बालकों के अक्षरारम्भ एवं विद्यारम्भ की तिथियों पर सरस्वती पूजा का विधान किया जाता है. “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा” इस अष्टाक्षरयुक्त मन्त्र से उपासक माँ भगवती सरस्वती का आव्हान करते हुए स्तुति करना चाहिए. “सरस्वतीं शुक्लवर्णा सस्मितां सुमनोहराम * कोटिचन्द्रप्रभामुपुष्टाश्रीयुक्तविग्रहाम वन्हिशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकधारिणीम * रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषिताम सुपूजितां सुरगणैर्ब्रह्मर्विष्णुशिवादिभिः * वंदे भक्तया वन्दितां च मुनीन्द्रमनुमानवैः
इसके अतितिक्त भगवती सरस्वती की स्तुति एवं ध्यान करने के लिये निम्नलिखित श्लोक जगविख्यात हैं.
“या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा। “
-( अर्थात् जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान हैं, जिन्होंने श्वेत कमलों पर अपना आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली ऐसी मां सरस्वती आप हमारी रक्षा करें। )
भगवती सरस्वती की उत्पत्ति सत्त्वगुण से हुई है. अतः इनकी आराधना करने वाले उपासक सत्व गुणॊ से युक्त होते हैं. ऎसा कहा जाता है कि लक्ष्मी की उपासना से धन की प्राप्ति होती है. हम सभी जानते हैं कि जहाँ धन होगा वहाँ कलह होना स्वाभाविक है. लेकिन भगवती सरस्वती की आराधना करने से उपासक ज्ञानवान तो बनता ही है, उसे धन की भी प्राप्त होती है. इनकी आराधना और कृपा से प्राप्त धन से पूरा जीवन सुखमय तरीके से बीतता है, क्योंकि यह धन हमेशा सदाबुद्धि बनाये रखता है. माँ भगवती सरस्वती की कृपा से महर्षि वालमीकि, व्यास, वसिष्ठ, विश्वामित्र तथा सौनक आदि ऋषि कृतार्थ हुए. महर्षि व्यासजी की स्वल्प व्रतोपासना से प्रसन्न होकर सरस्वतीजी कहती हैं-“ व्यास ! तुम मेरी प्रेरणा से रचित वाल्मीकि रामायण को पढो, वह मेरी शक्ति के कारण सभी काव्यों का सनातन बीज बन गया है. उसमें श्रीरामचरित के रूप में मैं साक्षात मूर्तिमती शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हूँ भगवती सरस्वती को प्रसन्न करके उनसे अभिलषित वर प्राप्त करने के लिये विश्वाविजय नामक सरस्वती-कवच का वर्णन भी प्राप्त होता है. इस अद्भुत कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यशृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पायी थी. इस कवच को म्सर्वप्रथम रासरासेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोकधाम के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमण्डक्ल में ब्रह्माजी से काथा था.तत्पश्चात ब्रह्माजी ने गन्धमादन पर्वत पर भृगुमुनि को इसे दिया था. कालीदास के बारे में सभी जानते हैं कि वे पहले मूढमति थे. बाद में उन्होंने भगवती की आराधना की और कविकुलगुरु कालीदास कहलाए. गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों ही एक समान पवित्रकारिणी हैं. एक पापहारिणी और एक अविवेक-हारिणी हैं पुनि बंदऊँ सारद सुरसरिता* जुगल पुनीत मनोहर चरिता मज्जन पान पाप हर एका* कहत सुनत एक हर अबिबेका.
विद्यार्थियों के लिए विशेष
भगवती सरस्वती विद्या की अधिष्ठातृ देवी हैं और विद्या सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है. अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपनी पढाई शुरु करने से पहले माँ भगवती सरस्वतीजी का ध्यान करें और “या कुन्देन्दु तुषार हार धवला...........” को मन ही मन दोहराते हुए उन्हें विद्याधन प्राप्त हो, इस तरह की मन में अभिलाषा रखते हुए दत्तचित्त से देवी की प्रार्थना करें. इस विधि को हमने भी अपने बचपन में प्रयोग में लाया है. निश्चित ही इससे स्मरण-शक्ति में वृद्धि होती है और आपको हर पढी हुई चीज आजन्म याद रहती है. आप सभी जानते हैं कि ज्ञानवान और विद्वान लोग सर्वत्र सम्मान पाते हैं. वे अपने ज्ञान से/अपने विद्याध्ययन से समाज को मार्गदर्शन देते हैं. वे इस धन से स्वयं लाभान्वित नहीं होते,बल्कि औरों को भी इससे लाभान्वित करवाते रहते हैं. विद्या प्राप्त करने के लिए कोई आयु सीमा निर्धारित नहीं है. आप चाहें जिस उम्र के क्यों न हों, इस धन से लाभान्वित हो सकते हैं. गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने से पहले विद्यार्थियों को चाहिए के वे मन लगाकर अभ्यास करें. अभ्यास शुरु करने से पूर्व भगवती का ध्यान करना न भूलें और पूरे मनोयोग से पढाई में रम जायें. विद्या और बुद्धि की साक्षात अधिष्ठात देवी भगवती सरस्वती की महिमा अपार है. भगवती देवी के बारह नाम हैं. इन बारह नामों की नामावली का पाठ करने से भगवती सरस्वती मनुष्य की जिव्हा पर विराजमान हो जाती है. वह इस प्रकार से है- प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती* तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी* पंचम जगती ख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा* सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी* नवमं बुद्धिदात्री च दशम वरदायिनी* एकादशं चन्द्रकान्तिर्द्वादशं भुवनेश्वरी* द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः* जिव्हाग्रे वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती.
अपने निर्धारित पाठ्यक्रम के अलावा उन तमाम पुस्तकों को भी पढें जो आपके ज्ञान में श्रीवृद्धि करती हो. स्वाध्याय के साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें. आपको यह बतलाना भी जरुरी है कि आज के इस भागमभाग और अस्त-व्यस्त वातावरण ने जीवन में तनाव भर दिया है. चारों तरफ़ अशान्ति का वातावरण व्याप्त है. कहीं से भी आपको वे खबरें पढने अथवा सुनने को कम ही मिलती हैं, जो आपको प्रसन्नता से भर दे. इन्टरनेट-टीव्ही- और मोबाईल के इस युग में एक नयी क्रान्ति अवश्य आयी है, लेकिन इन आविष्कारों से जो समुचित लाभ उठाया जाना चाहिए, वह न उठाते हुए उनका गलत प्रयोग इन दिनों कुछ ज्यादा ही हो रहा है. कुल मिलाकर इतना कहा जा सकता है कि यन्त्र तो यन्त्र ही होता है, बस हमें उनके कुशल संचालन करते हुए ज्यादा से ज्यादा फ़ायदा उठाना चाहिए .न कि उनका गलत प्रयोग करना चाहिए. उपरोक्त विधि के अनुसार चलते हुए आप माँ भगवती की कृपा के सुपात्र तो बनेंगे ही, अपने माता-पिता का गौरव भी बनेंगे. समाज में आपका मान-सम्मान बढेगा. और वह दिन भी आएगा जब आप सकल समाज का मार्गदर्शन करेंगे. आज यह समय की मांग भी है.
--
103 कावेरी नगर ,छिन्दवाडा,म.प्र. ४८०००१
07162-246651,9424356400
COMMENTS